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हहन्दी व्माकयण
हहन्दी व्माकयण__________________________________________________________________ 1
विषमानुक्रभणणका_____________________________________________________________________ 3
अध्माम 1 ___________________________________________________________________________ 5
अध्माम 2 ___________________________________________________________________________ 7
अध्माम 3 __________________________________________________________________________ 11
अध्माम 4 __________________________________________________________________________ 14
ऩद विचाय _______________________________________________________________________ 14
अध्माम 5 __________________________________________________________________________ 17
अध्माम 6 __________________________________________________________________________ 22
िचन ___________________________________________________________________________ 22
अध्माम 7 __________________________________________________________________________ 27
कायक ___________________________________________________________________________ 27
अध्माम 7 __________________________________________________________________________ 30
कायक ___________________________________________________________________________ 30
अध्माम 8 __________________________________________________________________________ 33
सिणनाभ _________________________________________________________________________ 33
अध्माम 9 __________________________________________________________________________ 35
विशेषण _________________________________________________________________________ 35
अध्माम 10 _________________________________________________________________________ 41
हहन्दी व्माकयण 2
हक्रमा ___________________________________________________________________________ 41
अध्माम 11 _________________________________________________________________________ 44
कार ____________________________________________________________________________ 44
अध्माम 12 _________________________________________________________________________ 47
िाच्म ___________________________________________________________________________ 47
अध्माम 13 _________________________________________________________________________ 49
अध्माम 14 _________________________________________________________________________ 51
अध्माम 15 _________________________________________________________________________ 52
अध्माम 16 _________________________________________________________________________ 53
अध्माम 17 _________________________________________________________________________ 54
अध्माम 18 _________________________________________________________________________ 58
प्रत्मम __________________________________________________________________________ 58
अध्माम 19 _________________________________________________________________________ 62
सॊधध ____________________________________________________________________________ 62
अध्माम 20 _________________________________________________________________________ 66
सभास __________________________________________________________________________ 66
अध्माम 21 _________________________________________________________________________ 71
ऩद ऩरयचम ______________________________________________________________________ 71
अध्माम 22 _________________________________________________________________________ 71
अध्माम 23 _________________________________________________________________________ 89
अध्माम 24 _________________________________________________________________________ 90
अध्माम 25 _________________________________________________________________________ 97
अध्माम 26 _________________________________________________________________________ 99
- धन्मिाद
विषमानुक्रभणणका
1. बाषा, व्माकयण औय फोरी
2. िणण विचाय
3. शब्द विचाय
4. ऩद विचाय
6. िचन
हहन्दी व्माकयण 4
7. कायक
8. सिणनाभ
9. विशेषण
10. हक्रमा
11. कार
12. िाच्म
18. प्रत्मम
19. सॊधध
20. सभास
21. ऩद ऩरयचम
28. कहानी-रेखेन
अध्माम 1
जफ व्मवि हकसी दयू फैठे व्मवि को ऩत्र द्वाया अथिा ऩुस्तकं एिॊ ऩत्र-ऩवत्रकाओॊ भं
रेखे द्वाया अऩने विचाय प्रकट कयता है तफ उसे बाषा का धरणखेत रूऩ कहते हं ।
व्माकयण
भनुष्म भौणखेक एिॊ धरणखेत बाषा भं अऩने विचाय प्रकट कय सकता है औय कयता यहा
है हकन्तु इससे बाषा का कोई धनणित एिॊ शुद्ध स्िरूऩ णस्थय नहीॊ हो सकता। बाषा के
शुद्ध औय स्थामी रूऩ को धनणित कयने के धरए धनमभफद्ध मोजना की आिश्मकता
होती है औय उस धनमभफद्ध मोजना को हभ व्माकयण कहते हं ।
फोरी
बाषा का ऺेत्रीम रूऩ फोरी कहराता है । अथाणत ् दे श के विधबन्न बागं भं फोरी जाने
िारी बाषा फोरी कहराती है औय हकसी बी ऺेत्रीम फोरी का धरणखेत रूऩ भं णस्थय
साहहत्म िहाॉ की बाषा कहराता है ।
धरवऩ
साहहत्म
हहन्दी व्माकयण 7
अध्माम 2
िणण विचाय
ऩरयबाषा-हहन्दी बाषा भं प्रमुि सफसे छोटी ध्िधन िणण कहराती है । जैसे-अ, आ, इ, ई, उ,
ऊ, क् , खे ् आहद।
िणणभारा
स्िय
1. ह्रस्ि स्िय
णजन स्ियं के उच्चायण भं कभ-से-कभ सभम रगता हं उन्हं ह्रस्ि स्िय कहते हं । मे
चाय हं - अ, इ, उ, ऋ। इन्हं भूर स्िय बी कहते हं ।
हहन्दी व्माकयण 8
2. दीघण स्िय
3. प्रुत स्िय
णजन स्ियं के उच्चायण भं दीघण स्ियं से बी अधधक सभम रगता है उन्हं प्रुत स्िय
कहते हं । प्राम् इनका प्रमोग दयू से फुराने भं हकमा जाता है ।
भात्राएॉ
व्मॊजन
हहन्दी व्माकयण 9
णजन िणं के ऩूणण उच्चायण के धरए स्ियं की सहामता री जाती है िे व्मॊजन कहराते
हं । अथाणत व्मॊजन वफना स्ियं की सहामता के फोरे ही नहीॊ जा सकते। मे सॊख्मा भं
33 हं । इसके धनम्नधरणखेत तीन बेद हं -
1. स्ऩशण
2. अॊत्स्थ
3. ऊष्भ
1. स्ऩशण
इन्हं ऩाॉच िगं भं यखेा गमा है औय हय िगण भं ऩाॉच-ऩाॉच व्मॊजन हं । हय िगण का नाभ
ऩहरे िगण के अनुसाय यखेा गमा है जैसे-
किगण- क् खे ् ग ् घ ् ड़्
चिगण- च ् छ् ज ् झ ् ञ ्
टिगण- ट् ठ् ड् ढ् ण ् (ड़् ढ़्)
तिगण- त ् थ ् द् ध ् न ्
ऩिगण- ऩ ् प् फ ् ब ् भ ्
2. अॊत्स्थ
मे धनम्नधरणखेत चाय हं -
म ् य् र ् ि ्
3. ऊष्भ
मे धनम्नधरणखेत चाय हं -
श ् ष ् स ् ह्
अनुस्िाय
हहन्दी व्माकयण 10
इसका प्रमोग ऩॊचभ िणण के स्थान ऩय होता है । इसका धचन्ह (ाॊ) है । जैसे-
सम्बि=सॊबि, सञ्जम=सॊजम, गड़्गा=गॊगा।
विसगण
चॊद्रवफॊद ु
हरॊत
जफ कबी व्मॊजन का प्रमोग स्िय से यहहत हकमा जाता है तफ उसके नीचे एक धतयछी
ये खेा (ा्) रगा दी जाती है । मह ये खेा हर कहराती है । हरमुि व्मॊजन हरॊत िणण
कहराता है । जैसे-विद् मा।
िणं के उच्चायण-स्थान
भुखे के णजस बाग से णजस िणण का उच्चायण होता है उसे उस िणण का उच्चायण स्थान
कहते हं ।
ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण ् ड़् ढ़् य ्
3. भूधाण औय जीब भूधन्
ण म
ष्
हहन्दी व्माकयण 11
अध्माम 3
शब्द विचाय
ऩरयबाषा- एक मा अधधक िणं से फनी हुई स्ितॊत्र साथणक ध्िधन शब्द कहराता है ।
जैसे- एक िणण से धनधभणत शब्द-न (नहीॊ) ि (औय) अनेक िणं से धनधभणत शब्द-कुत्ता,
शेय,कभर, नमन, प्रासाद, सिणव्माऩी, ऩयभात्भा।
शब्द-बेद
1. रूढ़
जो शब्द हकन्हीॊ अन्म शब्दं के मोग से न फने हं औय हकसी विशेष अथण को प्रकट
कयते हं तथा णजनके टु कड़ं का कोई अथण नहीॊ होता, िे रूढ़ कहराते हं । जैसे-कर, ऩय।
इनभं क, र, ऩ, य का टु कड़े कयने ऩय कुछ अथण नहीॊ हं । अत् मे धनयथणक हं ।
2. मौधगक
3. मोगरूढ़
इन उऩमुि
ण आठ प्रकाय के शब्दं को बी विकाय की दृवष्ट से दो बागं भं फाॉटा जा
सकता है -
1. विकायी
2. अविकायी
1. विकायी शब्द
णजन शब्दं का रूऩ-ऩरयितणन होता यहता है िे विकायी शब्द कहराते हं । जैसे-कुत्ता, कुत्ते,
कुत्तं, भं भुझे,हभं अच्छा, अच्छे खेाता है , खेाती है , खेाते हं । इनभं सॊऻा, सिणनाभ, विशेषण
औय हक्रमा विकायी शब्द हं ।
2. अविकायी शब्द
णजन शब्दं के रूऩ भं कबी कोई ऩरयितणन नहीॊ होता है िे अविकायी शब्द कहराते हं ।
जैसे-महाॉ, हकन्तु, धनत्म, औय, हे अये आहद। इनभं हक्रमा-विशेषण, सॊफॊधफोधक,
सभुच्चमफोधक औय विस्भमाहदफोधक आहद हं ।
1. साथणक शब्द
णजन शब्दं का कुछ-न-कुछ अथण हो िे शब्द साथणक शब्द कहराते हं । जैसे-योटी, ऩानी,
भभता, डॊ डा आहद।
2. धनयथणक शब्द
णजन शब्दं का कोई अथण नहीॊ होता है िे शब्द धनयथणक कहराते हं । जैसे-योटी-िोटी,
ऩानी-िानी, डॊ डा-िॊडा इनभं िोटी, िानी, िॊडा आहद धनयथणक शब्द हं ।
विशेष- धनयथणक शब्दं ऩय व्माकयण भं कोई विचाय नहीॊ हकमा जाता है ।
अध्माम 4
ऩद विचाय
साथणक िणण-सभूह शब्द कहराता है , ऩय जफ इसका प्रमोग िाक्म भं होता है तो िह
स्ितॊत्र नहीॊ यहता फणल्क व्माकयण के धनमभं भं फॉध जाता है औय प्राम् इसका रूऩ
बी फदर जाता है । जफ कोई शब्द िाक्म भं प्रमुि होता है तो उसे शब्द न कहकय ऩद
कहा जाता है ।
हहन्दी भं ऩद ऩाॉच प्रकाय के होते हं -
1. सॊऻा
2. सिणनाभ
3. विशेषण
4. हक्रमा
5. अव्मम
1. सॊऻा
हकसी व्मवि, स्थान, िस्तु आहद तथा नाभ के गुण, धभण, स्िबाि का फोध कयाने िारे
शब्द सॊऻा कहराते हं । जैसे-श्माभ, आभ, धभठास, हाथी आहद।
सॊऻा के प्रकाय- सॊऻा के तीन बेद हं -
1. व्मवििाचक सॊऻा।
2. जाधतिाचक सॊऻा।
3. बाििाचक सॊऻा।
हहन्दी व्माकयण 15
1. व्मवििाचक सॊऻा
