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com क तुत)

महे श ‘दवाकर’ का चरतका


य : वीरांगना चे न मा

दो शद
भारतीय वतं ता-सं ाम म पुष क भाँत महलाओं क भी महवपूण भू!मका रह" है । भारतीय वतं ता
क ब!लवेद" पर असं)य भारतीय महलाओं ने अपने जीवन क हँ सते-हँ सते आहुत दे द"! और अपने .ाण
के रहते हुए अपने दे श पर आंच नह"ं आने द"। राजथान का इतहास तो ऐसी वीरांगनाओं क शौयपणू
गाथाओं और उसग से भरा पड़ा है िजन पर 9यापक शोध एवं सज
ृ न क आव=यकता है । उनके जीवन के
याग और ब!लदान क गाथाओं को एक करके हम उ>ह स?ची राAB"य CDांज!ल तो दे ह" सकते हE, साथ
ह", वतमान और भावी पीढ़" को भी सं.ेGरत कर सकते हE। आज जबHक सम राAB क युवा और .ौढ़
शिIतयाँ वाथ क पंक म डूब कर राAB"य एकता, अखLडता और वतं ता को नAट .ायः करने म लगी हE,
ऐसे म हम सभी साहयकार का दायव है Hक भारतीय वतं ता-सं ाम के वOणम इतहास का अPययन
करके ऐसी हुतामाओं को QचR त करके साहय-जगत के समS .तुत कर ।

यहाँ यह उTलेख करना आम=लाघा नह"ं होगी Hक इसी उVे=य को WिAट म रखते हुए मEने .तत ु कृत से
ू ‘वीरबाला कँु वर अजबदे पंवार’ (1997) और ‘महासावी अपाला’ (1998) नामक भावपण
पव ू चGरत का9य
ृ ला म आपके कर-कमल म ‘वीरांगना चेनमा’ नामक चGरतका9य कृत .तुत
ह>द" को दए। अब इसी शंख
है । वीरांगना चेनमा ‘काकती’ (क तूर) अथात ् कना"टक दे श के धल
ू 'पा दे साई और उनक धम पनी प)ावती
दे वी क एक मा बेट" थी। धलू 'पा दे साई Hकतूर क तरफ से मराठ से यD
ु करते हुए वीरगत को .ा[त हुए
थे। धल ू [पा दे साई तकाल"न महाराजा Hकतूर क सेना म वीर सरदार थे। उनक मृ यु के उपरा>त महाराजा
Hकतूर धल
ू [पा दे साई क ]वधवा धमपनी को सौ ^पया मा!सक पै>सन (भरण-पोषण विृ त) राज कोष से
दे ते थे। प_ावती दे वी और चे>न`मा नागरमलशे*ी क दे खरे ख म ‘काकती’ म रहती थीं।

इस का9य कृत का ताना-बाना चे>न`मा के .त मेर" िजaासा के फलव^प बन


ु ा गया। मEने चे>न`मा का
नाम ‘ातः मरण’ नामक ओज, .साद एवं माधय
ु से पण
ू संकृत रचना म पढ़ा और सन
ु ा था, फलतः मEने
‘कना"टक म-हला -हद. सेवा स/मत’ क .धान सQचव डॉ॰ बी॰एस॰ शांताबाई को प bवारा अपनी िजaासा को
पण ु े ो॰ एस॰ 3ीकंठमू त" bवारा !लOखत ‘क तरू क रानी वीरांगना चेनमा’
ू करने हे तु !लखा। उ>हने मझ
शीषक गbय का9यकृत भेज द", िजसका .काशन भी ‘कना"टक म-हला -हद. सेवा स/मत’, 178, 4 मैन रोड,
चाम राज पेट, ब5गलोर-560018 (कना"टक) से हुआ है । यह गbय का9य कृत कनाटक सरकार क ओर से वहाँ
क b]वतीय कSा म अQधकृत ^प से पढ़ाई जाती है ।

मEने इस गbय का9य कृत को पांच बार से अQधक Pयानपूवक पढ़ा और स`पूण घटनाdम को dमशः
Qच>हांHकत Hकया। उपयुIत गbय का9य कृत म कथानक टे ढ़ा-मेढ़ा बुना है । मEने चGरका9य से >याय करते
हुए मु)य कथानक को संaानत Hकया और सहज व सरल बनाते हुए ‘वीरांगना चेनमा’ के कथानक का
ताना-बाना तैयार Hकया तथा इसे आज क सबसे ].य गीतका9य शैल"- दोहा शैल. म .तुत Hकया। मEने
कथानक म आं!शक पGरवतन Hकए हE तथा भारतीय नार" के वा!भमान और राAB"य स`मान को सवe?चता
एवं .मुखता से .तुत Hकया है । हाँ, जो बात बौ]Dक कसौट" पर खर" नह"ं उतरती थी, उसे पGरवतत करते
हुए तकस`मत बना दया है Hक>तु महारानी चे>न`मा क वीरता, वा!भमान और अिमता तथा ऐतहा!सक
तfय से छे ड़-छाड़ नह"ं क है । वतुतः, इतहास तो नीरस व तfयपूण घटनाdम ह" होता है और का9य-
इतहास और कTपना को समि>वत करके चलता है तथा मनोरं जक, .ेरक, कौतूहल और िजaासापूण होता है ।

‘चेनमा वीरांगना’, जीवन ल/लत ललाम।

याग-समप"ण-वीरता, उ::वल छ<व, न=काम।।

‘वीरांगना चेनमा’ नामक इस का9य कृत म ऐतहा!सक नाम को यथावत रखा है । इस!लए कह"ं-कह"ं
माR क दोष भी रचा- बसा है । भाषाई सरलता और सहजता को आbयोपा>त बनाये रखने का .यास Hकया
गया है , िजससे आम बोलचाल क जन सामा>य क भाषा का ^प और भी अQधक नखरकर सहज सं.े]षत
हो सके।

ु े आशा है Hक आपको यह चGरत का9य कृत ‘वीरांगना चेनमा’ अव=य रास आयेगी। यद यह
मझ
का9यकृत Hकसी भी ^प म आपके मम को छू सक तो मेरा Cम साथक हो जायेगा। ु टयाँ aान-hSतज
को बढ़ाती हE, सiदयता क .तीक होती हE, माग दशक से !मलाती हE। इस भावना से सदै व सबका वागत
है ।

माँ सरवती का यह सारवत .सून आपको सादर उपहार म दे ता हूँ। सjावनाओं सहत!

भारतीय गणतं? -दवस, सन ् 2010 ई॰ के शुभागमन पर!

डॉ॰ महे श ‘-दवाकर’

‘सरवती’, 12-!मलन ]वहार,

दे हल" राAB"य माग, मुरादाबाद-244001

उतर .दे श (भारत)


सग - 1
वसुधा पर यद सिृ Aट म , बसे कह"ं पर वग।

तो वह भारत दे श है , जहाँ वग-अपवग।।

दे व क धरती यह", ऋ]षय क स>तान।

सbगण
ु से बनते यहाँ, सभी मनज
ु भगवान।।

पशु-पSी, पथर, नद", ]वटप-धरा-नभ-ईश।

अिlन-वाय-ु जल-च>mमा, र]व- ह सब जगद"श।।

जड़-चेतन इस दे श म , होते सभी महान।

गुOणय क यह भू!म है , जाने सकल जहाँन।।

रSक है परमामा, कृषक जीवन-.ाण।

धम-कम-]वaान म , अOखल ]व=व सं.ाण।।

दया aान-]वaान का, दु नया को आलोक।

कम-संकृत से Oखला, नOखल लोक-परलोक।।

ऋतओ
ु ं से रहते मु दत, तीज और यौहार।

दल
ु भ जीवन-रन हE, मंगलमय उपहार।

सहज aान औ’ भिIत का, बालक पढ़ते पाठ।

जहाँ राम औ’ कृAण भी, बस अंक म आठ।।

सय-अहंसा-.ेम का, दे ता यग
ु -स>दे श।

वसुधा को घर मानता, भारत जगत ]वशेष।।

ज>म भ!ू म यह ‘भरत’ क, ‘भारत’ इसका नाम।

कण-कण म इस दे श के, बस राम-घन=याम।।

बसा भरत क भू!म पर, ‘कना"टक’ .भाग।


‘धारवाड़’ इस .ा>त का, अjत
ु है संभाग।।

‘धारवाड़’, .खLड म , बसा नगर ‘क तूर’।

‘-हरे म@ल शे*ी’ यहाँ, रहते बादतरू ।।

‘-हरे म@ल’ भतn हुये, ‘बीजापुर’ क फौज।

मानो उनको !मल गयी, इस जीवन म मौज।।

‘-हरे म@ल शे*ी’ बने, सेनापत सरदार।

खश
ु होकर सT
ु तान ने, दये अ!मत उपहार।।

राज दया Hकतूर का, धन भी दया तमाम।

‘शमशेर जंग बहादरु ’, !मल" उपाQध इनाम।।

‘-हरे म@ल’ के वंश म , राजा हुये ]वशेष।

‘म@लसज"’ Hकतूर के, थे .!सD नरे श।।

महाराजा Hकतूर के, ‘धल


ू 'पा’-सरदार।

वीर, मराठा-युD म , छोड़ गये संसार।।

‘धल
ू 'पा दे साइ’ क, बेट" रह" अनाम।

‘चेनमा’ वीरांगना, पड़ा उसी का नाम।।

तेर" कृपा से सखे! चGरत रचा नAकाम।

अपना तो कुछ भी नह"ं, तेरे Rबन हे राम!।

गहन त!मर नभ म घरा, स>नाटा चहुँओर।

मलयानल थी बह रह", कह"ं छुप गया भोर।।

म>द-म>द द"पक जल , सदन-कS के बीच।

द"प-!शखा को वायु भी, लेती iदय भींच।।

सदन-कS के बीच म , पड़ी पा!लका एक।


िजस पर लेट" एक थी, वD
ृ ा तHकया टे क।।

समय पूव ह" दद ने, जकड़ा यौवन-छोर।

इसी!लए तो जरा ने, दया उसे झकझोर।।

नैन म अनुभव-चमक, मुख पर Qच>ता भाव।

मन-खग उड़े अतीत म , आ जाता था ताव।।

वD
ृ ा को भगवान ने, दया-सुता-सा रन।

िजसको अनप
ु म [यार से, बड़ा Hकया कर यन।।

धीरे -धीरे हो गया, बचपन उससे दरू ।

बाल Hकशोर" ^प म , सु>दर थी भरपूर।।

माता उसे पुकारती, दया ‘चेन’ू नाम।

मानो माँ क भावना, फूल रह" नAकाम।।

शनैः शनैः होता गया, माँ का वाfय खराब।

मनो अभाव ने दया, उसको टका जवाब।।

पर, माँ क !शSा बनी, सबके !लए !मशाल।

नपुण बा!लका हो गयी, करती बड़े कमाल।।

बेट" माँ के सामने, पढ़ती प


ु तक एक।

सहज भाव माँ सुन रह", ले तHकया क टे क।।

माँ से पछ
ू े बा!लका, .=न करे ग`भीर।

भारतमाता आ गयी, धरकर मनो शर"र।।

माँ! ये कैसे ंथ हE? भरे असय संदेश।

गोर के कTयाण का, दे ते aान ]वशेष।।

सौदागर के ^प म , आये गोरे दे श।


बतलाते ये ंथ हE, वामी बने ]वशेष।।

शु^-शु^ म तो Hकया, !म -सा 9यवहार।

राजा और नबाव को, दये अ!मत उपहार।।

ऐसा जादक
ू र दया, फँसा धनक संवग।

गोर क कृपा उ>ह , मानो लगती वग।।

राजा और नबाव म , मची परपर होड़।

गोर ने जाद ू दया, उन पर अपना छोड़।।

नीत कुटलता से भर", नह"ं [यार का नाम।

Gरयासत को कर दया, बेबस और गुलाम।।

फँसी दे श क आमा, हाय! ]वदे शी जाल।

तड़प मीन-सी मर रह", कौन पूछता हाल।।

फँसे ]वदे शी चाल म , राजा और नवाब।

Hकंकत9य]वमूढ़ सब, ओढ़े हुये नक़ाब।।

भेड़-बकGरय क तरह, कटने सब तैयार।

दे ते नह"ं जबाब थे, गोर के दरबार।।

ऊपर से गोरे बड़े, अ>दर काल" कंच।

बQधक से बदतर सभी, गोरे Hकतने नीच।।

!लखे िज>हने ंथ हE , Iया उनक औक़ात।

दे श-कलम को बेचकर, पाते वे सौगात।।

माँ! मझ
ु को ^चता नह"ं, इन ंथ का पाठ।

इनको पढ़ना 9यथ है , सोलह दन


ू ी आठ।।

माँ! जब हो जाऊँ बड़ी, एक रहे गा काम।


गोर का न!श दन क^ँ, Sण म काम तमाम।।

माँ बोल" तब घूरकर, Hकया हाथ संकेत।

चप
ु होजा अब लाड़ल"! सुनता खड़ा नकेत।।

माता Qच>ता मत करो, Iयकर हुई उदास।

अँ ेज़ का एक दन, होगा सयानाश।।

अँ ेज़ के जुTम का, होगा नि=चत अ>त।

भारत-वैभव ]व=व म , फैले दशा-दग>त।।

माँ! गोर ने दे श को, Hकया बहुत बबाद।

ये होने द गे नह"ं, कभी दे श आजाद।।

लूट-फूट-धोखा बने, माँ! इनके हQथयार।

भय-लालच-आतंक से, करते ये अQधकार।।

फैल रहा आतंक बन, अँ ेज़ का जाल।

नत .त करते जा रहे , भारत को बदहाल।।

संकृत-!शSा-सqयता, धन-जन लुटता रोज।

अजग़र जैसा हो गया, माता! इनका ओज।।

राज और राजा हुये, इनके सभी अधीन।

आटा-चIक बन गयी, अं ेजीयत-मशीन।।

नय कट रहे दे श म , राजाओं के शीश।

जो करता ]वmोह है , उसको डाला पीस।।

माँ! तेर" सौग>ध है , खौल रहा है खन


ू ।

मेर" रग-रग म हुआ, पैदा बहुत जुनून।।

अपमान क शंख
ृ ला, करती है बेचन
ै ।
काटे भी कटते नह"ं, माता! दन औ’ रै न।।

अँ ेज़ क दासता, क^ँ नह"ं वीकार।

इससे तो मरना भला, जीत !मले या हार।।

माँ! HकंQचत ् धीरज धरो, करो तनक ]व=वास।

दे खोगी तम
ु दे श म , आजाद"-मधम
ु ास।।

अँ ेज़ के शीश पर, दौड़ेगी तलवार।

ब?चा-ब?चा दे श का, लड़े उठा हQथयार।।

अँ ेज़ क dूरता, दे ख रहा है दे श।

तानाशाह"-dूरता, ^क न अब तक लेश।।

अँ ेज़ से यद लड़ा, कोई वीर समाज।

रहा तमाशा दे खता, हाय! पड़ोसी राज।।

सब राजे !मल दे श के, करते यद सं ाम।

तो नि=चत अं ेज सब, बनते यहाँ गुलाम।।

यहाँ !शवाजी-छ पत, हुये अनेक लाल।

राणा जैसे वीर से, डरा मुग़लई काल।।

याग-समपण-वीरता, कहाँ दे श-अ!भमान।

पता नह"ं खोया कहाँ, वीर धरा का मान।।

जगह-जगह पर हो रहे , अगOणत वीर शह"द।

शोषण-भय-आतंक म , मन दवाल"-ईद।।

मr
ु ीभर अं ेज ने, जीना Hकया मह
ु ाल।

द`भ-bवेष-पाखLड से, आता नह"ं उबाल।।

अपने-अपने अहं म , भरे राज-यव


ु राज।
आलस घोर ]वला!सता, चल राज औ’ काज।।

माँ! करता है लगा दँ ,ू राज-मुकुट म आग।

तब शायद कोई !मले, आजाद" का राग।।

गहन ईAया-bवेष म , फँसे राज-दरबार।

सता-सख
ु क लालसा, भम Hकये पGरवार।।

आज Hकला जीता यहाँ, कल जीता उस छोर।

गोर क ह" जीत का, यहाँ-वहाँ है शोर।।

राज हड़पने के !लए, चाल चल तमाम।

मानो भारत दे श के, शाह" बने इमाम।।

काम लुटेर का कर , कहलाते अं ेज।

कहाँ वीरता->याय है , गोरे sय चंगेज।।

बु]Dमान कहते इ>ह , दु नया के इंसान।

ये मानव के ^प म , सचमुच हE शैतान।।

तनया क बात सुनी, माँ को आया dोध।

इधर-उधर को दे खकर, दे ने लगी .बोध।।

माँ ने समझाया बहुत, करो न ऐसी बात।

द"वार के कान भी, होते-करते घात।।

च[पे-च[पे पर यहाँ, जासस


ू  का राज।

सुना अगर द"वान ने, Rबगड़ सारे काज।।

घोर बढ़
ु ापा दे ख यह, खड़ा सामने काल।

!मtी करे खराब Iय? कैसा पुरसा-हाल।।

चालबाज अं ेज हE , धू त और ग़Vार।


पता नह"ं Hकस बात पर, लड़ सभी मIकार।।

कभी न करना भूल से, बेट"! ऐसी बात।

सन
ु -सन
ु तेर" बात को, काँप रहा है गात।।

भारत के राजा जहाँ, ]ववश और असहाय।

Iया मतलब हमको पड़ा, जो तू रह" सताय।।

माँ के मन क लालसा, होव पीले हाथ।

हँ सी-खश
ु ी बेट" ]वदा, जाय ]पया के साथ।।

बेट" रहे न मायके, घर उसका ससुराल।

मात-]पता क कामना, रहे सदा खश


ु हाल।।

]पता वीरगत पा गये, बसे वग म जाय।

मेरा अब दायव है , तेरा घर बस जाय।।

चलते-सोते-जागते, पड़े न मन को चैन।

पल-पल Qच>ता खा रह", बेट"! दन औ’ रै न।।

कहते-कहते बह गया, नैन से कुछ नीर।

शvद आँसुओं म झरे , माँ क ममता-पीर।।

माँ के सन
ु भावक
ु बचन, कहा बीच म टोक।

हे माँ! बेहद हूँ दःु खी, मुझे अरे ! मत रोक।।

माता! Qच>ता मत करो, रखो सहज ]व=वास।

‘चेन’ू के कारण कभी, होय नह"ं उपहास।।

ज>म दया है ईश ने, दे श-धम-रSाथ।

शाद" करना है नह"ं, माँ! मेरा पु^षाथ।।

अँ ेज़ ने दे श का, लट
ू !लया स`मान।
भारत माँ का कर रहे , पग-पग पर अपमान।।

Hफर भी, जन-जन कर रहा, गोर क तार"फ़।

!लखा प
ु तक म पड़ा, हE अं ेज शर"फ़।।

िजधर-िजधर को दौड़ते, माता! आँख-कान।

बाँध .शंसा के रहे , पल


ु भी सभी जवान।।

राम-कृAण क भू!म पर, गयी का!लमा छाय।

मानो भारत भ!ू म पर, वीर रहा अब नाय।।

अपने-अपने वाथ म , लोग रहे हE डूब।

अँ ेज़ क कर रहे , सभी .शंसा खब


ू ।।

सुन-सुनकर बात यह", खन


ू खौलता मात!

रोम-रोम Hफर पूछता, कहाँ चल रह" घात।।

बु]D बग़ावत कर रह", दे ता iदय साथ।

गोर से होकर रह , माते! दो-दो हाथ।।

माता बोल" रोककर, धीमी कर आवाज!

लेना-दे ना Iया हम , कर अपना तू काज।।

बड़ी-बड़ी सेना हुई, अँ ेज़ से पत।

राजा औं’ सुTतान के, हुए सूय अत।।

चे>न!ू तू Iया चीज है ? जैसे बाल मराल।

बाज सभी अं ेज हE, करते राज हलाल।।

कोई कुछ बकता रहे , उधर न दे तू Pयान।

रखो काम से काम तुम, खब


ू बढ़ाओ aान।।

िजस दन तू रानी बने, पीले कर दँ ू हाथ।


छोड़ रहा है रात दन, यह शर"र भी साथ।।

माता के सुनकर बचन, चे>नू हुई उदास।

रानी बन, माँ! Iया क^ँ? नकल पड़े उ?xवास।।

माँ! रानी क भू!मका, दासी बनती हाय!

इससे तो मरना भला, कुल क शाख़ न जाय।।

बड़े-बड़े राजा हुये, अँ ेज़ के ख़ास।

गोरे शासन कर रहे , राजा इनके दास।।

राजा-रानी नाम के, सजा शीश पर ताज।

राजा तो अं ेज हE, सचमुच करते राज।।

बेट" क बात सुनी, माँ रह गयी अवाक् ।

कब से बेट"! हो गयी, तू इतनी चालाक।।

अरे ! कहाँ ]वदष


ु ी! !लया, राजनीत का aान।

तुझे बताता कौन है , चे>नू यह ]वaान।

चे>नू माँ के .=न पर, रह" दे र कुछ मौन।

Hफर, माँ से कहने लगी, ‘माँ! ये गोरे कौन?’

हम दबाने का !मला, Iया इनको अQधकार?

गोर क औक़ात Iया, Iया हम पर उपकार??

ज>म भ!ू म मेर" यह", पावन भारत दे श।

Hकसी ]वदे शी का नह"ं, भारत परम नवेश।।

गोरे रह न दे श म , भारत बने नहाल।

िजतनी जTद" हो सके, दे व दे श-नकाल।।

चरू -चरू गोर कर , अथ-9यवथा हाय!


कूट नीत से दे श को, जजर रहे बनाय।।

बदल रहे हE दे श क, संकृत औ’ इतहास।

अपना पतझर थोपते, ले जाते मधम


ु ास।।

सोना-चाँद"-धातुऐ,ं जाती सभी ]वदे श।

ह"रा-मोती-रन सब, गायब हुये ]वशेष।।

बेशकमती वतु जो, ले जाते ग़Vार!

