Vous êtes sur la page 1sur 1

इस्लाम का इतिहास – भाग 9

अब्राहा ने तिस साल में मक्का पर हमला तकया था वो इस्लातमक इतिहासकारोों के अनुसार 570 AD था..
इस साल से ही इस्लातमक इतिहास का पहला अध्याय शु रू होिा है .. इतसलए इस घटना तक बड़ी महत्ता
है .. इसे “हाथी का वर्ष” (The Year Of Elephant) के नाम से िाना िािा है .. हाथी ही था तिसने
से नापति की बाि न मानी और काबा को ध्वस्त न तकया.. कुरआन में भी इस घटना का वर्ष न सु रह
“अल-फील” (हाथी) में है .. ज़्यादािर इतिहासकार इस बाि पर एकमि होिे हैं तक ये घटना इस्लातमक
“मुहरष म” के महीने में हुई थी और पैगम्बर मुहम्मद (SAW) का िन्म “रबी-उल-अव्वल” में, यानी इस
घटना के करीब पचास तदनोों के बाद

अरब के उस दौर के ज़्यादािर कबीले बों िारोों वाला िीवन ही व्यिीि करिे थे करिे थे.. मगर काबा तक
स्थायी आमदनी और रखरखाव ने धीरे धीरे “कुरै श” के कुछ वों शोों को मक्का और उसके आस पास स्थायी
रूप से रहने को मिबू र कर तदया था.. “कुरै श” के कुछ वों श भले ही स्थायी रूप से एक िगह रहने
लगे होों मगर उनके तदलोों में अभी भी “मरुस्थल” और बों िारोों िैसी आज़ादी की तज़न्दगी का महत्त्व घर
करिा था.. उनकी ये धारर्ा थी तक मरुस्थल और उसकी गमष हवाएों इों सान के शरीर तक प्रतिरोधक क्षमिा
बढािी है और इसतलए वो अपने होने वाले बच्चे को कम से कम कुछ सालोों िक मरुस्थल के िीवन में
प्रतशक्षर् के तलए भे ििे थे..

मरुस्थल के िीवन और कबीलोों के साथ एक और बाि िुडी थी तिसे “स्थायी” रूप से बस चुके कबीले
अतधक महत्त्व दे िे थे.. और वो थी “भार्ा”.. उस दौर के अरब में भार्ा तसफष अपनी बाि कहने का ही
एक माध्यम नही ों समझी िािी थी.. बल्कि तकस बाि को तकस रूप में कहना है इसको अरब वासी बहुि
महत्त्व दे िे थे.. ये गवष का तवर्य होिा था तक तकसी घर में कोई “कतव” हो.. बाि को “कतविाओों” तक
िरह कहने और थोड़े से शब्ोों में अतधक समझा दे ने को समझदारी और शालीनिा का पैमाना समझा िािा
था.. इस बाि को अगर आप ध्यान में रखेंगे िो आगे आपको “क़ुरान” की भार्ा, िो तक गद्य के बिाये
पद्य अतधक है , का ये स्वरुप समझने में आसानी होगी.. कुरै श के बों िारे कबीले बच्चोों को ये तशक्षा दे िे थे
और इसीतलए “स्थायी” रूप से बस चुके लोग अपने नविाि को इनके पास भे ििे थे

बच्चा पैदा होने पर “कुलीन” घरोों की माएों अपने बच्चोों को इन “कबीले” तक औरिोों को दे िी थी. ों . िो
उनके बच्चोों को दू ध तपलाने से लेकर अन्य “पुरािन अरब” तशक्षाएों दे िी थी.
ों . बदले में कबीले तक औरिोों
को एक अच्छी रकम और बच्चे से पूरी उम्र का एक बों धन तमलिा था.. शुरुवाि के कम से कम पाों च
साल िो बच्चे अपनी मााँ से दू र इन कबीले तक औरिोों के पास रहकर ही पलिे बढ़िे थे..

मुहम्मद के पैदा होने के बाद “आतमना” (मुहम्मद तक मााँ ) “बनू साद” वों श की औरिोों का इों िज़ार कर
रही थी.ों . िातक वो आयें और मुहम्मद को अपने साथ ले िाएाँ , दू ध तपलाने और “अरब तक मान्यिाओों”
तक तशक्षा दे ने के तलए.. “बनू साद” के लोग मुख्यिः बहुईश्वर वादी थे और तवतभन्न दे वी और दे विाओों तक
अराधना करिे थे

क्रमशः ..

#इस्लाम_का_इतिहास

~िातबश

Vous aimerez peut-être aussi