णजस सॊऻा शब्द से हकसी विशेष, व्मवि, प्राणी, िस्तु अथिा स्थान का फोध हो उसे
व्मवििाचक सॊऻा कहते हं । जैसे-जमप्रकाश नायामण, श्रीकृ ष्ण, याभामण, ताजभहर,
कुतुफभीनाय, रारहकरा हहभारम आहद।
2. जाधतिाचक सॊऻा
णजस सॊऻा शब्द से उसकी सॊऩूणण जाधत का फोध हो उसे जाधतिाचक सॊऻा कहते हं ।
जैसे-भनुष्म, नदी, नगय, ऩिणत, ऩशु, ऩऺी, रड़का, कुत्ता, गाम, घोड़ा, बंस, फकयी, नायी, गाॉि
आहद।
3. बाििाचक सॊऻा
णजस सॊऻा शब्द से ऩदाथं की अिस्था, गुण-दोष, धभण आहद का फोध हो उसे बाििाचक
सॊऻा कहते हं । जैसे-फुढ़ाऩा, धभठास, फचऩन, भोटाऩा, चढ़ाई, थकािट आहद।
विशेष ििव्म- कुछ विद्वान अॊग्रेजी व्माकयण के प्रबाि के कायण सॊऻा शब्द के दो बेद
औय फतराते हं -
1. सभुदामिाचक सॊऻा।
2. द्रव्मिाचक सॊऻा।
1. सभुदामिाचक सॊऻा
णजन सॊऻा शब्दं से व्मविमं, िस्तुओॊ आहद के सभूह का फोध हो उन्हं सभुदामिाचक
सॊऻा कहते हं । जैसे-सबा, कऺा, सेना, बीड़, ऩुस्तकारम दर आहद।
2. द्रव्मिाचक सॊऻा
णजन सॊऻा-शब्दं से हकसी धातु, द्रव्म आहद ऩदाथं का फोध हो उन्हं द्रव्मिाचक सॊऻा
कहते हं । जैसे-घी, तेर, सोना, चाॉदी,ऩीतर, चािर, गेहूॉ, कोमरा, रोहा आहद।
1. जाधतिाचक सॊऻाओॊ से
हहन्दी व्माकयण 16
दास दासता
ऩॊहडत ऩाॊहडत्म
फॊधु फॊधत्ु ि
ऺवत्रम ऺवत्रमत्ि
ऩुरुष ऩुरुषत्ि
प्रबु प्रबुता
ऩशु ऩशुता,ऩशुत्ि
ब्राह्मण ब्राह्मणत्ि
धभत्र धभत्रता
फारक फारकऩन
फच्चा फचऩन
नायी नायीत्ि
2. सिणनाभ से
3. विशेषण से
भीठा धभठास
चतुय चातुम,ण चतुयाई
भधुय भाधुमण
सुॊदय संदमण, सुॊदयता
धनफणर धनफणरता सपेद सपेदी
हया हरयमारी
सपर सपरता
प्रिीण प्रिीणता
भैरा भैर
हहन्दी व्माकयण 17
धनऩुण धनऩुणता
खेट्टा खेटास
4. हक्रमा से
खेेरना खेेर
थकना थकािट
धरखेना रेखे, धरखेाई
हॉ सना हॉ सी
रेना-दे ना रेन-दे न
ऩढ़ना ऩढ़ाई
धभरना भेर
चढ़ना चढ़ाई
भुसकाना भुसकान
कभाना कभाई
उतयना उतयाई
उड़ना उड़ान
यहना-सहना यहन-सहन
दे खेना-बारना दे खे-बार
अध्माम 5
1. ऩुणल्रॊग
णजन सॊऻा शब्दं से ऩुरुष जाधत का फोध हो अथिा जो शब्द ऩुरुष जाधत के अॊतगणत
भाने जाते हं िे ऩुणल्रॊग हं । जैसे-कुत्ता, रड़का, ऩेड़, धसॊह, फैर, घय आहद।
2. स्त्रीधरॊग
णजन सॊऻा शब्दं से स्त्री जाधत का फोध हो अथिा जो शब्द स्त्री जाधत के अॊतगणत भाने
जाते हं िे स्त्रीधरॊग हं । जैसे-गाम, घड़ी, रड़की, कुयसी, छड़ी, नायी आहद।
ऩुणल्रॊग की ऩहचान
स्त्रीधरॊग की ऩहचान
हहन्दी व्माकयण 19
1. णजन सॊऻा शब्दं के अॊत भं खे होते है , िे स्त्रीधरॊग कहराते हं । जैसे-ईखे, बूखे, चोखे,
याखे, कोखे, राखे, दे खेये खे आहद।
2. णजन बाििाचक सॊऻाओॊ के अॊत भं ट, िट, मा हट होता है , िे स्त्रीधरॊग कहराती हं ।
जैसे-झॊझट, आहट, धचकनाहट, फनािट, सजािट आहद।
3. अनुस्िायाॊत, ईकायाॊत, ऊकायाॊत, तकायाॊत, सकायाॊत सॊऻाएॉ स्त्रीधरॊग कहराती है । जैसे-
योटी, टोऩी, नदी, धचट्ठी, उदासी, यात, फात, छत, बीत, रू, फारू, दारू, सयसं, खेड़ाऊॉ, प्मास,
िास, साॉस आहद।
4. बाषा, फोरी औय धरवऩमं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-हहन्दी, सॊस्कृ त, दे िनागयी,
ऩहाड़ी, तेरुगु ऩॊजाफी गुरुभुखेी।
5. णजन शब्दं के अॊत भं इमा आता है िे स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-कुहटमा, खेहटमा, धचहड़मा
आहद।
6. नहदमं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-गॊगा, मभुना, गोदाियी, सयस्िती आहद।
7. तायीखें औय धतधथमं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-ऩहरी, दस
ू यी, प्रधतऩदा, ऩूणणणभा
आहद।
8. ऩृथ्िी ग्रह स्त्रीधरॊग होते हं ।
9. नऺत्रं के नाभ स्त्रीधरॊग होते हं । जैसे-अणश्वनी, बयणी, योहहणी आहद।
शब्दं का धरॊग-ऩरयितणन
ई घोड़ा घोड़ी
दे ि दे िी
दादा दादी
रड़का रड़की
ब्राह्मण ब्राह्मणी
नय नायी
फकया फकयी
धचड़ा धचहड़मा
फेटा वफहटमा
हहन्दी व्माकयण 20
गुड्डा गुहड़मा
रोटा रुहटमा
इन भारी भाधरन
कहाय कहारयन
सुनाय सुनारयन
रुहाय रुहारयन
धोफी धोवफन
नी भोय भोयनी
हाथी हाधथन
धसॊह धसॊहनी
चौधयी चौधयानी
दे िय दे ियानी
सेठ सेठानी
जेठ जेठानी
ठाकुय ठाकुयाइन
आ फार फारा
सुत सुता
छात्र छात्रा
धशष्म धशष्मा
अक को इका
ऩाठक ऩाहठका
कयके
अध्माऩक अध्मावऩका
फारक फाधरका
हहन्दी व्माकयण 21
रेखेक रेणखेका
सेिक सेविका
हहतकायी हहतकारयनी
स्िाभी स्िाधभनी
ऩयोऩकायी ऩयोऩकारयनी
ऩुणल्रॊग स्त्रीधरॊग
वऩता भाता
बाई बाबी
नय भादा
याजा यानी
ससुय सास
सम्राट सम्राऻी
ऩुरुष स्त्री
फैर गाम
मुिक मुिती
स्त्रीधरॊग ऩुणल्रॊग
भक्खेी नय भक्खेी
कोमर नय कोमर
धगरहयी नय धगरहयी
हहन्दी व्माकयण 22
भैना नय भैना
धततरी नय धततरी
चीर नय चीर
कछुआ नय कछुआ
कौआ नय कौआ
अध्माम 6
िचन
ऩरयबाषा-शब्द के णजस रूऩ से उसके एक अथिा अनेक होने का फोध हो उसे िचन
कहते हं ।
हहन्दी भं िचन दो होते हं -
1. एकिचन
2. फहुिचन
एकिचन
शब्द के णजस रूऩ से एक ही िस्तु का फोध हो, उसे एकिचन कहते हं । जैसे-रड़का,
गाम, धसऩाही, फच्चा, कऩड़ा, भाता, भारा, ऩुस्तक, स्त्री, टोऩी फॊदय, भोय आहद।
फहुिचन
शब्द के णजस रूऩ से अनेकता का फोध हो उसे फहुिचन कहते हं । जैसे-रड़के, गामं,
कऩड़े , टोवऩमाॉ, भाराएॉ, भाताएॉ, ऩुस्तकं, िधुएॉ, गुरुजन, योहटमाॉ, णस्त्रमाॉ, रताएॉ, फेटे आहद।
एकिचन के स्थान ऩय फहुिचन का प्रमोग
हहन्दी व्माकयण 23
एकिचन फहुिचन
आॉखे आॉखें
फहन फहनं
ऩुस्तक ऩुस्तकं
सड़क सड़के
हहन्दी व्माकयण 24
गाम गामं
फात फातं
(2) आकायाॊत ऩुणल्रॊग शब्दं के अॊधतभ ‘आ’ को ‘ए’ कय दे ने से शब्द फहुिचन भं फदर
जाते हं । जैसे-
(3) आकायाॊत स्त्रीधरॊग शब्दं के अॊधतभ ‘आ’ के आगे ‘एॉ’ रगा दे ने से शब्द फहुिचन भं
फदर जाते हं । जैसे-
(4) इकायाॊत अथिा ईकायाॊत स्त्रीधरॊग शब्दं के अॊत भं ‘माॉ’ रगा दे ने से औय दीघण ई को
ह्रस्ि इ कय दे ने से शब्द फहुिचन भं फदर जाते हं । जैसे-
(7) दर, िृॊद, िगण, जन रोग, गण आहद शब्द जोड़कय बी शब्दं का फहुिचन फना दे ते हं ।
जैसे-
(8) कुछ शब्दं के रूऩ ‘एकिचन’ औय ‘फहुिचन’ दोनो भं सभान होते हं । जैसे-
जर जर प्रेभ प्रेभ
विशेष- (1) जफ सॊऻाओॊ के साथ ने, को, से आहद ऩयसगण रगे होते हं तो सॊऻाओॊ का
फहुिचन फनाने के धरए उनभं ‘ओ’ रगामा जाता है । जैसे-
हहन्दी व्माकयण 27
फच्चे ने गाना
रड़के को फुराओ रड़को को फुराओ फच्चं ने गाना गामा
गामा
नदी का जर ठॊ डा नहदमं का जर
आदभी से ऩूछ रो आदधभमं से ऩूछ रो
है ठॊ डा है
अध्माम 7
कायक
ऩरयबाषा-सॊऻा मा सिणनाभ के णजस रूऩ से उसका सीधा सॊफॊध हक्रमा के साथ ऻात हो
िह कायक कहराता है । जैसे-गीता ने दध
ू ऩीमा। इस िाक्म भं ‘गीता’ ऩीना हक्रमा का
कताण है औय दध
ू उसका कभण। अत् ‘गीता’ कताण कायक है औय ‘दध
ू ’ कभण कायक।
कायक विबवि- सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के फाद ‘ने, को, से, के धरए’, आहद जो धचह्न
रगते हं िे धचह्न कायक विबवि कहराते हं ।
हहन्दी भं आठ कायक होते हं । उन्हं विबवि धचह्नं सहहत नीचे दे खेा जा सकता है -
कायक विबवि धचह्न (ऩयसगण)
1. कताण ने
2. कभण को
3. कयण से, के साथ, के द्वाया
4. सॊप्रदान के धरए, को
5. अऩादान से (ऩृथक)
6. सॊफॊध का, के, की
7. अधधकयण भं, ऩय
8. सॊफोधन हे ! हये !
कायक धचह्न स्भयण कयने के धरए इस ऩद की यचना की गई हं -
कताण ने अरु कभण को, कयण यीधत से जान।
हहन्दी व्माकयण 28
1. कताण कायक
णजस रूऩ से हक्रमा (कामण) के कयने िारे का फोध होता है िह ‘कताण’ कायक कहराता
है । इसका विबवि-धचह्न ‘ने’ है । इस ‘ने’ धचह्न का ितणभानकार औय बविष्मकार भं
प्रमोग नहीॊ होता है । इसका सकभणक धातुओॊ के साथ बूतकार भं प्रमोग होता है । जैसे-
1.याभ ने यािण को भाया। 2.रड़की स्कूर जाती है ।
ऩहरे िाक्म भं हक्रमा का कताण याभ है । इसभं ‘ने’ कताण कायक का विबवि-धचह्न है ।
इस िाक्म भं ‘भाया’ बूतकार की हक्रमा है । ‘ने’ का प्रमोग प्राम् बूतकार भं होता है ।
दस
ू ये िाक्म भं ितणभानकार की हक्रमा का कताण रड़की है । इसभं ‘ने’ विबवि का प्रमोग
नहीॊ हुआ है ।
विशेष- (1) बूतकार भं अकभणक हक्रमा के कताण के साथ बी ने ऩयसगण (विबवि धचह्न)
नहीॊ रगता है । जैसे-िह हॉ सा।
(2) ितणभानकार ि बविष्मतकार की सकभणक हक्रमा के कताण के साथ ने ऩयसगण का
प्रमोग नहीॊ होता है । जैसे-िह पर खेाता है । िह पर खेाएगा।
(3) कबी-कबी कताण के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रमोग बी हकमा जाता है । जैसे-
(अ) फारक को सो जाना चाहहए। (आ) सीता से ऩुस्तक ऩढ़ी गई।
(इ) योगी से चरा बी नहीॊ जाता। (ई) उससे शब्द धरखेा नहीॊ गमा।
2. कभण कायक
3. कयण कायक
सॊऻा आहद शब्दं के णजस रूऩ से हक्रमा के कयने के साधन का फोध हो अथाणत ् णजसकी
सहामता से कामण सॊऩन्न हो िह कयण कायक कहराता है । इसके विबवि-धचह्न ‘से’ के
‘द्वाया’ है । जैसे- 1.अजुन
ण ने जमद्रथ को फाण से भाया। 2.फारक गंद से खेेर यहे है ।
ऩहरे िाक्म भं कताण अजुन
ण ने भायने का कामण ‘फाण’ से हकमा। अत् ‘फाण से’ कयण
कायक है । दस
ू ये िाक्म भं कताण फारक खेेरने का कामण ‘गंद से’ कय यहे हं । अत् ‘गंद
से’ कयण कायक है ।
4. सॊप्रदान कायक
सॊप्रदान का अथण है -दे ना। अथाणत कताण णजसके धरए कुछ कामण कयता है , अथिा णजसे
कुछ दे ता है उसे व्मि कयने िारे रूऩ को सॊप्रदान कायक कहते हं । इसके विबवि धचह्न
‘के धरए’ को हं ।
1.स्िास्थ्म के धरए सूमण को नभस्काय कयो। 2.गुरुजी को पर दो।
इन दो िाक्मं भं ‘स्िास्थ्म के धरए’ औय ‘गुरुजी को’ सॊप्रदान कायक हं ।
5. अऩादान कायक
6. सॊफॊध कायक
7. अधधकयण कायक
हहन्दी व्माकयण 30
शब्द के णजस रूऩ से हक्रमा के आधाय का फोध होता है उसे अधधकयण कायक कहते हं ।
इसके विबवि-धचह्न ‘भं’, ‘ऩय’ हं । जैसे- 1.बॉिया पूरं ऩय भॉडया यहा है । 2.कभये भं
टी.िी. यखेा है ।
इन दोनं िाक्मं भं ‘पूरं ऩय’ औय ‘कभये भं’ अधधकयण कायक है ।
8. सॊफोधन कायक
णजससे हकसी को फुराने अथिा सचेत कयने का बाि प्रकट हो उसे सॊफोधन कायक
कहते है औय सॊफोधन धचह्न (!) रगामा जाता है । जैसे- 1.अये बैमा ! क्मं यो यहे हो ?
