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नोबल पुरःकार

कार से समािनत
मािनत कवंि रवीिनाथ
िनाथ टै गोर क अमरकृ ित

गीतांजिल (अंश)

दो श$द-
द-

कवंि रवीिनाथ टै गोर एक ऐसे अनमोल र(न थे, *जसे सृ+ ने भारत मां क गोद म-
दे कर उसे धय 1कया और 1कया ू(येक भारतीय को गौरवा*वत। इस र(नौेंठा ने
अपने का:य-ूकाश से पूरे वँव को आलो1कत कर 1दया। ‘गीतांजिल’ के >प म- उनके
?ारा 1दये ूकाश से आज भी वँव सा1ह(य जगमगा रहा है । यूं तो रवीिनाथजी ने
अपनी लेखानी का जाद ू हर वधा पर बखेरा है , 1कंतु ‘गीतांजिल’ उनक अमर कृ ित है ।
गीतांजिल

1-
अपनी चरण धूिल के तल म-
मेरा शीष झुका दो
दे व! डु बा दो मम अहं कार
मेरे अौुजल म-।
अपने को गौरव दे ने को
अपमािनत करता अपने को
अपने आप म- घूम-घूम कर
मरता हंू Iण-Iण मJ।
दे व! डु बा दो मम अहं कार
मेरे अौुजल म-।

दे व! अपने कायK का
आ(म ूचार न क>ं
तुम यह इLछा
मेरे जीवन म- पूणN करो।
मुझको अपनी चरम शांित दो
ूाणO म- परम कांित हो
आप खड़े होकर मुझे द- ओट
अपने Rदय कमल म-।
दे व! डु बा दो मम अहं कार
मेरे अौुजल म-।

2-
मेरे मन म- जो अनिगनत वासनाएं भरT हJ
उन सबसे वंिचत करके
तुमने बचा िलया।
संिचत रहे यह कUणा
इस कठोर जीवन म-।

बन मांगे जो मुझे 1दया है


Vयोित, गगन, तन-मन, ूाण 1दया है ।
1दन-1दन मुझे बना रहे तुम
उस महादान के योWय।
अित वासना के संकट से
मुझे उबार कर।

कभी भूलता, कभी चलता


1कंतु, तुह- लआय बनाकर
उसी राह पर
िनंठु र! सामने से हट जाते हो पर
है मालूम यह दया है तुहारT

अपनाने को ठकराते तुम
पूणत
N र बना इस जीवन को
अपने िमलन योWय कर लोगे।
आधी-इLछा के इस संकट से
मुझे उबार लोगे।

3-
अनजानO को जानकर
राह 1कतने घरO को दT
1कया दरू को िनकट
बंधु कहा भाई परायO को
िनवास छोड़ना पुराना जब-जब जाता मJ
जाने [या हो तब, मन यहT सोच घबराता,
िनत नूतन बीच तुम तो पुरातन
यह स(य मJ बसरा जाता।
1कया दरू को िनकट
बंधु कहा भाई परायO को।

जीवन और मरण मे, अ*खल भुवन म-


जहां कहTं भी अपना लोगे
जनम-जनम के जाने-अनजाने,
तुहTं सबसे मुझे प\रिचत करा दोगे।
तुह- जान लूं तो न रहे कोई पराया
न कोई मनाहT, न कोई डर
सारे >पO म- तुम हो जागे
सदा दरस तुहारा ूभु हो।
1कया दरू को िनकट,
बंधु कहा भाई परायO को।

4-
वपदाओं से मुझे बचाना
यह ूाथNना नहTं मेरT।
ूाथNना है -
वपदाओं म- न होऊं भयभीत
न हT दखO
ु म- िच(त :यिथत हो
भले हT न दो सां(वना।
दखO
ु पर पाऊं वजय मJ।
संबल भले हT न जुटे
पर,
ू ।
बल ना मेरा 1फर भी टटे
Iित जो हो घ1टत
जगत दे ता केवल वंचना
अपने मन म- न मानूं कोई Iय।

मुझे संकटO से बाहर िनकालो


यह ूाथNना नहTं मेरT
उनका कर सकूं सामना
इतना अवँय दो बल।
मेरा भार घटाकर तुम
भले हT न भी दो सां(वना
ढो पाऊं वह भार इतना हो िनँचय।
शीश झुकाए जब आए सुख
तो पहचान लूं मJ तुहारा मुख
दख
ु क रात म- डू बी हो िन*खल धरा
मJ क>ं न तुम पर 1कसी ूकार का संशय
बस यहT है मेरT तुमसे ूाथNना।