कचरा अपने दे श से, लाते ये मIकार।।

सोने क Qचzड़या कभी, कहलाता था दे श।

आज !भखार" क तरह, बचा न घर म लेश।।

पड़े दे खना दे श को, दु दन बड़े ज^र।

दाने-दाने को सभी, जब हगे मजबूर।।

माँ बोल"-हे चे>नू! यह" सय है आज।

लेHकन, आधे ]व=व म , अँ ेज़ का राज।।

छपे न गोरे -राज म , अ`बर का दनमान।

अं ेजी-सता बनी, दु नया म उपमान।।

Rबना एकता ]व=व म , कोई सका न जीत।

पर, भारत म एकता, अब सपने क .ीत।।

जीत सके अं ेज को, आज असंभव काम।

राम-कृAण अब हE कहाँ, बेट"! भारत धाम।।

चे>नू बोल" ठ{क है , मात! त`


ु हार" बात।

लेHकन, यह भी सय है , रहती सदा न रात।।

Rबन .यास होता नह"ं, कभी असंभव काम।


मन म Wढ़ ]व=वास से, !मल जाते हE राम।।

छपे भले ह" र]व नह"ं, गोर"-सता आज।

अँ ेज़ को एक दन, पड़े छोड़ना राज।।

माँ Hफर से कहने लगी, पगल"! होजा मौन।

अं ेजी-आतंक म , तझ
ु े सन
ु ेगा कौन।।

दशा-दशा मं दरू तक, गोरे करते राज।

पगल"! तू कैसे लड़े, Hकस पर करती नाज।।

चे>नू बोल"-माँ! मुझ,े ई=वर पर ]व=वास।

वह मेरे संकTप का, करे नह"ं उपहास।।

रSा हत नज भू!म क, क^ँ सभी ब!लदान।

ब?चा-ब?चा दे शहत, दे गा अपने .ान।।

चरण क सौग>ध माँ! बदलँ ू युग-.वाह।

कांप उठ अं ेज सब, सता उठे कराह।।

अ -श औ’ सै>यबल, सभी क^ँ एक ।

युD-.!शSण औ’ कला, सीखग


ूँ ी सव ।।

गोर के आतंक से, मI


ु त कराऊँ दे श।

मुझे नह"ं माँ! चाहए, अबला-नार" वेश।।

भारत मेरा दे श है , तब तक रहे गल


ु ाम।

जब तक परदा आँख से, नह"ं हटाय अवाम।।

नकले तोड़ पहाड़ को, जल क माला फूट।

य जनता क एकता, पड़े दAु ट पर टूट।।

टके न कोई सामने, जनता करे बवाल।


.ाण बचाते भागते, करते मौन सवाल।।

Hफर कोई बचता नह"ं, जनता करती चोट।

जनता का होता सदा, भीषणतम ]वफोट।।

तानाशाह" रे त क, होती है द"वार।

अQधक समय टकती नह"ं, सहे न अपना भार।।

िजस दन जनता दे श क, खाने लगी उबाल।

जगह-जगह तब दे श म , हगे बहुत बवाल।।

जब तक जनता दे श क, करती नह"ं ]वmोह।

तब तक जन-मन म रहे , भार" ऊहापोह।।

भरती है जन चेतना, जन-जन म उसाह।

हम सबका दायव है , बन न लापरवाह।।

दे श हमारा .ाण है , दे श हमार" शिIत।

दे श-धम क भावना, पैदा करती भिIत।।

दे श-धम पर जो !मटे , सदा !मले स`मान।

युग-युग उनको मानता, दग


ु ा औ’ भगवान।।

Wढ़ न=चय कर आदमी, जब लेता संकTप।

खड़ी सफलता हे रती, पग-पग !मल ]वकTप।।

तानाशाह" का कर , जन-जन घोर ]वरोध।

टके नह"ं Hफर सामने, बड़े-बड़े अवरोध।।

जब होता पथ }Aट नर, बनता तानाशाह।

जनता को ह" लूटता, बन जनता का शाह।।

जनता माँ! का एक दन, लगे खौलने खन


ू ।
पैदा जनता म करे , स?चा मनुज जुनून।।

अ -श ले हाथ म , हो जाते एक ।

चलने Hफर दे ते नह"ं, तानाशाह"-स ।।

जनता को जा त क^ँ, उठा हाथ तलवार।

तभी !मलेगी दे श को, आजाद"-उपहार।।

बड़ा कठन यह काम माँ, नह"ं असंभव ल~य।

मरना अपने दे शहत, जीवन स>


ु दर सय।।

इसी ल~यहत क^ँगी, Hकसी नप


ृ से vयाह।

रानी बनकर Hफर लडूँ, क^ँ नह"ं परवाह।।

शिIत बनँू उस राज क, भ^ँ .जा म ज़ोश।

अँ ेज़ के इस तरह, उड़ जायगे होश।।

बात बेट" क सुनी, उमड़ उठे अरमान।

माँ के मुख पर छा गयी, पलभर को मुकान।।

चे>नू! तू भोल" बड़ी, ध>य! दे श हत राग।

राजा क रानी बनो, फले तु`हारा भाग।।

होवे परू " कामना, दे ती माँ आशीश!

द=ु मन के आगे कभी, झुके न तेरा शीश।।

बेट"! बड़े गर"ब हम, Hकमत के पाबंद।

.भु! अ`बर छूने चला, Rबटया का आनंद।।

मन ह" मन माँ ने दया, बेट" को आशीश।

हाथ [यार से रख दया, भावुक मन से शीश।।

माता! मझ
ु को दे खना, रानी बनँू ज^र।
अँ ेज़ का एक दन, नीचा क^ँ गु^र।।

माँ! मेरे ब!लदान से, पैदा हो वह sवाल।

िजसम जलकर भम हो, गोर"-सता-vयाल।।

तेरे सपने पूण ह, सफल कर भगवान।

पर, चे>न!ू लगती मझ


ु ,े तू है अत नादान।।

आँख म ममता भर", छलक रहा था [यार।

माँ बोल" सोजा अरे , सोता सब संसार।।

बुनती रह" भ]वAय के, सु>दर-सु>दर व[न।

कब नंदया आयी, गयी, कब मन हुआ .स>न।।

आने लगी पड़ौस से, चHकया क आवाज।

दरू मि>दर म छड़, मधुर-सुर"ले साज़।।

.ाची के आकाश म , होने लगा .भात।

बाल अ^ण क रि=मयाँ, लगीं दखाने गात।।

चल" Qथरकती रि=मयाँ, खगकुल करते शोर।

म>द-म>द बहता पवन, मलय सुवा!सत भोर।।

खग-कुल का कलरव पड़ा, जब चे>नू के कान।

नींद नयन से उड़ गयी, रची अधर मुकान।।

इसी बीच सांकल बजी, खट-खट बजी Hकवार।

‘चे>नू-चे>न’ू नाम ले, कोई रहा पुकार।।

माँ थी गहर" नींद म , सोती चादर तान।

शनैः-शनैः चे>नू उठ{, माँ को सोई जान।।

घर का खोला bवार तो, तन-मन हुआ ]वभोर।


बाल-सखा थे सामने, नाच उठा मन-मोर।।

चे>न`मा ने कर दये, घर के ब>द कपाट।

तीन उपवन को गये, जीवन जहाँ सपाट।।

रायLणा-बालLणा दोन

सब
ु ह टहलने आते थे।

मँह
ु बोल" भQगनी चे>न`मा

साथ-साथ सब जाते थे।

बाल सखा बचपन से तीन

फूले नह"ं समाते थे।

अँ ेज़ के तीन द=ु मन

गोरे नह"ं सुहाते थे।

चे>न`मा के ]पता धल
ू [पा

अँ ेज़ ने मार दये।

बालLणा-रायLणा के-

]पता भी बेघर वार Hकये।

इसी!लए, ये तीन अपने

द=ु मन को पहचानते थे।

गोरे भारत लट
ू रहे हE

भल"-भाँत ये जानते थे।

दै नक जीवन म भी इनके

यह 9यवहार झलकता था।

रोम-रोम से इन तीन के
भारत-.ेम छलकता था।

***********

सग-2
सुबह-सुबह थी बह रह", शीतल-म>द बयार।

चल" Hकशोर" झम
ू ती, मानो जाय बहार।।

हँ सते-गाते-नाचते, नकल गये कुछ दरू ।

अ`बर म बादल उठ , दे ख हुये मजबूर।।

मौसम क मजबूGरयाँ, !लया यह" संaान।

तीन घर वापस चल , इसम ह" कTयान।।

घर को वापस चल पड़े, पहुँचे उपवन पास।

दे खा उपवन के नकट, अ=व चर रहे घास।।

अज़ब-ग़ज़ब के अ=व थे, स>


ु दर वथ शर"र।

चे>नू उनको दे खकर, ]विमत हुई अधीर।।

दोन से कहने लगी, सन


ु ो हमार" बात।

इन घोड़ क पीठ पर, कर सवार" तात।।

चढ़ घोड़ क पीठ पर, तीन होय सवार।

शत लगाकर दौड़ ल , जीत !मले या हार।।

बालLणा सबसे बड़ा, बोला- ‘करो न गव।

अ=व दौड़ म जीतकर, कहलाऊँ ग>धव’।।

बालLणा क बात सुन, रायLणा मुकाय।

कहने लगा ]वचार कर, ‘करो .शंसा नाय।।

तुम दोन से CेAठ हूँ, मE ह" अ=व सवार।


शत लगाकर दौड़ लो, दोन जाओ हार’।।

बात-बात म छड़ गयी, दोन म तकरार।

चप
ु रहने को एक भी, होय नह"ं तैयार।।

चे>नू उनक सुन रह", बहस खड़ी चप


ु चाप।

दोन से कहने लगी, ‘Iय लड़ते हो आप।।

पता नह"ं Iय कर रहे , उलट"-पुलट" बात।

अपना-अपना अ=व चन
ु , दौड़ लगाओ तात।।

Hकसम Hकतनी शिIत है , Hकसम Hकतना aान।

अ=व कला क दSता, बतलाये मैदान।।

9यथ बहस अब मत करो, चलो करो घुड़दौर।

नणय हो मैदान म , कौन यहाँ !सरमौर’।।

‘कर कंगन को आरसी, Iया तुमको वीकार।

चे>नू! तुम भी दौड़ लो, हो जाओ तैयार।।

अ=व कला संग श का, और अ का aान।

तुमको हमने ह" दया, कुशल तु`ह संaान।।

चे>न!ू चन
ु ौती दे रह"ं, तम
ु ह" हमको आज।

तुम भी घोड़े खोल लो, और उड़ा लो बाज’।।

चे>नू ने हँ सकर कहा, ‘हाँ-हाँ RबTकुल ठ{क।

पता चले मैदान म , भैया! द" जो सीख’।।

मौसम बड़ा सह
ु ावना, सरू ज करता खेल।

कभी बादल म छुपे, कभी धरा से मेल।।

आँख-!मचौनी चल रह", सरू ज-अ`बर बीच।


कभी पहाड़ी चोटयाँ, कभी धरा दे सींच।।

उपवन के RबTकुल नकट, बनी थी चराग़ाह।

उसम चरते अ=व थे, =वेत-=याम अत याह।।

एक-एक घोड़ा पकड़, उन पर हुये सवार।

तीन ने मैदान पर, घोड़े दये उतार।।

लगे दौड़ने अ=व Hफर, तनक लगायी ऐड़।

चले-कूदते-फाँदते, करते sय मठ


ु भेड़।।

]वbयुत गत से दौड़ते, तीन अ=व समान।

सरपट दौड़े जा रहे , मानो वायु ]वमान।।

बालLणा के अ=व ने, पहले मानी हार।

रायLणा का अ=व भी, Qगरा दस


ू र" बार।।

चे>न`मा का अ=व तो, ऐसा था मँह


ु जोर।

अरबी घोड़ा हवा से, लगा रहा sय होड़।।

=वेत वण का अ=व वह, Hकतना था शैतान।

कई बार उसने Hकया, चे>नू को है रान।।

समझ श^
ु म ह" गयी, चे>नू उसक चाल।

sय ह" बैठ{ पीठ पर, उसने Hकया कमाल।।

दौड़ रहा था कूदता, और चलाता लात।

रोके से ^कता नह"ं, करे हवा से बात।।

चे>नू ने भी अ=व का, Hकया अनठ


ू ा हाल।

अपनी बदल" अ=व ने, झाग उगलते चाल।।

बेदम-सा होकर ^का, आOखर वह शैतान।


चे>न`मा ने तब तलक, जीत !लया मैदान।।

बालLणा व रायLणा, आये तब तक पास।

चे>न`मा को दे खकर, सहज हो गयी सांस।।

कभी अ=व को दे खते, कभी चे>नू क ओर।

साधारण यह है नह"ं, लड़क बड़ी कठोर।।

आयी धरकर सिृ Aट पर, मानो दग


ु ा ^प।

नि=चत बदलेगी धरा, अपने ह" अन^


ु प।।

‘वाह! चे>नू कर दया, सचमुच बड़ा कमाल।

वह भी अzड़यल अ=व से, ऐसा Hकया धमाल।।

आOख़र इस शैतान ने, मानी अपनी हार’।

डाल गले म ह" दया, ‘]वजय Cी’ का हार।।

अपने-अपने अ=व तब, दये कँु ज म छोड़।

घर को अपने चल दये, ख़म हो गयी होड़।।

काले-काले मेघ ने, घेर !लया आकाश।

पुरवैया थी बह रह", कम हो गया .काश।।

दरू -दरू तक एक भी, दखा नह"ं इंसान।

अँQधयारा-सा हो गया, पथ Hकतना सुनसान।।

इसी बीच ह" आ गये, पथ म दो बदमाश।

दे ख Hकशोर" साथ म , शु^ Hकया उपहास।।

चे>नू ने अ>दर छुपी, खक


ु र" धर" नकाल।

Hफर दोन बदमाश पर, झपट" दया उछाल।।

!सर धड़ से होकर ]वलग, Qगरा एक बदमाश।


दे ख हाल तब दस
ू रा, भगा रोककर सांस।।

बालLणा को दे ख यह, अचरज हुआ अपार।

‘चे>न!ू तम
ु ने Iया Hकया, दया मनज
ु को मार।।

राजा का यद आदमी, हमको दे खे आय।

मृ यु दLड नि=चत !मले, कोई नह"ं बचाय’।।

चे>नू बोल" चीख जब, बालLणा चप


ु चाप।

‘अपनी रSा के !लए, कहाँ मारना पाप’।।

चे>नू क नभnक अत, सुनकर इतनी बात।

बाल सखा चप
ु रह गये, आगे कह" न बात।।

इसी बीच .कट हुआ, .ौढ़ आदमी एक।

‘वाह! वाह!’ कहने लगा, वह चे>नू को दे ख।।

‘बेट"! तुम डरना नह"ं, ठ{क Hकया है काम।

वीर, नडर तुम हो बड़ी, तनक बताओ नाम’।।

चे>नू बोल" तुनककर, ‘Iया है मुझसे काम।

Hकसी 9यिIत अनजान को, Iय बतलाऊँ नाम’।।

हँ सकर बोला आदमी, ‘ध>य त`


ु हार" मात।

नीत-नपुण तुम कर रह"ं, बेट"! मुझसे बात।।

यD
ु कला औ’, aान क, बेट"! तम
ु भLडार।

साSात, दग
ु ा सWश, अjत
ु अ=व सवार।।

अ -श औ’ यD
ु का, !लया अपGर!मत aान।

क>या होकर Iय !लया, पु^ष-सा संaान’।।

चे>नू बोल" ‘यD


ु का, काश! न हे ाता aान।
आज यहाँ बदमाश से, कौन बचाता जान।।

अपनी रSा के !लए, लड़ना कैसा पाप?

इन बदमाश से मझ
ु ,े कौन बचाते आप?।

युD कला औ’ aान के, नर Iया ठे केदार?

Iया नार" को है नह"ं, नज रSा अQधकार?।

जब तक नार" दे श क, पढ़े न लेती aान।

तब तक उसको ]व=व म , !मले नह"ं स`मान।।

अपनी रSा का उसे, लेना है अQधकार।

वरना, तो ]पटती रहे , Rबना बात हर bवार।।

य तो ]वbया-aान के, ]व]वध आज आयाम।

युD कला सीखे Rबना, टूट -Qगर धड़ाम।।

नार" को अनवाय हो, यD


ु कला का aान।

जीवन-यापन के !लए, पढ़े समाज ]वaान।।

पु^ष ]वधाता सिृ Aट का, नि=चत है दनमान।

लेHकन, नार" के Rबना, बना कहाँ उपमान?।

नर-नार" को सिृ Aट म , !मले हE सम अQधकार।

चालाक से पु^ष ने, बदला नज संसार।।

नार" का करने लगा, नर पग-पग अपमान।

मुOखया बनकर ]व=व म , लूट रहा स`मान।।

नर ने तो अपने !लये, खल
ु े रखे सब bवार।

पर, नार" क सोच पर, लगा दया अQधभार।।

सीता-राधा-mौपद", या मीरा-सी नार।


^प-नाम कुछ भी रहे , शो]षत थी युगवार।।

पराकाAठा हो गयी, नार" शोषण खब


ू ।

भQगनी-पनी-.े!मका, मात गयीं सब ऊब।।

लड़क-लड़का म Hकये, पैदा ज>म ]वभेद।

लड़का मानो ‘हष’ है , लड़क माने ‘खेद’।।

आOख़र चलता कब तलक, नर का अयाचार।

नार" ने भी aान का, उठा !लया हQथयार।।

युD-कला, ]वaान हो, या दशन अनुभाग।

कहाँ न नार" ने Hकया, द!शत नज अनुराग।।

पु^ष से पीछे नह"ं, अब भारत क नार।

उसे नह"ं वीकार है , अब जीवन म हार।।

नर-नार" पर€म के, दो हE कला ]वधान।

]वधना क इस सिृ Aट म , दोन ^प महान।।

मानव ^पी ]वटप क, मE भी शाखा एक।

नर-नार" के बीच मत, बाबा! अ>तर दे ख।।

माँ मेर" ‘प)ावती’, ‘चेन’ू मेरा नाम।

ाम ‘काकती’ के ]पता, बना वग म धाम।।

‘धल
ू 'पा’ Hकतरू क, सेना म सरदार।

अँ ेज़ से युD म , उनका हुआ संहार।।

बालLणा व रायLणा, बाल सखा-से }ात।

वीर-नडर ये साहसी, युD कला नAणात।।

अँ ेज़ ने दे श को, बाबा! Hकया गल


ु ाम।
दग
ु ा क सौग>ध है , कर दँ ू काम-तमाम।।

चे>न`मा ने dोध से, खंजर !लया नकाल।

बाल सखा दोन खड़े, अपना खग संभाल।।

चे>नू ने हँ सकर कहा, बतलाओ अब नाम।

यहाँ छुपे थे Hकस!लए, Iया है हमसे काम?’।

‘बेट"! मE Hकतूर का, राज-काज-द"वान।

‘गB
ु /सC'पा’ नाम का, !मला मझ
ु े उपमान’।।

]पता तुTय द"वान को, तSण Hकया .णाम।

‘पूर" होवे कामना’, आ!शष दया तमाम।।

‘चे>नू’ के !सर हाथ रख, बोले Hफर द"वान।

‘]वजय Cी’ बेट" !मले, बढ़े बहुत ह" मान।।

अपने घोड़े पर हुये, Hफर द"वान सवार।

संगोTल" को चल दये, करते हुये ]वचार।।

दोन भाई भी गये, चे>नू को घर छोड़।

सदा रहे गी याद यह, अ=वदौड़ क होड़।।

घटनाएँ घटती सदा

जीवन इनका दास

हर घटना के मल
ू म ,

कुछ तो रहता वास।।

घटनाएँ घटती नह"ं,

होता नह"ं ]वनाश।

जीवन Rबना ]वनाश के,


पाता कहाँ ]वकास।।

***********

सग-3
बालLणा व रायLणा, दो बालक उपमान।

नागरमल के पु bवय, मानो ये दनमान।।

आय बैलहDगल बसे, छोड़ दया Hकतरू ।

डाकू पीछे था पड़ा, रचता नय Hफतूर।।

नागरमल का राज म , बहुत बड़ा 9यवसाय।

धन-वैभव के दे श म , होती अjत


ु आय।।

इसी!लए डाकू पड़ा, पीछे धोकर हाथ।

नागरमल Hकतूर का, गये छोड़कर साथ।।

दोन पु  को दया, युD-कला का aान।

नडर, साहसी, वीर थे, सूरज-च>m समान।।

चे>न`मा के ]पता के, नागरमल थे मीत।

‘धल
ू 'पा दे साइ’ से, रह" अनठ
ू { .ीत।।

नागरमल के पु bवय, चे>न`मा के }ात।

मँह
ु बोल" भQगनी बनी, कहती उनको तात।।

चे>न`मा के ]पता को, !मल" वीर गत युD।

नागरमल करने लगे, दे ख भाल नत शD


ु ।।

चे>न`मा का हर तरह, रखते इतना Pयान।

अपनी बेट" मानते, जैसे .ाण समान।।


राजनीत-रणनीत का, युD कला का aान।

चे>न`मा को भी दया, तनय सWश ]वaान।।

चे>न`मा क वीरता, करते लोग बखान।

आस-पास के नाGर-नर, कहते उसे महान।।

पलक झपकते अ=व पर, होती सहज सवार।

चला रह" तलवार जब, कना तब द=ु वार।।

शिIत व^पा मानते, दग


ु ा का अवतार।

चे>न`मा का ज>म sय, गोर का संहार।।

यहाँ-वहाँ सव ह", चे>न`मा का शोर।

चचा-पGरचचा कर , इसका ओर न छोर।।

महाराजा Hकतूर ने, सुना चे>न`मा नाम।

बुला राज-द"वान को, बता दया सब काम।।

गु^!सV[पा ने कहा, सुनो गर"ब नवाज!

