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तु त. ट प – वतनी क ु टयाँ संभा वत ह चंू क पाठ को वचा लत फ़ॉ ट प रवतक के ज रए पां त रत
कया गया है
न दलाल भारती
ामीण भारत एवं शहर भारत के बीच दरू कम करने म लेखक एवं काशक क भू मका
ामीण भारत अथात गांव,गांव का नाम आते ह हमारे सामने कई तरह के य उभर आते ह
िजन य म शा मल होते है गोबर से लपे संवरे सजे घर आंगन,माट का सोधापन,हरे -भरे खेत
ख लहान,खेत म काम करते,बोझ ढोते गर ब मजदरू,मैदान म केट/ ग ल ड डा खेलते ब चे,
साइ कल क रम अथवा लोहे क गडार पगडि डय पर दौडाते ब े◌ा,महाजनी
यव था,गर बी,भू मह नता,अंध व वास एवं अनेक बराईया
ु । दसर
ू तरफ शहर का नाम आते ह
मायानगर का बोध होता है -गगनचु बी इमारत, धआं
ु उगलते कल कारखाने आ लशान को ठयां /
ससि
ु जत दफ् तर चकाच ध और भ व य संवारने क उ मीद अथात स प नता के हर इ तजाम ।
सच मायने म यह य ामीण भारत एवं शहर भारत के बीच दरू न मत करते आ रहे ह
।इस दरू को कम करने के लये लेखक एवं काशक सदा से यासरत ् है । उनक को शशे भी
कामयाब हई ु है । सामािजक याय के े म दये गये योगदान को ेमच द को सदा याद कया
जाता रहे गा । सामािजक कर ु तय और नार शोपण पर आधा रत उनक रचनाय कत यबोध,
समाज को जोडने एवं सदभावनापण
ू वातावरण न मत करने म अहम ् भू मका नभायी ह चाहs
वह ामीण भारत रहा हो या शहर ।
ामीण भारत एवं शहर भारत के बीच दरू का मु य कारण रोजगार एवं वकास कहा जा सकता
है । यह कारण है क ामीण भारत शहर क ओर आक पत हआ ु है । गारमीण
् भारत आज भी
कई सु वधाओं से वं चत है । इस बारे म च तन का मु दा लेखक ने अपनी रचनाओं के मा यम
से शीप से लेकर आमजन तक को दया है । प रणाम व प द ू रयां कम हई
ु है । आजाद के
दन म जन जागरण के लये लेखक ने खब
ू लखा और काशक ने आतंक के साये म रहते हएु
भी का शत कया । िजसके सख
ु प रणाम आये । जातीय े ठता- न नता, गर बी -अमीर से
उपजी सामािजक पीडा के आ ोश को कम करने के लये भी खब
ू लखा गया है प रणाम व प
1
वकास का रथ ामीण भारत क ओर भी ख कया है ,िजससे ामीण भारत और शहर भारत
के बीच दरू ज र कम हई◌्
ु र है । ामीण भारत और शहर भारत के बीच क दरू कम करने के
लये बहत
ु कछु लखा जा चका
ु है और बहत
ु कछ
ु लखा जा रहा है बहतु कछु शेप है। आशा है
क लेखक/नवो दत लेखक लेखन का के ब द,ु -नै तकता एवं रोजगारो मख ु ी श ा / ामीण
तर सचना
ू एवं ादय◌ौ
् गक के ो क थापना/कल कारखान क थापना को ो साहन
।-सामािजक एवं आ थक याय /सामािजक बराईय
ु एवं जा तवाद पर कठराघात
ु /भू मह न मजदरू
को रोजगार/ वा थ- णह
ू या एवं बा लका वकास /नार अ धकार/गारमीण
् भारत म रोजगार के
अवसर / वकास रथ गांव क ओर कैसे बढे एवं ामीण भारत और शहर भारत के भेद क
मान सकता म बदy◌ाव आ द वपय को बनाये तथा काशक ाथ मकता के आधार पर का शत
कर।
उपरो त मु दो पर लेखन ामीण भारत और शहर भारत के बीच क दरू को कम कर सकता है
। पर तु सम या यह है क ये सा ह य ामीण भारत और शहर भारत के शीप से आमजन तक
पहंु चे कैसे । इसके लये सरकार को आगे आना होगा । सा ह यकार के संघप को वीकार कर
उ चत मू यांकन और उ चत सहयोग भी करना होगा । पाठको को भी इस महाय म पणा
ू
आहु त भी डालनी होगी तभी यह य परा
ू हो सकता है । प रवतन तो वैचा रक ाि त से आता
है। वतमान दौर म अ य साधन क घसपै
ु ठ क वजह से जनमानस कताब से दरू होता जा रहा
है । ऐसे दौर म आव यक हो गया है क लेखको के वचार उनक रचनाय गांव गांव एवं शहर
शहर तक के पाठको तक पहंु चे और आवाम के बीच चचा हो। कृ तय के◌े य व य क
िज मेदार सरकार सं थाओं को उठानी होगी । तभी लेखक एंव काशक का प र म फल भत
ू हो
सकता है ।
यथाथ के धरातल पर भारतीय अि मता जो हमारे दे श के धम आ या म,योग व ान और
सा ह य के प म वराजमान है उस पर अफसोस करने क बजाय गव करना चा हये । अभी भी
उ मीद का सोता सखा
ू नह है । आव यकता इस बात क है क हम श ा प द त म
बदलाव,सामािजक समानता,गर बी उ मल
ू न आ द मु द पर कलम चलाये तो यक नन दे श और
समाज को लाभ पहंु चेगा । अं धयारा चाहे िजतना भी गहरा य न हो वह सबह
ु ज र आयेगी ।
द ू रयां चाहे जैसी भी इन द ू रय को जन जागरण के मा यम से समा त कया जा सकता है । यह
काय लेखक बखबी
ू करते आ रहे है । लेखक समय का पु ह ,सजनकार
ृ ह , काशक मू त कार है
और पाठक ाण त ठा करने वाला।
लेखक और काशक ामीण भारत और शहर भारत के बीच सेतु का काम करते आ रहे है और
भ व य म करते रहगे । बदलते समय म लेखको एवं काशको क भू मका को और अ धक मह व
दया जाना चा हये।
दरू आदमी आदमी के बीच हो, ा त और ा त के बीच हो या दे श -दे श के बीच है फलदायी तो
नह हो सकती ।दरू क अ तरा मा म कु ठा है। बाधा है। कावट है सामािजक उ थान क राह
मे◌े◌ं आ थक उ थान क राह मे◌े◌ं और नै तक उ थान क भी । वत ता प रपण
ू बोध है ।
यह तभी स भव हो सकता है जब बा य एवं आ त रक एक पता हो, समानता हो। वत ता क
अनेक सस कयां आज भी जी वत है । यह दा तान हमार वत ता को मजबती
ू दान कर रह
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है । कछ
ु ऐसी ह ह ामीण भारत और शहर भारत के बीच क द ू रय क दा तान है। इस
दा तान को भले ह कोई नह सन
ु रहा है पर तु लेखक सन
ु रहा है । उन एहसास म जी रहा है ,
तभी तो रचनाओं का संसार खडा कर रहा है । यक नन वह अपने रचना संसार से दे श समाज का
भला कर रहा है। द ू रयां वैचा रक ाि त से कम क जा सकती है । इस वैचा रक ाि त म
सामािजक याय और आ थक उ थान क स भावना समा हत हो तो नि चत प से ामीण
भारत और शहर भारत के बीच द ू रयां मटे गी ।
लेखक एवं काशक सदा से दे श -समाज क द ू रयां कम करने का यास करते रहे है । वतमान
म ामीण भारत और शहर भारत के बीच न मत हो रह द वारो को लेखक अपने लेखक य धम
और काशक अपने कम से मटाने म कामयाब होगे । पाठको◌े को भी अपने फज से वमख
ु
नह होना चा हये ।
न दलाल भारती
आज के इस यग
ु म समाज सेवा का भाव लु त हो रहा है । समाज सेवा का भाव वा तव म
महा मा गांधी और डां अ बेडकर म था । वे ह समाज सेवा के लये जीये । बाबा साहे ब ने तो
सामािजक अ प ृ यता का जहर पीकर भी गर ब द न वं चत के लये ह जीये । उनका जीवन ह
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द न वं चत को सम पत रहा । दभा
ु यबस दे श और जनता क सेवा क कसम खाने वाले ह
टाचार,घोटाला,कबरबाजी
ू जैसे घनौने काय म ल त पाये जा रहे ह , े वाद फैला रहे है । एक
रा य से दसरे
ू रा य म रोट रोजी क तलाश पर रोक लगाने को उ सक
ु है जब क दे श के नवासी
को दे श के कसी भभाग
ू पर बसने और रोट रोजी कमाने का अ धकार होना चा हये दसर
ू ओर
यापार मलावट ,नफाखोर म लगा हआु है उ योगप त भी पीछे नह नजर आते ।द र क बढती
द र ता और अमीर का खडा होता धन दौलत का खडा पहाड दे खकर सवाल उठता है सह मायने
म गर बी के लये िज मेदार कौन ह और दे श के गर ब का उ दार कैसे हो । या लोकत के
पहरे दार ऐसे ह सफेद को काला करते रहे गे ।उ योगप त, यापार धन दौलत पहाड खडा करते
रहे गे । सफेदपोश वदे शी बको म धन भरते रहे गे । या गर बी को सरकार काबू म कर पायेगी
। या गर बो का उ दार जात के यग
ु म हो पायेगा । या लालफ ताशाह गर ब का साधन
स प न बनाने म समथ होगी । या बेरोजगार भ ता और वजीफा भर से दे श का यवा
ु जीवन
यापन कर पायेगा । सह मायने म गर बी उ मूलन म सामािजक असमानता और आ थक/उ योग/
यापार/धंधे का के करण गर बी को हवा दे ने म सहायक सा बत हो रहा है । इस हवा का ख
सरकार बदल सकती है पर सरकार चलाने वाले अपने दा य व का नवहन ईमानदार d◌े साथ दे श
और समाज के हत म कर ।
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धंधा म लग सके और दे श क तर क म सहभागी बने । छा विृ त खासकर गर ब तबके
श ा थय के लये वरदान सा बत होती है । रोजगारो मुखी श ा द जाये । ामीण तर तक
ोफेशन स इजक ु े शन क पहंु च हो िजससे गांव के होनहार श ा ा त कर वकास क धारा से
जडु सके ।य द यवा ु शि त नव न◌ामण एवं रोट /रोजी से जड ु गयी तो गर बी का उ मल
ू न
सु नि चत है ।
समाज भम
ू डल यकरण के यग
ु म सामािजक प रवतन म आगे आये। सामािजक सोच म बदलाव
भी गर बी उ मल
ू न म काफ हद तक मददगार सा बत हो सकता है । वतमान यग
ु म भी
सामािजक प रवतन क अ य त आव यकता ह । धा मक जातीय फंसाद भी गर बी के लये
िज मेदार है,इस लये सामािजक समानता था पत हो ।चीन जैसे दे श के लये जनसं या अ भशाप
नह है तो हमारे दे श के लये य दे श म हर े म स भावनाये व यमान है चाहे वे कृ प का
े हो या उ योग का या अ य कोई े ।दे श के धना य चाहे तो गर बी का उ मूलन हो सकता
है।इस स भावना पर सरकार को बार क से वचार करना होगा । य द दे श से गर बी मट गयी
और सामािजक समानता का सा ा य था पत हो गया तो आतंकवाद जैसी महामार का खतरा भी
टल सकता है ।रोजगार चरु मा ा म उपल ध होने क दशा म ब दक
ू थामने वाले हाथ
असामािजक त व से हाथ मलाने वाले हाथ रोजगार अपनायेगे । ब दक
ू नह थामेगे ।
असामािजक त व के कच
ु के शकार नह होगे । सामािजक बराईया
ु बार बार सर नह उठायेगी
। सरकार को ठोस कदम उठाने होगे । सामािजक एवं आ थक पहलओं
ू पर वचार मंथन के साथ
राजनै त ढ इ छा शि त का भी प रचय दे ना होगा । य द सरकार सामािजक आ थक एवं
राजनै त कारको म सम वय था पत कर गर बी उ मूलन का महासमर नह जीत पायी तो इस
आरोप से नह बच पायेगी क सह मायने मे सरकार ह गर बी के लये िज मेदार है ।