5-
हे अंतरयामी! मम अंतर वकिसत करो
उVजवल करो, िनमNल करो
कर दो सुंदर हे !
उbत करो जागृत करो,
कर दो िनभNय हे !
मंगल करो, िनरापद करो, िन:संशय कर दो हे !
हे अंतरयामी! मम अंतर वकिसत करो

सबसे यु[त करो मुझको हे


मु[त करो सब बंधन से।
संचार करो सारे कमK म-
शांितमय सब छं द।
चरण-कमल म- मेरा िच(त िनंपं1दत कर दो हे !
नं1दत करो, ूभु नं1दत करो, नं1दत कर दो हे !
मम अंतर वकिसत करो
हे अंतरयामी!

6-
ूेम-ूाण से, गंध-गान से, आलोक-पुलक से
िन*खल गगन तल-भूमंडल को eलावत करके
झर रहा हर Iण तुहारा अमल अमृत-िनझNर।

चारO 1दशाओं क सारT बाधएं आज तोड़कर


जाग रहा आनंद अनोखा मूतN >प-धर,
िनवड़ सुधा से जीवन Rदय उठा है भर।

चेतना मेरT उस कfयाण रस के मधुर ःपशN से


शतदल कमल सी *खली परम हषN से।
उसका सब मधु तहारे चरण धर कर।
नीरव Vयोित-जगी Rदय ूांतर म-
मु[त ऊषा के उदय क आभा िनमNल
हटा नयन का अलस आवरण।

7-
तुम आओ ूाणO म- नव-नव >पO म-
आओ तुम गंध-वणN म-, आओं तुम गीतO म-।
आओ तुम पुल1कत अंगO म- सरस रस भर
आओ तुम मुWध मु1दत नयनO म-।
तुम आओ ूाणO म- नव-नव >पO म-।

आओ हे कांतवमल, उVजवल-तर आओ।


आओ *ःनWध ूशांत सुंदरतर आओ।
आओ वधान के बहरंु गी >पO म-।
आओ दख
ु म-, सुख म-, आओ िनरं तर अंतरतर म-।
आओ दै नं1दन सकल कमK म-।
आओ तुम सब कमK के अवसानO म-।
तुम आओ ूाणO म- नव-नव >पO म-।

8-
धान के खेतO म- आज धूप-छांव
कर रहT लुका-िछपी का कौतुक
1कसने छोड़T नील गगन म-
ँयामल मेघ क नौका।
आज भiरा भूल रहा मधुरस पीना
उड़ 1फर रहा वह ूकाश म- डू बा,
यह कैसा मेला नदT तीर पर
चकवा-चकवी का।

आज नहTं घर मJ जाऊंगा भाई


आज न जाऊंगा घर।
उघाड़कर अंबर लूट लूंगा
आज मJ सारT बहार।
Vवार का वो फेिनल जल
उड़ता 1फर रहा मUत लहर पर *खल*खल
आज अकारण बजाकर बंसी
बीतेगा यह सारा 1दन।
आज नहTं घर मJ जाऊंगा भाई
धान के खेतO म- आज धूप-छांव
कर रहT लुका-िछपी का कौतुक।

9-
आनंद के सागर से
आया है Vवार िलए तूफान।
डांड पकड़ लो बैठकर सब
खेता चल अलान।
जो भी है सब बोझ उठाए
दख
ु क नैया पार लगाए
चला चल तरं गO पर
भले चले जाएं ूाण।
आनंद के सागर से
आया है Vवार िलए तूफान।
कौन रोकता है पीछे से
मना करे है कौन।
डर क बात करे कौन आज
डर का हम- है kान
कौन पाप मह दशा कौन जो
सुख के 1कनारे रहंू मJ बैठा
पकड़ ले जोर से पाल क डोरT
गाते, सुख से कर ूयाण
आनंद के सागर से
आया है Vवार िलए तूफान।

10-
तुहारे पूजा के थाल म-
सजाऊंगा आज दख
ु के अौुधार।
जननी, बनाऊंगा मीवा क
मंजुला-मंजुल मोती माल।
रव-शिश िलपटे हJ आज
हार बने चरणO म-।
मेरे दख
ु से शोिभत होगा
तेरा वI वशाल।

यह तुहारा सब धन-धाय
तुम बोलो [या क>ं इसका
दे ना चाहो तो दो मुझको
लेना चाहो तो ले लो।
दख
ु है मेरे हT घर का धन है
तुम पहचानो खरे -रतन को।
तुहारे ूसाद से उसे खरTदं ू
यह मेरा अहं कार।
तुहारे पूजा के थाल म-
सजाऊंगा आज दख
ु के अौुधार।