महाराज से कह दया, चे>न`मा का राज।।

अjत
ु है लड़क बड़ी, नडर और नभnक।

यह गोर के राज क, तोड़ेगी सब ल"क।।

धल
ू [पा सरदार क, एक मा स>तान।

वीर ]पता क वीरता, आन-बान औ’ शान।।

युD कला म अत नपुण, नडर चले शमशीर।

घड़
ु सवार होकर चले, मनो !संहनी वीर।।

धीर-वीर-अत साहसी, है चे>न`मा नाम।

रानी हो Hकतरू क, पण


ू होय सब काम।।
सुन बात द"वान क, राजा करे ]वचार।

चे>नू साधारण नह"ं, है कोई अवतार।।

तरह-तरह के भाव का, iदय बहे .वाह।

भाव-बु]D ने कह दया, कर लो राज! ]ववाह।।

राजा ने द"वान को, दया सहज आदे श।

नागरमल को भेज दो, तुम वांछत संदेश।।

राजा आना चाहते, नागरमल के धाम।

पड़ा राज-Hकतूर का, सबके हत का काम।।

राजा ने द"वान को, समझाया म>त9य।

याद दलाया साथ म , मं ी का कत9य।।

राजा का संदेश ले, चले गये द"वान।

मन म Wढ़ ]व=वास था, अधर पर मुकान।।

बैलहगल पहुँचकर, मं ी .ातः काल।

नागरमल से कह दया, राजा का सब हाल।।

नागरमल ने जब सुना, राजा का .ताव।

ह]षत मन अतशय हुये, iदय म समभाव।।

राजा का .ताव सुन, ह]षत सब पGरवार।

घर बैठे ह" !मल गया, चे>नू को उपहार।।

ह]षत हो कहने लगे, नागरमल सरदार।

चे>न`मा के vयाह का, >यौता है वीकार।।

राजा जी से बात कर, शुभ मुहुत लो खोज।

नागरमल पGरवार तब, सादर दे गा भोज।।


नागरमल से !मल गया, सहज [यार का दान।

Hकया राज द"वान ने, खश


ु ी-खश
ु ी .थान।।

चे>न`मा के भाlय का, नि=चत है उकष।

ई=वर क कृपा बड़ी, मना रहे सब हष।।

दया जाय Hकतरू म , मं ी ने संदेश।

राजा अत .स>न थे, सुन अनुकूल ]वशेष।।

राजा ने द"वान को, इधर दया आदे श।

शोध लlन तैयाGरयाँ, कGरये सभी ]वशेष।।

फैल गया Hकतूर म , घर-घर नव उसाह।

चे>न`मा से कर रहे , राजा शी‚ ]ववाह।।

राजा क दो रानयाँ, दो ह" जाये पु ।

एक काल कव!लत हुआ, दज


ू ा बना कुपु ।।

bयुत dड़ा-मbयपान म , डुबा रहा कुलनाम।

राज महल को कर रहा, बेटा नज बदनाम।।

दरु ाचार म रात दन, डूबा रहे कुपु ।

य तो वह यव
ु राज था, होता काश! सप

ु ।।

राजा को Qच>ता बड़ी, रहती थी दन-रै न।

सोच-सोच आधे हुये, पड़े न तन-मन चैन।।

Iया होगा Hकतूर का, Qच>ता रह" सताय।

गत]वQधयाँ यव
ु राज क, रIत चँ स
ू ती जाय।।

गोर क चालाHकयाँ, पैदा कर Hफतूर।

िजस दन आँख मँुद गयीं, दास बने Hकतरू ।।


राजा ने Hकतूर हत, सोचा ]व]वध .कार।

चे>न`मा से ]ववाह ह", हतकर, सह" ]वचार।।

संभव है Hकतरू को, !मले कुशल यव


ु राज।

मानो कोई कर रहा, अ`बर से आगाज।।

उधर चे>नू क मात से, नागरमल क बात।

भाभी को समझा दये, राजा के जƒबात।।

अत .स>न प_ावती, सन


ु ]ववाह .ताव।

मानो Qच>ता धल
ु गयी, भरा कसकता घाब।।

चे>न`मा ने जब सुना, आये थे द"वान।

!लये राज-Hकतूर का, वैवाहक फरमान।।

बालLणा क बात को, मान !लया उपहास।

लेHकन, जब माँ ने कहा, तभी Hकया ]व=वास।।

चे>न`मा कहने लगी, सुन ]ववाह क बात।

सभी लोग Iय कर रहे , !मलकर मुझसे घात।।

Iया मE सब पर हो गयी, इतना भार" बोझ।

जेा सबको मिु =कल हुआ, भरना मेरा ओज।।

अभी नह"ं कुछ आयु है , भेज रहे ससुराल।

आप न चाहो दे खना, Iय मझ


ु को खश
ु हाल।।

चे>नू के सुनकर बचन, माँ हो गयी अधीर।

लाख छपाये Iय छपे, माँ के उर क पीर।।

लगी झलकने नैन म , माँ क ममता-[यार।

हाथ फेर दे ने लगी, माँ आशीश-दल


ु ार।।
माँ ने समझाया उसे, दबा हथेल" हाथ।

बेट"! तुमको !मल रहा, राजा जी का साथ।।

]पता रहे िजस राज के, बहुत बड़े सरदार।

उसी राज म जा रह", बनकर तुम उपहार।।

माँ के उर म रह सदा, Qच>ता यह" अपार।

Rबटया क भांवर पड़, कह"ं भले पGरवार।।

तम
ु बड़ भागी हो बड़ी, राजा !मले उदार।

रानी बनकर राज क, दे ना सबको [यार।।

रायLणा ने हँ स कहा, अब कुछ दन क बात।

चे>न`मा रानी बने, आयेगी बारात।।

आयगे बारात म , हाथी-घोड़े खब


ू ।

नाच गे हम दे खना, मती म भर डूब।।

हाथी चढ़ होगी ]वदा, बज नगाड़े-ढोल।

अ=व दौड़ होती चले, बम-बम, हर-हर बोल।।

जय रानी Hकतूर क, जय राजा Hकतूर।

चे>न`मा जी आ रह", हटो-बचो कुछ दरू ।।

रायLणा क मसखर", चे>नू गयी शरमाय।

बाल सखा को घरू कर, घर से दया भगाय।।

धीरे -धीरे आ गया, शाद" का दन पास।

चे>नू थी जो चल
ु बल
ु ", रहने लगी उदास।।

बदल अचानक ह" गया, चे>नू का 9यवहार।

बदला-बदला सा लगे, उसको सब संसार।।


तरह-तरह के .=न भी, उठते iदय बीच।

सु>दर सपने [यार के, दे ते उनको सींच।।

शाद" क तैयाGरयाँ, होने लगीं अपार।

तन-मन-धन से लग गया, नागरमल पGरवार।।

घर दोन सजने लगे, होते मंगलाचार।

चन
ु -चन
ु कर लाने लगे, नए-नए उपहार।।

िजसका भी जो काम था, Hकये सभी अनब


ु ंध।

नागरमल ने कर दये, पूण सभी .बंध।।

बालLणा व रायLणा, काम कर रहे साथ।

माता-]पता के काम म , बँटा रहे थे हाथ।।

शाद" का दन आ गया, सजा हुआ था गाँव।

द"प, सुमन क माल से, जगमग था हर ठाँव।।

च[पा-च[पा गाँव का, सजा हुआ घर-bवार।

जगमग-जगमग गाँव सब, Oझल !मल ब>दनवार।।

दरू -दरू तक गाँव के, फैले तने ]वतान।

लगता परू ा गाँव था, स>


ु दरता क खान।।

नागरमल ने Hकये थे, ह]षत हो सब काम।

लगता परू ा गाँव था, मानो तीरथ धाम।।

बाहर-भीतर गाँव के, पुते सभी आवास।

कह"ं नह"ं थी ग>दगी, था सव .काश।।

म>द-म>द था बज रहा, मधरु -मधरु संगीत।

नार नवेल" गा रह"ं, यथा लगन सब गीत।।


सभी सजे थे राते, Rबछे हुये काल"न।

नागरमल के गाँव के, लोग सभी शाल"न।।

पAु प-झालर से सजे, छsजे औ’ द"वार।

जगह-जगह थे वागतम ् कदल"-तोरण bवार।।

भाँत-भाँत के 9यंजन, सजे हुये !मAठान।

दे शी घी के बन रहे , सभी यहाँ पकवान।।

सजी दQू धया रोशनी, गाँव-गल"-ख!लहान।

मानो नभ से चाँदनी, बाँट रह" मुकान।।

नशा गमकती दवस-सी, तारे करते नृ य।

जगह-जगह अगवानयाँ, कर सजे सब भृ य।।

यथासमय पर आ गयी, राजा क बारात।

मTलसज दT
ू हा बने, वागत करे घरात।।

बाजे-गाजे बज रहे , बज नगाड़े ढोल।

आतशबाजी छूटती, खोल रह" थी पोल।।

हाथी पर बैठे सजे, हE Hकतूर नरे श।

मानो ऐरावत !लये, .कट हुये सरु े श।।

बढ़कर अगवानी कर", नागरमल सरदार।

महाराज को भ ट म , दया नौलखाहार।।

चे>न`मा के ]पता का, नभा दया दायव।

नागरमल का सहज ह", नखर गया 9यिIतव।।

दे ख रह" पदमावती, राजा बड़े उदार।

नागरमल क संQगनी, आरत रह" उतार।।


सभी अतQथय का Hकया, वागत औ’ स`मान।

नागरमल ने सभी को, दया रजत-फल दान।।

ठहरा दया बरात को, सबके पद अन^


ु प।

दT
ू हा राजा को दया, सिsजत भवन अनूप।।

राजा को शभ
ु लlन म , दया चे>नू का हाथ।

पड़ी भांवर चे>नू क, मTलसज के साथ।।

एक-दस
ू रे के गले, पहनाई वर माल।

अिlन समS फेरे पड़े, वर-वधु .ातःकाल।।

चे>न`मा का हो गया, vयाह र"त अनुसार।

ह]षत नप
ृ Hकतूर ने, बँटवाये उपहार।।

आँसू माँ को आ गये, करके क>यादान।

नागरमल ने भी Hकये, वण-रजत के दान।।

समय ]वदा का आ गया, डोल" थी तैयार।

बड़ी मा!मक बज रह", शहनाई भी bवार।।

म>द-म>द बजने लगा, उधर ]वदा संगीत।

महलाय गाने लगीं, इधर ]वदाई गीत।।

]वदा Hकया बारात को, मान बहुत आभार।

नागरमल थे दे रहे , अतQथ ]वदा उपहार।।

दया गाँव ने [यार से, चे>नू को आशीश।

नागरमल ने क ]वदा, हाथ फेर कर शीश।।

भावुक नागरमल हुये, पनी भी बेचन


ै ।

बाल सख के दे खकर, भर आये दो नैन।।


हाथ जोड़ प_ावती, खड़ी हुई थी पास।

अपने ‘धी-दामाद’ से, कह न सक कुछ खास।।

नागरमल कुछ बोलते, गला हुआ अवD।

मTलसज के सामने, जोड़े हाथ ]वशुD।।

सबके आँसू झर रहे , हाय! बोलता कौन।

सबने ह" संत[त हो, कर" ]वदाई मौन।।

सधवाओं ने गाँव क, दये अ!मत उपहार।

वर-क>या क आरती, कर" र"त अनुसार।।

वर-क>या को द" ]वदा, गाकर मंगलगीत।

जीवन सु>दर हो सुखद, बढ़े नर>तर .ीत।।

राजा मTलसज क

बारात वापस आ गयी।

नई रानी आयी है

ख!ु शयाँ महल म छा गयीं।

Hकतूर क महारानी ने

वागत अनठ
ू ा ह" Hकया।

नाम नई रानी का

‘रानी चेनमा’ दे दया।

शाद" के उपरा>त क

होती यहाँ रम अनेक।

राजमहल ने पूण कं

]वQध ]वधान से .येक।


राज महल सब कह रहा

नई रानी है अनमोल।

‘रानी चेनमा क जय’

गँज
ू रहे थे बोल।

***********

सग - 4
चे>न`मा रानी बनी, हुआ साथक नाम।

दे वी सख
ु -सम]ृ D क, !मला वीरता धाम।।

चे>न`मा का आगमन, मनो बसंत बहार।

खश
ु हाल" Hकतूर क, वैभव बढ़ा अपार।।

चे>न`मा का राज म , बढ़ा बहुत स`मान।

नर-नार" Hकतूर के, मान मात समान।।

चे>न`मा ने राज का, बदला सहज .वाह।

जन-जन म भरने लगी, नव जीवन उसाह।।

अँ ेज़ क शिIत का, रानी को था aान।

पर, ताकत Hकतूर क, होना था संaान।।

वाणी औ’ 9यवहार म , हE अं ेज अशD


ु ।

कर राज Hकतूर से, नि=चत युD ]व^D।।

चे>न`मा ने कर !लया, मन म Wढ़ संकTप।

अँ ेज़ से युD के, पैदा कर ]वकTप।।

दे श भिIत क भावना, वीर सम]पत [यार।


ह अनुपम Hकतूर म , गोरे जाय हार।।

युD-युD क कला का, राज बने इतहास।

नर-नार" बालक सभी, नय कर अqयास।।

गु^!सV[पा द"वान संग, क राजा से बात।

घोर मं णा कर कहा, अँ ेज़ क घात।।

उ?च ल~य क .ाि[त हत, राsय सुरSा हे त।ु

बनवाने Hकतरू को, तरह-तरह के सेत।ु ।

युD कला का राsय को, दे ना है संaान।

इसी!लए Hकतूर म , बने बड़ा मैदान।।

हाथी-घोड़े-तोप सब, अ -श हQथयार।

कारतूस-बा^द का, हो अत!ु लत भLडार।।

तलवार -भाले-छुरा, बTलम औ’ ब>दक


ू ।

सभी उपकरण युD के, संजो रख स>दक


ू ।।

अ -श का .!शSण, चले दवस औ’ रात।

Rबना Hकसी मतभेद के, सीखगी हर जात।।

दन म सीख नाGरयाँ, रात प^


ु ष क होय।

सफल .!शSण ल सभी, बालक बचे न कोय।।

रसद और आवास का, हो 9यापक अनब


ु ंध।

भर सभी आगार म , .चरु ह .बंध।।

दे श mोह, ग़Vार पर, राजा कस लगाम।

मुखRबर औ’ जासूस पर, स)ती कर तमाम।।

दे श mोह क सजा हो, !मले मृ यु का दLड।


च[पे-च[पे पर रहे , नगरानी .चLड।।

सीमाओं क चौकसी, करनी है मजबूत।

रहे Pयान म दे श हत, द=ु मन क करतत


ू ।।

हम चाहए राज यद, सुWढ़ और वतं ।

तो ]वक!सत करना पड़े, सह" सच


ू ना तं ।।

शासक भी करता रहे , भेष बदलकर जांच।

परख अपनी आँख से, Iया है असल" सांच।।

चाटुकार दे ता सदा, अपयश औ’ अपमान।

ये घातक हर तं को, रखना इन पर Pयान।।

गाँव-दे श-पGरवार ह, अथवा शासन तं ।

गरल उगलता रात-दन, चग


ु लखोर का मं ।।

चाटुकार क राय या, चग


ु लखोर क बात।

वैभव-शासन तं पर, कर मं -सी घात।।

चाटुकार क जब सुनी, राजा हुये !शकत।

चग़
ु लखोर क मानकर, हुये !सतारे अत।।

राजा-मं ी राज के, होते नैन व कान।

सुWढ़ राज-सुराज का, खHु फया तं महान।।

घस
ु ते - खHु फया - तं म , चाटुकार-मIकार।

चग़
ु लखोर सबसे बड़े, होते हE ग़Vार।।

इनके ह" कारण हुये, दे श-राज परतं ।

सावधान जो भी रहे , युग-युग रहे वतं ।।

गVार क ख़ासकर, कसनी हम नकेल।


चले राज Hकतूर-रथ, नकले नह"ं चकेल।।

इसी!लए, रहना पड़े, पल-पल हम सचेत।

तभी राज-Hकतरू का, अSुLण रहे नकेत।।

चे>न`मा क मं णा, राजा हुये .स>न।

ग^
ु !सV[पा ने कहा, ध>य! ध>य! तम
ु ध>य!।

राजा का आदे श पा, गु^!सV[पा द"वान।

काय पण
ू करने जट
ु े , दे श-सरु Sा जान।

सबसे पहले राsय म , बना भ9य मैदान।

अ>दर Iया कुछ हो रहा, पड़े नह"ं संaान।

ऊँची औ’ मजबूत थी, मैदानी-द"वार।

हाथी पर यद हो खड़ा, करे न Hफर भी पार।।

यहाँ-वहाँ मैदान म , पGरसर बने अनेक।

युD कलाएँ सीखने, भ9य एक से एक।।

कह"ं नशानेबािजयाँ, कह"ं तीर - तलवार।

भाला-बTलम-छुरा भी, सीख अ=व - सवार।।

चे>नू के नद… श पर, बने सभी मैदान।

मानो ये Hकतूर के, जीवन का वरदान।।

महलाओं क राsय म , पलटन क तैयार।

चे>न`मा ने दे दये, नए-नए उपहार।।

चे>न`मा ने रच दया, एक नया इतहास।

महला-पलटन युD ने, पाया यहाँ ]वकास।।

अ -श औ’ अ=व क, पलटन बनीं ]वशेष।


रानी ने उनको दये, युD कला-नद… श।।

स†प दया गजवीर को, तोप का आगार।

Hकला सरु Sा का दया, उसको .मख


ु भार।।

अ=व क पलटन कर", बालLणा के नाम।

हाथी-पलटन का दया, रायLणा को काम।।

चन
ु -चन
ु वीर को दये, अलग-अलग संभार।

ग^
ु !सV[पा को दया, .मख
ु सरु Sा भार।।

जनता क हर बात का, रानी रखती Pयान।

कोई भूखा Iय मरे ? रखती थी संaान।।

जहाँ युD तैयाGरयाँ, रह"ं शू>य को चम


ू ।

वह"ं युD-संगीत भी, मचा रहा था धम


ू ।।

युD-कला-साहय औ’, ल!लत कला का aान।

नैतक !शSा-वाfय भी, Hकये चे>नू ने दान।।

अबला-बालक-वD
ृ सब, सह नह"ं अपमान।

युवा-युवतयाँ दे श का, सदा कर स`मान।।

जनता म Hकतरू क, भरा याग-ब!लदान।

सहज भाव पैदा Hकया, दे श-.ेम-अ!भमान।।

मTलसज यह दे खकर, ]विमत हुये तमाम।

रानी चे>न`मा उ>ह , लगती वीर ललाम।।

ई=वर क कृपा बड़ी, सफल हुये सब काम।

रानी अब स>तुAट थी, हुआ सुरhSत धाम।।

रानी को राजा कर , मन से अतशय [यार।


समय-समय पर द उसे, [यार भरे उपहार।।

मTलसज ने Hकये थे, पहले तीन ]ववाह।

चौथी रानी ^प म , ‘चेनू’ बनी गवाह।।

.थम रानी ‘BEFवा’, जो अत शा>त वभाव।

b]वतीय ‘/शव/लंगFवा’, रख स>त समभाव।।

तत
ृ ीय रानी ‘नीलमा’, गयीं वग !सधार।

अब चे>न`मा बन गयीं, राजा का शंग


ृ ार।।

‘BEFवा’ मन-साQधका, ‘/शव/लंगFवा’ स>त।

जप-पूजा-उपवास म , दन का होता अ>त।।

दोन क ^Qच थी नह"ं, राज-काज म लेश।

धम और अPयाम म , जाय िज>दगी शेष।।

दोन ह" साPवी बड़ीं, अतशय उ?च ]वचार।

धम-कम-वभाव म , दोन रहत ]वकार।।

साथ-साथ दोन रह , न=छल-सी नAकाम।

लगता रमा नवास था, मानो तीरथ धाम।।

चे>न`मा को दे खकर, हुआ अ!मत ]व=वास।

sय राजा को !मल गया, ठ{क-ठ{क सहवास।।

चे>न`मा संग vयाह से, ह]षत हुई अपार।

मानो अब Hकतूर को, !मला सह" आधार।।

^m9वा से राज को, !मले प


ु दो साथ।

एक काल कव!लत हुआ, असमय छोड़ा हाथ।।

एक मा जो प
ु था, ^m9वा का शेष।
बना वह" Hकतूर का, अब युवराज ]वशेष।।

रानी !शव!लंगvबा थीं, सु>दर-नेक-महान।

लेHकन माता ^प का, !मला नह"ं वरदान।।

मTलसज Hकतूर के, राजा थे बलवान।

धीर-वीर-अत साहसी, नडर ]पता स>तान।।

दै वयोग बेटा !मला, ‘/शव/लंग सज"’ अयोlय।

धत
ू -नक`मा-तामसी, dोधी अत दय
ु elय।।

बीस वष क आयु से, गया 9यसन म डूब।

हुई राज-Hकतूर के, मन म भार" ऊब।।

डूबा भोग-]वलास म , रात-दवस भरपूर।

राजा-रानी के हुये, सपने चकनाचरू ।।

गVार का राsय म , पलने लगा Qगरोह।

घोर-नराशा-वाथ म , करते यह" ]वmोह।।

/शव/लंगBEसज" के, ये ह" भरते कान।

करते भोग-]वलास भी, साथ-साथ मbयपान।।

रानी चे>न`मा का सभी, करते थे गण


ु गान।

पर, उलट" युवराज क, चलती बड़ी जुवान।।

वह महल म बैठकर, रचता था षयं ।

नह"ं सुहाता था उसे, चे>न`मा का तं ।।

बन
ु ा जा रहा राsय म , षय>  का जाल।

चे>न`मा सब जानती, गVार क चाल।।

चे>न`मा ने राsय म , फैलाये जासस


ू ।
इसी!लए ग़Vार सब, रहते थे मायूस।।

चे>न`मा को सूचना, !मलती अपने धाम।

कूटनीत के भेदये, करते रहते काम।।

धम-जात सौहाm से, !मलकर रहते लोग।

अपने-अपने कमरत, अपने-अपने भोग।।

सभी धम Hकतूर म , पाते आदर भाव।

राज सभी के साथ म , करता सम बताव।।

कई बार युवराज ने, असफल Hकया .यास।

धीरे -धीरे टूटकर, नAफल हुआ नराश।।

दे खराज Hकतूर के, राज-तं क चाल।

चे>न`मा स>तुAट थी, लोग सभी खश


ु हाल।।

ख!ु शयाँ चार ओर थीं, त[ृ त जात-समुदाय।

लोग ‡ुिTलत थे सभी, द"न-दख


ु ी-असहाय।।

राज बना Hकतूर का, भारत म उपमान।

राजा मTलसज भी, बने राज दनमान।।

सन
ु चचा Hकतरू क, च†क उठे अं ेज।

चे>न`मा के काम भी, थे है रत - अं ेज।।

कूटनीत रचने लगे, गोरे सब शैतान।

उनको भारत दे श के, नप


ृ लगते है वान।।

पर कतर Hकतरू के, रहे बहाने खोज।

मTलसज का दे खल , Hकतना उनम ओज।।

रानी के भार" हुये, इसी बीच ह" पाँव।


हुई राज-Hकतूर म , ख!ु शयाँ घर-घर गाँव।।

गभवती रानी हुई, सुन राजा .स>न।

.भ!ु करना Hकतरू म , वीर एक उप>न।।

.भु से करते .ाथना, कर पूजा-उपवास।

लौटाना Hकतरू को, Hफर उसका मधम


ु ास।।

य तो सब Hकतूर के, लोग बहुत स>तुAट।

दे ख-दे ख यव
ु राज को, रहते मन म Aट।।

चे>न`मा से बँधी थी, सबके मन को आस।

कर नह"ं Hकतूर को, रानी कभी नराश।।

गभवती रानी हुई, नाच उठा Hकतूर।

दरू राज-मन से हुआ, Qच>ता-दद ज^र।।

आOखर वह दन आ गया, पल-पल करके पास।

हुई राज-Hकतूर क, मन क पूर" आस।।

रानी ने पैदा Hकया, सु>दर बाल-मराल।

लहर हष क राsय म , फैल गयी तकाल।।

राज महल म हो रहे , घर-घर मंगलाचार।

राजा-रानी का सभी, मान रहे आभार।।

कई दन तक महल म , उसव हुये ]वशेष।

बदल चक
ु ा था राज का, Qच>तामय पGरवेश।।

नामकरण उसव हुआ, पंzडत जड़


ु े तमाम।

दया बाल नवजात को, ‘/शव बसवराज’ नाम।।

इधर राज चलता रहा, पलता राज-सप



ु ।
मनमानी करता उधर, वह युवराज-कुपु ।।

कुढ़ता अत युवराज था, दे ख-दे ख नवजात।

रानी बड़ी सतक थी, चल" न कोई घात।।

शनैः-शनैः ह" हो गया, बीस वष का लाल।

स>
ु दर वथ शर"र था, उ>नत उसका भाल।।

मात-]पता क भाँत था, बालक राज कुमार।

चे>न`मा दे ती रह"ं, !शSा का उपहार।।

युD कला घुड़ दौड़ का, दया उसे संaान।

राजनीत-9यवहार का, कुशल .बंधन aान।।

युD कला म दSता, युवा धीर-ग`भीर।

चे>न`मा क भाँत था, नपुण-नडर-बलवीर।।

युवा-पु का दे खकर, चे>न`मा दन-रै न।

बाहर से लगती मुदत, पर अ>तर बेचन


ै ।।

शासन के दायव म , कट जाते दन-रात।

सहज हुआ Hकतूर, पर, अ>दर चलती घात।।

आये दन यव
ु राज तो, करता था छल-छं द।

गVार के राते, Hकये चे>न`मा बंद।।


ु -मोह म ^mvबा, भल
ू " सत
ु करतत
ू ।

राजा मं ी-चे>न`मा, लगते अब यमदत


ू ।।

तरह-तरह के नय ह", करती खड़े .वाद।

पु -मोह क भू!मका, पैदा करे ]ववाद।।

करती अनज
ु ा क तरह, चे>न`मा से [यार।
आज ]वरोधी हो गयी, भूल गयी मनुहार।।

चे>न`मा सब जानती, रानी का 9यवहार।

^mvबा Iय कर रह", ऐसा द9ु यवहार।।

चे>न`मा नत सोचती, Iया ]वघटन आधार।

रहे समया भी नह"ं, बना रहे आचार।।

]वकट समया थी बड़ी, पर द"खा उपचार।

Iय न बसे यव
ु राज का, प
ु सहत पGरवार।।

पGरणय-बंधन म बँधे, जब !शव!लंग युवराज।

तब, माँ-बेटा भूल सब, बदल अपने काज।।

राजा से क मं णा, खल
ु कर Hकया ]वचार।

करो vयाह युवराज का, होगा दरू ]वकार।।

पु सहत युवराज का, पGरणय कर दो नाथ!

सु>दर जीवन-संQगनी, इनके बाँधो साथ।।

मTलसज ह]षत हुये, Hकया कम नबाह।

चे>न`मा से कह दया, कर दो शी‚ ]ववाह।।


ु और यव
ु राज के, Hकये सु नि=चत vयाह।

राजा-रानी क हुई, पूर" मन क चाह।।

राजा ने नि=चत कर", सत


ु -]ववाह क बात।

पता रानय को चला, फूल" नह"ं अघात।।

यथा समय शभ
ु लlन म , सत
ु bवय रचे ]ववाह।

ख!ु शयाँ थीं Hकतूर म , महल नव उसाह।।

‘वीरGबा’ के साथ म , vयाह हुआ ‘यव


ु राज’।
हुआ ‘जानक बाइ’ से, vयाह ‘/शव बसबराज’।।

दोन वधए
ु ँ थीं सुघड़, वथ और गुणवान।

यथा नाम अन^


ु प थीं, स!ु शhSत .aावान।।

राज महल, पGरवार सब, ख!ु शयाँ रहा मनाय।

जीवन साथी दे खकर, फूले नह"ं समाय।।

डूब रहा सुख-!स>धु म , vयाह बाद पGरवार।

पल भर क कुछ Iया पता, रहे नह"ं घर-बार।।

सुख-दख
ु जीवन क नयत, दाय-बाय हाथ।

सुख क कभी .तीत हो, कभी रहे दख


ु साथ।।

छाया था Hकतूर म , सुख का ह" साˆाsय।

दख
ु क रे खा राsय को, कर न सक ]वभाsय।।

रानी थी Hकतूर क, चे>न`मा शुभ नाम।

वह सुख-दख
ु को मानती, जैसे छाया-घाम।।

सबक अपनी नयत है , अपना ह" .ारvध।

सुख-दख
ु dम चलता रहे , समय बD उपलvध।।

बनते Rबगड़े काम सब, जब होता सख


ु फेर।

रोट" छनती हाथ से, तब दख


ु लेता घेर।।

जो जीवन को समझते, केवल सख


ु का खेल।

पग-पग जीवन म वह", होते रहते फेल।।

नह"ं बपौती मनज


ु क, जीवन ^पी धाम।

खेल खेलती नयत है , मानव करता काम।।

जीवन का दशन यह", सच से मँह


ु मत फेर।
जो बन आये सहज म , उसे अरे ! तू हे र।।

गोर का था आगमन, इसी नयत का भाग।

हुआ दे श पर आdमण, झल
ु स गये सब राग।।

मान नयत के खेल को, बैठो नह"ं उदास।

हाथ कम-पाथेय रख, मंिजल !मले ]वकास।।

जो होना होकर रहे , सब ]वQध का है खेल।

इसक Qच>ता Iय कर , हम Iय छोड़ मेल।।

करता था अठखे!लयाँ, पु  का अनुराग।

हाय! न कोई जानता, पल म बदले राग।।

अभी-अभी बीते इधर, शाद" को कुछ माह।

अर" नयत! तू बावर", नह"ं दे खती चाह।।

राजमहल सोया हुआ, सुख क गहर" नींद।

तभी नयत ने तीर से, दया उसे Hफर बींध।।

राज महल म उठ गये, सब जन .ातः काल।

हा! Qचर नmा सो रहा, चे>न`मा का लाल।।

चे>न`मा क दे खकर, नकल गयी थी चीख।

उलट-पुलट सब हो गया, हा! Hकतूर के बीच।।

खड़ी जानक बाई थी, हा! ]वफाGरत नैन।

लूट !लया हा! नयत ने, उसका जीवन-चैन।।

डूब गये दख
ु -!स>धु म , दे ख प
ु क लाश।

राजा क ध!ू मल हुई, अब जीवन क आश।।

Hकंकत9य]वमढ़
ू सब, था Hकतरू उदास।
राज महल-पGरवार - जन, भार" सभी हताश।।

नह"ं समझ कुछ आ रहा, उतरदायी कौन?