2.हे गोऩार ! महाॉ आओ।
इन िाक्मं भं ‘अये बैमा’ औय ‘हे गोऩार’ ! सॊफोधन कायक है ।
अध्माम 7
कायक
ऩरयबाषा-सॊऻा मा सिणनाभ के णजस रूऩ से उसका सीधा सॊफॊध हक्रमा के साथ ऻात हो
िह कायक कहराता है । जैसे-गीता ने दध
ू ऩीमा। इस िाक्म भं ‘गीता’ ऩीना हक्रमा का
कताण है औय दध
ू उसका कभण। अत् ‘गीता’ कताण कायक है औय ‘दध
ू ’ कभण कायक।
कायक विबवि- सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के फाद ‘ने, को, से, के धरए’, आहद जो धचह्न
रगते हं िे धचह्न कायक विबवि कहराते हं ।
हहन्दी भं आठ कायक होते हं । उन्हं विबवि धचह्नं सहहत नीचे दे खेा जा सकता है -
कायक विबवि धचह्न (ऩयसगण)
1. कताण ने
2. कभण को
3. कयण से, के साथ, के द्वाया
4. सॊप्रदान के धरए, को
5. अऩादान से (ऩृथक)
6. सॊफॊध का, के, की
7. अधधकयण भं, ऩय
8. सॊफोधन हे ! हये !
कायक धचह्न स्भयण कयने के धरए इस ऩद की यचना की गई हं -
हहन्दी व्माकयण 31
1. कताण कायक
णजस रूऩ से हक्रमा (कामण) के कयने िारे का फोध होता है िह ‘कताण’ कायक कहराता
है । इसका विबवि-धचह्न ‘ने’ है । इस ‘ने’ धचह्न का ितणभानकार औय बविष्मकार भं
प्रमोग नहीॊ होता है । इसका सकभणक धातुओॊ के साथ बूतकार भं प्रमोग होता है । जैसे-
1.याभ ने यािण को भाया। 2.रड़की स्कूर जाती है ।
ऩहरे िाक्म भं हक्रमा का कताण याभ है । इसभं ‘ने’ कताण कायक का विबवि-धचह्न है ।
इस िाक्म भं ‘भाया’ बूतकार की हक्रमा है । ‘ने’ का प्रमोग प्राम् बूतकार भं होता है ।
दस
ू ये िाक्म भं ितणभानकार की हक्रमा का कताण रड़की है । इसभं ‘ने’ विबवि का प्रमोग
नहीॊ हुआ है ।
विशेष- (1) बूतकार भं अकभणक हक्रमा के कताण के साथ बी ने ऩयसगण (विबवि धचह्न)
नहीॊ रगता है । जैसे-िह हॉ सा।
(2) ितणभानकार ि बविष्मतकार की सकभणक हक्रमा के कताण के साथ ने ऩयसगण का
प्रमोग नहीॊ होता है । जैसे-िह पर खेाता है । िह पर खेाएगा।
(3) कबी-कबी कताण के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रमोग बी हकमा जाता है । जैसे-
(अ) फारक को सो जाना चाहहए। (आ) सीता से ऩुस्तक ऩढ़ी गई।
(इ) योगी से चरा बी नहीॊ जाता। (ई) उससे शब्द धरखेा नहीॊ गमा।
2. कभण कायक
3. कयण कायक
सॊऻा आहद शब्दं के णजस रूऩ से हक्रमा के कयने के साधन का फोध हो अथाणत ् णजसकी
सहामता से कामण सॊऩन्न हो िह कयण कायक कहराता है । इसके विबवि-धचह्न ‘से’ के
‘द्वाया’ है । जैसे- 1.अजुन
ण ने जमद्रथ को फाण से भाया। 2.फारक गंद से खेेर यहे है ।
ऩहरे िाक्म भं कताण अजुन
ण ने भायने का कामण ‘फाण’ से हकमा। अत् ‘फाण से’ कयण
कायक है । दस
ू ये िाक्म भं कताण फारक खेेरने का कामण ‘गंद से’ कय यहे हं । अत् ‘गंद
से’ कयण कायक है ।
4. सॊप्रदान कायक
सॊप्रदान का अथण है -दे ना। अथाणत कताण णजसके धरए कुछ कामण कयता है , अथिा णजसे
कुछ दे ता है उसे व्मि कयने िारे रूऩ को सॊप्रदान कायक कहते हं । इसके विबवि धचह्न
‘के धरए’ को हं ।
1.स्िास्थ्म के धरए सूमण को नभस्काय कयो। 2.गुरुजी को पर दो।
इन दो िाक्मं भं ‘स्िास्थ्म के धरए’ औय ‘गुरुजी को’ सॊप्रदान कायक हं ।
5. अऩादान कायक
6. सॊफॊध कायक
7. अधधकयण कायक
हहन्दी व्माकयण 33
शब्द के णजस रूऩ से हक्रमा के आधाय का फोध होता है उसे अधधकयण कायक कहते हं ।
इसके विबवि-धचह्न ‘भं’, ‘ऩय’ हं । जैसे- 1.बॉिया पूरं ऩय भॉडया यहा है । 2.कभये भं
टी.िी. यखेा है ।
इन दोनं िाक्मं भं ‘पूरं ऩय’ औय ‘कभये भं’ अधधकयण कायक है ।
8. सॊफोधन कायक
णजससे हकसी को फुराने अथिा सचेत कयने का बाि प्रकट हो उसे सॊफोधन कायक
कहते है औय सॊफोधन धचह्न (!) रगामा जाता है । जैसे- 1.अये बैमा ! क्मं यो यहे हो ?
2.हे गोऩार ! महाॉ आओ।
इन िाक्मं भं ‘अये बैमा’ औय ‘हे गोऩार’ ! सॊफोधन कायक है ।
अध्माम 8
सिणनाभ
सिणनाभ-सॊऻा के स्थान ऩय प्रमुि होने िारे शब्द को सिणनाभ कहते है । सॊऻा की
ऩुनरुवि को दयू कयने के धरए ही सिणनाभ का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-भं, हभ, तू,
तुभ, िह, मह, आऩ, कौन, कोई, जो आहद।
सिणनाभ के बेद- सिणनाभ के छह बेद हं -
1. ऩुरुषिाचक सिणनाभ।
2. धनिमिाचक सिणनाभ।
3. अधनिमिाचक सिणनाभ।
4. सॊफॊधिाचक सिणनाभ।
5. प्रश्निाचक सिणनाभ।
6. धनजिाचक सिणनाभ।
1. ऩुरुषिाचक सिणनाभ
णजस सिणनाभ का प्रमोग ििा मा रेखेक स्िमॊ अऩने धरए अथिा श्रोता मा ऩाठक के
धरए अथिा हकसी अन्म के धरए कयता है िह ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहराता है ।
ऩुरुषिाचक सिणनाभ तीन प्रकाय के होते हं -
(1) उत्तभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ- णजस सिणनाभ का प्रमोग फोरने िारा अऩने धरए कये ,
उसे उत्तभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहते हं । जैसे-भं, हभ, भुझे, हभाया आहद।
हहन्दी व्माकयण 34
(2) भध्मभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ- णजस सिणनाभ का प्रमोग फोरने िारा सुनने िारे के
धरए कये , उसे भध्मभ ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहते हं । जैसे-तू, तुभ,तुझे, तुम्हाया आहद।
(3) अन्म ऩुरुषिाचक सिणनाभ- णजस सिणनाभ का प्रमोग फोरने िारा सुनने िारे के
अधतरयि हकसी अन्म ऩुरुष के धरए कये उसे अन्म ऩुरुषिाचक सिणनाभ कहते हं । जैसे-
िह, िे, उसने, मह, मे, इसने, आहद।
2. धनिमिाचक सिणनाभ
3. अधनिमिाचक सिणनाभ
णजस सिणनाभ शब्द के द्वाया हकसी धनणित व्मवि अथिा िस्तु का फोध न हो िे
अधनिमिाचक सिणनाभ कहराते हं । इनभं ‘कोई’ औय ‘कुछ’ सिणनाभ शब्दं से हकसी
विशेष व्मवि अथिा िस्तु का धनिम नहीॊ हो यहा है । अत् ऐसे शब्द अधनिमिाचक
सिणनाभ कहराते हं ।
4. सॊफॊधिाचक सिणनाभ
ऩयस्ऩय एक-दस
ू यी फात का सॊफॊध फतराने के धरए णजन सिणनाभं का प्रमोग होता है
उन्हं सॊफॊधिाचक सिणनाभ कहते हं । इनभं ‘जो’, ‘िह’, ‘णजसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘िैसा’-
मे दो-दो शब्द ऩयस्ऩय सॊफॊध का फोध कया यहे हं । ऐसे शब्द सॊफॊधिाचक सिणनाभ
कहराते हं ।
5. प्रश्निाचक सिणनाभ
6. धनजिाचक सिणनाभ
हहन्दी व्माकयण 35
जहाॉ अऩने धरए ‘आऩ’ शब्द ‘अऩना’ शब्द अथिा ‘अऩने’ ‘आऩ’ शब्द का प्रमोग हो िहाॉ
धनजिाचक सिणनाभ होता है । इनभं ‘अऩना’ औय ‘आऩ’ शब्द उत्तभ, ऩुरुष भध्मभ ऩुरुष
औय अन्म ऩुरुष के (स्िमॊ का) अऩने आऩ का फोध कया यहे हं । ऐसे शब्द धनजिाचक
सिणनाभ कहराते हं ।
विशेष-जहाॉ केिर ‘आऩ’ शब्द का प्रमोग श्रोता के धरए हो िहाॉ मह आदय-सूचक
भध्मभ ऩुरुष होता है औय जहाॉ ‘आऩ’ शब्द का प्रमोग अऩने धरए हो िहाॉ धनजिाचक
होता है ।
सिणनाभ शब्दं के विशेष प्रमोग
(1) आऩ, िे, मे, हभ, तुभ शब्द फहुिचन के रूऩ भं हं , हकन्तु आदय प्रकट कयने के धरए
इनका प्रमोग एक व्मवि के धरए बी होता है ।
(2) ‘आऩ’ शब्द स्िमॊ के अथण भं बी प्रमुि हो जाता है । जैसे-भं मह कामण आऩ ही कय
रूॉगा।
अध्माम 9
विशेषण
विशेषण की ऩरयबाषा- सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं की विशेषता (गुण, दोष, सॊख्मा,
ऩरयभाण आहद) फताने िारे शब्द ‘विशेषण’ कहराते हं । जैसे-फड़ा, कारा, रॊफा, दमारु,
बायी, सुन्दय, कामय, टे ढ़ा-भेढ़ा, एक, दो आहद।
विशेष्म- णजस सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्द की विशेषता फताई जाए िह विशेष्म
कहराता है । मथा- गीता सुन्दय है । इसभं ‘सुन्दय’ विशेषण है औय ‘गीता’ विशेष्म है ।
विशेषण शब्द विशेष्म से ऩूिण बी आते हं औय उसके फाद बी।
ऩूिण भं, जैसे- (1) थोड़ा-सा जर राओ। (2) एक भीटय कऩड़ा रे आना।
फाद भं, जैसे- (1) मह यास्ता रॊफा है । (2) खेीया कड़िा है ।
विशेषण के बेद- विशेषण के चाय बेद हं -
1. गुणिाचक।
2. ऩरयभाणिाचक।
3. सॊख्मािाचक।
4. सॊकेतिाचक अथिा सािणनाधभक।
1. गुणिाचक विशेषण
हहन्दी व्माकयण 36
2. ऩरयभाणिाचक विशेषण
3. सॊख्मािाचक विशेषण
विशेषण की अिस्थाएॉ
विशेषण शब्द हकसी सॊऻा मा सिणनाभ की विशेषता फतराते हं । विशेषता फताई जाने
िारी िस्तुओॊ के गुण-दोष कभ-ज्मादा होते हं । गुण-दोषं के इस कभ-ज्मादा होने को
तुरनात्भक ढॊ ग से ही जाना जा सकता है । तुरना की दृवष्ट से विशेषणं की
धनम्नधरणखेत तीन अिस्थाएॉ होती हं -
(1) भूरािस्था
(2) उत्तयािस्था
(3) उत्तभािस्था
(1) भूरािस्था
(2) उत्तयािस्था
(3) उत्तभािस्था
अिस्थाओॊ के रूऩ-
(1) अधधक औय सफसे अधधक शब्दं का प्रमोग कयके उत्तयािस्था औय उत्तभािस्था के
रूऩ फनाए जा सकते हं । जैसे-
भूरािस्था उत्तयािस्था उत्तभािस्था
अच्छी अधधक अच्छी सफसे अच्छी
चतुय अधधक चतुय सफसे अधधक चतुय
फुवद्धभान अधधक फुवद्धभान सफसे अधधक फुवद्धभान
फरिान अधधक फरिान सफसे अधधक फरिान
इसी प्रकाय दस
ू ये विशेषण शब्दं के रूऩ बी फनाए जा सकते हं ।
(2) तत्सभ शब्दं भं भूरािस्था भं विशेषण का भूर रूऩ, उत्तयािस्था भं ‘तय’ औय
उत्तभािस्था भं ‘तभ’ का प्रमोग होता है । जैसे-
विशेषणं की यचना
कुछ शब्द भूररूऩ भं ही विशेषण होते हं , हकन्तु कुछ विशेषण शब्दं की यचना सॊऻा,