न दलाल भारती
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◌
ै ाि वकरण भम
ू डल यकरण एवं सचना
ू ाि त के यग
ु म आदमी सफ यापार एवं भोग के पीछे
भाग रहा है । वैि वकरण के के म अब आद मयत रह ह नह मानवीय संवेदनाये भी पंगु हो
चक
ु है। भोग वलास एवं अपसं कृ त का आतंक जार है ।पद क बाते सावज नक दशन क हो
ग रह है ।समाज म हसां एवं अनाचार का घनौना प हंु कारे भरने लगा है ।इससे यवा
ु पीढ
कु ाभा वत हई
ु है । स धम,स भाव,सं कार,आचार वचार और सं कृ त का अवमू यन दन पर
दन होता जा रहा है । ऐसे म मानवीय मू ये◌ा◌ं को बचाये रखना हर यि त का नै तक कत य
हो गया है । जातीय/धा मक संक णता से उपर उठकर मानवता के लये जीने का व त आ चका
ु
है । य द अपसं कृ त का शकार हमार पीढ होती रह तो सं कार का सोधापन ख म हो जायेगा
।हम स सं कार को बचाये रखने के लये हर यास करना होगा िजससे आद मयत क आ मा
आदमी म बसी रहे ।
अपसं कृ त क आंधी ने हमार पा रवा रक यव था को भी तोडा है । हमार पा रवा रक यव था
हमार धरोहर रह है ,पहचान रह है हमारे परख
ु क वरासत रह है जो स य और सं कारवान
बनाती ह ।वतमान यगु म हमार पा रवा रक यव था पर भी हमला हआ
ु ह । अनाथालय एवं
व ृ दाआ म खल
ु रहे है । िजसक छावं म अनाथ ब चे और मौत से जझते
ू बढेू लोग जीवनयापन
कर रहे है । आजकल महानगर म ह नह छोटे छोटे िजल मे भी ओ ड एज होम क पर परा
वक सत होने लगी है । िजनम बहत ु सं थाय पैसा लेकर सेवाये दे रह ह ओर कछ
ु सं थाय
मफ
ु ् त म भी सेवाये दे रह है ◌ं। आज माडन यग ु क औलाद अपने बढेू मां बाप को अपने साथ
रखना पस द नह कर रह है ।यह पि चमी स यता क ह दे न है ।यह नह कहा जा सकता ह
पि चम के हर सं कार बरेु ह । हम नकल करनी ह तो अ छाई क करनी चा हये जो दे श समाज
और पा रवा रक यव था के अनकल
ु ू हो ।
हमार सं कृ त और पा रवा रक यव था अ य मू क क तलना
ु म हम अ य धक गौरव दान
करती ह । आज उसी पर खतरा मडराने लगा है ।पार व◌ा रक यव था हमार पहचान है जो हमे
अ धक स य एंव सं कारवान बनाता है ।टटती
ू हई
ु पा रवा रक यव था को ठोस बु नयाद पर
ति ठत कया जा सकता है । इस वैि वकरण के यग ु म समानता और मानवीय सरोकारो का
था पत करना होगा । तभी हम मानवता को बचाये रख सकते ह । व वब धु व के भाव को
पोपण कर सकते है । यापार और भोग के पीछे भागते रहना मानवीय संवेदनाओं से छ न भ न
कर दे गी ।हमार सदा से यह पहचान रह है क हम अपनी जड से जडे
ु रहना जानते है पर आज
उसी जड पर हार पा रवा रक यव था और सं कृ त से अलग करने क सािजश लगता है ।हम
अपनी बु नयाद से जडे
ु रह कर अपने सपनो को साकार कर सकते है । हमार पा रवा रक
यव था सं कृ त और भापा हम एक दसरे
ू से जोडे रखने का महाम ह । हम अपनी सं कृ त
को बचाये रखने के लये अपसं कृ त का ब ह कार करना होगा । सामािजक असमानता के म
को तोडना होगा। वतमान यग
ु म यह आव यक हो गया है क हम अपने ब च को
मातभापा
ृ ,सामािजक समानता, पा रवा रक यव था के त आ था एवं सं कृ त का बोध कराये ।
सच यह तो हमार क धरोहर है। इसे बचाये रखना हमारा नै तक कत य है ।
न दलाल भारती
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॥ अहंकार क कांट समाज क फांस ॥
आचरण और आ त रक च तन य कत व का काशपंुज होता है। यह यि त को नभ क
शि तशाल मानवतावाद और परमाथ बनाता है तथा मन वचन और कम को उ चता दान कर
दे व व के कर ब ला खडा कर दे ता है । स भाव से आद मयत गौराि वत होती है ।दसर
ू ओर
अहंकार का भाव जीवन को अ भशा पत कर दे ता है । म ह बडा हंू । म ह े ठ हंू । मेरे बना
दे श और द नह न समाज का उ दार नह हो सकता ।आदमी घम ड के बशीभत ू होकर शोपण
उ पीडन पर उता हो जाता है । अपने लोगो का हत अपना हतएअपने इद गद घमने
ु वालो
और अपने सगे स बि धय को वशेप रयायत । दसर
ू लोगो और कमजोर के शोपण,जु म और
दमन आ द यवहार आदमी के यि त व के पतन का पतन का प रचायक होता है ।अहंकार से
यवहार और आ मा क प व ता का भी वनाश हो जाता है ।अ भमान क कांट समानता क फांस
दे श और समाज दोनो के लये हा नकारक है । वपर त समय आने पर अ भमान काम नह आता
है ।चाहे यि त कतने ह बडे ओहदे पर य ना आसीन हो अथवा कतनो ह बडी जातीय
े ठता न हो ।वह अपने लोगो का कतना ह भला य न कया हो शो पतो उपे तो के साथ
अ याय कर । वा तव म द नह न गर ब के साथ अ याय और अपना अथवा अपन का भला
अपराध है । िजस अपराध से यि त कभी भी नह बच सकता । इ तहास गवाह है अ भमान
वनाश का सचक
ू सा बत हआ
ु है । आज के व ान के यग
ु म भी अ भमान क वजह से
कमजोर गर ब, सामािजक पछडो,कमजोर वग के उ च श ◌ात का शोपण,जु म और अपने लोगो
को वशेप सु वधा वशेप रयायत तक द जा रह है । पद त ठा के अहंकार क वजह से
यि त अपन को आबाद और द नह न को तबाह कर चैन कभी नह पा सकता । उसे अहंकार के
शोले से जलाकर राख कर दे गे । जब हटलर जैसा यि त नह बच सका तो पद दौलत और
जातीय े ठता का अ भमान कहां बचा सकता है ।पौरा णक कथाओं के अनसार
ु रावण ,कंस और
भी बहत
ु अ भमानी अंहकार के शकार हए
ु िजसक वजह से उनका नाम इ तहास के काले अ र
म लखा गया ह । िजनके नाम पर आज भी द ु नया थकती
ू है ।
कछ
ु े ठता ा त अहंकार लोग अपनी तर क के रा ते म आने वाले श स को उखाड फकना
चाह रहे ह और वाथबस अपने से बडे अ भमानी क चरणव दना करने से भी नह चकते
ू । इसके
लये वे हर हथक डे अपनाते है और अपने मतलब क पू त के लये कछ
ु भी करने को तैयार
रहते है । यि त यह जानता है क अहंकार,छल, पंच,शोपण,जु म आ द अमानवीय यवहार
जीवन या ा के आधार नह है । इसके बाद भी वह द नह न स जन उ च कद वाले यि तओं
का दमन कर खद
ु को े ठता के सं हासन पर ति ठत करने क अंधी दौड म है ।
बरेु व त म जब अहंकार क धप
ू हट जाती है तब उसे भान होता है क जो उसने दमन कया है
वह फलदायी नह है । वनाश होने अथवा वनाश क कंगार पर पहंु चने पर अहंकार यि त को
भान होता है क उसका अहंकार भाव िजसक बदौलत वह द नह न का शोपण कया वह वा तव
म उसका द ु मन है ।हम गर ब द नह न के क याण का काय करना चा हये था पर तु जब वह
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क याण के काय करने का साम य रखता था तब तक तो वह वाथ के लये दमन पर उतरा
हआ
ु था ।उसके वचार से अहंकार द भी पाख डी और े ठता के नाम पर कमजोर के अरमान
का दहन और उनके हको पर क जा उसके जीवन का आधार था । समय के करवट बदलते ह
लाचार हो जाता है । आद मयत वरोधी भाव ता य हो जाता है । वे मखौटा
ु बदलने म जट
ु तो
जाता है पर उनके घनौना पव
ू के मखौटे
ु के छ व धू मल नह होती ।वतमान समय म कछ
ु लोग
सफल शासक बनने के लये ू रता का सहारा ले रहे है । वैभवशाल ढं ग से जीवन के लये
लटखसोट
ू , ारचार, अहंकार द भ पाख ड, दखावा और े ठता के नंगे दशन को ज र मानने
लगे है । वा तव म ऐसे लोग े ठता के पा नह घणा
ृ के पा बनने क इबारते लखते ह भले
ह वे पद पर रहते कतनो क झठ
ू त ठा का द भ भर ल ।
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सा दा यकता एकता और तर क क द ु मन है । िजसक अ तरा मा म भी बदले का भाव है
मानवता का वनाश है । बंटवारे क आग है । सा दा यकता कभी भी दे श और आवाम के लये
लाभकार नह हो सकती । सा दा यकता का ब ह कार ह समता के भाव क अ भविृ द है ।
दभा
ु य यह है क व ान के यग
ु म भी आदमी मानवीय समानता के भाव को वीकार नह कर
पाया है । आज आदमी कपाय-राग े प मद, ोध उ◌ु◌ंच नीच के जहर ले सम दर म डब
ू रहा है ।
प रणाम व प े वाद,जा तवाद, वरोध हं सक व ृ त पैदा हो रह है । दसर
ू क बराई
ु अपना
गणगान
ु आज के आदमी ल य हो गया है । इस वपैले वातावरण म हमारा कत य होना चा हये
क हम समता के भाव म अ भविृ द करने के लये साथक पहल करे । वपमता के घोर अ धयारे
म जगने
ु बने और सदै व सामािजक समता के लये काय करे । िजस दन सामािजक समता का
सा ा य हो जायेगा सा दा यकता ऐसे पशाच का सवनाश वतः ह स भव है । समता के लये
हर यि त को यास करना होगा याग करना होगा। पर तु स चाई तो यह है क यावहा रक
जीवन म लोग कसी को धन से बडा मानते है कसी को पद से कसी को वैभव से कसी को
जा त से तो कसी को भय से ।
न दलाल भारती
॥ लोभ दग
ु त का मायावी रा ता ॥
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ह ऐसी कसी को नह छोडती अपने चंगुल म जब फंसा लेती है ।आदमी को दग
ु त के लभावने
ु
रा ते पर ला खडा कर दे ती है ।लोभ म या ि ट दान करता है ,िजसके च यूह म फंसकर
यि त वतमान के साथ भ व य तक तबाह कर लेता है । लोभ यि त और समाज दोन को
पतन क राह पर ले जाता है । लोभ के वशीभत
ू लोगो म वासना और झठ
ू लालसा क बाढ आ
जाती है । लोभी यि त क अ तरा मा मर जाती ह । वह चौबीस घ ट माया बटारे ने म लगा
रहता ह । इसके लये वह अनै तक काय करने से भी नह चकता
ू ।लोभी व ृ त के कारण सारा
जीवन वकत
ृ हो जात ह ।धन बटोरने का पागलपन सवार हो जाता ह ।वह स प त बढाने के
सनक म वकत
ृ जीवन जीता है ।लोभी यि त क वचारधारा भी कलु पत हो जाती है । वह सफ
धन वैभव को सब कछ
ु समझता है । र त के स धेपन को भी भल
ू जाता है । वह अपने से
अ धक स प त,शि त वाल से भी जलन करने लगता है ।वह अपने अधीन थ का शोपण करने
से भी जरा भी नह हचकता । लोभ का वशीभत
ू यि त द ु नया के वैभव को हडपने का वाब
दे खने लगता है ।स तोप तो उसक च तन प र ध से कोसो दरू हो जाता है। वह तो बस द ु नया
भर क स प त जोडने क हाय हाय म लगा रहता है यह जानते हए
