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मैंने सोचा था

अगर मौत सी


पहले पहले
मैंने स&37ा थ&#236
अग&#235 दुनिया क&2375;
वीरानों में
मैंने सोचा था
अगर हस्ती की
शमशानों में
किसी इंसान को
बस एक भी इंसान
की गर
सच्ची बेलाग
मोहब्बत कहीं
हो जाए नसीब
वोही साहिल जो
बहुत दूर नज़र
आता है
खुद-बा-खुद
खींचता चला
आता है कश्ती
के करीब
मैंने सोचा था
यूं ही दिल के
कँवल खिलते
हैं
मैंने सोचा था
यूं ही सब्र-ओ-
सुकून मिलते
हैं
मैंने सोचा था
यूं ही ज़ख्म-ए-
जिगर सिलते
हैं

लेकिन?
सोचने ही से
मुरादें तो
नहीं मिल जाती
ऐसा होता तो हर
इक दिल की
तमन्ना खिलती
कोशिशें लाख
सही बात नहीं
बनती है
ऐसा होता तो हर
इक राही को
मंज़िल मिलती
मैंने सोचा था
के इंसान की
किस्मत अक्सर
फूट जाती है
भिखरती है
संभल जाती है
अप्सरा चाँद
की बदली से
निकल जाती है
पर मेरे बख्त
की गर्दिश का
तो कुछ अंत
नहीं
खुश्क धरती भी
तो मंज्धार
बनी जाती है
क्या
मुक़द्दर से
शिकायत क्या
ज़माने से गिला
खुद मेरी सांस
ही तलवार बनी
जाती है

हाय? फिर भी


सोचता हूँ?
रात की सियाही
में तारों के
दिये जलते हैं
खून जब रोता है
दिल गीत तभी
ढलतें है
जिनको जीना है
वो मरने से
नहीं डरते हैं
इस लिए?
मेरा प्याला
है जो खाली तो
ये खाली ही सही
मुझको होंटों
से लगाने दो
यूं ही पीने दो
ज़िन्दगी
मेरी हर इक
मोड़ पे नाकाम
सही
फिर भी
उम्मीदों को
पल भर के लिखे
जीने दो

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