सिणनाभ एिॊ हक्रमा शब्दं से की जाती है -
(1) सॊऻा से विशेषण फनाना
हहन्दी व्माकयण 40
भती
श्री श्रीभती फुवद्ध फुवद्धभती
(स्त्री)
िह िैसा मह ऐसा
अध्माम 10
हक्रमा
हक्रमा- णजस शब्द अथिा शब्द-सभूह के द्वाया हकसी कामण के होने अथिा कयने का फोध
हो उसे हक्रमा कहते हं । जैसे-
(1) गीता नाच यही है ।
(2) फच्चा दध
ू ऩी यहा है ।
(3) याकेश कॉरेज जा यहा है ।
(4) गौयि फुवद्धभान है ।
(5) धशिाजी फहुत िीय थे।
इनभं ‘नाच यही है ’, ‘ऩी यहा है ’, ‘जा यहा है ’ शब्द कामण-व्माऩाय का फोध कया यहे हं ।
जफहक ‘है ’, ‘थे’ शब्द होने का। इन सबी से हकसी कामण के कयने अथिा होने का फोध
हो यहा है । अत् मे हक्रमाएॉ हं ।
धातु
हक्रमा का भूर रूऩ धातु कहराता है । जैसे-धरखे, ऩढ़, जा, खेा, गा, यो, ऩा आहद। इन्हीॊ
धातुओॊ से धरखेता, ऩढ़ता, आहद हक्रमाएॉ फनती हं ।
हक्रमा के बेद- हक्रमा के दो बेद हं -
हहन्दी व्माकयण 42
1. अकभणक हक्रमा
2. सकभणक हक्रमा
अऩूणण हक्रमा
कई फाय िाक्म भं हक्रमा के होते हुए बी उसका अथण स्ऩष्ट नहीॊ हो ऩाता। ऐसी हक्रमाएॉ
अऩूणण हक्रमा कहराती हं । जैसे-गाॉधीजी थे। तुभ हो। मे हक्रमाएॉ अऩूणण हक्रमाएॉ है । अफ
इन्हीॊ िाक्मं को हपय से ऩहढ़ए-
गाॊधीजी याष्डवऩता थे। तुभ फुवद्धभान हो।
इन िाक्मं भं क्रभश् ‘याष्डवऩता’ औय ‘फुवद्धभान’ शब्दं के प्रमोग से स्ऩष्टता आ गई। मे
सबी शब्द ‘ऩूयक’ हं ।
अऩूणण हक्रमा के अथण को ऩूया कयने के धरए णजन शब्दं का प्रमोग हकमा जाता है उन्हं
ऩूयक कहते हं ।
हहन्दी व्माकयण 44
अध्माम 11
कार
कार
हक्रमा के णजस रूऩ से कामण सॊऩन्न होने का सभम (कार) ऻात हो िह कार कहराता
है । कार के धनम्नधरणखेत तीन बेद हं -
1. बूतकार।
2. ितणभानकार।
3. बविष्मकार।
1. बूतकार
हक्रमा के णजस रूऩ से फीते हुए सभम (अतीत) भं कामण सॊऩन्न होने का फोध हो िह
बूतकार कहराता है । जैसे-
(1) फच्चा गमा।
(2) फच्चा गमा है ।
(3) फच्चा जा चुका था।
मे सफ बूतकार की हक्रमाएॉ हं , क्मंहक ‘गमा’, ‘गमा है ’, ‘जा चुका था’, हक्रमाएॉ बूतकार
का फोध कयाती है ।
बूतकार के धनम्नधरणखेत छह बेद हं -
1. साभान्म बूत।
2. आसन्न बूत।
3. अऩूणण बूत।
4. ऩूणण बूत।
5. सॊहदग्ध बूत।
6. हे तुहेतुभद बूत।
1.साभान्म बूत- हक्रमा के णजस रूऩ से फीते हुए सभम भं कामण के होने का फोध हो
हकन्तु ठीक सभम का ऻान न हो, िहाॉ साभान्म बूत होता है । जैसे-
(1) फच्चा गमा।
(2) श्माभ ने ऩत्र धरखेा।
हहन्दी व्माकयण 45
2. ितणभान कार
हक्रमा के णजस रूऩ से कामण का ितणभान कार भं होना ऩामा जाए उसे ितणभान कार
कहते हं । जैसे-
(1) भुधन भारा पेयता है ।
(2) श्माभ ऩत्र धरखेता होगा।
इन सफ भं ितणभान कार की हक्रमाएॉ हं , क्मंहक ‘पेयता है ’, ‘धरखेता होगा’, हक्रमाएॉ
हहन्दी व्माकयण 46
3. बविष्मत कार
अध्माम 12
िाच्म
िाच्म-हक्रमा के णजस रूऩ से मह ऻात हो हक िाक्म भं हक्रमा द्वाया सॊऩाहदत विधान का
विषम कताण है , कभण है , अथिा बाि है , उसे िाच्म कहते हं ।
िाच्म के तीन प्रकाय हं -
1. कतृि
ण ाच्म।
2. कभणिाच्म।
3. बाििाच्म।
1.कतृि
ण ाच्म- हक्रमा के णजस रूऩ से िाक्म के उद्दे श्म (हक्रमा के कताण) का फोध हो, िह
कतृि
ण ाच्म कहराता है । इसभं धरॊग एिॊ िचन प्राम् कताण के अनुसाय होते हं । जैसे-
1.फच्चा खेेरता है ।
2.घोड़ा बागता है ।
इन िाक्मं भं ‘फच्चा’, ‘घोड़ा’ कताण हं तथा िाक्मं भं कताण की ही प्रधानता है । अत्
‘खेेरता है ’, ‘बागता है ’ मे कतृि
ण ाच्म हं ।
2.कभणिाच्म- हक्रमा के णजस रूऩ से िाक्म का उद्दे श्म ‘कभण’ प्रधान हो उसे कभणिाच्म
कहते हं । जैसे-
1.बायत-ऩाक मुद्ध भं सहस्रों सैधनक भाये गए।
2.छात्रं द्वाया नाटक प्रस्तुत हकमा जा यहा है ।
3.ऩुस्तक भेये द्वाया ऩढ़ी गई।
4.फच्चं के द्वाया धनफॊध ऩढ़े गए।
इन िाक्मं भं हक्रमाओॊ भं ‘कभण’ की प्रधानता दशाणई गई है । उनकी रूऩ-यचना बी कभण
के धरॊग, िचन औय ऩुरुष के अनुसाय हुई है । हक्रमा के ऐसे रूऩ ‘कभणिाच्म’ कहराते हं ।
3.बाििाच्म-हक्रमा के णजस रूऩ से िाक्म का उद्दे श्म केिर बाि (हक्रमा का अथण) ही
जाना जाए िहाॉ बाििाच्म होता है । इसभं कताण मा कभण की प्रधानता नहीॊ होती है ।
हहन्दी व्माकयण 48
प्रमोग
िाच्म ऩरयितणन
1.कतृि
ण ाच्म से कभणिाच्म फनाना-
(1) कतृि
ण ाच्म की हक्रमा को साभान्म बूतकार भं फदरना चाहहए।
(2) उस ऩरयिधतणत हक्रमा-रूऩ के साथ कार, ऩुरुष, िचन औय धरॊग के अनुरूऩ जाना
हक्रमा का रूऩ जोड़ना चाहहए।
(3) इनभं ‘से’ अथिा ‘के द्वाया’ का प्रमोग कयना चाहहए। जैसे-
कतृि
ण ाच्म कभणिाच्म
1.श्माभा उऩन्मास धरखेती है । श्माभा से उऩन्मास धरखेा जाता है ।
2.श्माभा ने उऩन्मास धरखेा। श्माभा से उऩन्मास धरखेा गमा।
3.श्माभा उऩन्मास धरखेेगी। श्माभा से (के द्वाया) उऩन्मास धरखेा जाएगा।
2.कतृि
ण ाच्म से बाििाच्म फनाना-
(1) इसके धरए हक्रमा अन्म ऩुरुष औय एकिचन भं यखेनी चाहहए।
(2) कताण भं कयण कायक की विबवि रगानी चाहहए।
(3) हक्रमा को साभान्म बूतकार भं राकय उसके कार के अनुरूऩ जाना हक्रमा का रूऩ
जोड़ना चाहहए।
(4) आिश्मकतानुसाय धनषेधसूचक ‘नहीॊ’ का प्रमोग कयना चाहहए। जैसे-
कतृि
ण ाच्म बाििाच्म
1.फच्चे नहीॊ दौड़ते। फच्चं से दौड़ा नहीॊ जाता।
2.ऩऺी नहीॊ उड़ते। ऩणऺमं से उड़ा नहीॊ जाता।
3.फच्चा नहीॊ सोमा। फच्चे से सोमा नहीॊ जाता।
अध्माम 13
हक्रमा विशेषण
हक्रमा-विशेषण- जो शब्द हक्रमा की विशेषता प्रकट कयते हं िे हक्रमा-विशेषण कहराते
हं । जैसे- 1.सोहन सुॊदय धरखेता है । 2.गौयि महाॉ यहता है । 3.सॊगीता प्रधतहदन ऩढ़ती है ।
इन िाक्मं भं ‘सुन्दय’, ‘महाॉ’ औय ‘प्रधतहदन’ शब्द हक्रमा की विशेषता फतरा यहे हं ।
हहन्दी व्माकयण 50
अध्माम 14
सॊफॊधफोधक अव्मम
सॊफॊधफोधक अव्मम- णजन अव्मम शब्दं से सॊऻा अथिा सिणनाभ का िाक्म के दस
ू ये
शब्दं के साथ सॊफॊध जाना जाता है , िे सॊफॊधफोधक अव्मम कहराते हं । जैसे- 1. उसका
साथ छोड़ दीणजए। 2.भेये साभने से हट जा। 3.रारहकरे ऩय धतयॊ गा रहया यहा है ।
4.िीय अधबभन्मु अॊत तक शत्रु से रोहा रेता यहा। इनभं ‘साथ’, ‘साभने’, ‘ऩय’, ‘तक’
शब्द सॊऻा अथिा सिणनाभ शब्दं के साथ आकय उनका सॊफॊध िाक्म के दस
ू ये शब्दं के
साथ फता यहे हं । अत् िे सॊफॊधफोधक अव्मम है ।
अथण के अनुसाय सॊफॊधफोधक अव्मम के धनम्नधरणखेत बेद हं -
1. कारिाचक- ऩहरे, फाद, आगे, ऩीछे ।
2. स्थानिाचक- फाहय, बीतय, फीच, ऊऩय, नीचे।
3. हदशािाचक- धनकट, सभीऩ, ओय, साभने।
4. साधनिाचक- धनधभत्त, द्वाया, जरयमे।
5. वियोधसूचक- उरटे , विरुद्ध, प्रधतकूर।
6. सभतासूचक- अनुसाय, सदृश, सभान, तुल्म, तयह।
7. हे तुिाचक- यहहत, अथिा, धसिा, अधतरयि।
8. सहचयसूचक- सभेत, सॊग, साथ।
9. विषमिाचक- विषम, फाफत, रेखे।
10. सॊग्रिाचक- सभेत, बय, तक।
अध्माम 15
सभुच्चमफोधक अव्मम
सभुच्चमफोधक अव्मम- दो शब्दं, िाक्माॊशं मा िाक्मं को धभराने िारे अव्मम
सभुच्चमफोधक अव्मम कहराते हं । इन्हं ‘मोजक’ बी कहते हं । जैसे-
(1) श्रुधत औय गुॊजन ऩढ़ यहे हं ।
(2) भुझे टे ऩरयकाडण य मा घड़ी चाहहए।
(3) सीता ने फहुत भेहनत की हकन्तु हपय बी सपर न हो सकी।
(4) फेशक िह धनिान है ऩयन्तु है कॊजूस।
इनभं ‘औय’, ‘मा’, ‘हकन्तु’, ‘ऩयन्तु’ शब्द आए हं जोहक दो शब्दं अथिा दो िाक्मं को
धभरा यहे हं । अत् मे सभुच्चमफोधक अव्मम हं ।
सभुच्चमफोधक के दो बेद हं -
1. सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक।
2. व्मधधकयण सभुच्चमफोधक।
1. सभानाधधकयण सभुच्चमफोधक
2. व्मधधकयण सभुच्चमफोधक
हकसी िाक्म के प्रधान औय आधश्रत उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़ने िारे शब्द व्मधधकयण
सभुच्चमफोधक कहराते हं ।
व्मधधकयण सभुच्चमफोधक के बेद- व्मधधकयण सभुच्चमफोधक चाय प्रकाय के होते हं -
(क) कायणसूचक। (खे) सॊकेतसूचक। (ग) उद्दे श्मसूचक। (घ) स्िरूऩसूचक।
(क) कायणसूचक- दो उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़कय होने िारे कामण का कायण स्ऩष्ट
कयने िारे शब्दं को कायणसूचक कहते हं । जैसे- हक, क्मंहक, इसधरए, चूहॉ क, ताहक
आहद।
(खे) सॊकेतसूचक- जो दो मोजक शब्द दो उऩिाक्मं को जोड़ने का कामण कयते हं , उन्हं
सॊकेतसूचक कहते हं । जैसे- महद....तो, जा...तो, मद्यवऩ....तथावऩ, मद्यवऩ...ऩयन्तु आहद।
(ग) उदे श्मसूचक- दो उऩिाक्मं को ऩयस्ऩय जोड़कय उनका उद्दे श्म स्ऩष्ट कयने िारे
शब्द उद्दे श्मसूचक कहराते हं । जैसे- इसधरए हक, ताहक, णजससे हक आहद।
(घ) स्िरूऩसूचक- भुख्म उऩिाक्म का अथण स्ऩष्ट कयने िारे शब्द स्िरूऩसूचक कहराते
हं । जैसे-मानी, भानो, हक, अथाणत ् आहद।
अध्माम 16
विस्भमाहदफोधक अव्मम
विस्भमाहदफोधक अव्मम- णजन शब्दं भं हषण, शोक, विस्भम, ग्राधन, घृणा, रज्जा आहद
बाि प्रकट होते हं िे विस्भमाहदफोधक अव्मम कहराते हं । इन्हं ‘द्योतक’ बी कहते हं ।
जैसे-
1.अहा ! क्मा भौसभ है ।
2.उप ! हकतनी गयभी ऩड़ यही है ।
3. अये ! आऩ आ गए ?