ु क वह स प त के पहाड पर
बैठकर भी त नक भी आि मक सखानभ
ु ु ू त नह ा त कर सकता । जब क उससे कह अ धक
सखानभ
ु ु ू त एक गर ब अपनी झोपडी म खी सखी
ू खाकर ठ डा पानी पीकर ा त कर लेता है ।
लोभ ववेक को बरु तरह तहस नहस कर दे ता है ।उसक च तन/चेतना शि त समा त हो जाती
है । लोभ उसे दग
ु त के मायावी राह पर खींचकर ले जाता है । लोभ ऐसी दग
ु त क राह पर ले
जाकर पटक दे ता है क यि त क दशा अंधेरे म द पक के बझने
ु सर खे हो जाती है जहां उसे
कछ
ु भी नह दखाई पडता ।वह इस बात से अन भ भी नह होता क द ु नया क सार दौलते
भी यि त पा लेने पर भी स तु ट नह हो सकता । कतना क ठन है लोभ ज नत इ छाओं क
10
पू त । इसके बाद भी यि त लोभ का वशीभत
ू होकर मायावी रा ता पर नकल पडता है फर
कभी मडकर
ु नह दे खता जब तक वह सामािजक वैयि तक,पा रवा र,आ त रक,धा मक सां कृ तक
एवं अ य तरो पर दग
ु त को नह ा त कर लेता ।य द जीवन को सफल बनाना है तो लोभ के
भाव को याग कर मानवीय क याण क राह चलना हतकर होगा वरना लोभ का भत
ू दग
ु त के
ऐसे मायावी राह पर छोड दे गा क जहां से फर स ग त के कसी पगड डी क उ मीद भी नह
क जा सकती। आइये मानवता के लये लोभ से दरू बनाये रखने क शपथ ले ले िजससे
सामािजक वैयि तक,पा रवा र,आ त रक,धा मक सां कृ तक एवं अ य rरो पर आदश था पत
कया जा सके ।
न दलाल भारती
ले◌ाकताि क यव था का द ु पयोग कर कछ
ु सफेदपोश भले ह अपना हत साधने म कामयाब
हो रहे हो पर तु इस यव था म समाज एवं समाज के नीचले तबके अथात शो पत/पी डत वग
और दे श क सेवा का भाव केि त ह । जननायक चाहे वह कसी भी पाट का त न ध व करता
हो पर उसक अ तरा मा म दे श और जन सेवा का भाव होता ह। यह भाव जनताि क चेतना का
ह जीव त उदाहरण है ,कछ
ु अपवाद हो सकते ह ।जननायक के मा यम से समाज के उ च वग से
लेकर अ त न न वग जनताि क चेतना का संचार होता ह और इसी जनताि क चेतना के
सोधेपन क छांव म दे श और समाज तर क के सोपान चढता है । जनताि क चेतना के कारण
आवाम म आ म व वास बढा है ।जनताि क चेतना का असर आज हर े म दखाई पड रहा
है चाहे सामािजक हो ,आ थक हो या रा◌ाजनी तक।जातीय भेद क द वारे गराकर मानवीय
स ब ध म जो अपनापन का भाव जागा है वहह जनत क दे न है । जनताि क चेतना से
होकर ह द ु नया क सार तरि कय का रा ता गजरता
ु है । जात -पात क मजदरू द वार म टटन
ू
,साम तवाद यव था का नाश बहजन
ु हताय बहजन
ु सखाय
ु के भाव का ेय जनतां क चेतना
को ह जाता है ।
वतमान म राजनै त वाथवस यह भावना आहत हई ु है।इसके बाद भी जनताि क चेतना
सामािजक प रवतन का कारण बन रह है ।जातीय वोट बक म टटनू ,सवण और अवणे◌ार् के बीच
रोट - बेट का र ता जनताि क चेतना का◌ी महान उपलि धय म गना जाना चा हये । िजस
जा तवाद के अमानवीय भेद के कारण अ प ृ यता जैसा यवहार होता था । आज नकटता आ रह
है । सवसमानता एवं मानवता क बात होने लगी है ।जनताि क चेतना सामािजकं प रवतन के
े म मील का प थर सा बत हो रह है । जनताि क चेतना का शंखनाद ट,इले ा नक
मी डया एवं सा ह य बखबी
ू कर रहे है पर तु अभी बहतु कछु करना शेप है । जनताि क चेतना
का भाव गांव से लेकर शहर तक दे खे जा सकते है । बांस और अधीन थ के बीच नकटता,
मा लक मजदरो
ू के बीच सौहाद पण
ू वातावरण एवं सामािजक बराईय
ु पर कठराघात
ु जनताि क
चेतना का ह तफल है । कछ
ु समय पव
ू जो लोग आपस म बैर भाव रखते थे वे अपने को
11
बांटने का सख
ु भोग रहे ह । मानवता को ह धम मानने लगे है । आ म व वास और समझदार
से हर े म छोटे बडे साथ साथ चल रहे है ।
गांव म आधु नक सु वधाय ा त हो रह है ।अ पताल,कालेज/ ा यौ गक कालेज तक खलने
ु लगे
है ।गांव गांव म सामदा
ु यक के का नमाण आधु नक कृ प य का उपयोग, छोटे बडे का एक
साथ बैठना,छोटा प रवार सखी
ु पर व◌ार के भाव का उदय ,गर बी उ मल
ू न,बेरोजगार को काम
एवं बेरोजगार भ ता जनताि क चेतना के कारण स भव हआ ु है । जनताि क चेतना का े
बहत
ु व तुत हो गया है ।ज रत है खले
ु एवं न प भाव से काम करने क तभी जनत को
मजबतू बनाया जा सकता है ।दे श समाज के वकास को दे खते हए
ु जन त न धय क िज मेदार
और बढ जाती है । दे श और समाज को तर क के राह पर बहतु दरू तक जाना है अभी तो
शु आती दौर है ।कई े ो म हम बहत
ु पीछे है ।ज रत है वाथ से उपर उठकर काम करने क ।
िजन मनु य का लोग मनु य नह समझते आज उ हे समानता का एहसास होने लगा है पर अभी
भी वे बहत
ु दरू है ।सच है जनतां क चेतना प रवतन का योतक है।जनताि क चेतना से हर
उ थान स भव है पर तु हम ढ त वान होना होगा ।
न दलाल भारती
दे श म आय का आगमन मल
ू आ दवा सय क सामािजक एवं आ थक पतन का कारण बना और
मल
ू आ दवासी हे य होते गये पर तु मल
ू आ दवासी दे श के त समपण भाव एवं म शि त
क वजह से◌े समाज से पण
ू प से न का सत नह कये जा सके । शनै -शनै वे व ह कृत होते
गये अ ततः एक वण का न◌ामण हआ ु िजसे शू का नाम दया गया । माना जाता है क
ार भ म परेू व व म तीन वग ह थे । भारत म चार अि तव म आ गये और ये सार
यव थाय मौ खक थी । ई वर य स ता के मजबती
ू के साथ ा मण नामक वण े ठता क
शखर चढता रहा और ा मण वण क े ठता को अ ु य रखने को लये शा ो का
नमाण ती ग त से हआ
ु । ीय दसरे
ू और यापार तीसरे म पर थे ।माना जाता है क वण
यव था ार भ म कम के आधा◌ार पर थी । धीरे धीरे यह कम आधा रत यव था ज म
आ ध◌ा रत होने लगी और चौथे वण अथात शू क ददशा
ु ार भ हो गयी और
अहम,् दरा
ु ह,कमका ड,चातय
ु और भेदभाव क आग भयावह प धरने लगी । यह आग मल
ू
आ दवा सय को अि त व को जलाने म जट
ु गयी । भारत के मल
ू आ दवासी गलाम
ु के पयावाची
होकर रह गये ।मल
ू आ दवा सयो के दमन म वण यव था आधा रत धा मक स ता ने आग मे
घी डालने का काय कया ।वण यव था धीरे धीरे वग यव था का प अि तयार करने लगी ।
शू के दमन और अ य वग क सरु ा के लये नये नये शा का अ यद
ु य होने लगा ।राजा
ईवर य स ता ह,बारहमण
् दे वता है। छोटा -बडा,अमीर गर ब,राजा-रं क ई वर क इ छा है ।स तोप
और धम से काम लो । कमपजा
ू है ।तकद र का लखा है ।शू नीच अछत
ू है । शू ो को
भगवान ने सेवा करने के लए बनाया है ।शू उ पादन करने के लये है बाक अ य वग उपभोग
के लये है अथात शू के शोपण, जु म का ई वर य वधान तैयार हो गया । िजसका भरपरू
12
फायदा तीनो वग ने उठाया । आदमी को पशता
ु क ेणी म लाकर खडा कर दया ।उसे अछत
ू
बना दया ।आ थक तर क के भी उसके रा ते ब द कर दये गये ।उसका धन सं हण पाप क
ेणी म आ गया ।
वतमान यग
ु म आव यक हो गया है क वण भेद के पशाच को ने तानाबूत कया जाये । कम
अधा रत यव था को आधार बनाकर ह दे श और समाज क उ न त स भव है । ज म आधा रत
यव था ने दे श समाज और भारतीय दशन को भी छला है । पराने
ु वण भेद आधा रत शा क
दहाईय
ु ने च तन और तर क को बा धत कया है । जात के हर भी इससे अछते
ू नह है
। वतमान म भी वण भेद क आड म दोहन शोपण और जु म हो रहा है ।जब तक वण -भेद
समा त नह होगा उ थान क राह मे अंगद का पांव द वार बना ठहाके मारता रहे गा । वण भेद
क आग को काबू म करने के लये ज रत है नये दशन के पौध रोपने क िजससे कम आधा रत
नये यग
ु का नमण हो सके । वण-भेद एक ऐसी यव था है जो सामािजक आ थक और
रा य एकता के लये बाधक बनी हईु है। दे श -समाज का भला चाहने वालो आओ अंगद पी
भेदभाव के पांव को उखाड फकने लये ढ त होवे।
13
न दलाल भारती
। धम नप ता-जा त नप ता य नह ं॥
वतमान यग
ु संचार ाि त भम
ू डल यकरण और व ान का अथात द ु नया के समट कर एक होने
का यग
ु हो गया है। द ु नया के लोग आपस म समरसता का यवहार कर,यह ज र है व व
ब धु व और व व शाि त के लये , पर तु धम नप ता के चार सार क राजनै त होड ने
दे श क जातीय नप ता को जैसे बसरा दया है । सव व दत है क भारतीय सामािजक यव था
वण/वग भेद आधा रत है । इस यव था म छआछत
ु ू ,भेदभाव कू है । िजससे दे श और भारतीय
और कर
ु तय का जंजाल समा हत है,जो दे श और समाज क त ठा पर बदनमा
ु दाग है । बार
बार जातीय वैमन ता पर कोहराम उठने के बाद भी जा त नप ता का ईमानदार पवक
ू शंखनाद
नह हो रहा ह । जहां दे खो वह धम नप ता के राग अलापे जा रहे है । इसके बाद भी धम के
नाम पर जो कछ
ु हो रहा है ,सभी जान सन
ु रहे है । आ खर धमर् नप ता के खोखले राग से या
भला होगा । धम नप ता का यवहार दै नक यवहार म लाने क ज रत है न क ढोल पीटने
क । इसके पहले भारतीय समाज म ज रत है जा त नप ता क । समानता क । आपसी भाईचारे
क । सामािजक एक पता क ।जा त वह नता क । धम नप ता क राग अलापने वाले जब तक
जा त नप ता का परचम नह फहराते है तब तक धम नप ता क बात करना हवा म तीर
चलाने जैसा ह होगा ।कब तक म e◌े◌ं जीते रहे गे । म कब टटे
ू गा ।
॥ सच तो ये है क आज भी आदमी अछत
ू है॥
15
समानता क बाते तो लोकलभावन
ु के लये होती है ।वोट बटोरने के लये होती ह । असल चेहरा
तो जा तवाद के रं ग म रं गा होता है ।
वतमान यग
ु म दभा
ु य क बात है क कछ
ु अ छे पढे लखे उ◌ूचे ओहदो पर वराजमान लोग भी
जातीय वैमन ता क आड म छोट बरादर के लोग का भ व य चौपट करने से बाज नह आ रहे
है । अव न त के दलदल म ध कयाते जा रहे है।कछ
ु े ो म ते◌ा तथाक थत अछत
ू जा त का
वेश ह जैसे विजत है।कह ं -कह तो यो य,उ च श त वं चत समाज के यि त क तर क
सफ उसक जातीय अयो यता के कारण नह हो पाती है।उसक अिजयां तक आगे नह बढ पाती
है । बेचारा यो यता के बाद भी जातीय जहर पीने को मजबरू हो जाता है यो क वरोध म उतरने
पर उसके प रवार का भ व य और भख