आँसू ह" बतला रहे , दख


ु द कथा सब मौन।।

Rबलख रह" वधू सामने, हुआ सभी कुछ नाश।

चे>न`मा थी Qगर पड़ी, दे ख प


ु क लाश।।

आOखर तो होता वह", जो ]वQध रचा ]वधान।

मानव कुछ जाने नह"ं, जाने दया नधान।।

चेन`मा ने पु को, ]वदा Hकया सुरधाम।

धम नीत-कुल र"त से, पूण Hकये सब काम।।

पु -नधन से अत दख
ु द, घटना और न होय।

रानी रोती रात दन, आँसू के न कोय।।

राजा समझाते बहुत, धम-.संग-चलाय।

लेHकन, नैन न मानते, आँसू रहे बहाय।।

बालLणा व रायLणा, समझाते भरपूर।

गु^!सV[पा हो गये, हाय! बहुत मजबूर।।

सत
ु -]वयोग म रात-दन, चे>न`मा लाचार।

पु -वधू को दे खकर, टूटे iदय-तार।।


ु -नधन के शोक से, सकता कौन उबार?

धीरे -धीरे काल ह", दे ता उसे पछार।।


ु -नधन के साथ ह", हुये व[न भी चरू ।

कातर नैन नहारती, ]ववश हाय! Hकतूर।।


ु -नधन के साथ ह", मनो लट
ु ा Hकतरू ।
अँ ेज़ क WिAट भी, घायल करे ज^र।।

सोच-सोच रोती रह", रानी बड़ी अधीर।


ु आमा ले गया, केवल शेष शर"र।।

पु -शोक ने कर दया, राजा को बीमार।

लगता मानो िज>दगी, गयी मौत से हार।।

अभी न बीते थे इधर, पु शोक छः माह।

dूर काल ने िज>दगी, ल" राजा क आह!!

फैल गयी Hकतूर म , राज-नधन क बात।

मTलसज पर काल ने, Hकया कुठाराघात।।

पु गया, पत भी गया, टूटा मनो पहाड़।

चे>न`मा मूि?छत हुई, खाकर Qगर" पछाड़।।

आँख खल
ु " तो सामने, पड़ी हुई थी लाश।

फूट-फूट कर रो पड़ी, दे ख सम ]वनाश।।

हे .भु! तुमने Iया Hकया, ^ँठ गये Iय नाथ?

.ाणनाथ चलते बने, छोड़ डगर म हाथ।।

रोती तीन रानयाँ, खा-खा Qगर"ं पछाड़।

dूर काल क धAृ टता, सुनती नह"ं दहाड़।।

राजा अब लौट नह"ं, गये सभी कुछ छोड़।

सोच रानय ने यह", !लया वैध9य ओढ़।।

कई दन तक राsय सब,

शोक से 9याकुल रहा।

दे खा-सन
ु ा न आज तक
Hकतूर ने सब कुछ सहा।

राsय यह Hकतूर का

Hकसके हवाले अब कर ?

हा! शीश पर Hकतूर के,

राज मक
ु ु ट Hकसके धर ?

गु^!सV[पा द"वान को

बल
ु ा रानी ने !लया।

द"वान से कर मं णा

युवराज को शासन दया।।

***********

सग - 5
राजा क मृ यु हुई, शोक त सब राज।

Rबन राजा कैसे चल , लोक तं के काज।।

चे>न`मा Qचंतत बड़ी, मं ी भी बेचन


ै ।

अब रSा Hकतरू क, सता रह" दन-रै न।।

बन राज Hकतूर के, उQचत नह"ं युवराज।

लेHकन, रानी जानती, यग


ु के र"त-Gरवाज।।

दया नह"ं युवराज को, राजतलक स`मान।

तो जनता Hकतरू क, सहे नह"ं अपमान।।

भड़क उठे गा राsय म , Hफर सीधा ]वmोह।

गट
ु ब>द" पैदा करे , अ>दर-बाहर mोह।।
खाल" !संहासन रहे , उQचत नह"ं है सोच।

द=ु मन क हर WिAट म , राsय बनेगा पोच।।

!संहासन खाल" पड़ा, थे यव


ु राज ]वकTप।

अब राजा के ^प म , /शव/लंग ल संकTप।।

दरू WिAट नणय Hकया, Hक>तु नह"ं आसान।

मानो रानी ने रखा, iदय पर पाषाण।।

महाराजा Hकतरू के, अब हगे यव


ु राज।

‘/शव/लंग BEसज"’ को चे>न`मा दे ताज।।

रानी ने क मं णा, बैठ साथ द"वान।

राजतलक युवराज का, शी‚ कर Cीमान।।

गाँव-गाँव Hकतूर के, चला गया स>दे श।

राजतलक युवराज का, रानी कर ]वशेष।।

समय, दवस, तQथ शोध कर, हकर !लये !मलान।

राजतलक युवराज का, तनने लगा ]वतान।।

नगर सजा Hकतूर का, सजे सभी बाजार।

राजमहल-दरबार-पथ, सजते तोरण - bवार।।

भवन पताका उड़ रह"ं, फैल" ब>दनवार।

बेशकमती सज रहे , दान हे तु उपहार।।

]वQध ]वधान से हो गया, राजतलक युवराज।

!शव!लंग अब Hकतरू के, बने महा अQधराज।।

स>त-साधओ
ु ं ने Hकया, राजतलक का काज।

मं पाठ, ]वQध कम से, पहनाया Hफर ताज।।


दया द"न-असहाय को, व -भोज का दान।

रचनाकार का Hकया, ]व]वध भाँत स`मान।।

राजपंzडत को दये, मनचाहे उपहार।

साधु-स>त-सरदार सब, मान रहे उपकार।।

चे>न`मा ने सब Hकये, भल"-भाँत स>तAु ट।

!मला न कोई राsय म , रहा जो अस>तुAट।।

जय रानी! Hकतरू क, जय राजा! Hकतरू ।

धरती से आकाश तक, गँज


ू ी जय Hकतूर।।

शंख, ढोल, तुरह" बज, शहनाई औ’ चंग।

भजन-कतन हो रहे , बाज - साज मद


ृ ं ग।।

घर-घर मंगलगीत क, Pवन गँज


ू ी आकाश।

फैल रहा सब ओर था, द"प का .काश।।

झूम रहा Hकतूर था, हो ख!ु शय म चरू ।

इधर चे>न`मा महल म , थी Hकतनी मजबूर।।

राजा के ग़म ने Hकया, उसे बड़ा असहाय।

अब रSा Hकतरू क, करती कौन उपाय?

Iया होगा Hकतूर का, उठते मनो ]वचार।

कुछ घर क कमजोGरयाँ, पैदा कर ]वकार।।

चे>न`मा थी जानती, कैसे हE युवराज?

पर, घर क मजबGू रयाँ, दया राज औ’ ताज।।

रानी को युवराज से, अQधक नह"ं थी आस।

राज-धम-नAठा नह"ं, जड़
ु ता Iय ]व=वास।।
रानी-मन शंका पल", सहज नह"ं नमूल।

सब लSण युवराज के, थे Hकतने .तकूल।।

कहाँ ]पता क वीरता? कहाँ .जा क Sेम।

मbयपान-शतरं ज से, करते हरपल .ेम।।

सरु ा-स>
ु दर" का नशा, चढ़ा रहे दन-रात।

राज काज क बात से, लगता था आघात।।

चाटुकार-मIकार जो, कहते लेते मान।

उनके ह" संकेत पर, राजा ल संaान।।

म@ल'पा से*ी बना, राजा का द"वान।

साथ व5कटराय को, बना दया .धान।।

ये दोन युवराज के, चाटुकार-मIकार।

अँ ेज़ से जुड़े थे, इनके सीधे तार।।

व‰फादार अं ेज के, पाते पैसा-भोज।

हर घटना क सूचना, पहुँचाते थे रोज।।

दोन अतशय वाथn, धत


ू और ग़Vार।

लेHकन, राजा के बने, ]व=वासी सरदार।।

!सV[पा द"वान क, चग


ु ल" करते नय।

झंठ
ू {-स?ची बात गढ़, बतलाते दAु कृय।।

इनके ह" संकेत पर, राजा करते काम।

जनता म छ]व हो गयी, राजा क बदनाम।।

चे>न`मा यह दे खकर, करती थी अफसोस।

Hकंकत9य]वमढ़
ू -सी, iदय रह मसोस।।
महाराज से एक दन, रानी ने क बात।

जनता क मन-भावना, समझायी कह तात।।

उन दोन द"वान क, बतलायी करतत


ू ।

चे>न`मा ने दे दये, सा~य सभी मजबूत।।

बरु े दन के फेर म , सह" न लगती बात।

सीधी हत क बात भी, करती मन पर घात।।

रानी के आरोप सब, राजा Hकये नरत।

मनो राज Hकतूर का, हुआ सूय अत।।

उलट-पुलट होने लगे, जनता के सब काम।

शनैः-शनैः राजा हुये, जनता म बदनाम।।

जनता म पैदा हुये, भाँत-भाँत मन-रोग।

राजा के आदे श सुन, मुकाते सब लोग।।

कब राजा ने खो दया, जनता का ]व=वास।

राजा मनो अबोध था, समझ रहा मधम


ु ास।।

मTल[पा औ’ वकट, चल नय ह" चाल।

राजा क छ]व कर रहे , जनता म बदहाल।।

रानी क हर योजना, दोन करते फेल।

राजा-जनता म नह"ं, होने दे ते मेल।।

सता बनकर रह गयी, मानो dूर मजाक।

रानी हत.भ सोचती, दे ख सभी अवाक।।

राजा क दन
ु nत का, ऐसा पड़ा .भाव।

राजकोष घटने लगा, होने लगा अभाव।।


जनता, 9यापार", C!मक, नौकर और Hकसान।

लगा सभी पर कर दये, दग


ु ुना Hकया लगान।।

रानी से पछ
ू े Rबना, लगा दये अQधभार।

ाह- ाह करने लगी, जनता दद पुकार।।

इधर मTल[पा कर रहा, फेल राज का तं ।

उधर वकट रच रहा, गोर से षयं ।।

भेज दया Hकतरू को, गोर ने .ताव।

चे>न`मा ने जब सुना, आया सुनकर ताब।।

भेज से]वका को दया, गु^!सV[पा पास।

बुला !लया द"वान को, दया स>दे शा खास।।

अँ ेज़ ने प !लख, दया राज-संदेश।

सुनो! राज-Hकतूर के, सरकार" आदे श।।

हुई राज Hकतूर क, सीमाय कमजोर।

बढ़" सुरSा माँग है , जनता क पुरजोर।।

हम जनता क माँग का, करते हE स`मान।

9यापक हत म दे श के, भेजा है फरमान।।

गोर क सेना रहे , रSा हत Hकतूर।

खच वहन Hकतरू को, करना पड़े ज^र।।

साथ-साथ .तवष ह", ]वपुल रा!श अQधभार।

राज - कोष - Hकतरू से, ले गोर"-सरकार।।

खानापुर पर रहे गा, गोर का अQधकार।

अँ ेज़ क शत ये, करनी सब वीकार।।


चे>न`मा ने पढ़ !लया, अं ेजी फरमान।

रोम-रोम म दे ह क, भड़क उठे अरमान।।

उधर मTल[पा ने भरे , राजा जी के कान।

अँ ेज़ क शत सब, ल"ं राजा ने मान।।

चे>न`मा से राज हत, Hकया न तनक ]वमश।

भेज क!म=नर को दया, उतर !लOखत सहष।।

मTल[पा और वकट, मन म अत .स>न।

सफल योजना सब हुई, कूट चाल स`प>न।।

मTल[पा क चाल म , फँसा राज Hकतूर।

अँ ेज़ ने कर दया, राजा को मजबूर।।

वकट ने पहुँचा दया, !लOखत कूट स>दे श।

मान !लया Hकतूर ने, गोर का आदे श।।

रानी को चलता पता, इससे पहले काम।

मTल[पा और वकट, गुपचप


ु Hकये तमाम।।

बुला मTल[पा को !लया, साथ वकट राय।

चे>न`मा ने डांटकर, बतला द" नजराय।।

रानी बोल" गरजकर, सुनो! धत


ू -मIकार।

अं ेजी-सता मझ
ु ,े कभी न हो वीकार।।

जब तक ताकत दे ह म , रोम-रोम म .ान।

‘भारत माता क क़सम’, लँ ू गोर क जान।।

अपने आका से कहो, रानी का स>दे श।

कुशल चाहते हE अगर, भाग अपने दे श।।


भभक उठ{ं QचंगाGरयाँ, नकले तीखे बोल।

पड़े चक
ु ाना एक दन, गVार को मोल।।

जनता ह" Hकतरू क, दे गी तम


ु को दLड।

दे श mोह क सजा है , केवल मृ यु .चLड।।

तम
ु जैसे ग़Vार ह", करते नह"ं ]वरोध।

दे श-]वरोधी चाल का, रानी ले .तशोध।।

चे>न`मा बोल" कड़क, डूब मरो मIकार।

अँ ेज़ के ]पrुओ!ं भारत के ग़Vार।।

dोQधत रानी दे खकर, Oखसक गये चप


ु चाप।

कह"ं dोध क sवाल ह", नगल न जाये आप।।

गु^!सV[पा को सभी, बता दया म>त9य।

रानी ने मन क 9यथा, कह" नीत, ग>त9य।।

डूबा भोग-]वलास म , राजा औ’ पGरवार।

दे श भिIत क भावना, मनो गयी थी हार।।

बात राज-हत क रहे , अथवा जन-कTयान।

चे>न`मा क बात पर, राजा दे य न Pयान।।

आये दन बढ़ता गया, अं ेजी-हतSेप।

आOखर राजा कब तलक, रह पाते नरपेS।।

वा!भमान Hकतूर का, करता खड़ा ]वलाप।

हाय! वातंŠय-भावना, Hकससे करे !मलाप।।

अँ ेज़ के पSधर, थे मुrी भर लोग।

शD
ु दे ह Hकतरू क, बने यह" थे रोग।।
उमड़ कTपना म रहा, ख़तर का तालाब।

रानी शंHकत थी बड़ी, आ न जाय सैलाब।।

मन म Qच>ता थी भर", सझ
ू े नह"ं ]वकTप।

हाय! राम कैसी कर", टूट रहा संकTप।।

चाटुकार-ग़Vार को, होता तनक न खेद।

भले-बुरे म ये नह"ं, कर तनक भी भेद।।

नह"ं मान-अपमान का, इनको रहता Pयान।

=वान-सर"खी िज>दगी, इनक करे गुमान।।

गVार क भू!मका, पैदा करती खोट।

घर या दे श-समाज हो, कर दे ती ]वफोट।।

दे श भIत Hकतने !मटे , हुए शह"द अनाम।

गVार क भू!मका, पीzड़त दे श-अवाम।।

आज राज Hकतूर को, कैसा !मला मुकाम?

गVार क चाल से, होने चला गुलाम।।

दोन नत जाकर भर , राजा जी के कान।

बढ़ा-चढ़ाकर बात क, राजा लेते मान।।

बात-घात करते रह , चे>न`मा के ]वD।

राजा को लगती बड़ी, हत-सी बात ]वशD


ु ।।

दोन ने चाहा बहुत, खिLडत हो ]व=वास।

वह राजा Iया कर सके, जो अSम-अ‹याश।।

पानी से पानी !मले, !मले कंच से कंच।

शीत यD
ु -सा चल रहा, राजमहल के बीच।।
घर म जब अनबन रहे , वैचाGरक टकराव।

तो नि=चत यह जान लो, होना है Rबखराव।।

हाय! संकट राज पर

परतं ता का छा गया।

ल"लने अं ेज भारत

राहु बनकर आ गया।

यिु Iत रानी सोचती,

लेHकन, ]ववश, असहाय थी।

पGरजन क मूखता

रह गयी न^पाय थी।

नयत ले आयी उसे

हाय! अ>धे मोड़ पर।

.=न का अ`बार था

उस अनूठे छोर पर।।

भाlय औ’ भगवान केवल

सोच के आधार थे।

उपहास करती बेबसी।

.ाण बस संचार थे।

***********

सग - 6
राजा को Qच>ता नह"ं, वह Iय बदले सोच?
रानी चे>न`मा उ>ह , कहे भले ह" पोच।।

समय बीतता जा रहा, संकट बढ़ता जाय।

अं ेजी-साˆाsय का, राहू सता आय।।

/शव/लंग BEसज" को, !मल" एक स>तान।

दे ख अलौHकक प
ु को, कह ध>य! भगवान।।

‡ुिTलत होते बड़े, दे ख सुत महाराज।

IयHक !मला Hकतरू को, यथा समय यव


ु राज।।

सब लSण नवजात के, लगते दे व समान।

नि=चत ह" Hकतूर क, थामे यह" कमान।।

पहनाया Hकतूर का, जब राजा को ताज।

रानी तब से थी दख
ु ी, दे ख दद
ु शा राज।।

पत-बेटा क मृ यु से, रानी रह"ं उदास।

^mसज के पु से, पुनः बँध गयी आस।।

दे ख बाल युवराज को, होते सभी ]वभोर।

ब?चे क HकलकाGरयाँ, मन म भर हलोर।।

करता बाल मराल था, तत


ु ल"-तत
ु ल" बात।

होनहार ]वरबान के, sय ह Qचकने पात।।

छाया था Hकतरू म , घर बाहर आमोद।

मात-]पता-पGरवार के, मन म भरा .मोद।।

लेHकन, होता है वह", जो रच राखा राम।

काल-चd चलता रहे , करता अपना काम।।

एक वष कुछ माह का, अभी हुआ था लाल।


हाय! राज-Hकतूर को, डंसने आया काल।।

sवर से पीzड़त हो गया, न>हा बाल मराल।

!शशु को लेने आ गया, मानो काल कराल।।

वैbय-QचHकसा शा भी, असफल हुये तमाम।

sवर से पीzड़त बाल के, आये तनक न काम।।

घोर आथा-.ाथना, 9यथ हुये उपचार।

दवा-दआ
ु -उपवास-जप, गये अ>ततः हार।।

.ात काल म एक दन, मृ यु उठ{ हुंकार।

आँख न खोल" लाल ने, पGरजन रहे पुकार।।

Qचर नmा म सो गया, ^mसज का लाल।

एक बार Hकतूर को, जीत गया Hफर काल।।

राजमहल म छा गया, dंदन चार ओर।

टूट गया वह आOखर", हा! ममता का छोर।।

हाय! हाय! दद
ु Œ व रे ! कहाँ छुप गया भोर।

धरती से आकाश तक, मचा हुआ था शोर।।

डूब आँसओ
ु ं म गया, !शव!लंग का पGरवार।

मूि?छत चे>न`मा Qगर", दख


ु के पारावार।।

सारे पGरजन रो रहे , रोता था Hकतरू ।

पलक झपकते हो गयी, ख!ु शयाँ सब काफूर।।

राजा-रानी को सभी, ढाढ़स रहे बंधाय।

नयत-काल-.ारvध के, क^ण .संग-सुनाय।।

धीरे -धीरे मृ यु को, बीत गये कुछ माह।


शनैः-शनैः कम हो रह", उर म बैठ{ आह।।

पु -नधन के बाद से, राजा थे बदहाल।

डूबे रहते शोक म , Rबगड़ गया तन-हाल।।

sय लकड़ी म घुन लगे, अ>दर करता काट।

य Qच>ता महाराज का, बदन रह" थी चाट।।

धीरे -धीरे हो रहे , ^mसज कृ=काय।

मानो उन पर काल क, छाया sय मंडराय।।

बदले राज-]वचार सब, पु -नधन के बाद।

पGरवतत 9यवहार अब, पड़ती ध!ू मल याद।।

खोया-खोया-सा लगे, राजा का 9यवहार।

राज महल-दरबार का, भूल गये आचार।।

पल-पल राजा को करे , जड़ता अब बेचन


ै ।

राजमहल-दरबार हो, पड़ता कह"ं न चैन।।

Rबना पु के िज>दगी, हाय! हो गयी 9यथ।

Rबना पु -युवराज के, राजा का Iया अथ??

राजा के मन म उठ , रह-रह कई ]वचार।

Iया होगा Hकतूर का, कहता मनो ]वकार??

भला-बरु ा सोचा कहाँ, Hकये नय ह" पाप।

अपने हाथ काट ल", अपनी गदन आप।।

राजा बन Hकतरू का, भल


ू गये आचार।

जनता-पGरजन का कभी, माना Iया आभार??

समय-चक
ू होती अगर, !मलती नह"ं सहाय।
चक
ु ा-समय आता नह"ं, कर लो लाख उपाय।।

पछताते राजा बहुत, सोच-सोच नज कृय।

घम
ू रहे मितAक म , एक-एक दAु कृय।।

सोच-सोच नप
ृ हारते, लेती नींद उचाट।

कम का फल Iय ^के, पीड़ा बड़ी सपाट।।

लाख भुलाना चाहते, ]वगत हुये दAु कम।

पर, दे ता संचत
े ना, रह-रह मानव-धम।।

राजा Wढ़ न=चय Hकया, कर .ायि=चत अ>त।

यश फैले Hकतूर का, Hफर से दशा-दग>त।।

गोर क आधीनता, कर नह"ं वीकार।

जाय भले यह िज>दगी, जीत !मले या हार।।

पता नह"ं, यह िज>दगी, कब हो जाये अ>त?

हाय! राज Hकतूर को, कौन बचाये स>त??

इसी!लए, Hकतूर हत, ल बालक को गोद।

बना उसे युवराज ह", द .जा को मोद।।

अब तो केवल शेष है , अि>तम यह" उपाय।

बाल Hकसी का गोद ल , ल Hकतूर बचाय।।

राजा ने मन म Hकया, Wढ़ न=चय चप


ु चाप।

बालक लेकर गोद अब, दरू कर अ!भशाप।।

राजा-रानी ने Hकया, नणय यह" प]व ।

बुला चे>न`मा से कहा, मन का भाव ]वQच ।।

आँख म आँसू भरे , कहा चे>न`मा मात!