हहन्दी व्माकयण 54
अध्माम 17
शब्द यचना
शब्द-यचना-हभ स्िबाित् बाषा-व्मिहाय भं कभ-से-कभ शब्दं का प्रमोग कयके
अधधक-से-अधधक काभ चराना चाहते हं । अत् शब्दं के आयॊ ब अथिा अॊत भं कुछ
जोड़कय अथिा उनकी भात्राओॊ मा स्िय भं कुछ ऩरयितणन कयके निीन-से-निीन अथण-
फोध कयाना चाहते हं । कबी-कबी दो अथिा अधधक शब्दाॊशं को जोड़कय नए अथण- फोध
को स्िीकायते हं । इस तयह एक शब्द से कई अथं की अधबव्मवि हे तु जो नए-नए
शब्द फनाए जाते हं उसे शब्द-यचना कहते हं ।
शब्द यचना के चाय प्रकाय हं -
1. उऩसगण रगाकय
2. प्रत्मम रगाकय
3. सॊधध द्वाया
4. सभास द्वाया
उऩसगण
हहन्दी व्माकयण 55
दस
ु ् फुया दि
ु रयत्र, दस्
ु साहस, दग
ु भ
ण
अध्माम 18
प्रत्मम
प्रत्मम- जो शब्दाॊश शब्दं के अॊत भं रगकय उनके अथण को फदर दे ते हं िे प्रत्मम
कहराते हं । जैसे-जरज, ऩॊकज आहद। जर=ऩानी तथा ज=जन्भ रेने िारा। ऩानी भं
जन्भ रेने िारा अथाणत ् कभर। इसी प्रकाय ऩॊक शब्द भं ज प्रत्मम रगकय ऩॊकज
अथाणत कभर कय दे ता है । प्रत्मम दो प्रकाय के होते हं -
1. कृ त प्रत्मम।
2. तवद्धत प्रत्मम।
1. कृ त प्रत्मम
(घ) बाििाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से बाि अथाणत ् हक्रमा के व्माऩाय का
फोध हो िह बाििाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-सजा भं आिट प्रत्मम रगाने से
सजािट फना।
आहट घफयाहट,धचल्राहट
(ड़) हक्रमािाचक कृ दॊ त- णजस प्रत्मम से फने शब्द से हक्रमा के होने का बाि प्रकट हो
िह हक्रमािाचक कृ दॊ त कहराता है । जैसे-बागता हुआ, धरखेता हुआ आहद। इसभं भूर
धातु के साथ ता रगाकय फाद भं हुआ रगा दे ने से ितणभानकाधरक हक्रमािाचक कृ दॊ त
फन जाता है । हक्रमािाचक कृ दॊ त केिर ऩुणल्रॊग औय एकिचन भं प्रमुि होता है ।
2. तवद्धत प्रत्मम
जो प्रत्मम सॊऻा, सिणनाभ अथिा विशेषण के अॊत भं रगकय नए शब्द फनाते हं तवद्धत
प्रत्मम कहराते हं । इनके मोग से फने शब्दं को ‘तवद्धताॊत’ अथिा तवद्धत शब्द कहते
हं । जैसे-अऩना+ऩन=अऩनाऩन, दानि+ता=दानिता आहद।
(क) कतृि
ण ाचक तवद्धत- णजससे हकसी कामण के कयने िारे का फोध हो। जैसे- सुनाय,
कहाय आहद।
हहन्दी व्माकयण 60
(खे) बाििाचक तवद्धत- णजससे बाि व्मि हो। जैसे-सयाणपा, फुढ़ाऩा, सॊगत, प्रबुता आहद।
(ग) सॊफॊधिाचक तवद्धत- णजससे सॊफॊध का फोध हो। जैसे-ससुयार, बतीजा, चचेया आहद।
(घ) ऊनता (रघुता) िाचक तवद्धत- णजससे रघुता का फोध हो। जैसे-रुहटमा।
(ड़) गणनािाचक तद्धधत- णजससे सॊख्मा का फोध हो। जैसे-इकहया, ऩहरा, ऩाॉचिाॉ आहद।
या दस
ू या, तीसया था चौथा
(छ) गुणिाचक तद्धधत- णजससे हकसी गुण का फोध हो। जैसे-बूखे, विषैरा, कुरिॊत
आहद।
अध्माम 19
सॊधध
सॊधध-सॊधध शब्द का अथण है भेर। दो धनकटिती िणं के ऩयस्ऩय भेर से जो विकाय
(ऩरयितणन) होता है िह सॊधध कहराता है । जैसे-सभ ्+तोष=सॊतोष। दे ि+इॊ द्र=दे िंद्र।
बानु+उदम=बानूदम।
सॊधध के बेद-सॊधध तीन प्रकाय की होती हं -
1. स्िय सॊधध।
2. व्मॊजन सॊधध।
3. विसगण सॊधध।
1. स्िय सॊधध
(घ) मण सॊधध
2. व्मॊजन सॊधध
व्मॊजन का व्मॊजन से अथिा हकसी स्िय से भेर होने ऩय जो ऩरयितणन होता है उसे
व्मॊजन सॊधध कहते हं । जैसे-शयत ्+चॊद्र=शयच्चॊद्र।
(क) हकसी िगण के ऩहरे िणण क् , च ्, ट्, त ्, ऩ ् का भेर हकसी िगण के तीसये अथिा चौथे
िणण मा म ्, य,् र ्, ि ्, ह मा हकसी स्िय से हो जाए तो क् को ग ् च ् को ज ्, ट् को ड् औय
ऩ ् को फ ् हो जाता है । जैसे-
क् +ग=ग्ग हदक् +गज=हदग्गज। क् +ई=गी िाक् +ईश=िागीश
च ्+अ=ज ् अच ्+अॊत=अजॊत ट्+आ=डा षट्+आनन=षडानन
ऩ+ज+ब्ज अऩ ्+ज=अब्ज
(खे) महद हकसी िगण के ऩहरे िणण (क् , च ्, ट्, त ्, ऩ ्) का भेर न ् मा भ ् िणण से हो तो
उसके स्थान ऩय उसी िगण का ऩाॉचिाॉ िणण हो जाता है । जैसे-
क् +भ=ड़् िाक् +भम=िाड़्भम च ्+न=ञ ् अच ्+नाश=अञ्नाश
ट्+भ=ण ् षट्+भास=षण्भास त ्+न=न ् उत ्+नमन=उन्नमन
ऩ ्+भ ्=भ ् अऩ ्+भम=अम्भम
(ग) त ् का भेर ग, घ, द, ध, फ, ब, म, य, ि मा हकसी स्िय से हो जाए तो द् हो जाता
है । जैसे-
त ्+ब=द्भ सत ्+बािना=सद्भािना त ्+ई=दी जगत ्+ईश=जगदीश
त ्+ब=द्भ बगित ्+बवि=बगिद्भवि त ्+य=द्र तत ्+रूऩ=तद्रऩ
ू
त ्+ध=द्ध सत ्+धभण=सद्धभण
(घ) त ् से ऩये च ् मा छ् होने ऩय च, ज ् मा झ ् होने ऩय ज ्, ट् मा ठ् होने ऩय ट्, ड् मा
ढ् होने ऩय ड् औय र होने ऩय र ् हो जाता है । जैसे-
त ्+च=च्च उत ्+चायण=उच्चायण त ्+ज=ज्ज सत ्+जन=सज्जन
त ्+झ=ज्झ उत ्+झहटका=उज्झहटका त ्+ट=ट्ट तत ्+टीका=तट्टीका
त ्+ड=ड्ड उत ्+डमन=उड्डमन त ्+र=ल्र उत ्+रास=उल्रास
(ड़) त ् का भेर महद श ् से हो तो त ् को च ् औय श ् का छ् फन जाता है । जैसे-
त ्+श ्=च्छ उत ्+श्वास=उच््िास त ्+श=च्छ उत ्+धशष्ट=उणच्छष्ट
त ्+श=च्छ सत ्+शास्त्र=सच्छास्त्र
(च) त ् का भेर महद ह् से हो तो त ् का द् औय ह् का ध ् हो जाता है । जैसे-
त ्+ह=द्ध उत ्+हाय=उद्धाय त ्+ह=द्ध उत ्+हयण=उद्धयण
त ्+ह=द्ध तत ्+हहत=तवद्धत
(छ) स्िय के फाद महद छ् िणण आ जाए तो छ् से ऩहरे च ् िणण फढ़ा हदमा जाता है ।
जैसे-
अ+छ=अच्छ स्ि+छॊ द=स्िच्छॊ द आ+छ=आच्छ आ+छादन=आच्छादन
हहन्दी व्माकयण 65
3. विसगण-सॊधध
विसगण (:) के फाद स्िय मा व्मॊजन आने ऩय विसगण भं जो विकाय होता है उसे विसगण-
सॊधध कहते हं । जैसे-भन्+अनुकूर=भनोनुकूर।
(क) विसगण के ऩहरे महद ‘अ’ औय फाद भं बी ‘अ’ अथिा िगं के तीसये , चौथे ऩाॉचिं
िणण, अथिा म, य, र, ि हो तो विसगण का ओ हो जाता है । जैसे-
भन्+अनुकूर=भनोनुकूर अध्+गधत=अधोगधत भन्+फर=भनोफर
(खे) विसगण से ऩहरे अ, आ को छोड़कय कोई स्िय हो औय फाद भं कोई स्िय हो, िगण
के तीसये , चौथे, ऩाॉचिं िणण अथिा म ्, य, र, ि, ह भं से कोई हो तो विसगण का य मा य ् हो
जाता है । जैसे-
धन्+आहाय=धनयाहाय धन्+आशा=धनयाशा धन्+धन=धनधणन
हहन्दी व्माकयण 66
(छ) विसगण के फाद क, खे अथिा ऩ, प होने ऩय विसगण भं कोई ऩरयितणन नहीॊ होता।
जैसे-
अॊत्+कयण=अॊत्कयण
अध्माम 20
सभास
सभास का तात्ऩमण है ‘सॊणऺप्तीकयण’। दो मा दो से अधधक शब्दं से धभरकय फने हुए
एक निीन एिॊ साथणक शब्द को सभास कहते हं । जैसे-‘यसोई के धरए घय’ इसे हभ
‘यसोईघय’ बी कह सकते हं ।
साभाधसक शब्द- सभास के धनमभं से धनधभणत शब्द साभाधसक शब्द कहराता है । इसे
सभस्तऩद बी कहते हं । सभास होने के फाद विबविमं के धचह्न (ऩयसगण) रुप्त हो जाते
हं । जैसे-याजऩुत्र।
सभास-विग्रह- साभाधसक शब्दं के फीच के सॊफॊध को स्ऩष्ट कयना सभास-विग्रह
कहराता है । जैसे-याजऩुत्र-याजा का ऩुत्र।
ऩूिऩ
ण द औय उत्तयऩद- सभास भं दो ऩद (शब्द) होते हं । ऩहरे ऩद को ऩूिऩ
ण द औय दस
ू ये
ऩद को उत्तयऩद कहते हं । जैसे-गॊगाजर। इसभं गॊगा ऩूिऩ
ण द औय जर उत्तयऩद है ।
हहन्दी व्माकयण 67
सभास के बेद
1. अव्ममीबाि सभास
2. तत्ऩुरुष सभास
सभस्त सभस्त
सभास-विग्रह सभात विग्रह
ऩद ऩद
सभस्त
सभात-विग्रह सभस्त ऩद सभास विग्रह
ऩद
णजस सभास के दोनं ऩद प्रधान होते हं तथा विग्रह कयने ऩय ‘औय’, अथिा, ‘मा’, एिॊ
रगता है , िह द्वॊ द्व सभास कहराता है । जैसे-
सभस्त
सभास-विग्रह सभस्त ऩद सभास-विग्रह
ऩद
ऩुण्म
सीता-
सीता औय याभ खेया-खेोटा खेया औय खेोटा
याभ
4. फहुव्रीहह सभास
सभस्त ऩद सभास-विग्रह