ू मरने क नौबत जो आने वाल है ।इसी दह त म वह
मौन साधे रहता है क शायद कल अ छा हो ।दभा
ु यबस वह कल नह आता ।अ त म वह हारे
हये
ु सै नक क भां त अपने ब च म ह अपना भ व य दे खने लगता है । गर ब न न जा त का
अनपढ ह नह पढा लखा ट गारा हाडफोड मेहनत क रोट से पेट क भख ू तो मटा ले रहा है
पर स मान क भख
ू नह मटा पा रहा है ।इस सब के लये हमार सामािजक कु यव था
िज ेदार है । लाख यो य आदमी को जातीय यो यता के आधार पर अछत
ू घो पत कये हए
ु है
।अछतपन
ू के कोढ पर कछ
ु तब ध तो लगा है पर यह कोढ ख म नह हआु है ।
आज भी आदमी के छने
ू से पानी अप व हो जाता है । न न जा त के कुये का पानी अप व
होता है ।कैसी वड बना है ।वं चत समाज क म हला का चीर हरण होता है ।जू ता च पल हाथ
मे लेकर चलना होता है ।द ू हा घोडी पर नह चढ पाता है । त नक त नक बात पर न न जा त
के यि त का क ल हो जाता है । जातीय वैमान ता का भत
ू सर से नह उतरा तो दे श और
समाज को नगल जायेगा। जा तवाद के च यूह को तोडना होगा। यह कैसा च यूह है क आज
के यग
ु म भी नह टट
ू रहा है जा तवाद का कै◌ेसा मोह है यह कैसी मान सकता है कैसा
धम है जा तवाद पी पशाच का तांडव व ान के यगु म भी शोध का मु दा बना हआु है ,ये
कैसा अहंकार है ये कैसी द वार है क टट
ू ह नह रह है ।वा त वकता तो ये है क समानता
का शंखनाद करने वाले अपनी ईमानदार पर खरे ह नह उतर रहे है ।कथनी करनी म अ तर का
उदाहरण पेश कर रहे ह ।
॥ रसते ज म का दद ॥
17
चौपाल हो अथवा दफ् तर जातीय-भेद के अजगर क फफकार
ु सनाई
ु पड ह जाती है । दे श के
पछ तर से अ सी फ सद लोग भेदभाव के शकार है। आज के कई दशक पहले समाज म
छआछत
ु ू काफ घनौने यौवन मे तो था ह दफ् तर भी अछते
ू न थे । खैर कछ
ु कमी तो आयी है
पर तु समा त तो नह हई ु है । कछ
ु रसते ज म का दद मझे ु भी असहनीय दद दे ता है । वो
वा या हमेशा याद रहता है जब उ◌ू◌च
ं ी पहंु च का अ पतम ् श त रईस नाम का एक चपरासी
खले
ु आम भेदभाव करता था । जब दो चार लोग इ टठा होते थे तो छोट जा त के नाम पर
अशोभनीय श दो का योग करता था । जातीय े ठ लोग चटखारे लगाकर आनि दत होते थे ।
दफ् तर और शौचालय क साफ सफाई करने वाल यादोबाई से पछता
ू य बाई तु हारे धम म
सबसे नीच जा त कौन होती है । बाई कहती धोबी । तब वह बोलता नह बाई चमार सबसे नीच
जा त होती है । तु हे अपने ह धम के बारे म कछ
ु पता नह है । कभी कभी बडे लोगो से सनने
ु
म आता जातीय छोटे लोगो को दबाकर रखना चा हये जरा सी मोह लत दये तो समझो खैर नह
।ऐसी बाते छाती म क ल ठोकंने सर ख लगती थी,खैर आज भी वैसी ह लगती है। पढे लखे लोगो
का वचार ऐसा घनौना हो सकता है तो ामीण और यग
ु से जा त के जहर ले द रया म
हचकोले खाने वालो का कैसा बरा
ु बताव होगा । आज भी सहरन पैदा हो जाती है छआछत
ु ू के
आतंक को दे खकर। वतमान समय म भी अ याचार,उ पीडन,बला कार ,चीर हरण,ह याये तक हो
रह है सफ सामािजक वपमता के कारण । ना जाने कब तथाक थत सामािजक े ठ लोग भेद
का जहर पी रहे समाज को बराबर का समझेगे ।
18
दोन के लये अ हतकर होगा । सामािजक असमानता क पोपक ताकतो का सबसे बडा गण
ु है क
वे समझौतावाद वं चतो शो पतो पी डत को सदै व अपनी गरफ् त म लपेटे रहती है और मौका पाते
ह हार कर बैठती है । इस दो मह
ु बात को समाज और दे श के नी त नधारको को समझना
होगा ।
19
।इस राजनी त से समाज के उपे
तो का तो उतना भला नह हआु िजतना होना चा हये था पर
राजनी त के खला डय को ज र भला हआ
ु है । य द उपे त समाज का भला हआु होता तो
वं चत समद
ु ाय पर अ याचार होते, मं दर वेश पर जु म होता ,द ू हे को घोडी पर चढने से रोका
जाता । बात बात पर क ल होता। नह ․․․․․ ब कुल नह ․․․․․ । इससे तीत होता है क
कह ना कह साम तवाद क जडे आज भी मजबत
ू है । कस
ु ा त करने के लये तो अलग
अलग अ दाज म धरने दशन होते है पर वं चत के हताथ जु म शोपण,अ याचार बला कार और
सामािजक कर
ु तय के खलाफ कोई धरना दशन नह होता । समाज म या त
अंध व वास, पंच,साम ती शोपण,वग भेद-वण भेद के वीभ स और कि
ु सत प पर मठाधीश
और स ताधीशे◌ा◌ं क नजर य नह जाती । शो पत समाज क उपे ा को दे खते हए
ु लगने लगा
है क राजनै तक पा टया शो पत समाज के नेताओ का उपयोग सफ स ता ह थयाने के लये
करती है हनमान
ु क भां त ।
वामी ववेकान द ने कहा है-हमारे जातीय शो णत म एक ाकर के भयानक रोग का बीज समा
रहा है ओर वह है येक वपय को हंस कर उडा दे ना-गा भीय का अभाव । इस दोप का स पूण
प से याग करो वीर होओ, दा स प न होअ◌े◌ा,दसर
ू बाते उनके पीछे आप ह आयेगी-उ हे
उनका अनसरण
ु करना होगा । अपने से न न ेणी वाले◌ा◌ं के त हमारा कत य है -उनको
श ा दे ना,उनके खाये हए
ु यि त व के वकास के लये सहायता करना । उनम वचार पैदा कर
दो - बस उ हे उसी एक सहायता का योजन है और शेप सब कछ ु इसके फल व प आप ह आ
जायेगा । आज व ान के यग
ु म भी जातीय द भ भरने वाले लोगो म जरा न न ेणी वाल
के त नरमी का
20
भाव दे खने को नह मल रहा है ।जातीय द भ के वशीभत
ू होकर जु म तो हो रहा है । इसके बात
के आंकडे भी गवाह दे रहे है । कब मलेगा वं चत समाज को सामािजक आ थक समानता का
अ धकार । कब वं चत समाज भोग सकेगे आदमी होने का सख
ु ।
जातीय बखराव अथवा बखि डत समाज सच मायने म आदमी को आद मयत का बैर बना दे ता
है । आदमी जातीय उ माद /धा मक उ माद म द न ह न वं चत पर अ याचार करे ,शोपण
करे ,भेदभाव जैसा अमानवीय यवहार कर, आदमी आदमी के अ धकार का हनन करे । ऐसे
कृ त व इंसा नयत के वरोधी ह। इंसा नयत आबाद रहे , आदमी आदमी म कोई भेद न हो
चहंु ओर समानता का सा ा य हो । इसके लये आदमी को जातीय द भ का याग करना होगा
।भेद क द वार को ढहाना होगा ।
भम
ू डल यकरण के इस यग
ु म ज रत है क समाज म या त अंध व वास जा तपां त के भेद क
खले
ु आम खलाफत करने क सामािजक समानता और आ थक समानता के लये आगे आने क
।अभीश त समाज क अंतवदना को स दयता एवं संवेदनशीलात के साथ समझने क । गर ब
वं चत का प धर बनने क ।तभी सामािजक वसंग त और आ थक खा या भर जा सकती है ।
दे श हत और समाज हत क बात करने वालो को वं चत समाज के क याण के लये कथनी
करनी म भेद करना त नक भी लाभकर न होगा । व त आ गया है दे श एवं समाज हत म
जातीय े ठता के मखौटे
ु को नोच फेकने का । वं चत के स मान के लये , उनके साथ होने
वाले अ याय के वरोध और सामािजक आ थक अ धकार के समथन मे उठ खडे होने क ,तभी
वं चत समाज को सामािजक-आ थक समानता का आ धकार मल सकेगा । सामािजक समानता
एवं आ थक स प ता के सोपान चढे बना वं चत समाज पण
ू आजाद का अनभव
ु नह कर
सकता । वं चत समाज तर क के वाह के साथ चले इसके लये आव यक है क स व ृ द एवं
स प न समाज खाईय को पाटकर समरसता का नया इ तहास रचे । समरसता से व चत समाज
का ह नह रा का भी वकास स भव है तो यो न रा हत म वग/वण भेद अथवा अ य भेद
क द वारे ढहाकर सामािजक समरसता के महाय म कद
ू पड तभी नीचले तबके का आदमी]
आदमी होने का सख
ु भे◌ाग सकेगा ।
21
जीवन नमाण कर सके। मनु य बन सके। च र न◌ामण कर सके और समाज का दशा दे सके
।ऐसी श ा यि त ,दे श और समाज का वकास कर सकती है ।आज का आदमी हु म जताना
चाहता है ,हु म पालन नह करना चाहता जब क यि त को पहले आदे शो का पालन करना सीखना
चा हये आदे श दे ना तो वयं ह आ जाता है । समानता का लोप होता जा रहा है । ददशा
ु का
कारण यह है ,िजससे समाज भी अछता
ू नह है । आज यि त अपने नै तक दा य व का◌ो
भलता
ू जा रहा है ।उसका नै तक दा य व यह भी है क वह अपने से नीचे वाल को श त
कर,उनके यि त व वकास के लये सहायता करे । दे श और समाज के हत को दे खते हए
ु आज
ऐसी श ा क ज रत है िजससे च र नमाण हो,बिु द का वकास हो,परमा र्◌ा का भाव पैदा
हो, जातीय द भ क द वार तोडकर यि त अपने पैर पर खडा हो ।सच आज के यग
ु मे ज रत
है नै तक एवं वाल बी श ा क । ऐसी श ा ह आ म च तन का सह माग दखा सकती है
।
स य ाचीन अथव आधु नक समाज का स मान नह करता । समाज को ह स य का स मान
करना पडता है । स य ह सारे ा णय और समाज का मल
ू आधार है ।स य कभी भी समाज के
अनसार
ु अपना गठन नह करे गे । समाज को ह स य के अनसार
ु अपना गठन करना होता है ।
वह समाज े ठ है जहां सव य स य का काय म प रणत कया जा सकता है । यह प रण त
श ा से ह स भव हो सकती है । जब यि त समय के स य को समझ लेगा तो यक नन उसे
कोई भेद क खाई डरा नह सकेगी । समाज को स य क कसौट पर खरा उतरना होगा । श ा
का उपयोग मानवता क भावनाओ म अ भविृ द के लये करना होगा तभी श ा समाज के लये
वरदान हो सकती है ।
छोटे बडे म भेद, जातीय न नता अथवा े ठता क बात इंसा नयत का अपमान है,कम के आधार
पर आदमी क पहचान होनी चा हये ।अपने से न न म बराई
ु म नह अ छाई ढढनी
ू चा हये
।प रवतन समय का च है ,होगा पर श ा के मा यम से समाजोपयोगी बनाया जा सकता है
।आदमी और आदमी के बीच क द ू रयां ख म क जा सकती है । इसके लये आव यक है
स े,अकपटता एवं धैय क । जैसा क कहा गया है जीवन का अथ ह विृ द है अथात व तार
या न ेम है ।इस लये पेर् म जीवन है और वाथपरता म ृ यु । मनु य हो अथवा रा बडा बनने
के लये ढ व वास,ई या और स दे ह का अभाव और जो यि त स माग पर चलने म और
स कम करने म संल न हो उसक सहायता करना आव यक होता है ।मनु य का आदध परमा मा
होना चा हये य क वह एक अ वनाशी है और हम उसके अंश है ।अतः हम ज म आधा रत
यव था क जगह कम आधा रत यव था का सजन
ृ करना होगा ।इस यव था से मानव धम क