^mसज क किजए, Sमा बाल-सी घात।।

माता! जो अ?छा लगे, कGरये वह" उपाय।

चंगल
ु से अं ेज के, लो Hकतरू छुड़ाय।।

Sमा चे>न`मा ने Hकये, !शव!लंग के दAु कम।

नभा आँसओ
ु ं ने दया, राज मात का धम।।

तीन ने क मं णा, सुWढ़ Hकये ]वचार।

काय ^प पGरणत कर , कैसे भल" .कार।।

रख योजना गु[त सब, जब तक पूण न होय।

राज महल क मं णा, जान सके नहं कोय।।

महाराज के सखा थे, राजा ग†ड नरे श।

लगे उनके पु को, दतक बना ]वशेष।।

]वQध ]वधान के साथ म , !लया बाल को गोद।

पु मान युवराज-पद, उसको दया समोद।।

कई दन तक महल म , उसव चला ]वशेष।

रहा ]व!शAट का आगमन, .तबंQधत .वेश।।

ख!ु शयाँ छायीं महल म , हुये मंगलाचार।

Hकया पंzडत का सभी, राजा ने आभार।।

द"न-दख
ु ी-असहाय को, दये व -आहार।

साधु-स>त-]वbवान सब, दये दान उपहार।।

राज सहत Hकतरू के, ह]षत थे सब लोग।

करते मंगल कामना, लगा ईश को भोग।।

मTल[पा और वकट, रच उधर षड़यं ।


अँ ेज़ के कान म , फँू क दया जा मं ।।

अँ ेज़ क क`पनी, करे क!म=नर राज।

दे ख रहा था थैकरे , सब सरकार" काज।।

भेज दया Hकतूर को, उसने !लखकर तार।

दतक-सत
ु -यव
ु राज यह, उ>ह नह"ं वीकार।।

Rबन अनुमत Hकतूर ने, दतक ल" स>तान।

इसे हुकूमत मानती, गोर का अपमान।।

^mसज Hकतूर के, अभी तक महाराज।

पु नधन के बाद म , कहाँ रहा युवराज??

^mसज के बाद म , कौन करे गा राज?

यह नणय अं ेज का, है सरकार" काज।।

रहा नह"ं Hकतूर को, नणय का अQधकार।

राजा ले सकते नह"ं, दतक-सुत-उपहार।।

यद राजा मान नह"ं, पैदा कर जुनून।

तो, गोर" सरकार Hफर, दLड दे य कानून।।

िजस Sण राजा को !मला, अं ेजी-फरमान।

मुखपर उड़ीं हवाइयाँ, लु[त हुई मुकान।।

राजमहल को आ गये, छोड़ बीच दरबार।

आकर शै‹या पर Qगरे , पवत sय साकार।।

राजा के मन पर हुआ, मनो कुठाराघात।

पु शोक भूले नह"ं, .खर हुआ आघात।।

हुआ भयानक भल
ू का, राजा को अहसास।
चे>न`मा क मानता, होता Iय उपहास??

सजा !मले Hकतूर को, हाय! हुई जो भूल।

यग
ु -यग
ु  तक चभ
ु  गे, ना समझी के शल
ू ।।

घोर lलान नप
ृ को हुई, करते प=चाताप।

पता नह"ं कब बढ़ गया, उ?च रIत का चाप।।

भेज से]वका को दया, कह चे>न`मा पास।

बल
ु ा रहे नप
ृ आपको, शै‹या पड़े उदास।।

राजा हE Qचि>तत बड़े, !शQथल पड़े पयŽक।

कोस रहे हE भाlय के, एक-एक कर अंक।।

राज मात! जTद" चलो, राजा हुये नढ़ाल।

हाय! राज Hकतूर का, आज हुआ बदहाल।।

सुना से]वका ने दया, राजा का स>दे श।

चे>न`मा पहुँची वहाँ, नप


ृ के कS ]वशेष।।

राजा के कान पड़े, चे>न`मा के बोल।

धार आँसुओं क बह", पट iदय के खोल।।

हाथ जोड़ कुछ बोलते, बोल हुये अव^D।

कह" आँसुओं ने सभी, उर क 9यथा ]वशुD।।

रानी को संकेत से, स†प दया वह तार।

नैन से बहने लगी, अ]वरल आँसू-धार।।

इधर तार पढ़कर हुई, चे>न`मा अत मौन।

उधर Hकये महाराज के, .ाण-पखे^ गौन।।

गोर क अत नीचता, समझ गयी वह चाल।


बदन-dोध से हो गया, चे>न`मा का लाल।।

टुकड़े-टुकड़े कर दया, चे>न`मा ने तार।

भला !संहनी मानती, कब गीदड़ से हार।।

सभी शेर के सामने, रहे झुकाते माथ।

गीदड़ क औकात Iया, डाले उस पर हाथ।।

Hकसको लेना गोद है , कौन बने युवराज?

गोरे होते कौन है ? पहने कोई ताज।।

गोर से हम Iय डर , Iया Hकतूर गुलाम?

शूर वीर Hकतूर के, जनता वीर तमाम।।

भारत म Hकतूर का, गौरवमय इतहास।

जन-जन म Hकतूर के, आजाद" का वास।।

तन-मन से Hकतूर को, जनता करती [यार।

आजाद" Hकतूर क, जनता का शंग


ृ ार।।

झुके नह"ं, !मटना भला, वा!भमान क पँज


ु ।

जनता को Hकतूर है , sय न>दन वन-कँु ज।।

जन-जन क रग म भरा, आजाद" का खन


ू ।

जनता म Hकतूर क, रहता सदा जुनून।।

अँ ेज़ के सामने, झक
ु े नह"ं Hकतरू ।

चे>न`मा को झुकादे , पैदा हुआ न शूर।।

अँ ेज़ क नीत का, रानी म आdोश।

.तHdया कर तार पर, चे>न`मा ख़ामोश।।

Pयान अचानक ह" गया, Hफर राजा क ओर।


मौन पड़े पयŽक पर, हले न तन का छोर।।

रह" सोचती दे र तक, राजा Iय खामोश?

वाणी ओजवी सन
ु ी, लेश न आया जोश।।

रानी-मन शंका हुई, कह"ं हुआ आघात।

‘राजा’ कह आवाज द", सन


ु ो हमार" बात।।

राजा कुछ बोले नह"ं, रहे फड़कते ओठ।

मानो iदय पर लगी, उनको भार" चोट।।

राजा को दे खा-हुई, चे>न`मा बेचन


ै ।

बदन पड़ा न=चेAट था, रहे अधखल


ु े नैन।।

नकल तनक पाये नह"ं, अधर से दो बोल।

मनो तड़पकर रह गये, .ाण गये sय डोल।।

‘हाय राम!’ के साथ ह", मुख से नकल" चीख।

सुन ‘वीरvबा’ आ गयी, शयन कS के बीच।।

बुला चे>न`मा ने !लए, राज वैbय-द"वान।

दे ख दशा महाराज क, वैbय हुये है रान।।

नाड़ी-iदय का Hकया, वैbय-पर"Sण साथ।

दे खीं आँख खोलकर, रखा भाल पर हाथ।।

राज वैbय कहने लगे, ‘अब Iया होय सध


ु ार?

राजा सबको छोड़कर, गये वग !सधार।।

राजा जी क दे ह म , .ाण नह"ं हE शेष।

राजा अब Hकतूर के, हुए हE मृ त शेष।।

रानी धरती पर Qगर"ं, सन


ु ी वैbय क बात।
हा! महल म छा गयी, पल म ग़म क रात।।

महल म मचने लगी, पल म चीख-पुकार।

पGरजन सारे रो रहे , छाया हा-हाकार।।

चे>न`मा समझा रह"ं, वीरvबा को मौन।

जीवन के अ!भलेख को, बदल सका है कौन??

दे ख पु क लाश को, ‘^mvबा’ न^पाय।

आँख से आँसू झर , हा! Hकतनी असहाय।।

महल म छाया रहा, अतशय घोर ]वलाप।

हा! जीवन क ासद", हा! Hकतना संताप।।

राजा को अि>तम ]वदा, दया राज-स`मान।

पंच तव म !मल गया, ^m सज-दनमान।।

हुई दवंगत आमा, पूण हुये सब काम।

हवन-जाप-गह
ृ -व?छता, पूरे Hकये तमाम।।

आने पर ख!ु शयाँ मन , जाने पर हो शोक।

सुख-दख
ु जीवन क नयत, कोई सके न रोक।।

आने पर संसार म , भाँत-भाँत के Qच ।

मन मोहक लगते बड़े, Gर=ते सभी ]वQच ।।

आता खाल" हाथ है , जाता खाल" हाथ।

थोड़ा-सा वैभव !मला, उ?च समझता माथ।।

सब बंदे भगवान के, सबका एक रसल


ू ।

!संहासन पर बैठकर, आते याद उसूल।।

वैभव पा भगवान को, पल म जाता भल


ू ।
दख
ु के जंगल म फँसे, चभ
ु ने लगते शूल।।

सुख-दख
ु हE परमाम के, दाय-बाय हाथ।

हाथ कभी Iया छोड़ते, कह"ं मनज


ु का साथ।।

हाय! मनुज ह" हाथ को, दे संकट म डाल।

कट -फट जब हाथ तो, झुक जाता है भाल।।

हम-सब ई=वर अंश हE, उसक हE स>तान।

वैभव पा कहता मनज


ु , वयं को भगवान।।

मात-]पता इस सिृ Aट का, जड़-चेतन का .ाण।

उसे न भूले आदमी, बन जाता सं.ाण।।

मनुज भूलकर ईश को, बनता माई-बाप।

जीवन-भर Hफर भोगता, Gर=त का अ!भशाप।।

सुख-दख
ु दोन म रहे , परमे=वर क टे क।

^प भले ह" कुछ रहे , ल~य रहे पर एक।।

भला-बुरा जो कुछ करो, करो उसी के नाम।

सुख-दख
ु जो कुछ भी !मले, रहे समपण राम।।

वामी-सेवक का रहे , ई=वर से स`ब>ध।

!शQथल न होने दे कभी, जीवन भर अनुब>ध।।

सख
ु -दख
ु दोन क रहे , ई=वर हाथ कमान।

सुख-दख
ु दोन म रहे , मानव एक समान।।

हमको भेजा ईश ने, दया .योजन साथ।

पूण .योजन जब हुआ, ईश खींचता हाथ।।

राजा का भी हो गया, पण
ू .योजन काल।
Qचरनmा म सो गया, मTलसज का लाल।।

चलते-चलते !लख गये, ^mसज संदेश।

चे>न`मा Hकतरू क, रानी बन ]वशेष।।

बागडोर Hकतूर क, ल चे>न`मा हाथ।

अि>तम इ?छा राज क, सब द उनका साथ।।

गोद !लया जो बाल है , होगा वह युवराज।

तब तक तो Hकतरू का, कर चे>न`मा काज।।

राजा क मृ यु हुई, पैदा हुआ ]ववाद।

Iया होगा Hकतूर का, घर-घर चला .वाद।।

!संहासन Hकतूर का, रानी !लया संभाल।

जनता के ]व=वास को, Hफर से Hकया बहाल।।

रानी ने जोड़े सभी, Hफर से टूटे तार।

ओढ़ !लया Hकतूर का, चे>न`मा ने भार।।

बुला !लये Hकतूर के, सभी .मुख सरदार।

रSा-हत Hकतूर क, करने हे तु ]वचार।।

बालLणा व रायLणा, रहे उपिथत साथ।

रSा राज दरबार क, द" दोन के हाथ।।

चे>न`मा कहने लगी, सन


ु ो! सभी रणवीर।

हरनी है Hकतूर क, सबको !मलकर पीर।।

अँ ेज़ क WिAट अब

Hकतूर पर है लगी।

हड़पने को राsय यह,


कूट चाल है चल"।।

इस!लए, रहना पड़ेगा

हर समय हमको सचेत।

धू त सब अं ेज हE

रहते नह"ं हE वे अचेत।।

राsय म ग़Vार कुछ

दे रहे गोर का साथ।

रोकना उनको पड़ेगा,

काटने उनके भी हाथ।।

वांछत तैयाGरयाँ भी

युD क करनी पड़।

स`मान को Hकतूर क,

हम समपण से लड़।।

]वदा Hकया, सबको दये, आव=यक नद… श।

चे>न`मा तैयाGरयाँ, करने लगी ]वशेष।।

जनता म Hकतरू क, फँू क दया यह मं ।

नह"ं चाहते दे खना, गोरे हम वतं ।।

इसी!लए, करना पड़े, अब गोर से यD


ु ।

कर सभी तैयाGरयाँ, रSा हे तु ]वशुD।।

***********

सग - 7
महाराजा Hकतूर के, गये वग !सधार।

पता थैकरे को चला, ह]षत हुआ अपार।।

कैसे अब Hकतरू पर, Hकया जाय अQधकार?

लगी बनाने योजना, गोर क सरकार।।

मTल[पा और वकट, दोन !लए फँसाय।

लोभ थैकरे ने दया, लालच बुर" बलाय।।

दोन ह" Hकतरू का, हर पल दे ते हाल।

दोन ह" ग़Vार थे, बुनते रहते जाल।।

रानी ने Hकतूर का, शासन !लया संभाल।

जनता म Hकतूर क, वैभव भरा कमाल।।

.थम सुरSा राsय क, कर" चाक-चौब>द।

लगा सके द=ु मन नह"ं, कह"ं लेश पैब>द।।

Hकये सुरhSत bवार सब, रानी ने मजबूत।

पलक झपकते जान ल , अं ेजी-करतूत।।

गु[तचर को सपकर, अलग-अलग दायव।

रानी नत .त जांचती, सबका ह" कृतव।।

राsय नयं ण म हुआ, रानी थी स>तुAट।

सब धम, सब जात के, लोग परपर तAु ट।।

ठोस सुरSा का इधर, चलता नत अ!भयान।

उधर मTल[पा-वकट, पाल रहे अ!भमान।।

चे>न`मा ने जब Hकया, दोन को पदमुIत।

तब से दोन हो गये, और अQधक उ>मI


ु त।।
उनके पीछे गु[तचर, लगा दये दो-चार।

गत]वQधयाँ संदlध जो, पता चल हर बार।।

मTल[पा और वकट, लक
ु -छप करते खोज।

गोपनीय हर सूचना, द गोर को रोज।।

नय थैकरे से कह , बढ़ा-चढ़ाकर हाल।

महाराज क मृ यु से, राज हुआ बदहाल।।

चे>न`मा Hकतरू क, रानी बनी ]वशD


ु ।

लेHकन, वे अं ेज के, रहतीं बड़ी ]व^D।।

मृ यु-पूव महाराज ने, दया राज-आदे श।

रानी चे>न`मा बने, इ?छा !लखी ]वशेष।।

बाल !लया जो गोद है , बना दया युवराज।

होगा जैसे ह" बड़ा, पहना द Hफर ताज।।

गोर से रानी करे , घण


ृ ा अ!मत अपार।

अँ ेज़ का युD म , रानी कर संहार।।

हQथयार का राsय म , बढ़ा रह" भLडार।

यD
ु कला का दे रह", यव
ु क को उपहार।।

रानी ने दरबार से, हमको दया नकाल।

अँ ेज़ से यD
ु को, सेना रह" संभाल।।

मTल[पा और वकट, चग
ु ल" रहे लगाय।

हाय! थैकरे को दया, उलटा बहुत चढ़ाय।।

आग बबूला हो गया, सुनकर सार" बात।

‘ओह!’ थैकरे ने कहा, ‘रानी रचती घात।।’


‘रानी क औकात Iया, गोर से टकराय।

ट-ट Hकतूर क, धरती पर Rबछजाय।।

रानी का Hकतरू म , तोड़ सभी ग^


ु र।

लेHकन, रानी से !मल , इससे पूव ज^र।।

कूटनीत का हम कर , रानी पर उपयोग।

अगर नह"ं वह मानती, बचा युD का योग।।

कब तक रानी लड़ेगी, अँ ेज़ के साथ?

]ववश चे>न`मा एक दन, रहे झुका कर माथ।।

कर Hकला Hकतूर पर, तोप से ]वफोट।

कौन टकेगा सामने, खा गोल क चोट??

चे>न`मा Hकतूर क, है अबला क जात।

दो घLटे के युD म , भूल जाय औकात।।

तोप के ]वफोट म , रानी होय नपैद।

वरना, उसको घेर कर, सेना करले कैद।।

उफ् ! रानी Hकतूर क, पड़ी सड़ेगी जेल।

भख
ू ी-[यासी एक दन, ख़म करे गी खेल’।।

थमा थैकरे ने दया, मTल[पा को प ।

‘रानी को दे ना इसे, पहुँच सब


ु ह के स ।।

रानी को दे ना बता, गोरे हE बेचन


ै ।

महाराज क मृ यु से, हम नह"ं है चैन।।

!मलना चाह थैकरे , ले दख


ु का समभाव।

हुई दवंगत आमा, रखते आदर भाव’।।


मTल[पा को दे दये, !लखकर सभी ]वचार।

]वदा थैकरे ने Hकया, समझा भल" .कार।।

चले मTल[पा-वकट, मन म भरा ग^


ु र।

रा ी का चौथा .हर, पहुँच गये Hकतूर।।

.ातकाल दरबार म , पहुँचे Rबना बल


ु ाय।

प थैकरे का !लखा, मं ी दया थमाय।।

ग
ु !सV[पा ने प वह, पढ़कर दया सन
ु ाय।

.तHdया कुछ क नह"ं, रानी गयी छुपाय।।

मTल[पा और वकट, छोड़ गये दरबार।

मानो उनक हो गयी, बहुत बड़ी ह" हार।।

गु!सV[पा को दया, रानी ने नद… श।

अतQथ थैकरे से कर , सb9यवहार ]वशेष।।

पहुँच गया Hकतूर म , कूटनीत ले साथ।

रानी के स`मान म , झुका थैकरे माथ।।

रानी ने सjाव से, आसन दया समान।

मान थैकरे को अतQथ, Hकया नह"ं अपमान।।

चे>न`मा से थैकरे , बोला-सोच-]वचार।

‘वग गये महाराज का, हमको शोक अपार।।’

‘ध>यवाद’ रानी दया, साथ कहा ‘आभार’।

‘ध>य! थैकरे भावना, सचमच


ु आप उदार।।’

कहा थैकरे ने पुनः, कुछ Sण रहकर मौन।

‘रानी! संकट क घड़ी, समझ सका है कौन??


रहे पूवज आपके, अँ ेज़ के !म ।

उनके ह" ]व=वास के, सजा रहे हम Qच ।।

रSाहत Hकतरू क, हम तन-मन से साथ।

जब तक ‘गोर"-क`पनी’, कौन उठाये हाथ??

हम आये Hकतरू म , !लए संQध .ताव।

राजा जी के नधन का, भरे थैकरे घाब।।

सीमा पर Hकतरू क, सेना !श]वर-पड़ाव।

द=ु मन क हर चाल का, पल म जले अलाव।।

भूल करे , Hकतूर को, जो समझे कमजोर।

गोर"-सेना दे उसे, उतर भी पुरजोर।।

चे>न`मा सुनती रह", उसक वह बकवास।

मानो करता थैकरे , रानी का उपहास।।

सुनते-सुनते dोध से, हुई चे>न`मा लाल।

बोल"- ‘!मटर थैकरे ! नह"ं बजाओ गाल।।’

‘वाह! खब
ू संवेदना, वाह! थैकरे -मेल।

वाह! !म ता शत से, कूटनीत का खेल।।

भारत म रखती नह"ं, लेश !म ता वाथ।

यहाँ थैकरे ! !म ता, है स?चा प^


ु षाथ।।

हम नह"ं वीकार है , लेश !म क शत।

शत क यह !म ता, जाय थैकरे ! गत।।

राज नह"ं Hकतूर का, थैकरे ! मोहताज़।

अपनी सता शिIत पर, भारत करता नाज़।।


ब?चा-ब?चा दे श का, रहता है आज़ाद।

ब>धन तनक न मानता, भले होय बबाद।।

अपनी आजाद" हम , और दे श-स`मान।

हमको [यारे .ाण से, हँ सकर द ब!लदान।।

नह"ं चाहते यD
ु हम, नह"ं यD
ु से [यार।

लेHकन, अपने दे श हत, सह युD का भार।।

यD
ु कभी करते नह"ं, समयाओं का अ>त।

इससे हंसा फैलती, और बढ़े आतंक।।

लेHकन जब स`मान को, पहुँच रह" नत ठे स।

वाणी औ’ 9यवहार से, दे श बढ़ाये Iलेश।।

हतSेप उस दे श का, कैसे हो वीकाय?

करना पड़ता युD तब, हो जाता अनवाय।।

दे श सहन करता नह"ं, संकृत का अपमान।

पर`परागत भू!मका, भारत क ब!लदान।।

ध>यवाद! हे थैकरे ! हमको दया सुझाव।

ध>य! अतQथ-संवेदना, ध>य! अतQथ .ताव।।

पराधीन रSा कभी, रखे न कोई अथ।

रSा हम Hकतरू क, करने हे तु समथ।।

मTल[पा और वकट, खड़े थैकरे पास।

बोले-‘रानी कर रह", गोर का उपहास।।’

कह" थैकरे से सभी, बढ़ा-चढ़ाकर बात।

अँ ेज़ के ]व^D ह", रानी रचती घात।।


मTल[पा से सब सुना, हुआ थैकरे लाल।

वकट भी बुनता रहा, षय>  का जाल।।

कहा क!म=नर थैकरे , ‘रानी करती घात’।

ट-ट Hकतूर क, कर द गे कल रात।।

रानी चे>न`मा Hकया, गोर का अपमान।

कल दे ख रणभू!म म , Hकसम Hकतनी जान।।

धमक दे कर यD
ु क, चला गया अं ेज।

मTल[पा और वकट, ख!ु शय से लबरे ज।।

साथ थैकरे के गये, दोन ह" मIकार।

दोन ह" Hकतूर के, पIके थे ग़Vार।।

गVार को दे श से, कभी रहा Iया [यार?

[यार अगर हो दे श से, कौन कहे ग़Vार।।

गया क!म=नर थैकरे , हुआ dोध से चरू ।

मTल[पा और वकट, साथ रह मजबूर।।

धारवाड़ म थैकरे , करने लगा ]वचार।

अब रानी माने नह"ं, Rबना यD


ु के हार।।

चे>न`मा से युD ह", केवल बचा ]वकTप।

कर अि>तम नणय !लया, Hकया यD


ु संकTप।।

कंू च कर Hकतूर को, पर ल पहले जान।

हम द=ु मन क शिIत क, कर सह" पहचान।।

मTल[पा और वकट, इसम कर सहाय।

काम कठन, बेशक बड़ा, लेHकन, कर उपाय।।


सोच-समझकर थैकरे , बुला वकट राय।

मTल[पा के सामने, कारण दया बताय।।

चे>न`मा क शिIत का, था दोन को aान।

मTल[पा और वकट, करने लगे बयान।।

दोन का Hकतरू म , ल`बा रहा नवास।

अब दोन ने तय Hकया, करना पूण ]वनाश।।

हाथी - घोड़े - तोपची, भाले - श - जवान।

सै>य शिIत Hकतूर क, कौशल युD कमान।।

कौन लड़ाके वीर हE, Iया है काम ]वशेष?