सॊधध िणं भं होती है । इसभं विबवि मा शब्द का रोऩ नहीॊ होता है । जैसे-
दे ि+आरम=दे िारम। सभास दो ऩदं भं होता है । सभास होने ऩय विबवि मा शब्दं का
रोऩ बी हो जाता है । जैसे-भाता-वऩता=भाता औय वऩता।
कभणधायम औय फहुव्रीहह सभास भं अॊतय- कभणधायम भं सभस्त-ऩद का एक ऩद दस
ू ये
का विशेषण होता है । इसभं शब्दाथण प्रधान होता है । जैसे-नीरकॊठ=नीरा कॊठ। फहुव्रीहह
भं सभस्त ऩद के दोनं ऩदं भं विशेषण-विशेष्म का सॊफॊध नहीॊ होता अवऩतु िह
सभस्त ऩद ही हकसी अन्म सॊऻाहद का विशेषण होता है । इसके साथ ही शब्दाथण गौण
होता है औय कोई धबन्नाथण ही प्रधान हो जाता है । जैसे-नीर+कॊठ=नीरा है कॊठ
णजसका अथाणत धशि।
हहन्दी व्माकयण 71
अध्माम 21
ऩद ऩरयचम
ऩद-ऩरयचम- िाक्मगत शब्दं के रूऩ औय उनका ऩायस्ऩरयक सॊफॊध फताने भं णजस
प्रहक्रमा की आिश्मकता ऩड़ती है िह ऩद-ऩरयचम मा शब्दफोध कहराता है ।
ऩरयबाषा-िाक्मगत प्रत्मेक ऩद (शब्द) का व्माकयण की दृवष्ट से ऩूणण ऩरयचम दे ना ही
ऩद-ऩरयचम कहराता है ।
शब्द आठ प्रकाय के होते हं -
1.सॊऻा- बेद, धरॊग, िचन, कायक, हक्रमा अथिा अन्म शब्दं से सॊफॊध।
2.सिणनाभ- बेद, ऩुरुष, धरॊग, िचन, कायक, हक्रमा अथिा अन्म शब्दं से सॊफॊध। हकस
सॊऻा के स्थान ऩय आमा है (महद ऩता हो)।
3.हक्रमा- बेद, धरॊग, िचन, प्रमोग, धातु, कार, िाच्म, कताण औय कभण से सॊफॊध।
4.विशेषण- बेद, धरॊग, िचन औय विशेष्म की विशेषता।
5.हक्रमा-विशेषण- बेद, णजस हक्रमा की विशेषता फताई गई हो उसके फाये भं धनदे श।
6.सॊफॊधफोधक- बेद, णजससे सॊफॊध है उसका धनदे श।
7.सभुच्चमफोधक- बेद, अणन्ित शब्द, िाक्माॊश मा िाक्म।
8.विस्भमाहदफोधक- बेद अथाणत कौन-सा बाि स्ऩष्ट कय यहा है ।
अध्माम 22
शब्द ऻान
1. ऩमाणमिाची शब्द
12 दस
ू यं ऩय उऩकाय कयने िारा उऩकायी
24 जो िन भं घूभता हो िनचय
30 दखे
ु ाॊत नाटक त्रासदी
67 जो हकसी ऩऺ भं न हो तटस्थ
84 जो उऩकाय भानता है कृ तऻ
97 जो ऩरयधचत न हो अऩरयधचत
5.सभोच्चरयत शब्द
1. अनर=आग
अधनर=हिा, िामु
2. उऩकाय=बराई, बरा कयना
अऩकाय=फुयाई, फुया कयना
3. अन्न=अनाज
हहन्दी व्माकयण 81
अन्म=दस
ू या
4. अणु=कण
अनु=ऩिात
5. ओय=तयप
औय=तथा
6. अधसत=कारा
अधशत=खेामा हुआ
7. अऩेऺा=तुरना भं
उऩेऺा=धनयादय, राऩयिाही
8. कर=सुॊदय, ऩुयजा
कार=सभम
9. अॊदय=बीतय
अॊतय=बेद
10. अॊक=गोद
अॊग=दे ह का बाग
11. कुर=िॊश
कूर=हकनाया
12. अश्व=घोड़ा
अश्भ=ऩत्थय
13. अधर=भ्रभय
आरी=सखेी
14. कृ धभ=कीट
कृ वष=खेेती
15. अऩचाय=अऩयाध उऩचाय=इराज
16. अन्माम=गैय-इॊ सापी
अन्मान्म=दस
ू ये -दस
ू ये
17. कृ धत=यचना
कृ ती=धनऩुण, ऩरयश्रभी
18. आभयण=भृत्मुऩमंत
आबयण=गहना
19. अिसान=अॊत
आसान=सयर
20. कधर=कधरमुग, झगड़ा
हहन्दी व्माकयण 82
करी=अधणखेरा पूर
21. इतय=दस
ू या
इत्र=सुगॊधधत द्रव्म
22. क्रभ=धसरधसरा कभण=काभ
23. ऩरुष=कठोय
ऩुरुष=आदभी
24. कुट=घय,हकरा
कूट=ऩिणत
25. कुच=स्तन
कूच=प्रस्थान
26. प्रसाद=कृ ऩा
प्रासादा=भहर
27. कुजन=दज
ु न
ण
कूजन=ऩणऺमं का करयि
28. गत=फीता हुआ गधत=चार
29. ऩानी=जर
ऩाणण=हाथ
30. गुय=उऩाम
गुरु=धशऺक, बायी
31. ग्रह=सूम,ण चॊद्र
गृह=घय
32. प्रकाय=तयह
प्राकाय=हकरा, घेया
33. चयण=ऩैय
चायण=बाट
34. धचय=ऩुयाना
चीय=िस्त्र
35. पन=साॉऩ का पन
फ़न=करा
36. छत्र=छामा
ऺत्र=ऺवत्रम,शवि
37. ढीठ=दष्ट
ु ,णजद्दी
डीठ=दृवष्ट
हहन्दी व्माकयण 83
38. फदन=दे ह
िदन=भुखे
39. तयणण=सूमण
तयणी=नौका
40. तयॊ ग=रहय
तुयॊग=घोड़ा
41. बिन=घय
बुिन=सॊसाय
42. तप्त=गयभ
तृप्त=सॊतुष्ट
43. हदन=हदिस
दीन=दरयद्र
44. बीधत=बम
धबवत्त=दीिाय
45. दशा=हारत
हदशा=तयफ़
46. द्रि=तयर ऩदाय
अथ द्रव्म=धन
47. बाषण=व्माख्मान
बीषण=बमॊकय
48. धया=ऩृथ्िी
धाया=प्रिाह
49. नम=नीधत
नि=नमा
50. धनिाणण=भोऺ
धनभाणण=फनाना
51. धनजणय=दे िता धनझणय=झयना
52. भत=याम
भधत=फुवद्ध
53. नेक=अच्छा
नेकु=तधनक
54. ऩथ=याह
ऩथ्म=योगी का आहाय
हहन्दी व्माकयण 84
55. भद=भस्ती
भद्य=भहदया
56. ऩरयणाभ=पर
ऩरयभाण=िजन
57. भणण=यत्नो
पणी=सऩण
58. भधरन=भैरा
म्रान=भुयझामा हुआ
59. भातृ=भाता
भात्र=केिर
60. यीधत=तयीका
यीता=खेारी
61. याज=शासन
याज=यहस्म
62. रधरत=सुॊदय
रधरता=गोऩी
63. रक्ष्म=उद्दे श्म
रऺ=राखे
64. िऺ=छाती
िृऺ=ऩेड़
65. िसन=िस्त्र
व्मसन=नशा, आदत
66. िासना=कुणत्सत
विचाय फास=गॊध
67. िस्तु=चीज
िास्तु=भकान
68. विजन=सुनसान
व्मजन=ऩॊखेा
69. शॊकय=धशि
सॊकय=धभधश्रत
70. हहम=रृदम
हम=घोड़ा
71. शय=फाण
हहन्दी व्माकयण 85
सय=ताराफ
72. शभ=सॊमभ
सभ=फयाफय
73. चक्रिाक=चकिा
चक्रिात=फिॊडय
74. शूय=िीय
सूय=अॊधा
75. सुधध=स्भयण
सुधी=फुवद्धभान
76. अबेद=अॊतय नहीॊ
अबेद्य=न टू टने मोग्म
77. सॊघ=सभुदाम
सॊग=साथ
78. सगण=अध्माम
स्िगण=एक रोक
79. प्रणम=प्रेभ
ऩरयणम=वििाह
80. सभथण=सऺभ
साभथ्मण=शवि
81. कहटफॊध=कभयफॊध
कहटफद्ध=तैमाय
82. क्राॊधत=विद्रोह
क्राॊधत=थकािट
83. इॊ हदया=रक्ष्भी
इॊ द्रा=इॊ द्राणी
6. अनेकाथणक शब्द
7. ऩशु-ऩणऺमं की फोधरमाॉ
डकयाना
धचहड़मा चहचहाना बंस फकयी धभधभमाना
(यॉ बाना)
काॉि-काॉि
हाथी धचघाड़ना कौआ साॉऩ पुपकायना
कयना
अरोहक
अगाभी आगाभी धरखेामी धरखेाई सप्ताहहक साप्ताहहक अरौहकक
क
उऩन्माधस औऩन्माधस
व्मोहाय व्मिहाय फयात फायात ऺत्रीम ऺवत्रम
क क
दधु नमाॊ दधु नमा धतथी धतधथ कारीदास काधरदास ऩूयती ऩूधतण
ऩरयणस्थ ऩरयणस्थ
अधतथी अधतधथ नीती नीधत गृहणी गृहहणी
त धत
धनरयऺ
आधशणिाद आशीिाणद धनयीऺण वफभायी फीभायी ऩणत्नो ऩत्नोी
ण
दस
ु या दस
ू या साधू साधु ये णू ये णु नुऩुय नूऩुय
इधतहाधस
ऐधतहाधसक दाइत्ि दाधमत्ि सेधनक सैधनक सैना सेना
क
भुल्मिा भूल्मिा
दस्
ु कय दष्ु कय धसयीभान श्रीभान भहाअन भहान
न न
दद
ु शाण दद
ु ण शा कवित्री किधमत्री प्रभात्भा ऩयभात्भा घधनष्ट घधनष्ठ
याजधबषे याज्माधबषे
वऩमास प्मास वितीत व्मतीत कृ प्मा कृ ऩा
क क
भानधस
व्मविक िैमविक भाॊधसक सभिाद सॊिाद सॊऩधत सॊऩवत्त
क
अध्माम 23
वियाभ धचह्न
वियाभ-धचह्न- ‘वियाभ’ शब्द का अथण है ‘रुकना’। जफ हभ अऩने बािं को बाषा के द्वाया
व्मि कयते हं तफ एक बाि की अधबव्मवि के फाद कुछ दे य रुकते हं , मह रुकना ही
वियाभ कहराता है ।
इस वियाभ को प्रकट कयने हे तु णजन कुछ धचह्नं का प्रमोग हकमा जाता है , वियाभ-धचह्न
कहराते हं । िे इस प्रकाय हं -
1. अल्ऩ वियाभ (,)- ऩढ़ते अथिा फोरते सभम फहुत थोड़ा रुकने के धरए अल्ऩ वियाभ-
धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-सीता, गीता औय रक्ष्भी। मह सुॊदय स्थर, जो आऩ
दे खे यहे हं , फाऩू की सभाधध है । हाधन-राब, जीिन-भयण, मश-अऩमश विधध हाथ।
2. अधण वियाभ (;)- जहाॉ अल्ऩ वियाभ की अऩेऺा कुछ ज्मादा दे य तक रुकना हो िहाॉ
इस अधण-वियाभ धचह्न का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे-सूमोदम हो गमा; अॊधकाय न जाने
कहाॉ रुप्त हो गमा।
3. ऩूणण वियाभ (।)- जहाॉ िाक्म ऩूणण होता है िहाॉ ऩूणण वियाभ-धचह्न का प्रमोग हकमा
जाता है । जैसे-भोहन ऩुस्तक ऩढ़ यहा है । िह पूर तोड़ता है ।
4. विस्भमाहदफोधक धचह्न (!)- विस्भम, हषण, शोक, घृणा आहद बािं को दशाणने िारे शब्द
के फाद अथिा कबी-कबी ऐसे िाक्माॊश मा िाक्म के अॊत भं बी विस्भमाहदफोधक धचह्न
का प्रमोग हकमा जाता है । जैसे- हाम ! िह फेचाया भाया गमा। िह तो अत्मॊत सुशीर
था ! फड़ा अफ़सोस है !