उ पि त होगी जो समाज,रा ट और व व के लये हतकर होगी । मानव धम ह स य क कसौट
पर खरा उतर सकता है । द ु नया को जोड सकता है । इस कार के बोध हम नै तक श ा ह
करवा सकती है , इसके लये हमे आने दा य व के त तब दता का होना होगा ।
ान मनु य म अ त न हत होता है । वा य जगत तो सहायक मा होता है । वा य जगत तो
अ त न हत ान को पणता
ू अथवा अपणता
ू दान करता है । वा तव म श ा का अथ पणता
ू
हे ◌ाता है और नै तक श ा इसे जीव तता दान करती है। सच श ा तो वह है जो साधारण
यि त के जीवन सं ाम को समथ बनाये, च र बल का नमाण कर। पर हत भावना म
22
अ भविृ द कर । यि त को सं ह क भां त साहसी बनाकर अपने पैरो पर खडा होने लायक
बनाये। वह श ा/नै तक श ा रा एवं समाजोपयोगी हो सकती है । नै तक श ा, उ थान क
राह म मील का प थर सा बत हो सकती है बशत यि त अपने नै तक दा य वो एवं संक प के
त ईमानदार बरते◌े ।
न दलाल भारती
23
यक नन द लत के वकास म उपयु त कथन मील का प थर सा बत हो सकता है ।माननीय ी
आडवाणी जी ने वा त वकता के धरातल से अ य राजनै तक पा टय को वचार मंथन का मु दा
दया है। राजनै तक पा टया चाहे कां ेस हो बसपा हो सपा हो या अ य कोई सभी को द लतो थान
के े म कये गये अपने अपने काय का मू यांकन कर भ व य म काय करने का आ वाहन
है। कथनी करनी म अ तर न करने क तब दता है । य द राजनै त पा टयां सामािजक और
आ थक वकास क शपथ ले ले तो कोई ऐसी शि त नह है जो उ थान क राह म कांटा बनेगी
। काश सभी राजनी त पा टयां सामािजक और आ थक असमानता को रा हत म मु दा
बनाकर द लतो थान के लये कमर कस लेती । च ता का वपय है सभी राजनै त पा टय
द लत क ददशा
ु पर घ डयाल आसंू बहाती तो है पर स चे मन से उनके क याण के लये आगे
नह आता वोट बक ज र समझती है । य द सामािजक उ थान हआ
ु होता तो 14 अ ैल के दन
महू के पास समरौल इलाके म ाम दतोदा म द लत क बारात पर सवण का हमला होता ।
ब कुल नह राजनी त म इतनी शि त है क वह कसी भी कु यव था को समा त कर सकती है
पर तु यहां तो सामािजक कु यव था भी तो राजनी त को स बल दान करती है ।
सह मायने म राजनै तक पा टया द लत का भला चाहती ह तो वे सव थम सामािजक कु यव था
केआर ण को ख म करने के लये तब द हो और गर ब द लत को खेती क जमीन अथवा
रोजगार महै
ु या कराय । उनके श ा द ा का पु ता इ तजाम हो । वा थ के े म काम हो ।
सामािजक एवं आ थक समर ता के लये जातीय भेदभाव क सीमा टटे
ू । जब तक द लत
सामािजक कु यव था क कैद से मु त नह होगा तब तक चहमखी
ु ु वकास स भव नह है । दे श
म अरबप तय क सं या कतनी भी य न हो जाये नै तक प से यह वकास नह होगा। रा
पण
ू प से वक सत तभी कहा जा सकता है जब द लत का वकास होगा ।द लतो थन को रा
के वकास से जोडने वाले माननीय ी लालकृ ण आडवाणी का कथन स चे मे से हो या झठा
ू पर
एक बात तो स य है क द लत के वकास के लये राजनै त ो को अभी बहत
ु कछ
ु करना बाक
है तभी द लतो का वकास स भव है।द लत क स विृ द के बना रा का वकास संभव नह
माननीय ी लालकृ ण आडवाणी के उ त कथन क स यता को राजनै त पा टयां कतनी गहराई
से वीकार कर द लतो थान को रा के वकास का मु दा बनाती है यह तो वह जाने पर एक
बात साफ हो गयी है क आजाद के इतने दशको बाद भी द लत वकास क राह से अभी बहत ु
दरू है। माननीय ी लालकृ ण आडवाणी ने द लतो थान को रा के वकास के साथ जोडकर दे खा
। ी आडवाणी के कथन द लत क स विृ द के बना रा का वकास संभव नह क स चाई
को वीकार कर सामािजक एवं आ थक तर पर द लतो थान का शंखनाद कर,ऐसी उ मीद तो क
जानी चा हये-स ताधीश से। ी आडवाणी जी को साधवाद
ु ․ ․․․․․․․․․․․․․․․․․․
न दलाल भारती
॥ खद
ु के लये जी रहा है आदमी ॥
आज समाज म म क ि थ त पैदा हो गयी है । आदमी के यवहार म नै तक नजर नह आ
रह है । कथनी करनी म साफ साफ फक नजर आने लगा है । आद मयत, मत यता और
24
नै तकता क बात करने वाले वाथ का का म का तलाशने लगे ह । िज हे खद
ु को आदश प म
समाज के सामने तुत करना चा हये,वे मखौटा
ु बदलने लगे ह । इंसा नयत और नै तक मू य
वह है जो पहले थे पर तु जमाना बदल गया है क दोहाई दे कर दोपारोपण और खद
ु का मतलब
साधने म कछ
ु लोग य त हो गये है। तबे क बदौलत कमजोर के दमन को उता है । मौका
पाते ह ग द क भां त कमजोर का हक ल ल रहे है । यह लोग नै तक मू य को कचल
ु रहे
है।अपने मतलब के लये दसरे
ू के मौत क दआ
ु करने लगे है । ऐसे वाथ के वशीभत
ू लोग के
मंह
ु से नै तकता क बात बेईमानी लगती है ।
संवेदनह न और खद
ु के लये जीने वाले लोगो ने द ु नया को मतलबी बना दया है। आज का
आदमी लाश को सीढ बनाकर यश और वैभव क शखर तक पहंु चने म कोतहाई नह बरत रहा है
।ऐसे वाथ और संवेदनह न लोग स य और संवेदनशील समाज के लये चनौती
ु बने हये
ु है ।
समाज म मू यह नता बढ है, आदमी महज सौदागर/जालसाज बनकर रह गया है ।चोर
डकैती,ह या,बला कार,अ याचार जैसे घनौने अपराधो से जरा भी परहे ज नह कर रहा है ।यह
व ृ त समाज के आइने को ब सरत
ू कर रह है ।यह वृ त म क म डी म भी जडे जमाने
लगी है । पद के तबे का उपभोग व हत म होने लगा है । पदा धकार अपने से बडे
और तबेदार पदा धकार के दखसख
ु ु म पहले हािजर लगाने क दौड म जट
ु रहा है ,पीछे उसक
क खोदने और सािजश रचने से भी बाज नह आ रहा है । मातहत कमचार का उपयोग
बधआ
ु मजदरू क तरह करने लगा है । पद क ग रमा के वपर त काम होने लगा है सु वधाभोगी
हो गया है॥समता,स भावना, याय सं था का वकास येय न होकर व हत हो गया है ।
जोडतोड,छल पंच से हा सल कामयाबी के ज न म डबा
ू हआ ु है आज आदमी अपने दा य व को
भलकर।
ू यह व हत टाचार को उवरा दान कर रहा है । व हत और संवेदनह नता क वजह
से चीखे दबती जा रह है। यापार जगत भी अछता
ू नह है । यापार व हत म जनता के वा थ
से खलवाड कर रहा ह , मलावट कर रहा है ,कम तौल रहा है सामान महंगा बेचा रहा है।जनता
महंगाई के बोझ से दबी जा रह है ।सरकार बौनी सा बत हो रह है ।स ता के भखे
ू आ वासन क
आ सीजन परोसे जा रहे रहे है ।
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आज आदमी सफ बात से नै तक नै तकता का एहसास करा रहा है ।खद
ु के च र म नह उतार
रहा है। अपनी िज े◌ादार को भल
ू रह है। दोपारोपण कर रहा है । दसरे
ू म कमी नकाल रहा है
।पर हत का तो कह नाम नशान नह छोड रहा है। नायक के वेप म खलनायक बना हआु है
सफ वा हत के लये।आज समाज नै तक और अनै तक दो खेमे म बंट गया है । अब तो बस
इ तजार है ऐसे महानायक के अ यद
ु य क जो व हत के भाव को पर हत के भाव म बदल दे
। कमजोर आदमी के मंह
ु से फट
ू पडे-आज का आदमी खद
ु के लये नह आमजन ,समाज और
दे श के लये जी रहा है ।
न दलाल भारती
॥ थम लोकनायक भगवान बु द ॥
बा यकाल से ह स दाथ के मन म क णा भर थी । उनसे कसी ाणी का दख
ु नह दे खा जाता
था। स दाथ अथात भगवान बु द के दया क णा के बारे मे अनेक कथाय सनने
ु को मलती है -
उसमे म से यह कथा - स दाथ को जंगल म कसी शकार क तीर से घायल हंस मला । वे
हंस को उठाकर तीर नकाले,सहलाये ,पानी पलाये । उसी समय दे वद त वहां आ गये और कहने
लगे यह शकार मेरा है ,मझे
ु दे दो । स दाथ ने दे ने से मना कर दया और बोले तम
ु इस हंस
को मार रहे थे । मैने इसे बचाया है । अब तु ह बताओं इस हंस पर कसका हक है मारने वाले
का या बचाने वाले का । अ ततः राजा शु दोधन को भी स दाथ क बात माननी पडी और हंस
को बचाने वाले स दाथ बडे सा बत हए ु ।स भवतः तभी से यह कहावत कह जाने लगी क मारने
वाले से बचाने वाला बडा होता है ।शा य वंश म ज मे स दाथ का ववाह यशोधरा से सोलह साल
क उ म ह हो गया ।राजा शु दोधन ने स दाथ के लये द ु नया क हर भोग वलास क व तु
का ब ध कया पर ये सब चीज स दाथ को सांसा रक मोह माया म नह बांध सक । शनै
शनै वे सांसा रक मोह माया से बहत
ु दरू चले गये और यह स दाथ बौ द धम क थापना कर
नर से नारायण अथात भगवान बु द हो गये ।भगवान बु द व व के सबसे बडे और महान
धम दे शके के म माने जाते है । आजीवन अ हं सा,समता एवं स ेम मलक
ू धम का चार
कये । जीवन के व भ न प ो के बीच सम वय था पत करने के कारण भगवान बु द को थम
लोकनायक कहा जाता है । स दाथ को बैसाख क पणमासी
ू को बु द व क ाि त हुई थी ।
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संबंधी दराचार
ु करना,और मपावाद
ृ अथात झठ
ू बोलना मट जाते है,चार थान अथात
वे छाचार के रा ते म जाकर पाप कम करना, े प के रा ते जाकर पाप कम करना,मोह के रा ते
जाकर पाकम करना और भय के रा ते जाकर पापकम करने से जब वह पाप नह करता और जब
हा न के छः मख
ु का वह सेवन नह करता अथात म यपान,सं या म चौर त क सैर,नाच तमाशे
का यसन,जआ
ु , द ु ट मनु य से म ता और आल य-इस तरह 14 पाप से वह मु त हो जाता
है,तब वह छह दशाओं अथात मांता पता क सेवा,गु क सेवा,प नी क सेवा, बंधु बांधव क
सेवा सेवक क सेवा और साधु स तो क सेवा, को आ छा दत कर लोक, परलोक दो◌ेनो पर
वजय ा त कर लेता है और मरने पर वग जाता है ।
िजस गह
ृ थ को छः‘ दशाओं क पजा
ू करनी हो,वह चारो लेशो से मु त हो जाये । िजन चार
कारणो के वश म होकर मढ
ू मनु य पाप कम करने म वत
ृ होता है उनमे से उसे कसी भी
कारण के वश म नह होना चा हये और स प त नाश के छहो दरवाजे ब द कर दे ना चा हये ।
दान, य वचन,अथचया और समाना मकता अथात दसर
ू को अपने समान समझना,ये लोक सं ह
के सार साधन है। बिु दमान मनु य इन साधनो का उपयोग करके जगत म उ च पद ा त कर
सकता है ।
भगवान बु द कश ाय बहजन
ु हताय बहजन
ु सखाय