बता थैकरे को दया, मTल[पा सब शेष।।

कहा वकट राय ने, चे>न`मा अत वीर।

नडर, साहसी, !संहनी, ]वbयुत-सी शमसीर।।

रानी को कर कैद ल , बचे न कोई शूर।

या रानी को मार द , फतह होय Hकतूर।।

बालLणा व रायLणा, !सV[पा, गजवीर।

ये चार Hकतरू के, पराdमी रणवीर।।

रानी क ये आँख हE, कान, बु]D औ’ हाथ।

ये चार त`भ हE, नह"ं झक


ु ाते माथ।।

रानी का इन पर अटल, है स?चा ]व=वास।

ये चार Hकतरू के, उपवन म मधम


ु ास।।

ये तेजवी वीर हE, बु]Dमान .चLड।

अलग-अलग ब>द" बना, दे दो मृ यु अखLड।।


रानी करती आ रह", युD हे तु अqयास।

तैयार" Hकतूर क, मत समझो उपहास।।

घेरो चार ओर से, दो तोप को दाग।

भम करे Hकतूर को, बम-गोल क आग।।

ाह- ाह जनता करे , रानी हो मजबरू ।

चे>न`मा क वीरता, दप होय सब चरू ।।

Hकला बना Hकतरू का, सW


ु ढ़ sय अवधत
ू ।

bवार पि=चमी है नह"ं, पर उतना मजबूत।।

अं ेजी तोप कर , इसी bवार पर वार।

नि=चत हो Hकतूर क, Rबना लड़े ह" हार।।

बता दया Hकतूर का, दोन ने सब भेद।

िजस थाल" म खा-पले, Hकया उसी म छे द।।

दया थैकरे ने उ>ह , सुनकर भेद इनाम।

गVार ने दे श को, बेचा हाय! छदाम।।

Hकया वाथ-.तशोध ने, हाय! दे श नीलाम।

च>द टक म बेचकर, माँ को Hकया गल


ु ाम।।

ज>मे, खेले बन गये, और सजाये ताज।

पर, माता को बेचते, आयी तनक न लाज।।

हाय! दे श क आमा, पैदा Hकया सपूत।

च>द टक के वाते, पल म बने कपत


ू ।।

दये थैकरे ने सभी, सेना का नद… श।

कल .ातः Hकतरू का, दया कंू च आदे श।।


गोर क सेना सजी, हुई तोप तैयार।

कंू च Hकये Hकतूर को, .ातः सै>य सवार।।

गज पर बैठा थैकरे , Pवजा रह" लहराय।

आगे अ=व सवार थे, पीछे अ>य नकाय।।

सीमा पर Hकतरू क, आकर के सवार।

Hकया थैकरे ने यहाँ, डाल पड़ाव ]वचार।।

सै>य ]वभाग के सभी, .मख


ु !लए बल
ु ाय।

युD नीत कुल योजना, सबसे दया बताय।।

अD राR का समय हो, च>m करे अवसान।

तभी कर Hकतूर को, कल सेना .थान।।

अपनी-अपनी टुकzड़याँ, पैदल और सवार।

समय पूव होव सभी, चलने को तैयार।।

यथासमय Hकतूर को, सेना लेगी घेर।

अपने-अपने काम म , करे न कोई दे र।।

रा ी को चौथा .हर, सोया हो Hकतूर।

घेर दग
ु Hकतरू का, हमला कर ज^र।।

तोप से ]वफोट कर, द गे bवार उड़ाय।

पैदल अ=व सवार सब, पहुँच Hकले म जाय।।

पूर" ताकत से सभी, पड़ Hकले म टूट।

मार -काट -लट


ू ल , तनक न दे व छूट।।

जो भी आये सामने, कर उसी पर वार।

ताLडव मृ यु का कर , बचे न कोई bवार।।


इधर थैकरे दे रहा, कूटनीत नद… श।

उधर गु[तचर ने दया, रानी को स>दे श।।

आ पहुँचा है थैकरे , !लए सै>य बल साथ।

सीमा पर आकर टका, करने दो-दो हाथ।।

साथ बनाता योजना, ]वकट वकट राय।

मTल[पा ने भेद सब, सारा दया बताय।।

]वदा ग[ु तचर को Hकया, सन


ु कर सारा हाल।

चे>न`मा ने मं णा, क सबसे तकाल।।

चे>न`मा कहने लगी, ‘सुनो सभी सरदार!

सबको जगना रात भर, रह सभी तैयार।।

गोरे घेर दग
ु को, कर न सक ]वफोट।

इससे पहले हम कर , उन पर भार" चोट।।

संभल तनक पाय नह"ं, गोरे सै>य सवार।

टूट पड़ !मलकर सभी, ले भाले-तलवार।।

तोप औ’ ब>दक
ू पर, है गोर को नाज़।

कर आdमण हम सभी, टूट Qगरे sय बाज़।।

गोरे समयाभाव म , तोप औ’ ब>दक


ू ।

चला तनक पाय नह"ं, मार कर दो टूक।।

मTल[पा और वकट, दे श-mोह-ग़Vार।

भाग कह"ं जाय अगर, डाल उनको मार।।

अथवा उनको कैद कर, दे व दLड कठोर।

चौराहे पर नगर के, कर द कल Hकशोर।।


जहाँ !मल , जैसे !मल , सबको डालो मार।

गोरा सैनक एक भी, बने दे श पर भार।।

फूला Hफरता थैकरे , करो हEकड़ी चरू ।

दखला दो रण भू!म म , कैसा है Hकतूर।।

नारा होगा यD
ु का, ‘बम-बम, हर-हर दे व’।

टूट पड़ो अGर सै>य पर, रहे जीत म टे व।।

वीर! इस Hकतरू को, तम


ु पर गहरा नाज़।

भारत माँ क युD म , रख लेना तुम लाज़।।

वीर लड़ जो युD म , याद रहे उसग।

!मल" वीरगत जो कह"ं, पा जाता है वग’।।

स†प दये दायव सब, दे -दे कर नद… श।

चे>न`मा Hकतूर क, .मुख सै>य ]वशेष।।

इधर चे>न`मा ने Hकये, 9यापक युD .ब>ध।

उधर थैकरे कर रहा, सेना से अनुब>ध।।

चे>न`मा क .ीत म , भरा राAB-अ!भमान।

उधर थैकरे -नीत म , गोर का उथान।।

दे शभिIत - वतं ता, चे>न`मा गु^ मं ।

लट
ू पाट, अQधकार को, गोर का षयं ।।

सय, अहंसा, .ेम औ’, समता-सह अितव।

सकल ]व=वहत भावना, रानी का 9यिIतव।।

धत
ू , धAृ ट, हंसा भरा, चापलूस-मIकार।

दे ख सके न लोक हत, गोर का संसार।।


जैसा ह" 9यिIतव हो, बनता है कृतव।

अथवा जो पGरवेश हो, ढल जाता 9यिIतव।।

चे>न`मा और थैकरे

sय धरती-आकाश।

रानी मरू त .गत क

थैकरे नOखल ]वनाश।

आदकाल से लड़ रहे ,

.गत और ]वनाश।

.गत कभी कती नह"ं,

थकता नह"ं ]वनाश।

नOखल ]व=व कTयाण म ,

करती .गत नवास।

लुक-छपकर चलता रहा,

बदले ^प ]वनाश।

अब पहुँचा Hकतूर म ,

धरे थैकरे ^प।

.गत मानो !संहनी,

आयी चे>न`मा ^प।

लगता कभी ]वनाश ह", फैला hSतज-दग>त।

लेHकन, ऐसा है नह"ं, .गत ^प अन>त।।

***********
सग - 8
रा ी का .थम .हर, =वेत =याम आकाश।

मेघ साथ अठखे!लयाँ, करता च>m .काश।।

लुक-छप Hफरता च>mमा, !लये चाँदनी साथ।

धरा-वधू अँQधयार का, पकड़ सो गयी हाथ।।

धरती से अ`बर तलक, मचा रहा तम धम


ू ।

हाथ न द"खे हाथ को, रहे नशाचर घूम।।

नकल वन से आ गये, पशु-पSी-बेताल।

उTलू भरते हूक हE, ‘हुवा’ कर शग


ृ ाल।।

अज़ब तरह का शोर है , जंगल sय शमसान।

भूत-नाच सब ओर है , कर चड़
ु ल
E  गान।।

दरू -दरू तक गँज


ू ता, झींगुर का संगीत।

ले जुगनू को साथ म , नशा खोजती मीत।।

सोया गहर" नींद म , मान सब Hकतरू ।

गोर को ]व=वास था, जगे न कोई शूर।।

पर, रानी क योजना, !मला हुआ नद… श।

जुगनू जैसे घूमते, सारे वीर ]वशेष।।

ल~य !लये Hकतरू था, सावधान सब लोग।

काट भारत भू!म से, अँ ेज़ का रोग।।

रोम-रोम म ओज था, Wढ़ता व ]व=वास।

आजाद"-हत युD को, समझ रहे मधम


ु ास।।
इधर नगर Hकतूर क, रानी बड़ी सतक।

उधर थैकरे कर रहा, मTल[पा से तक।।

सेना लेकर थैकरे , घोर अ>धेर" रात।

पहुँच गया Hकतूर म , करने गहर" घात।।

घम
ू रहे Hकतरू के, गोरे चार ओर।

साथ थैकरे -वकट, बता रहा सब छोर।।

ककर बोला थैकरे , ‘घेरो य Hकतरू ’।

जाय न बचकर एक भी, चे>न`मा का शूर।।

बना Hकला Hकतूर का, चार .वेशी bवार।

रानी के हर bवार पर, सैनक अ=व हजार।।

!सखा रहा था थैकरे , सेना को हर दाँव।

तोप लगनी हE वह"ं, नयत Hकया जो ठाँव।।

रानी पहुँची दग
ु पर, सबको Hकया सचेत।

आ पहुँचे अं ेज हE, रहना नह"ं अचेत।।

चे>न`मा Hफर दग
ु के, पहुँची चार bवार।

कहा ‘!मल संकेत जब, बढ़ो खोलकर bवार’।।

इधर वीर Hकतूर के, युD हे तु तैयार।

उधर थैकरे कर रहा, .मख


ु संग ]वचार।।

गोर क सेना पड़ी, अभी सुत-खामोश।

थकन या ा क मनो, उड़ा रह" थी होश।।

घोर अँधेर" रात म , डूबा सकल जहाँन।

थकन !मटाने के !लए, Hकया सरु ा का पान।।


सुरापान तो कर !लया, तन-मन हुआ ]वकार।

यह" आdमण का समय, रानी Hकया ]वचार।।

पहुँच गयी Hफर दग


ु पर, जाँच !लये सब bवार।

रानी Wढ़ आ=वत थी, असफल जाय न वार।।

ग
ु !सV[पा - बालLणा, रायLणा, गजवीर।

अलग-अलग हर bवार पर, डटे हुये रणवीर।।

अंगरSक के ^प म , रानी संग दलेर।

युD - कला औ’ वीरता, उसम मनो कुबेर।।

अDराR का था समय, जाग रहा Hकतूर।

दे श भिIत क भावना, भर" हुई भरपूर।।

उधर अभी तो थैकरे , सजा रहा था साज।

अ>दर Iया Hकतूर म , उसे नह"ं आगाज़।।

चे>न`मा ने दग
ु का, घंटा दया बजाय।

मु)य bवार सब खोलकर, पड़े वीर अराय।।

‘बम-बम, हर-हर दे व’ कह, टूट पड़े रणवीर।

अँ ेज़ क फौज का, छूट गया सब धीर।।

बरछ{-भाले चल रहे , भभक उठ{ तलवार।

मारकाट होने लगी, मचती चीख पक


ु ार।।

हुआ थैकरे को नह"ं, बहुत दे र ]व=वास।

चे>न`मा क नीत का, हुआ नह"ं आभास।।

गोर क सेना हुई, Hकंकत9य]वमूढ़।

हाथी के न रोकते, भगे उठाकर


सूंड़।।

तलवार -भाले-छुरे , खड़क रहे हQथयार।

.ाण बचा सैनक भगे, होकर अ=व सवार।।

वीर ने Hकतूर के, पाट दया मैदान।

दरू -दरू तक शव पड़े, बचे नह"ं ख!लयान।।

वीर ने Hकतूर के, खब


ू मचायी मार।

दो घLटे से भी अQधक, चले खग-तलवार।।

.ाण बचाकर थैकरे , छोड़ भगा मैदान।

बचे-खच
ु े सैनक भागे, ले-ले अपने .ान।।

हुआ थैकरे दे खकर, मन म बड़ा हताश।

पट"-पड़ी मैदान म , गोर क ह" लाश।।

]वbयुगत, पहने कवच, हाथ ढाल तलवार।

अ -श से युIत थी, रानी अ=व सवार।।

िजधर अ=व मुड़ता उधर, मच जाता कुहराम।

गाजर-मूल" क तरह, गोरे कट तमाम।।

चHकत थैकरे रह गया, चे>न`मा को दे ख।

वाह! कुशलता युD क, वाह! चपलता रे ख।।

मातश
ृ िIत के सामने, झक
ु ा थैकरे शीश।

चे>न`मा को दे दया, iदय से आशीश।।

‘ध>य! ध>य! यह दे श है , ध>य! यहाँ क नाGर।’

कहा थैकरे ‘ध>य है ! चे>न`मा सुकुमाGर’।।

मTल[पा और वकट, हुए कैद Hकतरू ।


भगा थैकरे बच गया, जाता रहा गु^र।।

डाल दया Hकतूर क, दोन को ह" जेल।

ख़म हुआ अं ेज का, षय>  का खेल।।

गोरे जो पकड़े गये, नह"ं Hकया अपमान।

स]ु वधाएँ द" जेल म , दया सभी सामान।।

]वजय !मल" Hकतूर को, हुआ सभी को हष।

चे>न`मा क योजना, पहुँच गयी उकष।।

भाग गये अं ेज सब, छोड़ युD-मैदान।

तोप -ब>दक
ू  सभी, जvत Hकया सामान।।

जीत !मल" Hकतूर को, बज नगाड़े-ढोल।

गँज
ू रहा Hकतूर म , ‘बम-बम, हर-हर’ बोल।।

रानी क जयकार थी, रानी का गुणगान।

चे>न`मा को कह रहे , दग
ु ा-दे ]व महान।।

अँ ेज़ पर जीत का, इधर मन रहा ज=न।

रानी के मितAक म , उधर क†धते .=न।।

हरा दया Hकतरू ने, अँ ेज़ को आज।

पर, चप
ु बैठेगा नह"ं, अब गोर का राज।।

अब गोरे हमला कर , जट


ु ा शिIत को साथ।

Iया करना अब चाहए, झुके नह"ं जो माथ।।

यह कुछ दन क है खश
ु ी, Hफर होगा अवरोध।

भूले कभी न थैकरे , नि=चत ले .तशोध।।

ऊपर से इस दे श म , पल बड़े ग़Vार।


वाथ सधे तो दे श का, करद बंटाधार।।

मTल[पा और वकट, जैसे हE नासूर।

गVार" क Iया सजा, इनको दे Hकतरू ।।

ख़म एक होता नह"ं, पैदा होते चार।

गVार" है कै>सर, Iया इसका उपचार??

बड़े ]वषम ये .=न हE, कह"ं न इनका अ>त!

समाधान इसका कभी, बता न पाये स>त।।

बहुत बड़ा यह दे श है , बहुत बड़े हE लोग।

पता नह"ं Hकसके पले, कब मन म यह रोग।।

उथल-पुथल मछल" करे , ग>दा करती नीर।

य करता ग़Vार है , ग>दा दे श-शर"र।।

दे श भले कोई रहे , कोई हो सरकार।

!मले dूरतम मृ यु ह", दे श-mोह ग़Vार।।

बुला चे>न`मा ने कहा, जनता के दरबार।

मTल[पा और वकट, दोन हE ग़Vार।।

रानी ने दरबार म , कहा जोड़कर हाथ।

आभार" Hकतूर क, झुका नह"ं यह माथ।।

खड़े बीच दरबार म , ये दोन ग़Vार।

दे श-mोह क Iया सजा, जनता करे ]वचार।।

इन गVार ने Hकया, भारत का अपमान।

युग-युग तक अब दे श यह, भोगेगा नुकसान।।

‘चे>न`मा क जय’ कह , होती जय-जयकार।


‘गVार को मृ यु दो’, जनता कहे पुकार।।

मTल[पा और वकट, भारत के अ!भयुIत।

इनको फांसी क सजा, दे ना ह" उपयI


ु त।।

जनता का नणय हुआ, !लया चे>न`मा मान।

‘दे श mोह ग़Vार के, जनता लेगी .ान’।।

फांसी क सुनकर सजा, सहम गये ग़Vार।

Rबलख-Rबलख कहने लगे, ‘फांसी दो सरकार’।।

नि=चत अपने दे श से, धोखा करना पाप।

जनता युग-युग भोगती, दे श-mोह-अ!भशाप।।

दे श mोह हमने Hकया, है अSम अपराध।

वाथ भावना ने Hकया, पैदा मन उ>माद।।

बने नह"ं Hकतूर म , Hफर कोई ग़Vार।

फांसी दे दो इस!लए, रानी माँ! सरकार।।

मTल[पा और वकट, करते रहे ]वलाप।

लेHकन, जनता दे चक
ु , उनको मृ यु !मलाप।।

जनता का नणय !लया, रानी ने संaान।

जार" दोन का Hकया, dूर मृ यु फरमान।।

‘एक बजे Hकतरू म , कल दोन उVLड।

बीच भरे मैदान म , पाय मृ यु .चLड।।’

अगले दन Hकतरू का, भरा सकल मैदान।

दरू -दरू से राज के, गये आ मेहमान।।

बीच बना मैदान म , गोलाकार .खLड।


उसम हाथी घूमता, खन
ू ी बड़ा .चLड।।

मTल[पा और वकट, बँधे हुये जंजीर।

गोलाकार .खLड म , बैठे बड़े अधीर।।

सोच-सोच नज कृय को, बहे नैन से नीर।

हाथी ने संकेत पा, दया न!मष म चीर।।

दे शmोहय को !मल", मृ यु बड़ी ह" dूर।

रहा शा>त सब दे खता, रानी का Hकतरू ।।

कई दवस Hकतूर म , रहा जीत का पव।

रानी को HकंQचत ् नह"ं, हुआ जीत पर गव।।

गया थैकरे हारकर, चप


ु बैठेगा नाय।

चे>न`मा थी जानती, युD हे तु Hफर आय।।

हार थैकरे क नह"ं, यह गोर क हार।

बदला लेने हार का, अब होगा संहार।।

कूद पड़ेगी युD म , अब गोर" सरकार।

अ -श के साथ हो, तोप क भरमार।।

एक बार Hकतरू तो, गया यD


ु म जीत।

सफल चे>न`मा क हुई, बनी युD क नीत।।

अब आयेगा थैकरे , ]वपल


ु सै>य के साथ।

पहुँचग
े ा Hकतूर म , करने दो-दो हाथ।।

कहाँ चलेगा यD
ु म , भाला औ’ तलवार।

तोप और ब>दक
ू से, करे थैकरे वार।।

पर`परागत र"त से, गया थैकरे हार।


खल
ु कर अ .योग वह, करे युD इस बार।।

अँ ेज़ से युD अब, रहा नह"ं आसान।

भल
ू जाय Hकतरू सब, अपने ह" औसान।।

होगा यह Hकतूर का, नणयामक युD।

यह भारत के भाlय का, लेखा करे ]वशD


ु ।।

अ>धकार .काशवत ् हार-जीत का खेल।

जीत-हार जो भी !मले, रहे न वैसा मेल।।

रानी के उर-!स>धु म , उठ भाव के sवार।

शाि>त तनक होती नह"ं, लहर उठ अपार।।

गु^!सV[पा को बुला, सोचा दया बताय।

करने हगे तात! अब, हमको ठोस उपाय।।

गु^!सV[पा ने कहा, ‘मेरा एक सुझाव’।

अ -श रणनीत का, दया ठोस .ताव।।

तोप और ब>दक
ू का, .चरु कर .ब>ध।

बम, गोल", बा^द का, कर शी‚ अनुब>ध।।

रख दग
ु - द"वार पर, तोप दशा अनस
ु ार।

िजधर करे अGर आdमण, कर उधर हम मार।।

कूट नीत के साथ हम, कर तोप से वार।

यह तोप का आdमण, गोर को दे हार।।

तोप से dमशः कर , अलग-अलग ]वफोट।

चकमा दे कर हम कर , नत द=ु मन पर चोट।।

ऊपर से तोप चल , नीचे अ=व सवार।


भाले, बरछ{, खडग से, कर वार पर वार।।

पैदल सैनक हाथ म , !लये चल ब>दक


ू ।

कर नशाना साधकर, जाकर लगे अचक


ू ।।

अलग-अलग ह टुकzड़याँ, ह .मुख सरदार।

सेनापत के ^प म , रानी अ=व सवार।।

बालLणा व रायLणा, रानी के दो हाथ।

अंगरSक के ^प म , रह बराबर साथ।।

गु^!सV[पा को दया, .मुख सुरSा भार।

अलग-अलग सब टुकzड़याँ, बना दये सरदार।।

चे>न`मा ने युD के, 9यापक Hकये .ब>ध।

बुला !लये Hकतूर म , वीर राज-स`ब>ध।।

चे>न`मा ने हाल सब, सबको दया बताय।

Iया गोर क भावना, सबको द" समझाय।।

इधर युD-तैयाGरयाँ, करे राज Hकतूर।

उधर हार से थैकरे , था बेहद मजबूर।।

मTल[पा और वकट, फांसी दये चढ़ाय।

पता थैकरे को चला, कुछ भी नह"ं बसाय।।

सोच-सोच सब थैकरे , हाथ मसल रह जाय।

कैसे ब>द" मुIत ह, सूझे नह"ं उपाय।।

भल
ू न पाया थैकरे , रानी अ=व सवार।

रौm ^प तलवार का, बहे रIत क धार।।

अगर चे>न`मा दे खती, !मलती कहाँ सहाय?


पल म गदन थैकरे ! दे ती वहाँ उड़ाय।।

नि=चत रानी शिIत का, है कोई .त^प।

दे खी कह"ं न थैकरे ! महला कह"ं अनप


ू ।।

.भु ईशू! तेर" दया, बचा !लया इस बार।

.ाण बचाकर हार द", खब


ू शHु dया यार।।

धारवाड़ म पहुँच कर, करता रहा ]वचार।

सहम गया था थैकरे , दे ख यD


ु म हार।।

रानी के उस ^प से, मन रहता भयभीत।

सात समु>दर पार घर, याद आ गयी .ीत।।

सोचा-भारत छोड़कर, जाऊँ अपने दे श।

मुझे क`पनी से नह"ं, लेना-दे ना शेष।।

सोच-समझकर थैकरे , Hकये सभी को तार।

कारण सब बतला दये, गये युD Iय हार??

तार थैकरे का !मला, मनो गये बौराय।

उ?च .बंधन क`पनी, सोच-सोच रह जाय।।

दhSण भारत का रहा, सेनापत-.भार।

Hकये क/मHनर चैप/लन, क[तान को तार।।

‘अपनी-अपनी सेन ले, आय, कर न दे र।

धारवाड़ पहुँच सभी, अँ ेज़ के शेर’।।

पहुँच चैप!लन के गये, क[तान को तार।

धारवाड़ जाकर के, .मुख अ=व सवार।।

दरू -दरू तक द"खते, अगOणत अ=व सवार।


धारवाड़ म उफनता, सैनक !स>धु अपार।।

दया चैप!लन ने सभी, सेना को आदे श।

कल तक सब Hकतरू म , पहुँच सै>य ]वशेष।।

रा ी के b]वतीय .हर, कर आज .थान।

कल संPया Hकतरू म , हगे सभी जवान।।

धीरे -धीरे धरा पर, पसर गयी Hफर शाम।

अताचल गामी हुए, पहुँच गये र]वधाम।।

इधर चल" Hकतूर को, गोर क सब सैन।

उधर !मला Hकतूर म , समाचार सब रै न।।

सीमा पर Hकतूर क, वन म जल अलाव।

डाल चैप!लन ने दये, पूरे सै>य पड़ाव।।

बुला चैप!लन ने !लये, सभी सै>य क[तान।

साथ थैकरे को !लया, रचने vयूह ]वतान।।

इधर चैप!लन कर रहा, .मुख साथ ]वचार।

उधर चे>न`मा दग
ु म , कर सै>य तैयार।।

घेर !लया Hकतरू को, गोर ने चप


ु चाप।

युD शु^-सा हो गया, कूटनीत का आप।।

अभी .भाती सो रह", अपना घंघ


ू ट तान।

नशा दे ख करने लगी, जगते-जगते मान।।

Oखल" न .ातः रि=म क, अभी गल


ु ाबी कोर।

बाल अण मुकान को, चल" लपकने भोर।।

अँ ेज़ ने तोप म , दया पल"ता दाग।


अ`बर म उड़ने लगी, दरू -दरू तक आग।।

हुआ तोप क आग से, अ`बर ऐसा लाल।

मानो होल" खन
ू क, खेल रहा हो काल।।

गरज उठा Hकतूर क, तोप पर गजवीर।

काल-sवाल बनकर उठ{ं, तोप सभी अधीर।।

धरती से आकाश तक, हुआ लाल ह" लाल।

आग-आग चार तरफ, बन


ु ा आग ने जाल।।

तोप ने Hकतूर क, जो फैलायी आग।

गोरे उसम कूदते, मनो खेलते फाग।।

हुआ थैकरे -चैप/लन, मन म बहुत नराश।

दरू -दरू तक जीत क, रह" न मन म आस।।

बोल चैप!लन-थैकरे , बढ़ा रहे थे जोश।

तोप ने Hकतूर क, भुला दये सब होश।।

साथ जैसन खड़े थे, पास िपलर क[तान।

बाँट रहा था थैकरे कुटल नीत का aान।।

इसी बीच गजवीर ने, कर" भयंकर चोट।

गोला Qगरकर तोप का, Hकया महा]वफोट।।

उड़े मांस के लोथड़े, टुकड़े हुआ शर"र।

पता न तीन का चला, कहाँ गये रणवीर।।

दे ख चैप/लन रह गया, खड़ा-खड़ा ह" दं ग।

टुकड़े-टुकड़े मांस के, रIत सने सब अंग।।

इधर दवस भी ढल गया, वीर Hकये .थान।


Hकया चैप!लन युD का, .थम दवस अवसान।।

हुआ आज के युD म ,

थैकरे का अवसान।

कल Iया होगा, Iया पता?