5. प्रश्निाचक धचह्न (?)- प्रश्निाचक िाक्मं के अॊत भं प्रश्निाचक धचह्न का प्रमोग हकमा
जाता है । जैसे-हकधय चरे ? तुभ कहाॉ यहते हो ?
6. कोष्ठक ()- इसका प्रमोग ऩद (शब्द) का अथण प्रकट कयने हे तु, क्रभ-फोध औय नाटक
मा एकाॊकी भं अधबनम के बािं को व्मि कयने के धरए हकमा जाता है । जैसे-धनयॊ तय
(रगाताय) व्मामाभ कयते यहने से दे ह (शयीय) स्िस्थ यहता है । विश्व के भहान याष्डं भं
(1) अभेरयका, (2) रूस, (3) चीन, (4) वब्रटे न आहद हं ।
नर-(णखेन्न होकय) ओय भेये दब
ु ाणग्म ! तूने दभमॊती को भेये साथ फाॉधकय उसे बी
जीिन-बय कष्ट हदमा।
7. धनदे शक धचह्न (-)- इसका प्रमोग विषम-विबाग सॊफॊधी प्रत्मेक शीषणक के आगे,
िाक्मं, िाक्माॊशं अथिा ऩदं के भध्म विचाय अथिा बाि को विधशष्ट रूऩ से व्मि
कयने हे त,ु उदाहयण अथिा जैसे के फाद, उद्धयण के अॊत भं, रेखेक के नाभ के ऩूिण औय
हहन्दी व्माकयण 90
अध्माम 24
िाक्म प्रकयण
िाक्म- एक विचाय को ऩूणत
ण ा से प्रकट कयने िारा शब्द-सभूह िाक्म कहराता है ।
जैसे- 1. श्माभ दध
ू ऩी यहा है । 2. भं बागते-बागते थक गमा। 3. मह हकतना सुॊदय
उऩिन है । 4. ओह ! आज तो गयभी के कायण प्राण धनकरे जा यहे हं । 5. िह भेहनत
कयता तो ऩास हो जाता।
मे सबी भुखे से धनकरने िारी साथणक ध्िधनमं के सभूह हं । अत् मे िाक्म हं । िाक्म
बाषा का चयभ अिमि है ।
िाक्म-खेॊड
कहते हं । जैसे-
1. अजुन
ण ने जमद्रथ को भाया।
2. कुत्ता बंक यहा है ।
3. तोता डार ऩय फैठा है ।
इनभं अजुन
ण ने, कुत्ता, तोता उद्दे श्म हं ; इनके विषम भं कुछ कहा गमा है । अथिा मं कह
सकते हं हक िाक्म भं जो कताण हो उसे उद्दे श्म कह सकते हं क्मंहक हकसी हक्रमा को
कयने के कायण िही भुख्म होता है ।
2. विधेम- उद्दे श्म के विषम भं जो कुछ कहा जाता है , अथिा उद्दे श्म (कताण) जो कुछ
कामण कयता है िह सफ विधेम कहराता है । जैसे-
1. अजुन
ण ने जमद्रथ को भाया।
2. कुत्ता बंक यहा है ।
3. तोता डार ऩय फैठा है ।
इनभं ‘जमद्रथ को भाया’, ‘बंक यहा है ’, ‘डार ऩय फैठा है ’ विधेम हं क्मंहक अजुन
ण ने,
कुत्ता, तोता,-इन उद्दे श्मं (कताणओॊ) के कामं के विषम भं क्रभश् भाया, बंक यहा है , फैठा
है , मे विधान हकए गए हं , अत् इन्हं विधेम कहते हं ।
उद्दे श्म का विस्ताय- कई फाय िाक्म भं उसका ऩरयचम दे ने िारे अन्म शब्द बी साथ
आए होते हं । मे अन्म शब्द उद्दे श्म का विस्ताय कहराते हं । जैसे-
1. सुॊदय ऩऺी डार ऩय फैठा है ।
2. कारा साॉऩ ऩेड़ के नीचे फैठा है ।
इनभं सुॊदय औय कारा शब्द उद्दे श्म का विस्ताय हं ।
उद्दे श्म भं धनम्नधरणखेत शब्द-बेदं का प्रमोग होता है -
(1) सॊऻा- घोड़ा बागता है ।
(2) सिणनाभ- िह जाता है ।
(3) विशेषण- विद्वान की सिणत्र ऩूजा होती है ।
(4) हक्रमा-विशेषण- (णजसका) बीतय-फाहय एक-सा हो।
(5) िाक्माॊश- झूठ फोरना ऩाऩ है ।
िाक्म के साधायण उद्दे श्म भं विशेषणाहद जोड़कय उसका विस्ताय कयते हं । उद्दे श्म का
विस्ताय नीचे धरखेे शब्दं के द्वाया प्रकट होता है -
(1) विशेषण से- अच्छा फारक आऻा का ऩारन कयता है ।
(2) सॊफॊध कायक से- दशणकं की बीड़ ने उसे घेय धरमा।
(3) िाक्माॊश से- काभ सीखेा हुआ कायीगय कहठनाई से धभरता है ।
विधेम का विस्ताय- भूर विधेम को ऩूणण कयने के धरए णजन शब्दं का प्रमोग हकमा
जाता है िे विधेम का विस्ताय कहराते हं । जैसे-िह अऩने ऩैन से धरखेता है । इसभं
हहन्दी व्माकयण 92
िाक्म-बेद
1. साधायण िाक्म
2. सॊमुि िाक्म
ऩरयणाभ होता है । जैसे- आज भुझे फहुत काभ है इसधरए भं तुम्हाये ऩास नहीॊ आ
सकूॉगा।
3. धभधश्रत िाक्म
िाक्म-ऩरयितणन
िाक्म के अथण भं हकसी तयह का ऩरयितणन हकए वफना उसे एक प्रकाय के िाक्म से
दस
ू ये प्रकाय के िाक्म भं ऩरयितणन कयना िाक्म-ऩरयितणन कहराता है ।
(1) साधायण िाक्मं का सॊमुि िाक्मं भं ऩरयितणन-
साधायण िाक्म सॊमुि िाक्म
हहन्दी व्माकयण 94
1. भं दध
ू ऩीकय सो गमा। भंने दध
ू वऩमा औय सो गमा।
2. िह ऩढ़ने के अरािा अखेफाय बी फेचता है । िह ऩढ़ता बी है औय अखेफाय बी फेचता
है
3. भंने घय ऩहुॉचकय सफ फच्चं को खेेरते हुए दे खेा। भंने घय ऩहुॉचकय दे खेा हक सफ
फच्चे खेेर यहे थे।
4. स्िास्थ्म ठीक न होने से भं काशी नहीॊ जा सका। भेया स्िास्थ्म ठीक नहीॊ था
इसधरए भं काशी नहीॊ जा सका।
5. सिेये तेज िषाण होने के कायण भं दर्फतय दे य से ऩहुॉचा। सिेये तेज िषाण हो यही थी
इसधरए भं दर्फतय दे य से ऩहुॉचा।
(2) सॊमुि िाक्मं का साधायण िाक्मं भं ऩरयितणन-
सॊमुि िाक्म साधायण िाक्म
1. वऩताजी अस्िस्थ हं इसधरए भुझे जाना ही ऩड़े गा। वऩताजी के अस्िस्थ होने के
कायण भुझे जाना ही ऩड़े गा।
2. उसने कहा औय भं भान गमा। उसके कहने से भं भान गमा।
3. िह केिर उऩन्मासकाय ही नहीॊ अवऩतु अच्छा ििा बी है । िह उऩन्मासकाय के
अधतरयि अच्छा ििा बी है ।
4. रू चर यही थी इसधरए भं घय से फाहय नहीॊ धनकर सका। रू चरने के कायण भं
घय से फाहय नहीॊ धनकर सका।
5. गाडण ने सीटी दी औय ट्रे न चर ऩड़ी। गाडण के सीटी दे ने ऩय ट्रे न चर ऩड़ी।
(3) साधायण िाक्मं का धभधश्रत िाक्मं भं ऩरयितणन-
साधायण िाक्म धभधश्रत िाक्म
1. हयधसॊगाय को दे खेते ही भुझे गीता की माद आ जाती है । जफ भं हयधसॊगाय की ओय
दे खेता हूॉ तफ भुझे गीता की माद आ जाती है ।
2. याष्ड के धरए भय धभटने िारा व्मवि सच्चा याष्डबि है । िह व्मवि सच्चा याष्डबि है
जो याष्ड के धरए भय धभटे ।
3. ऩैसे के वफना इॊ सान कुछ नहीॊ कय सकता। महद इॊ सान के ऩास ऩैसा नहीॊ है तो िह
कुछ नहीॊ कय सकता।
4. आधी यात होते-होते भंने काभ कयना फॊद कय हदमा। ज्मंही आधी यात हुई त्मंही
भंने काभ कयना फॊद कय हदमा।
(4) धभधश्रत िाक्मं का साधायण िाक्मं भं ऩरयितणन-
धभधश्रत िाक्म साधायण िाक्म
1. जो सॊतोषी होते हं िे सदै ि सुखेी यहते हं सॊतोषी सदै ि सुखेी यहते हं ।
2. महद तुभ नहीॊ ऩढ़ोगे तो ऩयीऺा भं सपर नहीॊ होगे। न ऩढ़ने की दशा भं तुभ
हहन्दी व्माकयण 95
िाक्म-विश्लेषण
अध्माम 25
अध्माम 26
भुहािये औय रोकोविमाॉ
भुहािया- कोई बी ऐसा िाक्माॊश जो अऩने साधायण अथण को छोड़कय हकसी विशेष अथण
को व्मि कये उसे भुहािया कहते हं ।
रोकोवि- रोकोविमाॉ रोक-अनुबि से फनती हं । हकसी सभाज ने जो कुछ अऩने रॊफे
अनुबि से सीखेा है उसे एक िाक्म भं फाॉध हदमा है । ऐसे िाक्मं को ही रोकोवि कहते
हं । इसे कहाित, जनश्रुधत आहद बी कहते हं ।
भुहािया औय रोकोवि भं अॊतय- भुहािया िाक्माॊश है औय इसका स्ितॊत्र रूऩ से प्रमोग
नहीॊ हकमा जा सकता। रोकोवि सॊऩूणण िाक्म है औय इसका प्रमोग स्ितॊत्र रूऩ से
हकमा जा सकता है । जैसे-‘होश उड़ जाना’ भुहािया है । ‘फकये की भाॉ कफ तक खेैय
भनाएगी’ रोकोवि है ।
कुछ प्रचधरत भुहािये
1. अॊग छूटा- (कसभ खेाना) भं अॊग छूकय कहता हूॉ साहफ, भैने ऩाजेफ नहीॊ दे खेी।
2. अॊग-अॊग भुसकाना-(फहुत प्रसन्न होना)- आज उसका अॊग-अॊग भुसकया यहा था।
3. अॊग-अॊग टू टना-(साये फदन भं ददण होना)-इस ज्िय ने तो भेया अॊग-अॊग तोड़कय यखे
हदमा।
4. अॊग-अॊग ढीरा होना-(फहुत थक जाना)- तुम्हाये साथ कर चरूॉगा। आज तो भेया
अॊग-अॊग ढीरा हो यहा है ।
2. अक्र-सॊफॊधी भुहािये
3. आॉखे-सॊफॊधी भुहािये
हहन्दी व्माकयण 100
1. करेजे ऩय हाथ यखेना-(अऩने हदर से ऩूछना)- अऩने करेजे ऩय हाथ यखेकय कहो
हक क्मा तुभने ऩैन नहीॊ तोड़ा।
हहन्दी व्माकयण 101
2. करेजा जरना-(तीव्र असॊतोष होना)- उसकी फातं सुनकय भेया करेजा जर उठा।
3. करेजा ठॊ डा होना-(सॊतोष हो जाना)- डाकुओॊ को ऩकड़ा हुआ दे खेकय गाॉि िारं का
करेजा ठॊ ढा हो गमा।
4. करेजा थाभना-(जी कड़ा कयना)- अऩने एकभात्र मुिा ऩुत्र की भृत्मु ऩय भाता-वऩता
करेजा थाभकय यह गए।
5. करेजे ऩय ऩत्थय यखेना-(दखे
ु भं बी धीयज यखेना)- उस फेचाये की क्मा कहते हं,
उसने तो करेजे ऩय ऩत्थय यखे धरमा है ।
6. करेजे ऩय साॉऩ रोटना-(ईष्माण से जरना)- श्रीयाभ के याज्माधबषेक का सभाचाय
सुनकय दासी भॊथया के करेजे ऩय साॉऩ रोटने रगा।
1. कान बयना-(चुगरी कयना)- अऩने साधथमं के विरुद्ध अध्माऩक के कान बयने िारे
विद्याथी अच्छे नहीॊ होते।
2. कान कतयना-(फहुत चतुय होना)- िह तो अबी से फड़े -फड़ं के कान कतयता है ।