ु वाल है जैस-े न दा न करना, हं सा न
करना,आचार नयम ारा अपने को संयत रखना, समानता का यवहार , वाथ का याग कर
आदमी के लये जीना आ द भगवान बु द क श ाये सदै व सव क याणकार एवं मंगलकार बनी
रहे गी य क उनम त नक भी भेदभाव क गंध नह आती । भगवान बु द के अनयायी
ु भारत म
ह नह द ु नया के अनेक दे श म पाये जाते है ।द ण पव
ू ए शया के लगभग सभी दे श बौ द
धम के अनयायी
ु है । भारत के स द स ाट अशोक महान भगवान बु द का श ाओ ◌ं को
अंगीकार कर शलालेख के मा यम से तथा धम चारक को दे श वदे श म भेजकर बो द धम
का चार सार कये । एकमा बु द ह ऐसे महापु प थे जो कहते थे -म ई वर के बारे मत-
मस तर को जानने क परवाह नह ।आ मा के बारे म व भ न सू म मत पर बहस करने से
या लाभ । भला करो और भले बनो । बस यह नवाण क ओर अथवा स य क ओर ले जायेगा
। केवल वह यि त सब क अपे ा उ तम से काय करता है जो पणता
ू नः वाथ है, िजसे न
तो धन क लालसा है न क त क और न कसी अ य व तु क ह । मनु य जब ऐसा करने म
समथ हो जायेगा तो उसके भीतर से काययाि त गट होगी जो संसार क अव था को स पूण
प से प रव त त कर सकती है । ऐसा आ वाहन थम लोकनायक भगवान बु द ने कया है कम
के मा यम से और बौ द धम क थापना कर। बौ द धम मानवीय एकता के लये आज भी मील
का प थर है । ज रत है बौ दमय होने क य क इसी म सव क याण और सव मंगल का भाव
है । भगवान बु द के उपदे श को च र एवं कम म उतारकर असमानतावाद जहर को
समानतावाद अमत
ृ से त ृ त कया जा सकता है । ठ क उसी तरह जैसे उ टे को सीधा कर
दे ,भले
ू को माग बता दे , अंधकार म द या दखा दे । -बु दं शरणं ग छा म । ध मं शरणं
ग छा म । संघं शरणं ग छा म ॥
न दलाल भारती
27
॥ नः वाथता -काल के गाल पर अमरता ॥
परमाथ के भाव को याग कर वयं के हताथ काय करना बडे पाप के समान है ,जो मनु य यह
सोचता हे क म पहले अपना अ धकार जमा लंू अथवा उपभोग कर लंू । म ह अ धक से अ धक
धन का सं हण कर लंू ।सव व का अ धकार बन जाउ◌ू◌ं ।म और मेरे ह प रवार के लोग सखी
ु
रहे , स प न रहे । म उ◌ू◌ंची जा त का हंू तो मझे
ु छोट जा त के लोगो के दमन का परा
ू
अ धकार है । बडे पद पर हंू तो मातहत को अगंुल पर नचाना मेरा ज म स द अ धकार हो
गया है । छोटे लोगो क छाती पर चढे रहना ।उनके हत को अनदे खा कर खन
ू के आंसू दे ना
ब धक य गण
ु मान लेना अपराध है, पाप है । अपने हत को नजरअंदाज कर दसर
ू के हताथ
काय करना यि त के बड पन म चार चांद लगा दे ता है । यह यि त अपने कम से दे व व को
ा त कर लेता है । कहा जाता है क कोई कसी क सहायता नह करता । सेवा का अ धकार है
भु के स तान क । भा यवान यि त को चा हये क वह अपने को छोटा समझकर मानव क
सेवा भगवान क पजा
ू मान कर करे । य द यि त ऐसा करता है तो वह नि चत ह भु के
काफ नचद क होगा ।उपासनाओ का यह मम है क यि त न छल मन से दसरे
ू के भला के
लये सदै व त पर रहे ।जो यि त नधनएदबल
ु और बीमार क सेवा करता है वह सह माने म
दर नारायाण क सेवा करता है । अपने म मभाव को अ भ य त करने का एकमा उपाय है
क दन दर ो बीमार क सेवा क जाये ।च मचागीर चकनी चपडी
ु बाते करना तो वा थय
का काम है ।भा यवान और हमभाव रखने वालो का काम तो सय
ू क तरह काश दे ना है । ऐसे
लोग अपने वाथ कयाग कर बहजन ु हताय बहजन
ु सखाय
ु के लये जीते है । परमा थय का
जीवन परोपकार के लये होता है ।
द ु कम के ारा अपना ह नह दसर
ू का भी बरा
ु होता है ।स कम के मा यम से यि त दसर
ू का
ह भला ह नह अपना भी भला करता ह । कहा जाता है क बना फल उ प न कये कोई भी
कम न ट नह होता ।य द कम बरा
ु होगा तो उसका फल भी बरा
ु ह होगा । य द यि त स कम
करता ह तो नि चत प से शभ
ु फल ा त होगा ।मनु य होने का दा य व नभाना है तो अपने
म परमाथ के भाव क अ भविृ द करनी होगी । श बुक ऋ प ने सामािजक समानता के लये
याग कया ।उनका बध राम के हाथो हो गया पर तु श बुक ऋ प का सामािजक समानता के
लये कया गया ाि तकार काय वपमता क आधीं म द ये क भां त काश दे रहा है और
जातीय द भ क द ू रयां नर तर कम हो रह है ।श बुक ऋ प का याग यथ नह गया ।
भगवान बु द के याग को कभी द ु नया भल
ू सकती है ․․․․․कभी नह ․․․․․․ परमाथ के
न छल भाव और याग क वजह से स दाथ नामक राजकमार
ु भगवान बु द बन गये । परमाथ
म ऐसी शि त तो ह जो साधारण से मनु य को भी पजनीय
ू बना दे ती है ।र वदास, कबीर आ द
अनेक उदाहरण है ।
आदमी होने के नाते हमारा दसरो
ू के त भी कत य है क हम उनक सहायता करे । उनका भला
कर जा त धम, उ◌ू◌ंच-नीच गर ब अमीर के भेद क खाईय को दर कनार कर। इस वपय म
ववेकान द के वचार है क दसर
ू के त हमारे कत य का अथ है -दसर
ू क सहायता
करना,संसार का भला करना । अब न उठता है क हम संसार का भला य करे । वा तवम म
28
बात यह है क उ◌ूपर से तो हम संसार का उपकार करते है ,पर तु असल म हम अपना उपकार
करते है । एक दाता उ◌ू◌ंचे आसन पर खडे होकर और अपने हाथ म दो पैसे लेकर यह मत कहे -
ये भीखर ,ले यह म तझे
ु दे ता हंू । पर तु तम
ु वयं इस बात के लये कत
ृ होओ क तु ह वह
नधन यि त मला िजसे दान दे कर तम ु वयं अपना उपकार कया । ध यपाने वाला नह होता
दे ने वाला होता है। इस बत के लये कत
ृ होओ क इस संसार म तु हे अपनी दयालता
ु का
योग करने और इस कार प व और पण
ू होने का अवसर ा त हआु । वाथपरता यि त को
नरक क ओर ढकेलती है । नः वाथता का भाव यि त को भु तु य बना दे ती है । य द
यि त तन मन और धन से स प न होने का सौभा य ा त कर चका
ु है तो ऐसे मनु य को
मनु य क सेवा ई वर भाव से करने का संक प लेना चा हये य क ऐसे संक प काल के गाल
पर अमरता दान करते ह । न दलाल भारती
॥ मनु य को सखी
ु बनाना-धम का उ दे य ॥
धम के पथ पर अ सर होने का थम ल ण फि
ु लत होना है। ववादयु त होना क टरवाद,
अनाव यक पाखा ड यु त वातावरण न मत करना अथवा वैचा रक भेद पैदा करना नह । सच ह
तो कहा गया है धम का रह य आचरण से जाना जाता है । यथ के मतवाद से ब कुल नह ह।
भला बनना भलाई के काम करना इसी म धम न हत है । मनु य म जो वाभा वक बल ह है
उसक अ भ यि त ह धम है। धम का उ दे य मनु य को सखी
ु बनाये रखना होता है न क उसे
बखि डत कर अपना उ ू◌ा सीधा करना,स ता हा सल करना । मनु य मे◌े◌ं पाश वक,मानवीय
और दै वी गण
ु होते है। वह गण
ु जो यि त म पशता
ु के भाव का संचार करता है वह पाप है , जो
गण
ु यि त म दै वी गण
ु बढाता है वह पु य है । यि त को पाश वक गण
ु पर वजय ा त कर
मनु य बनना ह मनु यता के त याय है । धम तो वह है िजसके सा न य म पशु आदमी
और आदमी परमा मा तक उठ सकता है ।
29
तो जीवन को उ सव बनाना होता है ।सखी
ु बनाना होता है । जो धम आदमी आदमी के बीच
द वार खीचे , बखि डत समाज क थापना को बल दे । असमानता को मह व दे । धमावलि बय
म आपस म नाते◌ेदार क मनाह करे । ऐसे धम को धम कहना धम का उपहास है ।जो धम
जीवन को उ सव बनाने क सीख दे ता हो सह मायने म वह स चा धम है ।
30
नभाये। आज के आदमी को आद मयत के धम पर खरा उतरना होगा यह व त क मांग है।
इसी मे समाज और दे श क सख
ु शाि त न हत है ।
न दलाल भारती
32
तो ह पर याय आज इतना महंगा हो गया है क आमजन को उपल ध ह ह ।नतीजन शोपण
अ याचार सहने को मजबरू ह आमजन ।प का रता से उ मीद थी अभी ह और रहे गी भी पर रह
रहकर उठते सवाल और अ धक भय पैदा कर दे ते ह भरार
् टाचार,अनाचार ,अ याचार के सम दर
से समाजवाद पी गंगा के नकलने क उ मीद थी पर वह भी उ मीद रौद जा चक
ु है य क
समाजवाद वोट बटोरने स ता सख
ु भोगने एवं वाथ क भटट म आमजन को झोकने का ज रया
बनता नजर आ रहा है । तभी तो आज आजाद के इतने बरस बाद भी समानता का द प नह
जल सका ।
उ च वण क मान सकता के इ तहासकारो ने भी पछडे एवं द लत वग के अमर शह द के
ब लदान को इ तहास के प नो से नकाल अलग कर दया ।उदरया चमार ,न थू धोबी वीरांगना
उदादे वी वाि मक अमर सं ह चमार,चेतराम जाटव,ब ू◌ा मेहतर बांके चमार,वीरा पासी मठाई
चमार,क ◌
ू ा धोबी,सीताराम,जौधा चमार रामजैसवार रमई कर
ु ल रमा दलारे
ु कोर परनमाल
ू
जाटव,बलदे व संह,आय श पाकार,दगा
ु धानक
ु ,ह रालाल धानक
ु ,सकता जाटव, शवप त पासी
गोपीदास,सरखट
ु क,कंधई धु सया,पंचान द धु सया,भोलानाथ खट क,रामसेवक राउत,मेवाराम
धानक
ु ,क हैयालालवाि मक ,ह र सं ह जाटव, व वनाथ साद कजड,लालजी महार,रामसेवक राउत
महावीर हैला आ द अनेक अनजान अमर शह द अपने जीवन का ब लदान कर दये आजाद के
लये पर तु इ तहासकारो ने इनके साथ दोयम दज का यवहार कर अपनी मान सकता का प रचय
दे दया ।
हमारा दभा
ु य ह है क आज भी दे श मे रा या है एक दशाह न मु दा बना हआ
ु है । यहां के
लोग जा त धम के नाम से जाने पहचाने जाते ह ।रा तो दोयम दज का होकर रह जाता ह ।दे श
बनता ह सं कृ त ,पर परा◌ाओं और दे श के नवा सय क असं द ध न ठा से पर दे श के
नवा सय म सव थम न ठा तो जा त धम के त तीत होती है इसके बाद रा र का म
आता है । इस मनोदशा को बदलना होगा सम ृ दशाल और साम यवान भारत क रचना करनी
होगी । वत भारत,आ म नभर के इतने बरस के गौरवमयी इ तहास पर खन
ू के छ ंटे आज भी
वराजमान है, कछ
ु कराहे ह,शो पत वं चत आमजन आज भी जीवनयापन के साथ आ म स मान
के लये संघपरत ह, िजनक कराह दे श क नींद म आज भी दा खल है । भ ाचार, वाथ,
महंगाई,गर बी जा तवाद धमवाद, ,संघपरत् आमजनो भू मह न खे तहर मजदरो
ू क दयनीय दशा
को दे खकर जबान पर बरबस ह आ जाता है - जा तवाद से अ भशा पत शो पत पी डत वं चत
जनता से बहत
ु दरू है आजाद आज भी ।