11-
बांधा हमने कास-गुLछ और गूंथी शेफाली माला।
नए धान क मंज\रयO से
भर लाया हंू अपना डाला।
हे शारदे ! अपने
ँवेत मेघ के रथ पर आओ
आओ िनमNल नील गगन के पथ से
आओ धुले सुँयामल Vयोित से झलमल
वन पवNत कानन स।
माथे शतदल का मुकुट
िशिशर ज*़डत म*णमाला से।
पुंप मालती के झर झर कर
आसन बने बछे िनजNन म-
गंगा तट पर, कुंजO म-,
पदतल पर, हं समन त(पर।

तुम करो गुंजार तार


अपनी ःवणN वीणा के
मृदल
ु मधुर-मधुर झंकार
जाए गल I*णक अौुधार *खल जाए संसार
पलक ओट से झांकता
*झलिमल करता पारसम*ण
कUणामय होकर झुला दो
वहT Vयोित िनमNल मन क
बन- ःव*णNम सभी संभावनाएं
हो जाए उ*जयारा अंधकार म- भी।
12-
लगी चमाचम धुले पाल म-
मंद मीठo बयार।
दे खी नहTं कभी भी ऐसी
सधी हई
ु डांड पतवार।

लाता कौन समंदर पारे


वह सुदरू का धन रे !
चाहता लुट जाना मन रे ।
चाहता फ-क जाना इसी 1कनारे
नई चाहनाओं को।

\रम*झम-\रम*झम झरता जल पीछे


गुU-गुU गरज रहा है घन
िछटक-िछटक पड़ता मेघO से
मुखड़े पर अUण 1करण का कण

ओ खेवनहार, कौन हो तुम,


1कसके हाःय->दन के संबल।
सोच रहा यह चंचलिच(त,
1कस लय म- बांधोगे िसतार
1कस लय म- गाओगे कौन सा मंऽ।

13-
मेरे नयन हो गए मुWधमय
मJने यह [या दे खा जी भर।
हरिसंगार के आसपास म-
िगरे फूलO के हास-वास म-
ओस नहाई घास-घास म- र[तरं *जत पग धर-धर
मेरे नयन हो गए मुWधमय
मJने यह [या दे खा जी भर।
आंचल धूप-छांव का
लुट-लुट जाता है वन-वन म-।
फूल उसक ओर दे खकर
जाने [या कहते हJ मन-मन म-।
आओ, तुह- हम कर- गे वरण,
मुंह का परदा करो हरण,

बादल का छोटा सा टकड़ा
दोनO हाथO से दरू हटाकर
मेरे नयन हो गए मुWधमय
मJने यह [या दे खा जी भर।

वन दे वी के ?ार-?ार पर
बज रहT है गहरT शंख qविन,
नभ-वीणा के तार-तार पर
उठ रहा ःवागत गीत।
मेरे हT उर म- शायद कहTं बजते ःवणN नुपुर
सभी भाव, सभी कमK म- िशला िनचोड़T रस भर
मेरे नयन हो गए मुWधमय
मJने यह [या दे खा जी भर।

14-
हे जननी, तेरे कUण चरण कfयाणी।
मJने दे खे ूभात 1करण म-।
जननी, तेरT मनहर मंजल
ु वाणी,
भर गई चुपचाप मौन संपूणN गगन म-।

अ*खल भुवन म- तुझे शीश नवाऊं


सब कमK म- तुझे ूणाम क>ं
आत तन-मन-धन सब क>ं िनछावर
भr-भाव से तेरT पावन पूजा-अचNन म-।
हे जननी, तेरे कUण चरण कfयाणी।
मJने दे खे ूभात 1करण म-।

15-
उमु[त उदार अ*खल भुवन म-
गूंज रहा आनंद का गीत,
वो गीत न जाने कब गहरा होकर
गूंजेगा मेरे Rदय म-।

जल-नभ Vयोित मधुर बयार सब


इनको eयार क>ंगा मJ कब,
ये कब अंतर म- आकर
बैठ-गे विभन >प धर।

नयन बछाते हT कब हOगे


ूाण पुलक से ूमु1दत
*जस पथ से मJ चला जाऊंगा
सबको दे कर तु+।
तुम हो स(य, यहT स(य
कब 1कस Iण म-
सहज हो उठे गा जीवन म-?
कब मुखर हो उठोगे तुम
संपूणN मेरे सवNःव पर
इसीिलए शायद उमु[त उदार अ*खल भवन म-
गूंज रहा आनंद का गीत।

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