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लेकिन?
सोचने ही से
मुरादें तो
नहीं मिल जाती
ऐसा होता तो हर
इक दिल की
तमन्ना खिलती
कोशिशें लाख
सही बात नहीं
बनती है
ऐसा होता तो हर
इक राही को
मंज़िल मिलती
मैंने सोचा था
के इंसान की
किस्मत अक्सर
फूट जाती है
भिखरती है
संभल जाती है
अप्सरा चाँद
की बदली से
निकल जाती है
पर मेरे बख्त
की गर्दिश का
तो कुछ अंत
नहीं
खुश्क धरती भी
तो मंज्धार
बनी जाती है
क्या
मुक़द्दर से
शिकायत क्या
ज़माने से गिला
खुद मेरी सांस
ही तलवार बनी
जाती है