न दलाल भारती
34
॥ धम प रवतन पाप है ․․․․․ या․․․․․ ?॥
35
कसरू धमप रवतन करने वालो के सर भी मढ दया जाता है क वे वदे शो खैरात के लये धम
प रवतन कर रहे है। जब क धम प रवतन का धन क लालच से त नक भी स ब ध नह है ।
धमप रवतन तो सामािजक समानता क यास है ।
36
धमा तरण पाप है या धम क आड म होने वाले अ याचार,शोपण,जु म,आदमी को बांटने का
पणय जा तवाद,भेदभाव है । दे खना ये है क धमा तरण को पाप कहने वाले धमाधीश/स ताधीश
सवसमानता का धा मक अ यादे श कब जार करते है और कतनी ईमानदार से पालन करते ह।
न दलाल भारती
॥ टटता
ू प रवार बखरती आस ॥
इ तहास गवाह है क आदमी आ दम यग
ु से समहो
ू म रहता आ रहा है चाहे वे गफाओं
ु मे रहा हो
,जंगल म रहा हो या झोप डय म। स यता के वकास के साथ आदमी झोप डय से नकलकर घर
बडे बडे महलनमा
ु वातानक
ु ु लत घर म रहने लगा है । समह
ू म रहने क व ृ त प रवार क जननी है
। भम
ू डल यकरण एवं सचना
ू ाि त के इस यग
ु म दे शो के बीच क द ू रयां तो कम हई
ु है पर तु
र त के बीच द ू रयां बढ रह है ,िजसक वजह से संयु त प रवार टटने
ू लगा ह और बढेू मां बाप क
आंशाय बखरने लगी है ।वे खद
ु को असरु त महसस
ू करने लगे है ।वतमान यग
ु म एकल प रवार
का चलन तेजी से बढ रहा ह । पैतक
ृ यवसाय का जमाना नह रहा । ब चे अपनी मज के
अनसार
ु रोजगार अपना रहे है । इस लये वे पैतक
ृ घर से दरू वे अपना संसार बसाने लगे है,िजससे वे
र त स बि धय ,इ ट म ो पा रवा रक आ मीय जन से दरू होते जा रहे ह और संयु त प रवार टटने
ू
लगा है । संयु त प रवार टटने
ू का खा मयाजा बढेू मां बाप और ब च को भगतना
ु पड रहा है । मां
बाप तो बेसहारा हो ह रहे है ब चे भी मानवीय र त क उ मा और नेह से दरू होते जा रहे है
जब क सयंु त प रवार म सहज ह मानवीय गण
ु और नै तक दा य व का वकास हो जाता था ।
आज इ ह मानवीय एवं नै तक गणो
ु के लये श ण के क मदद ल जा रह है । श ण भी
उतना असरकारक नह सा बत हो पा रहा है िजतना असरकारक संयु त प रवार का माहौल होता था ।
आज का ब चा दादा-दाद काका-काक ,फआ
ु -फफा
ु ,नाना-नानी,मामा-मामी आ द र त के सोधेपन से
अप र चत हो रहा है । उसके कंधे पर भी िज मेदा रय का बोझ डाल दया गया है। कूल क छु टयां
होते ह श ण या समर लासेस के लये भेज दया जाता है ता क ब चा गनीज बक
ु आफ व ड
रकाड म नाम दज करा ले । संयु त प रवार क टटन
ू क वजह से ब च का बचपन खोता जा रहा
है जो कसी न कसी अनहोनी का योतक है ।संयु त प रवार क टटन
ू से◌े यवाओं
ु क जीवन शैल
म अनेक बराईय
ु ने जगह बना लया है । धू पान म दरापान अनै तक स ब ध जैसी बराईयो
ु के
चंगुल म वे फंसने लगे है,आचरण वह न एवं अमया दत रहने लगे है । सां कृ तक एवं नै तक मू य ,
पर पराओं आदश आ द को भला
ू रहे है ,िजससे प रवार जैसी प व एवं ति ठत सं था का दम
घटने
ू लगा है ।आज बजग
ु ु हा शये पर आ चक
ु े है। मांता पता का ह त ेत बदा त नह । पा चा य
जीवन शैल एवं भौ तकता क चकाचौध ने इस कदर अंधा बना दया है क मांता पता का ह त ेप
और मया दत जीवन पस द नह । उपे ा के शकार मजबरू मां बाप व ृ दाआ म/अनाथ आ म तक
के दरवाजे खटखटाने को मजबरू हो रहे है ।
39
oतमान समय म वाथ क व ृ त ने नेताओ को इस कदर घेर लया है क उ हे ◌े अपने भला के
अलावा दे श और समाज क जरा भी च ता नह है ।वे राजनै तक और सामािजक मखौटे
ु का भरपरू
दोहन कर रहे है । मखौटा
ु न चकर फकने क वजाय वे घडी घडी बदलने लगे है। इस बदलाव से तो
दे श और समाज का भला तो हो ह नह सकता ।सामािजक स ताधीश भी पीछे नह है । सामािजक
नेता हो या राजनै तक,नेता का अ भ ाय तो ये होता है क वे दे श और समाज के क याण के लये
जीये और मरे ।समाज को बराईयो
ु से बचाये,मानवीय समानता रा य एकता कायम करे और
आमजन के हताथ काम करे ।
॥ आतंकवाद क जड पर हार॥
इंसा नयत के द ु मन अपने घनौने मनसब
ू को इंजाम दे ने म कोई कोर कसर नह छोड रहे है ।
दे श आतंकवाद का दं श झेलने को मजबरू है । एक घाव सखता
ू ह नह तब तक दसरा
ू हो जाता
है । इंसा नयत के द ु मन के हौशले बढ जाते है । वे कसी नई दघटना
ु को इंजाम दे ने म जट
ु
जाते है । न ये उठता है क या खु फया त और सरु ा यव था के लये िज े◌ादार
सं थाये चौकस यो नह होती है , इंसान और इंसा नयत का खन
ू बहने के बाद ।कब तक
इंसा नयत के द ु मन लहू से नहाते रहे गे ।स य मानव समाज को कब तक भय के आतंक मे
रखकर खनीू कारनाम को इंजाम दे ते रहे गे । वनाश का पयाय आतंकवाद कब तक धरती को लाल
करता रहे गा ये अब सवाल हल क ओर अ सर होने लगा है य क धमगु ओ ने भी आतंकवाद
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ग त व धय के खलाफ जाग कता अ भयान छे ड दया है ।अ प सं यक समदाय
ु के बु द लोग
पर आरा◌ोप लगता रहा है क वे आतंकवाद ग त व धय का वरोध करने म पीछे रहते है ।
उ तर दे श के इमाम व धमगु ओं ने आतंकवा दय के खलाफ जाग कता अ भयान क शु वात
कर द ु नया को संदेश दे दया है क वे भी आतंकवा दय के खलाफ है ।धम के नाम पर
आतंकवाद को प रभा पत करने वाल क जबान पर ताले जड दये है । वैसे यह काम उ हे बहत
ु
पहले ार भ कर दे ना था खैर यह पहल वागतो य है ।
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सरु ा बल क संयु त मु हम से आतंक ग त व धय क जड पर जबद त हार कर आतंक के
पशाच का दमन कया जा सकता है बशत सभी अपने फज पर खरे उतरे तब ना।
न दलाल भारती
सा ह यकार क दशा से भले ह सरकार बेखबर हो, पाठक दरू भाग रहा हो पर सा ह यकार
सम या त रहते हए
ु भी सजन
ृ कम से बमखु नह हआु है । सा ह य जगत मिु कल के दौर से
गजर
ु रहा है और सा ह यकार पेट पर प ट बांधकर अपना धम नभा रहा है ।ट वी इ टरनेट आ द
आधु नक संसाधन ने सा ह य क जमीन पर क जा जमा लये है ।उ बोधन और बोधन के थान
पर फहड
ु और स ता मनोरं जन परोसा जा रहा है ।इन मनोरं जन के साधनो ने जनमानस म इतनी
गहर घसपै
ु ठ बना लये है क वे ता का लकता पर भरोसा कर बैठे है क क पना और सजन
ृ का कोई
मोल ह नह रहा । आज का आदमी सा ह य से दरू जाता नजर आ रहा है । ट ․वी और इ टरनेट के
मोह म फंसे लोग अ छ तरह से जानते है क इनका भाव अ थायी होता है ।कछ
ु मामल
हा नकारक भी हो जाता है जब क सा ह य पर पराओ का संवाहक है । रचनाशीलता का उ गम है।
दरू ि ट है साथ ह व थ मनोरं जन का भी साधन है ।स यता का प रचायक है ।इ तहास का
ह ता तरण है । सा ह य भावा मक जडाव
ु पैदा करती है । सा ह य म यथाथ होता है । छलावे और
भलावे
ु का संसार सा ह य नह होता ।सा ह य थकान च ता णाव था म दवा का काम करता है
।सा ह य दल और दमाग पर क जा तो करता है पर तु वक प और चयन के या त अवसर भी
सलभ
ु करवाता है ।वह ट वी पर सा रत होने वाले धारावा हक बेचैनी दे रहे है । घर पर व◌ार को
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तोडने का काम कर रहे है । जब क इले ा नक मा यम से भु व और दासता क गंध आता है वह
दसर
ू ओर सा ह य साहचय और मै ी भाव म अ भविृ द करती है ।
हा नकारक बहत
ु अ धक सा बत हो रह है । ब च का ब दक
ू लेकर कूल जाना । क ल तक कर
दे ना ू र हं सक होते लोग ।दे ह का खला
ु दशन,अ ल ल प रधान एवं अ य असामािजक कृ त व।
या यह इले ा नक मा यम क सीख नह है । स सा ह य कभी भी ऐसा स ता मनोरं जन नह
उपल ध करवाता । सा ह यकार अपने नै तक दा य व से बंधा होता है ।जब वह सा ह य सजन
ृ करता
है तब वह अपना आ थक प मजबत
ू करने क नह सोचता वह व थ समाज का प धर होता है
।उसक क पना शि त, उसका लेखन कम समाज के हताथ सम पत होता है ।याद रखने वाल बात
है इले ा नक मा यम सफ अपनी तजोर भरने के लये अ ल लता पर चांद पर चांद का क
लगाकर परोस रहे है जो आ थक और सामािजक प से घातक सा बत हो रहा है ।
समय आ गया है क इले ा नक मा यम से परोसे जा रहे मनोरं जन को स यता ,पर परा ब च
क हं सक होती वृ त
व थ समाज के न◌ामण हे तु और सामािजक आव यकताओ को दे खते हए
, ु
व थ मान सकता के तराजू पर तौला जाये । सा ह य जगत भले ह मिु कल से गजर
ु रहा है उसे
उ मीद है संकट के बादल छटे गे । सा ह य से दरू जा इले ा नका मा यम क धप
ू म जा बैठा
दशक/पाठक सा ह य क छांव म ज र आयेगा। सा ह यकार अपनी ज रत को वाहा करते हए
ु दन
रात व थ समाज और व थ कल के लये सजनरत
ृ ् है । भले ह वह पेट म भख
ू लये हए
ु सा ह य
सजन
ृ कर रहा है पर तु वह नराश नह है य क मानवता क वकास या ा आशा और योग पर
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टक है। इस या ा को सफल और गौरवशाल बनाने के लये सा ह यकार ढसंकि पत है या आप
है․․․․․․․․
न दलाल भाररती
॥ आधी आबाद का दद ॥
भम
ू डल यकरण एवं दरसं
ू चार ाि त के यग
ु म भरणह
ू् या आधी आबाद के अि त व पर खतरा खडा
कर चक
ु है । पु मोह म बा लका ण
ू क ह या मां क कोख म क जा रह है । भरणह
ू् या ने
लं गानपात
ु म असं तुलन पैदा कर दया है। दे श म त हजार पु ष पर 927 म हलाये है।इस
ह या को बढावा दे रह है अ ासोनो ाफ तकनीक और ए सपट।सरकार लं ग पर ण को काननन
ू
अपराध घो षत कर चक
ु है इसके बाद भी धडले से लं ग पर ण कर णह
ू याये हो रह है ।
भरणह
ू् या को लेकर बडी बडी चचाय-प रचचाय होती रह है ,अखबार म बडी बडी खबरे छपती है ।
भरणह
ू् या क च ताओ मे◌े◌ं समाज और सरकार दबी जा रहा है इसके बाद भी लं ग पर ण हो रहा
है। णह
ू या हो रह है ।य द भरणह
ू् या न होती तो लं गानपात
ु म अस तल
ु न कैसे होता । काननी
ू
ावधान होने के बाद भी पर ण करने अथवा कराने वाल को सजा नह हो पा रह है । आधी