सोच चैप!लन है रान।

दवस ढला तो ^क गया,

.थम दवस का यD
ु ।

Hकया चैप!लन युD को

कूटनीत अव^D।

कन"ल वाकर औ’ Jडंकन

मेजर पामर थे शैतान।

महारानी क तोप चलती,

गोर" सेना थी है रान।

.थम दवस अं ेजी तोप ,

कर न सक कुछ ऐसी मार।

िजससे सब Hकतरू क सेना,

पलक झपकते जाती हार।

सोच-यD
ु क बात सब।

हुआ चैप!लन था खामोश।

महारानी क तोप चलती,

गोर ने खोये थे होश।

!श]वर बीच बैठा हुआ,


न!मष-न!मष एका>त।

सोच-रहा था चैप!लन,

iदय बहुत अशा>त।

***********

सग - 9
मृ यु थैकरे क हुई, कई मरे क[तान।

सोच चैप!लन हो रहा, !श]वर बीच है रान।।

एक तरह से यD
ु म , हाय! हुई है हार।

हावी है Hकतूर पर, चे>न`मा का [यार।।

नर-नार" Hकतूर के, सभी लड़ रहे जंग।

दे शभिIत क भावना, चे>न`मा के संग।।

सेाच-सोच कर चैप!लन, डूबा Qच>ता-!स>ध।ु

दरू -दरू तक भी उसे, !मला न आशा-Rब>द।ु ।

घोर अ>धेर" रात है , बजा रात का पौन।

बैठ !श]वर म चैप!लन, सेाच रहा है मौन।।

फतह कर Hकतूर को, सूझे नह"ं उपाय।

दे शभिIत के सामने, कुछ भी नह"ं बसाय।।

हार यद Hकतूर म , गलत जाय संदेश।

Hफर तो भारत दे श म , भड़के आग ]वशेष।।

टकना मुि=कल हो बड़ा, यहाँ क`पनी राज।

नह"ं बचेगी ]व=व म , Hफर गोर क लाज।।


जैसे हो Hकतूर म , बचे क`पनी शाख।

चक
ू गये अं ेज तो, होय सभी कुछ राख।।

संQध कर Hकतरू से, अथवा आगे यD


ु ।

हे ईशू! दे ना मुझ,े ऐसी बु]D ]वशुD।।

दया स>तर" ने तभी, उसे ग[ु त स>दे श।

आया है Hकतूर से, सैनक एक ]वशेष।।

/शवबस'पा नाम का, रहा एक ग़Vार।

तोप का Hकतूर म , रहा .मुख सरदार।।

चे>न`मा ने एक दन, उसको दया हटाय।

लालच गोर ने दया, उसको !लया बुलाय।।

घोर अंधेर" रात म , गया चैप!लन पास।

उसे चैप!लन ने दया, लालच औ’ ]व=वास।।

कहा चैप!लन ने उसे, ‘फतह कराओ काज।

हम सप Hकतूर को, तुमको सारा राज’।।

परख रहा था चैप!लन, उसके मुख पर भाव।

लगा दया Hकतरू पर, कुटलनीत का दांव।।

!शवबस[पा लोभ म , गया सहज ह" डूब।

उसे हुई Hकतरू से, मानो भार" ऊब।।

हाय! दे श लुटता रहा, च>द टक के मोल।

!शवबस[पा दAु ट ने, भेद दया सब खोल।।

bवार पि=चमी दग
ु का, नवन!मत, कमजोर।

गोर" सेना तोप से, करे आdमण भोर।।


तोप के ]वफोट से, सहज उड़े यह भाग।

घुस जाय Hकतूर म , और लगा द आग।।

मच जाये Hकतरू क, जनता म कुहराम।

गोर" सेना के सभी, पूण हगे काम।।

तोप पर Hकतरू क, उसने कसी लगाम।

!मला दया बा^द म , गोबर सड़ा तमाम।।

अQधक समय Hकतरू क, तोप कर न काम।

चलकर थोड़ी दे र ह", होगा चIका जाम।।

स†प दये Hकतूर के, गोपनीय सब Qच ।

कहा चैप!लन ने उसे, ‘आप हमारे !म ’।।

!शवबस[पा दे श म , पैदा हुआ कमीन।

समझ चैप!लन ने !लया, उस पर Hकया यकन।।

बुला चैप!लन ने !लये, .मुख सै>य .कोAठ।

गु[त योजना दे कहा, ब>द रख सब ओAठ।।

केवल अपने काम पर, रहे सभी का Pयान।

जीत नह"ं जब तक !मले, कर ल~य संधान।।

गोर के स`मान पर, आये तनक न छ{ंट।

रानी के Hकतरू क, बजे ट से ट।।

बुला तोपची सब !लये, Hकया मम संवाद।

bवार पि=चमी दग
ु का, करना है बबाद।।

.ात काल का सूय, Iय दे खे Hकतूर?

गोल क वषा करो, आग उठे भरपरू ।।


सब तोप को दाग दो, तोड़ो पि=चम bवार।

अ>दर जा Hकतूर म , टूट अ=व सवार।।

नकल न भागे एक भी, करो bवार सब बंद।

ठोको बाहर bवार पर, ताल के पैबंद।।

मारकाट ऐसी करो, याद रखे Hकतरू ।

भारतवासी जान ल , गोरे Hकतने dूर।।

इधर चैप!लन दे रहा, कूटनीत-नद… श।

उधर चे>न`मा मं णा, सबसे कर ]वशेष।।

दया गु[तचर ने सभी, रानी को संदेश।

सजा रहा है चैप!लन, अपनी सै>य ]वशेष।।

घेर रहे Hकतूर को, अगOणत सै>य सवार।

तोप नशाने साधतीं, ल~य पि=चमी bवार।।

!शवबस[पा ने दया, गोर को सब हाल।

bवार पि=चमी दग
ु से, युD छड़े तकाल।।

उधर चैप!लन के !मले, कूटनीत संकेत।

सन
ु ा ग[ु तचर से सभी, रानी हुई सचेत।।

सै>य .मुख को बुला, दया गु[त आदे श।

करना कैसे आdमण, दये सभी नद… श।।

रा ी का चौथा .हर, पौ फटने म दे र।

यD
ु हे तु तैयार थे, रानी के सब शेर।।

उसाहत सब वीर थे, उ?च मनोबल साथ।

रSा म Hकतरू क, नह"ं ^केगा हाथ।।


बालLणा व रायLणा, सधे हुये गजवीर।

अपने-अपने काम पर, डटे हुये सब वीर।।

ग^
ु !सV[पा ने कहा, रहना सभी सचेत।

पलभर क कमजोGरयाँ, जीवन कर अचेत।।

चे>न`मा नज अ=व पर, चलते साथ दलेर।

भरते नव उसाह थे, सेना बीच कुबेर।।

इसी बीच अं ेज ने, दया तोप को दाग।

फटा बीच मैदान म , गोला बनकर आग।।

हुये तीन Hकतूर के, सैनक पल म ढे र।

रानी के संकेत ने, कर" न पल क दे र।।

इधर तोप Hकतूर से, लगी बरसने आग।

गोर क सेना उधर, रह" !श]वर से भाग।।

रानी क तोप चल", कर महा ]वफोट।

ऊपर से गोला Qगरे , करता भार" चोट।।

अँ ेज़ के तोपची, जब करते थे वार।

नीचे से ऊपर उठ , रहे न वैसी धार।।

अँ ेज़ क फौज पर, पड़ी तोप क मार।

ाह- ाह मचने लगी, हुये बार पर बार।।

ध>
ु ध, धआ
ुँ औ’ आग ने, घेर !लया आकाश।

गोले Qगरते तोप के, करते SOणक .काश।।

चीख सुनायी दे रह", dंदन चार ओर।

धरती से आकाश तक, बचा न कोई छोर।।


मुLड-मुLड चार तरफ, मांस-मांस के ढे र।

रIत-रIत ह" बह रहा, हाय! हाय! क टे र।।

हाथी - घोड़े - आदमी, कटे - पड़े मैदान।

गोले Qगरते तोप के, मनो Qगर शैतान।।

यहाँ-वहाँ Rबखरे पड़े, पश-ु मानव के अंग।

रIत-मांस के लोथड़े, जो दे खे रह दं ग।।

अं ेजी सेना जहाँ, बना वहाँ शमसान।

आग-धआ
ुँ के बीच म , जले पड़े इ>सान।।

जले-अधजले मांस क, बदबू चार ओर।

तोप के गोले Qगर , dंदन करता शोर।।

अँ ेज़ का था बना, जहाँ तोप-भLडार।

अ`बर से गोला Qगरा, फटा Qगरा आगार।।

कन"ल वॉकर साथ म , Jडंकन Qगरे धड़ाम।

झुलस चैप/लन क गयी, दायी टांग तमाम।।

वॉकर-Jडंकन-दे ह के, टुकड़े हुये तमाम।

दे ख चैप!लन ने Hकया, रोकर यD


ु ]वराम।।

लड़ते-लड़ते हो गया, दवस सुबह से शाम।

अताचल गामी हुआ, सरू ज अपने धाम।।

छोड़ दया Hकतूर को, ओढ़ युD का भार।

साथ चैप!लन सैन ले, पहुँचा सीमा पार।।

अँ ेज़ क युD म , आज हुयी Hफर हार।

कनल-जनरल-तोपची, बहुत हुये संहार।।


अँ ेज़ क जब हुयीं, तोप सभी .शा>त।

रानी ने भी दे खकर, कहा-‘रह सब शा>त’।।

रानी ने Hकतरू के, बल


ु ा .मख
ु सरदार।

दया सभी को जीत पर, भाव का उपहार।।

रानी ने सबसे कहा, ‘!मल" नर>तर जीत।

कड़ी पर"Sा माँगती, लेHकन आगे .ीत।।

मत सोचो, अं ेज सब, आज गये हE हार।

गोरे चप
ु बैठ नह"ं, कर संगठत वार।।

होगा दो दन बाद ह", घमासान Hफर युD।

मरा कोबरा है नह"ं, हुआ चोट से dुD।।

बता दया Hकतूर का, !शवबस[पा ने भेद।

HकंQचत ् Qच>ता है हम , सदा रहे गा खेद।।

लेHकन, सब Hकतूर के, बांके नडर जवान।

नह"ं मृ यु क मानते, वीर यहाँ के आन।।

अपने-अपने !श]वर म , करो सभी आराम।

रहते हुये सचेत भी, पाओ सभी ]वCाम।।

‘चे>न`मा क जय’ कह , उठे सभी रणवीर।

अपने-अपने !श]वर म , चले गये रणधीर।।

धरा वधू भी सो गयी, काल" चादर तान।

धरती से अ`बर तलक, अjत


ु तना ]वतान।।

झींगुर और खbयोत !मल, छे ड़ रहे थे तान।

मानो !मलकर गा रहे , अपना अि>तम गान।।


.ाची म सूरज उगा, धरा उठ{ मुकाय।

hSतज दरू आकाश तक, गयी सुनहर" छाय।।

ध>
ु ध, धआ
ँु औ’ आग का, कह"ं नह"ं था नाम।

युD भू!म Hकतूर म मुद… पड़े तमाम।।

मनो काल क dूरता, धरा बनी शमसान।

यहाँ-वहाँ Rबखरे पड़े, पशुओं-से इ>सान।।

आस-पास Hकतरू के, पसर गयी थी शाि>त।

लेHकन, पछुआ कह रह", होगी खन


ू ी dाि>त।।

कह"ं अ=व का धर पड़ा, कह"ं पड़े गजराज।

^Lड-मुLड लाश पड़ीं, ]वकृत सै>य समाज।।

धरती से आकाश तक, उड़ चील औ’ QगD।

मानो उनके भोज का, काम हो गया !सD।।

चीर फाड़ रणभू!म म , कर =वान- शग


ृ ाल।

अफरा-तफर"-सी मची, करते बीच बवाल।।

मांस-अिथयाँ खींचते, मsजा ऊदRबलाव।

गरु ाते पशु जंगल", =वान दखाते ताव।।

कॉव-कॉव कौआ कर , पड़ झपटकर चील।

आँख बाज तरे रते, sय सागर म सील।।

मनुज-मनुज के बीच तो, ^का हुआ था युD।

अब पश-ु पSी लड़ रहे , मांस हे तु अत dुD।।

बड़ा dूर ह" W=य था, घOृ णत घोर अपार।

बनी हुई रणभ!ू म थी, हंसा-मृ य-ु बजार।।


मनुज-मनुज के बीच म , रहा रIत अनुब>ध।

हा! वैभव का !स>धु यह, ल"ल रहा स`ब>ध।।

मनज
ु कह"ं पर मर गया, बचा कहाँ अनरु ाग।

दे श-दे श के बीच म , लगी bवेष क आग।।

महाशिIतयाँ लड़ रह"ं, पर हत बना ]वकार।

हंसा औ’ आतंक ने, पागल Hकये ]वचार।

Rबना बात के आdमण, पशओ


ु ं जैसी सोच।

मानवता को कर दया, हाय! मनुज ने पोच।।

सीमा पर Hकतूर क, डाले हुये पड़ाव।

सोच रहा था चैप!लन, जलता !श]वर अलाव।।

चला गया पूरा दवस, लगी घुमड़ने रात।

कुमुक अभी आयी नह"ं, पता नह"ं Iया बात।।

रानी ने Hकतूर क, छे ड़ा आज न युD।

वरना तो अं ेज क, लगती वाट ]व^D।।

ध>य! भरत का दे श यह, ध>य! यहाँ क र"त।

ऐसी कह"ं न ]व=व म , सदाचार क नीत।।

याग, वीरता, .ेम क, !मलती कहाँ !मसाल?

केवल भारत ]व=व म , अनप


ु म-द9य ]वशाल।।

द9य यहाँ के नाGर-नर, अjत


ु बने उसूल।

ईसा-मस
ू ा-राम भी, रमते साथ रसल
ू ।।

चे>न`मा यद चाहती, लेती हमको घेर।

पल भर म तलवार से, करती सबको ढे र।।


घेर-घेर कर मारती, !मलता कहाँ नशान।

ज>म भू!म इंlलैLड क, जाती लाश ]वमान।।

वह अनप
ु म वीरांगना, रखे ]व=व सjाव।

कम-धम म आथा, सबका आदरभाव।।

चे>न`मा Hकतरू म , मानवता क पँज


ु ।

नयम-नीत-!सDा>त से, ह]षत है मन-कँु ज।।

रानी ने Hकतरू क, छुआ नह"ं पाखLड।

युD भू!म म अ=व चढ़, करती युD .चLड।।

महला भारत दे श म , अगOणत ल!लत ललाम।

ध>य चैप!लन हो गये, दे वी Hकया .णाम।।

डूब ]वचार म रहे , गये चैप!लन खोय।

]वगत युD क झलHकयाँ, मनो दखाता कोय।।

!मला चैप!लन को तभी, !श]वर बीच स>दे श।

धारवाड़-हुबल" सहत, पहुँची कुमुक ]वशेष।।

आयीं तीन बटा!लयन, ‘मैक/लयड’- से शूर।

तोप क भार" कुमक


ु , पहुँच रह" Hकतरू ।।

शोलापुर से आ रहे , सैनक साठ हजार।

आधे घLटे म सभी, पहुँचे अ=व सवार।।

समाचार सुन चैप!लन, ह]षत हुआ अतीब।

मानो उसके आ गयी, पल म जीत कर"ब।।

मेजर कनल-क!म=नर, लेि‘टनट-क[तान।

बल
ु ा चैप!लन ने सभी, Hकया बहुत स`मान।।
‘ध>यवाद’ सबको दया, Hकया बहुत आभार।

कहा-‘!मला Hकतूर म , हम नया संसार।।

गोर" सेना म हुये, नये .ाण संचार।

भूले कभी न चैप!लन, !म  का उपकार।।

अTप सैन Hकतरू क, गोर" सै>य ]वशाल।

सोच रहा था चैप!लन, होगा सुबह धमाल।।

कल होगा Hकतरू म , अज़ब-ग़छाब सं ाम।

गोर" सेना !लखेगी, नज इतहास ललाम।।

कहा चैप!लन ने ‘सख! पहले लो आहार।

थककर आये हो सभी, Hफर होना तैयार।।

सार" सेना करे गी, दो घLटे आराम।

.ातकाल Hकतूर के, घेर सभी मुकाम।।

आदे श दे कर चैप!लन,

]वCाम करने को गया।

IयHक उसको !मल गया

आज जीवन भी नया।।

उधर जीत Hकतूर म ,

मना रहे सब लोग।

लेHकन, रानी सोचती,

अब आगे का योग।।

]वधना ने जो कुछ !लखा

तैसी !मले सहाय।


लाख करो .यन सब,

नAफल रह उपाय।।

इधर ग[ु तचर दे रहे , रानी को संदेश।

पहुँच रह"ं Hकतूर म , गोर" सै>य ]वशेष।।

पड़े राज Hकतरू क, सीमा बीच पड़ाव।

दरू -दरू तक सै>य बल, जलते वहाँ अलाव।।

Iया होगा Hकतरू का, रानी करे ]वचार।

तरह-तरह क भावना, पैदा करे ]वकार।।

सोच-सोच कर हो रह", रानी अत बेचन


ै ।

]वपुल सै>य अं ेज़ क, सोच पड़े

Iय चैन।।

दग
ु ा-मि>दर म गयी, कहा जोड़कर हाथ।

रSा इस Hकतूर क, माता! तेरे हाथ।

***********

सग - 10
अं ेजी-सेना इधर करने चल" ]वCाम।

उधर हुई Hकतरू म , चचा आम-तमाम।।

]वपुल सैन अं ेज क, पहुँची सीमा पार।

.ात काल Hकतरू म , होगा यD


ु अपार।।

तुलना म अं ेज क, अTप सै>य Hकतूर।

Hक>त,ु मनोबल, वीरता, साहस अ!मत ज^र।।


रानी को कहते सभी, दग
ु ा-का अवतार।

रानी के संकेत पर, !मटते सौ-सौ बार।।

लोग क थी धारणा, जनता का यह सांच।

आने भी द गे नह"ं, चे>न`मा पर आंच।।

जाग रहे Hकतरू के, नर-नार" सब व>ृ द।

दे शभिIत के गा रहे , हो उसाहत छ>द।।

सब जनता Hकतरू क, यD


ु हे तु तैयार।

iदय म सबके भरा, चे>न`मा हत [यार।।

Hकये सुरSा के सभी, रानी सरल उपाय।

रखा आdमण-डोर को, अपने हाथ सजाय।।

जनता म Hकतूर क, दया [यार-रस घोल।

दे शभिIत क भावना, बोल" मधGु रम बोल।।

‘वीर! अब Hकतूर म , होगा अि>तम युD।

हार-जीत का फैसला, दग
ु ा करे ]वशुD।।

जीत गये तो दे श म , सदा रहे गा नाम।

हुई वीरगत तो !मले, परम ईश का धाम’।।

इधर चे>न`मा भर रह", जनता म उसाह।

उधर चैप!लन सो रहा, होकर बेपरवाह।।

दे ख चैप!लन कुमुक को, मन म था आ=वत।

कर दे गी Hकतरू को, गोर" सेना Pवत।।

रा ी का चौथा .हर, म>द-म>द-सा भोर।

खगकुल कलरव कर रहा, बड़ा मनोरम शोर।।


उठा चैप!लन नींद से, सुन खगकुल संगीत।

नOखल सिृ Aट भी गा रह", मधरु -मधरु नवगीत।।

दरू तलक सोयी हुई, सार" गोर" सैन।

केवल पहरे दार के, पड़ सुनायी बैन।।

जगा चैप!लन ने दये, सेना-.मख


ु -कोर।

कहा-‘सैन तैयार कर, चलो नगर क ओर।।

.ातः क .थम Hकरण, नकले जब Hकतरू ।

गोर" सेना घेर ले, तब तक नगर ज^र’।।

अTप समय म हो गयी, सब सेना तैयार।

अलग-अलग सब टुकzड़याँ, बाँध !लये हQथयार।।

कहा चैप!लन ने तभी, करे सैन .थान।

छोड़ा सीमा पर सभी, 9यथ लगा सामान।।

रहे असैनक कुछ वहाँ, नौकर-चाकर शेष।

रSाहत अवथ क, सैनक रखे ]वशेष।।

अभी झुकमुका लग रहा, मानो हुआ न भोर।

घेर !लया Hकतरू को, Hकये Rबना ह" शोर।।

गोर ने रणनीत से, घेरे सारे bवार।

पीछे तोप द"ं लगा, आगे अ=व सवार।।

]वपुल सैन अं ेज क, ऐसी कसी कमान।

च[पा-च[पा चैप!लन, घम
ू े साथ जवान।।

!शवबस[पा ने जो कहा, रखा चैप!लन Pयान।

bवार पि=चमी दग
ु पर, दया बहुत संaान।।
आज युD क नीत का, मु)य रहा आधार।

bवार पि=चमी पर कर , तोप से .हार।।

शेष bवार पर दग
ु के, सेना रह" सचेत।

थोड़ी-सी हलचल मचे, करे द उसे अचेत।।

!लया चैप!लन ने नह"ं, कोई ख़तरा मोल।

बाँट दया Hकतूर को, 9यूह बनाकर गोल।।

अपना-अपना मोचा, सबने !लया संभाल।

कहा चैप!लन ने तभी, यD


ु कर तकाल।।

Hकया तोपची ने शु^, एक साथ ]वफोट।

bवार पि=चमी पर पड़ी, सीधी आकर चोट।।

चे>न`मा यह दे खकर, हुई बहुत है रान।

bवार पि=चमी पर डटे , गोरे sय शैतान।

गोल के ]वफोट जब, लगे तोड़ने bवार।

रानी ने भी कह दया, ‘मत चक


ू ो इस बार’।।

रानी क ‘जयनाद’ से, गयी धरा सब डोल।

टूट पड़ा Hकतरू सब, ‘हर-हर, बम-बम’ बोल।।

भाले-बरछ{ चल रहे , उछल रहे हQथयार।

तोप -ब>दक
ू  चल"ं, चमक रह"ं तलवार।

इधर तोप Hकतूर क, दाग रहा गजवीर।

उधर तोप अं ेज क, रह" रोशनी चीर।।

धआ
ुँ -धआ
ुँ आकाश तक, बरस रह" थी आग।

मारो-पकड़ो-काट दो, मचती भागमभाग।।


झपट !संह sय हरन को, पल म दे ता चीर।

य गोर को काटते, चे>न`मा के वीर।।

चे>न`मा ने यD
ु म , Hकया बहुत संहार।

मैक/लयड-मनरो सहत, कनल गये !सधार।।

दे ख चैप!लन यD
ु को, भल
ू गया सब जोश।

गोर को Hकतूर ने, भुला दया सब होश।।

]वbयत
ु जैसी चमकती, रानी क तलवार।

कभी इधर, पल म उधर, लड़ती अ=व सवार।।

ऊपर रानी काटती, अ=व मारता टाप।

एक साथ गोरे कई, मर जाते थे आप।।

चे>न`मा का अ=व था, मनो दे श का लाल।

मुड़ जाता था िजधर को, उधर टूटता काल।।

मारे चार पैर से, मँह


ु से दे ता चीर।

चे>न`मा को पीठ पर, साध रहा sय वीर।।

गोरे सैनक भागते, दे ख अ=व तकाल।

गोर" सेना का Hकया, रानी ने बदहाल।।

लपक-गपक औ’ झमक कर, चमक रह" तलवार।

पल म धड़ से काटती, Qगरते अ=व सवार।।

दे ख चैप!लन युD को, मन म हुआ नराश।

कनल-मेजर-कै[टन, Hकतने हुये ]वनाश।।

पान तंबोल" काटता, कृषक कतरे ईख।

चे>न`मा य काटती, नकल न पाती चीख।।


बालLणा व रायLणा, करते युD दलेर।

लपक-झपक कर मारते, जैसे बाज बटे र।।

इधर तोप बरसा रह"ं, बहुत दग


ु से आग।

खेल रहा गजवीर था, मानो खन


ू ी फाग।।

गोर"-सेना का गया, उधर मनोबल टूट।

गोरे सैनक भागते, मनो जेल से छूट।।

दे ख रहा सब चैप!लन, छुपा ]वटप क ओट।

रानी पर ब>दक
ू से, लगा नशाना चोट।।

दे ख चैप!लन को !लया, आगे बढ़ा दलेर।

हटा चे>न`मा को दया, हुआ शेर ख़द


ु ढ़े र।।

Qगरता दे ख दलेर को, युD भू!म के बीच।

रानी के आँसू झरे , गये वीर को सींच।।

हाय! अरे ! यह Iया हुआ, भैया! वीर दलेर।

काल-सप ने डंस !लया, भारत माँ का शेर।।

ध>य! वीर Hकतूर के, गये वीरगत धाम!