3. कान का कच्चा-(सुनते ही हकसी फात ऩय विश्वास कयना)- जो भाधरक कान के
कच्चे होते हं िे बरे कभणचारयमं ऩय बी विश्वास नहीॊ कयते।
4. कान ऩय जूॉ तक न यं गना-(कुछ असय न होना)-भाॉ ने गौयि को फहुत सभझामा,
हकन्तु उसके कान ऩय जूॉ तक नहीॊ यं गी।
5. कानंकान खेफय न होना-(वफरकुर ऩता न चरना)-सोने के मे वफस्कुट रे जाओ,
हकसी को कानंकान खेफय न हो।
8. दाॉत-सॊफॊधी भुहािये
1. दाॉत ऩीसना-(फहुत ज्मादा गुस्सा कयना)- बरा भुझ ऩय दाॉत क्मं ऩीसते हो? शीशा
तो शॊकय ने तोड़ा है ।
2. दाॉत खेट्टे कयना-(फुयी तयह हयाना)- बायतीम सैधनकं ने ऩाहकस्तानी सैधनकं के
दाॉत खेट्टे कय हदए।
3. दाॉत काटी योटी-(घधनष्ठता, ऩक्की धभत्रता)- कबी याभ औय श्माभ भं दाॉत काटी योटी
थी ऩय आज एक-दस
ू ये के जानी दश्ु भन है ।
9. गयदन-सॊफॊधी भुहािये
1. गयदन झुकाना-(रणज्जत होना)- भेया साभना होते ही उसकी गयदन झुक गई।
2. गयदन ऩय सिाय होना-(ऩीछे ऩड़ना)- भेयी गयदन ऩय सिाय होने से तुम्हाया काभ
नहीॊ फनने िारा है ।
हहन्दी व्माकयण 103
हपया, आज ईश्वय की कृ ऩा है ।
24. दौड़-धूऩ कयना-(कठोय श्रभ कयना)-आज के मुग भं दौड़-धूऩ कयने से ही कुछ काभ
फन ऩाता है ।
25. धणज्जमाॉ उड़ाना-(नष्ट-भ्रष्ट कयना)-महद कोई बी याष्ड हभायी स्ितॊत्रता को हड़ऩना
चाहे गा तो हभ उसकी धणज्जमाॉ उड़ा दं गे।
26. नभक-धभचण रगाना-(फढ़ा-चढ़ाकय कहना)-आजकर सभाचायऩत्र हकसी बी फात को
इस प्रकाय नभक-धभचण रगाकय धरखेते हं हक जनसाधायण उस ऩय विश्वास कयने रग
जाता है ।
27. नौ-दो ग्मायह होना-(बाग जाना)- वफल्री को दे खेते ही चूहे नौ-दो ग्मायह हो गए।
28. पूॉक-पूॉककय कदभ यखेना-(सोच-सभझकय कदभ फढ़ाना)-जिानी भं पूॉक-पूॉककय
कदभ यखेना चाहहए।
29. फार-फार फचना-(फड़ी कहठनाई से फचना)-गाड़ी की टक्कय होने ऩय भेया धभत्र
फार-फार फच गमा।
30. बाड़ झंकना-(मंही सभम वफताना)-हदल्री भं आकय बी तुभने तीस सार तक बाड़
ही झंका है ।
31. भणक्खेमाॉ भायना-(धनकम्भे यहकय सभम वफताना)-मह सभम भणक्खेमाॉ भायने का
नहीॊ है , घय का कुछ काभ-काज ही कय रो।
32. भाथा ठनकना-(सॊदेह होना)- धसॊह के ऩॊजं के धनशान ये त ऩय दे खेते ही गीदड़ का
भाथा ठनक गमा।
33. धभट्टी खेयाफ कयना-(फुया हार कयना)-आजकर के नौजिानं ने फूढ़ं की धभट्टी
खेयाफ कय यखेी है ।
34. यॊ ग उड़ाना-(घफया जाना)-कारे नाग को दे खेते ही भेया यॊ ग उड़ गमा।
35. यपूचक्कय होना-(बाग जाना)-ऩुधरस को दे खेते ही फदभाश यपूचक्कय हो गए।
36. रोहे के चने चफाना-(फहुत कहठनाई से साभना कयना)- भुगर सम्राट अकफय को
याणाप्रताऩ के साथ टक्कय रेते सभम रोहे के चने चफाने ऩड़े ।
37. विष उगरना-(फुया-बरा कहना)-दम
ु ोधन को गाॊडीि धनुष का अऩभान कयते दे खे
अजुन
ण विष उगरने रगा।
38. श्रीगणेश कयना-(शुरू कयना)-आज फृहस्ऩधतिाय है , नए िषण की ऩढाई का श्रीगणेश
कय रो।
39. हजाभत फनाना-(ठगना)-मे हहप्ऩी न जाने हकतने बायतीमं की हजाभत फना चुके
हं ।
40. शैतान के कान कतयना-(फहुत चाराक होना)-तुभ तो शैतान के बी कान कतयने
िारे हो, फेचाये याभनाथ की तुम्हाये साभने वफसात ही क्मा है ?
हहन्दी व्माकयण 107
41. याई का ऩहाड़ फनाना-(छोटी-सी फात को फहुत फढ़ा दे ना)- तधनक-सी फात के धरए
तुभने याई का ऩहाड़ फना हदमा।
1. अधजर गगयी छरकत जाए-(कभ गुण िारा व्मवि हदखेािा फहुत कयता है )- श्माभ
फातं तो ऐसी कयता है जैसे हय विषम भं भास्टय हो, िास्ति भं उसे हकसी विषम का
बी ऩूया ऻान नहीॊ-अधजर गगयी छरकत जाए।
2. अफ ऩछताए होत क्मा, जफ धचहड़माॉ चुग गई खेेत-(सभम धनकर जाने ऩय ऩछताने
से क्मा राब)- साया सार तुभने ऩुस्तकं खेोरकय नहीॊ दे खेीॊ। अफ ऩछताए होत क्मा,
जफ धचहड़माॉ चुग गई खेेत।
3. आभ के आभ गुठधरमं के दाभ-(दग
ु ुना राब)- हहन्दी ऩढ़ने से एक तो आऩ नई
बाषा सीखेकय नौकयी ऩय ऩदोन्नधत कय सकते हं , दस
ू ये हहन्दी के उच्च साहहत्म का
यसास्िादन कय सकते हं , इसे कहते हं -आभ के आभ गुठधरमं के दाभ।
4. ऊॉची दक
ु ान पीका ऩकिान-(केिर ऊऩयी हदखेािा कयना)- कनॉटप्रेस के अनेक
स्टोय फड़े प्रधसद्ध है , ऩय सफ घहटमा दजे का भार फेचते हं । सच है , ऊॉची दक
ु ान पीका
ऩकिान।
5. घय का बेदी रॊका ढाए-(आऩसी पूट के कायण बेद खेोरना)-कई व्मवि ऩहरे काॊग्रेस
भं थे, अफ जनता (एस) ऩाटी भं धभरकय काग्रंस की फुयाई कयते हं । सच है , घय का
बेदी रॊका ढाए।
6. णजसकी राठी उसकी बंस-(शविशारी की विजम होती है )- अॊग्रेजं ने सेना के फर
ऩय फॊगार ऩय अधधकाय कय धरमा था-णजसकी राठी उसकी बंस।
7. जर भं यहकय भगय से िैय-(हकसी के आश्रम भं यहकय उससे शत्रुता भोर रेना)- जो
बायत भं यहकय विदे शं का गुणगान कयते हं , उनके धरए िही कहाित है हक जर भं
यहकय भगय से िैय।
8. थोथा चना फाजे घना-(णजसभं सत नहीॊ होता िह हदखेािा कयता है )- गजंद्र ने अबी
दसिीॊ की ऩयीऺा ऩास की है , औय आरोचना अऩने फड़े -फड़े गुरुजनं की कयता है । थोथा
चना फाजे घना।
9. दध
ू का दध
ू ऩानी का ऩानी-(सच औय झूठ का ठीक पैसरा)- सयऩॊच ने दध
ू का
दध
ू ,ऩानी का ऩानी कय हदखेामा, असरी दोषी भॊगू को ही दॊ ड धभरा।
10. दयू के ढोर सुहािने-(जो चीजं दयू से अच्छी रगती हं)- उनके भसूयी िारे फॊगरे
की फहुत प्रशॊसा सुनते थे हकन्तु िहाॉ दग
ु ध
ं के भाये तॊग आकय हभाये भुखे से धनकर
ही गमा-दयू के ढोर सुहािने।
11. न यहे गा फाॉस, न फजेगी फाॉसुयी-(कायण के नष्ट होने ऩय कामण न होना)- साया हदन
हहन्दी व्माकयण 108
रड़के आभं के धरए ऩत्थय भायते यहते थे। हभने आॉगन भं से आभ का िृऺ की
कटिा हदमा। न यहे गा फाॉस, न फजेगी फाॉसुयी।
12. नाच न जाने आॉगन टे ढ़ा-(काभ कयना नहीॊ आना औय फहाने फनाना)-जफ यिीॊद्र ने
कहा हक कोई गीत सुनाइए, तो सुनीर फोरा, ‘आज सभम नहीॊ है ’। हपय हकसी हदन
कहा तो कहने रगा, ‘आज भूड नहीॊ है ’। सच है , नाच न जाने आॉगन टे ढ़ा।
13. वफन भाॉगे भोती धभरे, भाॉगे धभरे न बीखे-(भाॉगे वफना अच्छी िस्तु की प्राधप्त हो
जाती है , भाॉगने ऩय साधायण बी नहीॊ धभरती)- अध्माऩकं ने भाॉगं के धरए हड़तार
कय दी, ऩय उन्हं क्मा धभरा ? इनसे तो फैक कभणचायी अच्छे यहे , उनका बत्ता फढ़ा हदमा
गमा। वफन भाॉगे भोती धभरे, भाॉगे धभरे न बीखे।
14. भान न भान भं तेया भेहभान-(जफयदस्ती हकसी का भेहभान फनना)-एक अभेरयकन
कहने रगा, भं एक भास आऩके ऩास यहकय आऩके यहन-सहन का अध्ममन करूॉगा।
भंने भन भं कहा, अजफ आदभी है , भान न भान भं तेया भेहभान।
15. भन चॊगा तो कठौती भं गॊगा-(महद भन ऩवित्र है तो घय ही तीथण है )-बैमा
याभेश्वयभ जाकय क्मा कयोगे ? घय ऩय ही ईशस्तुधत कयो। भन चॊगा तो कठौती भं
गॊगा।
16. दोनं हाथं भं रड्डू -(दोनं ओय राब)- भहं द्र को इधय उच्च ऩद धभर यहा था औय
उधय अभेरयका से िजीपा उसके तो दोनं हाथं भं रड्डू थे।
17. नमा नौ हदन ऩुयाना सौ हदन-(नई िस्तुओॊ का विश्वास नहीॊ होता, ऩुयानी िस्तु
हटकाऊ होती है )- अफ बायतीम जनता का मह विश्वास है हक इस सयकाय से तो ऩहरी
सयकाय हपय बी अच्छी थी। नमा नौ हदन, ऩुयाना नौ हदन।
18. फगर भं छुयी भुॉह भं याभ-याभ-(बीतय से शत्रुता औय ऊऩय से भीठी फातं)-
साम्राज्मिादी आज बी कुछ याष्डं को उन्नधत की आशा हदराकय उन्हं अऩने अधीन
यखेना चाहते हं , ऩयन्तु अफ सबी दे श सभझ गए हं हक उनकी फगर भं छुयी औय भुॉह
भं याभ-याभ है ।
19. रातं के बूत फातं से नहीॊ भानते-(शयायती सभझाने से िश भं नहीॊ आते)- सरीभ
फड़ा शयायती है , ऩय उसके अब्फा उसे प्माय से सभझाना चाहते हं । हकन्तु िे नहीॊ जानते
हक रातं के बूत फातं से नहीॊ भानते।
20. सहज ऩके जो भीठा होम-(धीये -धीये हकए जाने िारा कामण स्थामी परदामक होता
है )- विनोफा बािे का विचाय था हक बूधभ सुधाय धीये -धीये औय शाॊधतऩूिक
ण राना चाहहए
क्मंहक सहज ऩके सो भीठा होम।
21. साॉऩ भये राठी न टू टे -(हाधन बी न हो औय काभ बी फन जाए)- घनश्माभ को
उसकी दष्ट
ु ता का ऐसा भजा चखेाओ हक फदनाभी बी न हो औय उसे दॊ ड बी धभर
जाए। फस मही सभझो हक साॉऩ बी भय जाए औय राठी बी न टू टे ।
हहन्दी व्माकयण 109
Reference
http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4883&booktype=free