आबाद के साथ ऐसा अ याय होता रहा तो या पु ष समाज द ु नया को आबाद बनाये रख सकेगा ।
जनसं या का भय क या ण
ू को उकसा◌ाता है ऐसा कदा प नह है। इस ह या के पीछे पु मोह बंश-
पर पराओं एवं कु थाओं का हाथ है । वतमान म दहे ज था पी सामािजक बराई
ु भी क याभरणह
ू् या
के लये िज मेदार है । एक शोध के अनसार
ु सफ भारत म ह पछले 20 वषा◌े के दौरान एक
करोड क याभरण
ू् का क ल म क कोख म कर दया गया है । आ चय क बात है क पढे लखे लोग
ह इस तरह क ह या करवा रहे है और लालची जीवन दे ने वाले अज मे क या भरण
ू् का बध मां क
कोख म कर रहे है । ना जाने कस मजबरू मे मांताये◌◌
े ं वरोध म नह खडी हो रह है । स भवतः
यह वजह भी भरण
ू् ह या क खामोशी वीकृ त कह जा सकती है । आधी आबाद क अि त व क
र ा के लये आधी आबाद को आगे आना ह होगा बना आगे आये भरण
ू् ह या जैसे अपराध पर
रोक लगना क ठन काय होगा ।
सरकार जनसं या◌ा नय ण को ो सा हत कर रह है फर भी जनसं या विृ द म वशेष गरावट
नह आ रह है । आज बढती जनसं या सम या नह लग रह है । लगता है सम या आधी आबाद
बन रह है तभी तो भरणह
ू् या अपराध घो षत होने के बाद भी क याभरण
ू् ह या हो रह है और ी-
पु ष लं ग अनपात
ु के बीच अस तुलन पैदा हो रहा है । य द ऐसा अस तुल बरकारा रहा तो वह
दन दरू नह जब लडके के याह नह हो पायेगे अथवा बहप
ु त था का चलन हो जायेगा । यक नन
यह था मनु य जा त के वनाश का कारण होगी । ऐसे वनाश को रोकने के लये जनसं या
नय ण के अ य साधन का उपयोग करते हएु भरण
ू् ह या को रोकना होगा ।नार -पु ष अ धकार
समानता के लये काम करना ज र होगा ।य द क या णू ह या नह क तो पु ष समाज भी धीरे
धीरे अपना अि त व खो दे गा । लं गानपात
ु के स तुलन को बनाये रखने के लये ज र है क
भरणह
ू् या के अपराध पर वराम लगे । मां बाप पु मोह से उपर उठकर स तान मोह क लालसा रखे
चाहे वह स तान पु हो या पु ी पर भरण
ू् ह या जैसा अपराध न करने क कसम खाये◌े ।िजस घर
म बेट न हो उस घर म बेट के याह से परहे ज करना भी क या णह
ू या रोकने मे मददगार
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सा बत हो सकता है । स भवतः काननी
ू ावधान इस लये कामयाब नह हो रहे है क भरण
ू् ह या
एकतरफा नह हो रहा है इसम मां बाप दोनो शा मल है ।य द मां बाप म से एक भी इस ह या के
वरोध म उतर जाता तो ण
ू ह या क सकती है । इस ह या क रोक पर सामािजक समानता मील
का प थर सा बत हो सकती है य द समाज आधी आबाद को पु ष के बराबर का दजा दान करे दे ।
मनु य जा त को अपना अि त व कायम रखना है तो आधी आबाद के दद को हरना ह होगा और
भरण
ू् ह या पर पण
ू वराम लगाना हो होगा । इसके बना मनु य जा त के अि त व पर संकट के
बादल छाये रहे गे। यो․․․․ अि त व क र ा और भरण
ू् ह या जैसे जघ य अपराध को रोकने के
लये हमार कोई िज मेदार नह बनती न दलाल भारती
46
गौरतलब बात यह है क बेट का लालन पालन बेटा मानकर करना उसके कल के लये खतरा बन
सकता है य क इसी बेट को आगे और भू मका नभानी है । बदलते समय के साथ उसक भू मका
भी बदलने वाल है- प नी क भू मका नभानी है मां क भू मका नभानी है ।यह सब तो वह लडका
के प म नह नभा सकती । लडका लडक के त समानता का रवैया अपनाना अ छ बात है पर
उनम म पैदा करना कदा प नह ․․․․․․․․हमारा फज बनता है क हम उनमे स गण
ु के भाव
भरे और उनके अि त व को वा मभान के साथ नखारे , नणय लेने क ताकत वक सत करे ।ज रत
पडने पर नह कहने का भी ज बा भरे ता क उनक पहचान लडका लडक के प म नह उनके गण
ु
से हो ।यह पहचान हम मां बाप के वा भमान म अ भविृ द करे गी ।
इ तहास गवाह है ि य ने ी क भू मका म इ तहास रचा है चाहे महारानी ल मी बाई रह हो या
झलकार बाई,इि दरा गांधी रहो हो या क पना चावला । उ च थान हा सल करने वाल ना रय ने
नार पन के अि त व क र ा करते हए
ु ह इ तहास रचा है । य द वे दोहर मान सकता क शकार
होती तो े ठता के शखर पर नह पहंु च पाती । कतना अ छा होगा क हम अपनी बे टय को
अ छ परव रश के साथ उ◌ू◌ंच श ा-द ा दान कर, वाल बन,आ म नभरता, एवं नणय लेने के
का बल बनाते िजससे वह खद
ु लडक होने पर गौराि वत होती । य द हमार बेट अपने अि त व पर
गौरव का एहसास करती है तो यक नन हमारे वा भमान म अ भविृ द होगी और ी -पु ष के भेद
पर हार भी । पु य के त मां बाप अपनी नै तक िज मेदार अ छ तरह नभाने लगे है, पु मोह
के त झान कम हआ ु है।वह जामना गया जब लडके लड कय के खानपान तक म भेद होता था ।
इसके बाद भी हम मां बाप का नै तक दा य व बनता है क हम अपनी बे टय को वा त वकता से
ब कराये ता क बे टये◌ा◌ं वा त वकता को वीकारने क ताकत पैदा ह । समय के साथ आगे बढने
को ो सा हत कर ।बे टय के हनर
ु और गण ु को तराशने के लये ढ त ावान बने रहे य क
बे टयां हमारे वा भमान क अ भविृ द है ।
न दलाल भारती
॥ सा ह य सामािजक प रवतन म स म ॥
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कबीर,नामदे व,दाद,ू र वदास,सैण,नाभादाससधना,ध ना आ द छोट समझी जाने वाल जा तय के लोग
भि त के े म मख
ु
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॥ मानवता-अमरता का ोत ॥
हमारे दे श के नै तक मू य क वरासत पव
ू काल से द ु नया सहे ज रह है िजस मानवता और मू य
को भगवान बु द ने अपने नै तकदा य व के नवहन से अजर अमर बनाया था । द ु नया के
समाजशा ी और दाश नक आज भी भगवान बु द ारा था पत मानवता एवं नै तकता के मू य पर
सहमत है । द ु नया अनसरण
ु कर रह है । उ ह मू य को ठे स पहंु चायी जा रह है व हत के भाव
के वशीभत
ू होकर । मानव होने के नाते मानवता के महाय म स कम के आहु त दे ने क
आव यकता है । य द मानवता पर कठराघात
ु होता रहा है तो मानव और पशु म शायद ह कोई
अ तर शेष बचे । मानवता के पोषण के लये व हत का याग करना आज के मानव का थम
दा य व हो गया है ।जीवन थोडे समय का है जब तक जीये दसर
ू के काम आये और नेक उ दे य को
ो सा हत कर ।परमाथ के भाव म मानव क याण न हत है । जब तक मानव म मानवता के भाव
क अ भविृ द नह होगी तब तक मानव मानव धम और मानवता के फज से दरू ह भागता रहे गा ।
स य समाज को स य मानव ह जीव तता दान कर सकते है।पशओ
ु म भी ेम के भाव दख जाते
है । एक पशु दसरे
ू पशु को चाटकर अपने नेह को द शत करता है तो सिृ ट के सरमौर मानव म
वैमन ता य कहा जाता है संगठन म शि त है । संगठन म मानवता का भाव पो षत है ।
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संगठन म उ थान है वभाजन म पतन तो य न हम जीवन के चार दन सख
ु शाि त से जीये और
दसर
ू को भी जीने द । मानवता कम को अमरता एवं जीवन को आदशवान बनाने का ोत है तो
य ना हम मानव धम और मानवता के फज को आ मसात ् करने का ढ संक प करे ◌े◌ं ।
न दलाल भारती
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अपनी रचनाओं के मा यम से परा
ू करता है । लेखक जनसमा य के लये भी आदश होता है ।
जनसामा य लेखक के यि त व को उसक रचनाओं म ढढता
ू है । इ ह जनसामा य के मा यम से
लेखक य वचार आगे बढते है । सवमंगलकार मानवमा को वचार इ तहास रचते है ।
स चा रचनाकार यि त वशेष को खश
ु करने अथवा परु कार पाने के लये नह लखता । वह तो
दे श और समाज के हताथ लखता है । चमक दमक से दरू आंका ाओं को खद
ु के वशीभत
ू कये हए
ु
सवक याणाथ लेखन कम म जटाु रहता है । वह अपने वचार को समय क कसौट पर तराशकर
समाज को दे ता है ।ऐसे वचार जनमानस को काफ सीमा तक भा वत करते है ।लेखक का वचार
गंगाजल क तरह होता है । उसके वचार समाज दे श के भले के लये होते है । भले ह
रचनाकार/सा ह यकार समाज दे श के भले क अ भलाषा म
गणाव था म पहंु च जाये । लेखक अपनी
तब दता से वच लत नह होता । उसे तो बस समाज को कछ
ु दे ने क ललक रहती है । यह
ललक उसे एक अyग पहचान दे ती है।समय का पु बना दे ती है ।
लेखक के वचार के हए
ु नह होते समय के साथ आगे बढते रहते है। लेखक का उ दे य होता है क
लेखनकम के त उसका समपण समाज को ऐसा वचार दे िजससे समाज का हत सध सके
,सामािजक बराईया
ु के खलाफ लामब द ि थ त बने जो सामािजक स भावना एवं समरसता था पत
कर सके । लेखक क तब ता ह उसके वचार क ग तशीलता का प रचायक है । बहजनु हताय
को के ब द ु म रखकर लेखन करने वाले लेखक के वचार तो थमे नह । य द वचार कता है तो
वह कसी ना कसी वाद अथवा ढवा दता का शकार होता है । ऐसे वचार के हए
ु पानी क तरह
होते है जो समाज को व थ नह कर पाते हां बीमा रयां ज र परोसते है ।स चा रचनाकार ऐसे
वचार को कभी भी पर नह लगाता य क ऐसे वचार के आघात क न ज को वह पहचानता है।
स चे वचार समाज को दशा दे ते है। लेखक पहले एक यि त होता है जो लेखक/सा ह यकार यि त
बने रहकर रचनाध मता का नवहन कर रहे ◌े है। ऐसे मानवतावाद कलमकार को को टशः नमन ् ।
न दलाल भारती
प रचय․․․․․․․․․․․․
स पक:
न दलाल भारती
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त न ध लघकथा
ु सं ह- काल मांट एवं अ य क वता, लघु कथा एवं कहानी सं ह ।
का य सं ह-2 लघकथा
ु सं ह- उखड़े पांव एवं अ य
यो तबा फले
ु श ा व ,इंदौर ।म. .।
सा ह य तभा,इंदौर।म. .।सफ
ू स त महाक व जायसी,रायबरे ल ।उ. .।
http://rachanakar.blogspot.com/2008/09/blog-post_21.html http://hindi.chakradeo.net /
http://webdunia.com/ http://www.srijangatha.com http://esnips.com ,वं अ य ई-प प काओं पर
रचनाय का शत ।
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