रानी को जीवन दया, Hकया अनठ


ू ा काम।।

ध>य! तु`हार" वीरता, ध>य! समपण-याग।

याद रहे Hकतरू को, सदा त`


ु हारा राग।।

भारत के इतहास म , सदा रहे गा नाम।

रानी नत मतक हुई, करती वीर! .णाम।।

रानी ने दे खा उधर, !शवबस[पा मुकाय।

खड़ा चैप!लन साथ म , रहा उसे बतयाय।।


रानी पर ब>दक
ू से, करना चाहा बार।

तब तक रानी ने Hकया, भाला फE क .हार।।

जाकर भाला घस
ु गया, !शवबस[पा के पेट।

सावधान था चैप!लन, गया भू!म पर लेट।।

आंत-ओझड़ी पेट से, बाहर लटक आय।

नकल जीभ ल`बी हुई, आँख गयी पथराय।।

मौत !मल" ग़Vार को, डूब गया अ!भमान।

बीच पड़ा रणभू!म के, लगे झपटने =वान।।

चे>न`मा करने लगी, पुनः भयंकर युD।

अ -श थे चल रहे , मानो होकर dुD।।

युD दे ख Hकतूर का, हुआ चैप!लन पत।

मानो गोर का हुआ, दन म सूरज अत।।

]वपुल सैन अं ेज क, पीछे हटती जाय।

सेना भी Hकतूर क, उसको रह" हटाय।।

सेना जब Hकतूर क, जीत रह" थी जंग।

‘बम-बम, हर-हर’ बोलती, ऐसी भर" उमंग।।

जीत सामने थी खड़ी, उलटा ]वQधक ]वधान।

Rबना हवा-तफ़
ू ान के, पलटे मनो ]वमान।।

बालLणा व रायLणा, करते युD अपार।

गोरे अ=व सवार ने, घपी पेट कटार।।

ढे र वह"ं पर हो गये, दोन माँ के लाल।

धोखा दे कर खा गया, दो वीर को काल।।


हाय! अरे ! दभ
ु ाlय ने, Hकया दे श का नाश।

कातर नैन नहारती, रानी खड़ी ]वनाश।।

इधर वीर दोन हुये, यD


ु भ!ू म म ढ़े र।

टूट पड़े Hकतूर पर, गोरे घायल शेर।।

गोर ने Hकतरू के, bवार दये सब खोल।

नर-नार" Hकतूर के, लड़ते बम-बम बोल।।

चे>न`मा को लग गया, अब न बचे Hकतरू ।

राजमहल पहुँची तुरत, होकर अत मजबूर।।

वीर9बा से नैन भर, रानी बोल" बैन।

बेट"! अब Hकतूर म , आने वाल" रै न।।

करो शी‚ Hकतूर से, बेट"! अरे ! .याण।

अँ ेज़ से मE लडूँ, जब तक तन म .ाण।।

दे साई बालक अभी, ले जाओ उस ओर।

!मले नह"ं अंगे ्रज को, तनक कह"ं भी छोर।।

यह बालक Hकतूर का, है भावी युवराज।

ले जाओ Hकतरू क, छुपा धरोहर आज।।

जाय साथ म आपके, गु^!सV[पा द"वान।

ग[ु त माग से महल के, करो शी‚ .थान।।

जैसे हो युवराज को, लेना बहन! बचाय।

त`
ु ह शपथ Hकतरू क, यह" हमारा दाय।।

वीरvबा के नैन से, बहने लगा .वाह।

ध>य! राजमाता अरे ! ध>य! आपक चाह।।


गु^!सV[पा को दया, रानी ने आदे श।

ले जाओ युवराज को, वीरvबा के दे श।।

]वदा Hकया यव
ु राज को, दया सरु Sा भार।

चले गये Hकतूर से, गु[त महल के bवार।।

बचा !लया यव
ु राज को, Hकया वयं का दान।

रानी मन ह]षत बड़ी, 9यथ नह"ं ब!लदान।।

रानी ने रणभ!ू म को, Hफर से !लया संभाल।

रणचLडी अब बन गयी, ल" तलवार नकाल।।

गोर क सेना घुसी, गल"-गल" बाजार।

लूटपाट होती रह", मारकाट हर bवार।।

जनता म Hकतूर क, भरा हुआ उसाह।

दे शभिIत क धार का, कता कहाँ .वाह।।

पहुँची रानी दग
ु पर, जहाँ लड़ रह" तोप।

थका हुआ गजवीर भी, आग रहा था झोक।।

तोप अब Hकतूर क, करने लगीं सलाम।

चलते-चलते अ=व क, जैसे Oखंचे लगाम।।

रानी ने गजवीर से, पूछा Iया यह हाल?

Iय तोप Hकतरू क, हुई आज बदहाल’।।

]ववश कहा गजवीर ने, ‘हुआ बड़ा षडयं ।

असफल अपना हो गया, सब बा^द" तं ।।

हाय! मनुज Hकतूर का, गोरे हाथ Rबकाय।

रानी जी! बा^द म , गोबर दया !मलाय।।


अब गोले चलते नह"ं, आग न करती काम।

गील" सब बा^द है , तोप हुई नाकाम’।।

कहते-कहते नैन से, लगा छलकने नीर।

रानी जी! Hकतूर का, हार गया गजवीर।।

इसी बीच गजवीर के, हुआ पास ]वफोट।

टुकड़े-टुकड़े तन हुआ, खा गोले क चोट।।

गया वीर Hकतरू का, माँ क गोद समाय।

मन क मन म रह गयी, करता कौन उपाय??

खड़ी चे>न`मा दे खती, मँह


ु से नकल" हाय!

ध>य! वीर Hकतूर के, ध>य! तु`हार" माय।।

चले गये Hकतूर से वीर! छोड़कर साथ।

माता खड़ी पुकारती, रहा अकेला हाथ।।

चे>न`मा के नैन से, झरती आँसू धार।

मानो अब Hकतूर क, हुई सुनि=चत हार।।

आँसू अपने पछकर, होकर अ=व सवार।

रानी तेजी से चल", करके यD


ु ]वचार।।

सु!मरन करके इAट का, ले दग


ु ा का नाम।

रानी कूद" यD
ु म , करने अि>तम काम।।

रानी पर Hकतूर का, ऐसा चढ़ा जुनून।

काट-काट अं ेज-!सर, लगी बहाने खन


ू ।।

जनता भी Hकतूर क, उधर लड़ रह" साथ।

भाले-बरछ{ चल रहे , दखा रहे सब हाथ।।


छः घLटे Hकतूर म , गल"-गल" बाजार।

रण-चLडी रानी बनी, अगOणत गोरे मार।।

खोज चैप!लन को रह", रानी अ=व सवार।

यद आ जाये सामने, लेती शीश उतार।।

छुपा कह"ं पर चैप!लन, लेकर कोई ओट।

िजससे छुपकर कर सके, वह रानी पर चोट।।

रानी ने Hकतरू म , मचा दया कुहराम।

काट-काट धड़-!सर Hकये, गोरे क़ल तमाम।।

जहाँ !मले, जैसे !मले, कटे झुLड के झुLड।

गोरे सैनक द"खते, काट दये नर-मुLड।।

गोर से Hकतूर को, रानी !लया उबार।

दये मौत के घाट पर, गोरे सभी उतार।।

गोरे सैनक भागते, रहा चैप!लन रोक।

जीत रहे Hकतूर हम, कहता सबको टोक।।

‘चेनमा क जय’ इधर, गँज


ू रहा जयकार।

Hकया चैप!लन ने उधर, Hफर से उलटा बार।।

गोर क सेना घुसी, पुनः नगर Hकतूर।

अब चे>न`मा घर गयी, हा! ]वQध रचा Hफतरू ।।

चे>न`मा ने `यान से, बाहर क तलवार।

पड़ी लपक कर, टूटकर, मान !संह सवार।।

गोरे सैनक लड़ रहे , खड़ा चैप!लन दरू ।

चे>न`मा के यD
ु से, कांप उठा वह शरू ।।
कनल H‡ं कन लड़ रहे , लड़ कई क[तान।

चेहरे सभी उदास थे, गहरे लहूलुहान।।

जाकर बोला चैप!लन, कनल H‡ं कन पास।

सुनो! Pयान से ब>धव


ु र! युिIत !मल" है ख़ास।।

रानी अ=व सवार है , लड़ती होकर dुD।

लेHकन, रानी से अQधक, अ=व लड़ रहा युD।।

चे>न`मा के अ=व पर, छुपकर करो .हार।

अ=व मरे , रानी Qगरे , करो बार पर बार।।

रानी से सीधे लड़े, !मल" हम नत हार।

गोरे अफसर सैकड़, दये चे>न`मा मार।।

चेनमा वीरांगना, अजब शिIत अवतार।

जब तक जी]वत यह रहे , !मले सदा ह" हार।।

छल से बल से युD को, हम सकते हE जीत।

अ=वह"न रानी करो, यह" चैप!लन नीत।।

मान चैप!लन का कहा, गोल" कर" .हार।

चे>न`मा के अ=व पर, Hकया बार पर बार।।

एक साथ गोल" कई, लगी अ=व के पेट।

Qगरा अ=व मैदान म , गया भ!ू म पर लेट।।

रानी संभल" दे खकर, भाला !लया उठाय।

जब तक H‡ं कन संभलता, उस पर दया चलाय।।

ढ़े र वह"ं H‡ं कन हुआ, घुसा पेट म जाय।

दरू चैप!लन दे खता, कुछ भी नह"ं बसाय।।


अ=वह"न रानी हुई, करती-Hफरती मार।

टूट पड़े अं ेज सब, पैदल-अ=व सवार।।

रानी पर करने लगे, सभी वार पर वार।

घायल हे ाती !संहनी, माने कभी न हार।।

बदन-बदन छलनी हुआ, घेरे खड़े सवार।

मृ यु सामने दे खकर, पल म Hकया ]वचार।।

बनँू बि>दनी मE नह"ं, दँ ग


ू ी अपने .ाण।

रानी यह Hकतूर क, नह"ं चाहती ाण।।

खींच कटारा हाथ म , जपा राम का नाम।

माते! दग
ु ा! आ रह", बेट"! तेरे धाम।।

बुझी कटार" छाहर म , !लया पेट म घप।

चे>न`मा ने िजंदगी, द" माता को सप।।

चे>न`मा का हो गया, पल म काम तमाम।

जीते जी वीरांगना, बनती नह"ं गुलाम।।

दे ख रहा था चैप!लन, रानी का अवसान।

ध>य! ध>य! रानी त`


ु ह , भारत क दनमान।।

रानी के शव के नकट, आकर Hकया .णाम।

चे>न`मा के साथ ह", घो]षत यD


ु ]वराम।।

जनता सब Hकतूर क, करती जय-जय कार।

ध>य! ध>य! वीरांगना गँज


ू रहा जयकार।।

Hकया चैप!लन ने बड़ा, रानी का स`मान।

राsयोQचत गौरव दया, Hकया महा.थान।।


रानी के शव पर Hकये, पुAप अ!मत उपहार।

]वQध-]वधान से कर दया, चे>न`मा-संकार।।

करा दया Hकतरू म , ‘क@मठ’ म नमाण।

अमर हुई वीरांगना, बनी समाMध .माण।।

रानी के Hकतरू म , ऐसी जल" मशाल।

धीरे -धीरे आग यह, बनकर हुई ]वशाल।।

गोर को जाना पड़ा, छोड़ ह>द का राज।

आOख़र उसी मशाल ने, हमको दया वराज।।

आजाद" के युD म , हुए अ!मत उसग।

अमर सभी द9यामा, !मला सभी को वग।।

9यथ कभी जाता नह"ं, Hकया हुआ ब!लदान।

आजाद" हमको !मल", भारत बना महान।।

पुरवैया म बह रहा, मधरु -मधरु संगीत।

ब?चा-ब?चा दे श का, गाता था यह गीत।।

गीत

मातभ
ृ !ू म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।

उठो! दे श के वीर बाँकुर! माँ ने हम पुकारा है ।।

आज दे श क सीमाओं पर

भीषण संकट छाया है ।

शाि>त लट
ू ने इधर लट
ु े रा

दरू दे श से आया है ।।

रोज छूटती तोप -गोल", करता खन


ू Hकनारा है ।
मातभ
ृ ू!म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।।1

क=मीर है मुकुट मात का,

हाय! Qगराया जाता है ।

रोज सैकड़ ललनाओं का,

शील !मटाया जाता है ।।

हाय! कर Iया? खन


ू खौलता, चलता शीश कुठारा है ।

मातभ
ृ !ू म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।।2

घोर ^दन करती भारत-माँ

दे ख-दे ख बबाद" को।

लूट रहा है वेष बदलकर,

बेटा खद
ु आज़ाद" को।।

चोर, !सपाह" बना हुआ है , यह दभ


ु ाlय हमारा है ।

मातभ
ृ ू!म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।।3

उतर-दिIखन, पूरब-पि=चम,

शीत हवाय चलती हE।

मैदान क गम हवाय

शीश झुका, कर मलती हE।।

बोल नह"ं ओठ से नकल , हम ने पैर पसारा है ।

मातभ
ृ ू!म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।।4

सख
ू गयी हE रIत-!शराय,

भाव अ!मत उपहास !लए।

Rबना याग के मृ यु !मल रह",


हाय! कहाँ ]व=वास िजए??

]वmोह" हो उठ{ भावना, Hकसने भवन उजारा है ??

मातभ
ृ !ू म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।।5

माना आज अराजकता है ,

चार ओर अ>धेरा है ।

रोम-रोम को भारत माँ के,

आQध-9याQध ने घेरा है ।।

धीरे -धरो! .ाची म दे खो! उगता लाल !सतारा है ।

मातभ
ृ ू!म के वा!भमान ने, आज हम ललकारा है ।।6

आजाद" हत कर दये, .ाण सहज ब!लदान।

ध>य अमर वीरांगना, भारत-माँ स>तान।

युग-युग तक संसार म , सौरभ रहे ]वकण,

ब?चा-ब?चा दे श का, सदा करे गुणगान।।

***********

डॉ० महे श ‘-दवाकर’ - एक परचय

नाम : डॉ० महे श चE सा-हि यक नाम : ‘-दवाकर’

जम तMथ : २५.१.१९५२

जम थान : ाम- महलकपुर मॉफ, दे हल"-राAB"य राजमाग,

पो० पाकबड़ा (मरु ादाबाद) उ०.०, भारत

<पता का नाम : व० कृपाल !संह पंवार

माता का नाम : Cीमती ]वbया दे वी पंवार

प नी का नाम : डॉ० च>mा पंवार, पी-एच०डी० (ह>द")

/शOा : पी-एच.डी., डी.!लट.(ह>द"), पी.जी. zड[लोमा इन जन!लsम


सत : एशो!सएट .ोफेसर, अPयS एवं शोध नदे शक,

प काGरता, उ?च ह>द" अPययन एवं शोध ]वभाग

गल
ु ाब!संह ह>द ू (नातकोतर) महा]वbयालय, चाँदपरु -याऊ (Rबजनौर) उ०.०, भारत

सबPता : एम०जे०पी०^हे लखLड ]व=व]वbयालय, (बरे ल") उ०.०, भारत

लेखन <वधाएं : क]वता, नयी क]वता, गीत, मI


ु तक, कहानी, नब>ध,

रे खाQच , संमरण, शोध, समीSा, स`पादन, प काGरता, या ावृ त, जीवनी, अनुवाद, साSाकार।

का/शत कृतयाँ :

(क) मौ/लक कृतयाँ :

(अ) शोध Tंथ

१.ह>द" नयी कहानी का समाजशा ीय अPययन (पी-एच०डी०) -१९९०

२.बीसवीं शती क ह>द" कहानी का समाज-मनोवैaानक अPययन (डी०!ल’०) ९२

३.ह>द" गीत का9य- २००९

(आ) समीOा-Tंथ

४.सव…=वर का क]वतालोक -१९९४

५.नवगीतकार डॉ०ओम.काश !संह : संवेदना और !शTप- २०१०

(इ) साOा कार संTह

६.भोगे हुए पल (बीस साSाकार का सं ह)-२००५

७.आपक बात : आपके साथ (इIकस साSाकार का सं ह)-२००९

(ई) नयी क<वता संTह

८.अ>याय के ]व^D -१९९७

९.काल भेद -१९९८

(उ) गीत संTह


१०.भावना का मि>दर -१९९८

११.आथा के फूल -१९९९

(ऊ) मU
ु तक-गीत संTह

१२.पथ क अनुभूतयाँ -१९९७

१३.]व]वधा -२००३

१४.युवको! सोचो! -२००३

१५.स
ू धार है मौन! -२००७

१६.रं ग-रं ग के W=य -२००९

(ओ) खVड काFय

१७.वीरबाला कँु वर अजबदे पंवार -१९९७

१८.महासाPवी अपाला -१९९८

१९.रानी चे>न`मा -२०१०

(औ) या?ा-व ृ त

२०.सौ>दय के दे श म - २००९

(ख) सहलेखन कृतयाँ :

१.डॉ० परमे=वर गोयल क साहय साधना- २००५

२.बाबू बाल मुकु>द गु[त : जीवन और साहय- २००७

(ग) सपा-दत अ/भनदन Tंथ :

१.बाबू !संह चौहान : अ!भनंदन ंथ (’९८)

२..ो० ]व=वनाथ ◌ा◌ुIलः एक !शव संकTप(अ!भनंदन ंथ) (२००२)

३.गंधव !संह तोमर ‘चाचा’ : अ!भन>दन ंथ (२०००)

४..ो० राम.काश गोयल : अ!भन>दन ंथ (२००१)


५.बाबू ल~मण .साद अ वाल : अ!भनंदन ंथ (२००७)

६..वासी साहयकार सुरेशच>m शुIल ‘शरद आलोक’ अ!भन>दन ंथ (’०९)

७.महाक]व अनरु ाग गौतम : अ!भन>दन >थ (’०९)

८..ो० हरमहे >m !संह बेद" : अ!भनंदन ंथ (’१०)

(घ) सपा-दत मृ त Tंथ :

१.व० डॉ० रामकुमार वमा : मृ त ंथ (’०१)

२.व० कैलाशच>m अ वाल : जीवन और का9य-स`ृ ि◌ ट (’९१)

(ङ) सपा-दत कोश :

१.^हे लखLड के वातं योतर .मुख साहयकार : संदभ कोश (’९९)

२.भारत क ह>द" सेवी .मुख संथाएँ : संदभ कोश (२०००)

३.दोहा संदभ कोश (२००७)

४.गीत-का9य संदभ कोश (यं थ)

५. ामीण शvदावल"-कोश (यं थ)

(च) सपा-दत काFय संकलन :

१.याद के आर-पार (’८८)

२..णय गंधा (’९०)

३..ेरणा के द"प (’९२)

४.अतीत क परछाइयाँ (कहानी संकलन)(’९३)

५.नेह के सर!सज (’९४)

६.का9यधारा (’९५)

७.वंदेमातरम ् (दे शभिIत क गीत रचनाएँ)(’९८)

८.नई ◌ाती के नाम (’०१)


९.हे मातभ
ृ ू!म भारत! (दे शभिIत क गीत रचनाएँ)(’०१)

१०.आखर-आखर गंध (’०२)

११.Iया कह कर पक
ु ा^ँ? (भिIत एवं आPयािमक गीत रचनाएँ)(’०३)

१२.बाल-सुमन के नाम (’९६)

१३.समय क !शला पर (दोहा संकलन)(’९७)

१४.आजू-राजू (’९८)

१५.न>ह -म>
ु न (’९८)

(छ) सपा-दत काFय संकलन (<वHव<वWयालय पाXयYम म5 समा-हत) :

१.]वbयापत वािlवलास (’८३) (एम०ए० .थम वष ह>द" के !लए)

२.]वbयापत सुधा (’८५) (एम०ए० .थम वष ह>द" के !लए)

३.एकांक संकलन (’९०) (बी०ए० b]वतीय वष ह>द" के !लए)

(ज) सपा-दत काFय संकलन (सा-ह यकार <वशेष)

१.नूतन दोहावल" (’९४)

२.ओरे साथी! (’०६)

(झ) सपा-दत <व/श=ट Tंथ

१.तल
ु सी वांगमय (’८९)

२.अ!भ9यिIत : समाज और वा”गमय (’०२)

३.ह>द" प काGरता : व^प, आयाम और स`भावना (’०६)

४.पयावरण और वांगमय (’०७)

अय सा-हि यक उपलिGधयाँ :

अ संथापक अयO : अOखल भारतीय साहय कला मंच

अ पव
ू " संयU
ु त सMचव - ह>द
ु तानी एकेडमी, इलाहाबाद (राsयपाल उ०.० bवारा ना!मत)(१३ दस`बर, २००१ से
१३ दस`बर, २००४)
अ तीन दज"न से अMधक शोध छा?D को पी-एच०डी० उपाMध नद[ शन।

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ का सा-ह यः संवेदना और /श@प शीषक पर ^हे लखLड ]व=व]वbयालय म वैशाल.
माँग/लक को पी-एच०डी० .दत।

अ मरु ादाबाद जनपद के सा-ह यकारD के सदभ" म5 डा० महे श ‘-दवाकर’ के सा-ह य का अययन शीषक पर
^हे लखLड ]व=व]वbयालय म /मMथलेश को पी-एच०डी० .दत।

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ : सज


ृ न के <व<वध आयाम (४०० प ृ ठ) - १९९५

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ : सज


ृ न के बीच (२०० प ृ ठ) - १९९९

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ : FयिUत और रचनाकार शीषक पर लखनऊ <वHव<वWयालय, लखनऊ से एम० Hफल०
लघु शोध .बंध- २००३

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ का जीवन व सा-ह य शीषक पर कुBOे? <वHव<वWयालय स◌े एम०Hफल० लघु शोध
.बंध- २००३

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ क का/शत कृतयD का समीOा मक अययन शीषक पर एम० जे० पी० Bहे लखVड
<वHव<वWयालय, बरे ल. से एम०ए० लघु .बंध।

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ के काFय म5 रा _.य चेतना शीषक पर एम० जे० पी० Bहे लखVड <वHव<वWयालय, बरे ल.
स◌े एम० ए० लघु शोध .बंध

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ के काFय म5 <व<वध वर शीषक पर एम० जे० पी० Bहे लखVड <वHव<वWयालय, बरे ल. से
एम० ए० लघु शोध .बंध

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ : संवेदना व /श@प शीषक पर एम० जे० पी० Bहे लखVड <वHव<वWयालय, बरे ल. से एम०
ए० लघु शोध .बंध

अ डॉ० महे श ‘-दवाकर’ : क सा-ह य साधना शीषक पर कामराज मदरु ै <वHव<वWयालय से एम०Hफल० - २००७

अ वीरबाला कँु वर अजबदे पंवार (खVडकाFय) पर गुBनानकदे व <वHव<वWयालय, अमत


ृ सर (पंजाब) से एम०Hफल-
२००८

अ अकाशवाणी और दरू दश"न से समय-समय पर अनेक रचनाएँ .साGरत।

अ रा _.य व अतरा"=_.य तर पर ]व=व]वbयालयो◌ं, महा]वbयालय और !शSण संथान म आयोिजत


अनेकशः संगोिAठय और से!मनार म ]व]वध ]वषय पर 9याखान।

अ दे श-<वदे श क अनेकशः प?-प`?काओं और का9य संकलन म समय-२ पर ]व]वध ]वधाशः रचनाएँ


.का!शत।
अ नाव[ और वीडन क सांकृतक एवं साहियक या ा- ५ दस`बर २००८ से १६ दस`बर २००८ तक।

अ दे श-<वदे श क साहियक संथाओं bवारा ]व]वध अलंकरण एवं स`मान।

सपक" :

डॉ० महे श ‘-दवाकर’, डी०/लb०

‘सरवती भवन’,

/मलन <वहार, -द@ल. रोड, मुरादाबाद (उ००) <पन - २४४००१

E-mail: maheshdiwakar@yahoo.com

mcdiwakar@gmail.com

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