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जाने-अनजाने में हुई भूल के ललए दे वी दु र्ाा से क्षमा माां र्ने के ललए एक बहुत ही प्रलसद्ध स् तोत्र

है दे व्यपराधक्षमापनस् तोत्रम् सार यही है लक माां ममतामयी होती हैं , वे अपने पुत्रोां के सारे अपराध क्षमा कर
दे ती हैं , क्योांलक पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है , पर माता कभी कुमाता नहीां होती.

हे मात:! मैं तु म्हारा मांत्र, यांत्र, स् तुलत, आवाहन, ध्यान, स् तुलतकथा, मुद्रा और लवलाप कुछ भी नहीां जानता.
परां तु सब प्रकार के क्लेशोां को दू र करने वाला आपका अनुसरण करना ही जानता हां ||1||

सबका उद्धार करने वाली हे करुणामयी माता! तुम्हारी पूजा की लवलध न जानने के कारण, धन के अभाव में ,
आलस्य से और उन लवलधयोां को अच्छी तरह न कर सकने के कारण तुम्हारे चरणोां की सेवा करने में जो
भू ल हुई हो, उसे क्षमा करो, क्योांलक पूत तो कुपूत हो जाता है , पर माता कुमाता नहीां होती. ||2||

माां ! पृ थ्वी पर तुम्हारे सरल पुत्र तो अनक हैं , पर उनमें एक मैं लवरला ही बडा चांचल हां . तो भी हे लशवे! मुझे
त् यार् दे ना तु म्हें उलचत नहीां, क्योांलक पूत तो कुपूत हो जाता है , पर माता कुमाता नहीां होती. ||3||

हे जर्दम्ब, हे मात:! मैंने तुम्हारे चरण की सेवा नहीां की, तुम्हारे ललए भरपूर धन भी समपाण नहीां लकया. तो
भी मे रे ऊपर यलद तुम ऐसा अनुपम स् नेह रखती हो, तो यह सच ही है लक क्योांलक पूत तो कुपूत हो जाता है ,
पर माता कुमाता नहीां होती. ||4||

हे र्णे शजनलन! मैंने इतनी आयु बीत जाने पर अनेक लवलधयोां से पूजा करने से घबराकर सभी दे वोां को छोड
लदया है . यलद इस समय तुम्हारी कृपा न हो, तो मैं लनराधार होकर लकसकी शरण में जाऊ. ||5||

हे माता अपणे! यलद तुम्हारे मांत्राक्षरोां के कान में पडते ही चाां डाल भी लमठाई के समान सुमधुर वाणी से यु क्त
बडा भारी वक्ता बन जाता है और महादररद्र भी करोडपलत बनकर लचरकाल तक लनभाय लवचरता है , तो
उसके जप का अनुष्ठान करने पर जप से जो फल होता है , उसे कौन जान सकता है . ||6||

जो लचता का भस् म रमाए हैं , लवष खाते हैं , नांर्े रहते हैं , जटा-जूट बाां धे हैं , र्ले में सपामाल पहने हैं , हाथ में
खप् पर ललए हैं , पशुपलत और भूतोां के स् वामी हैं , ऐसे लशवजी ने भी एकमात्र जर्दीश्वर की पदवी पाई है , वह
हे भवालन! तु म्हारे साथ लववाह होने का ही फल है .||7||

हे चां द्रमु खी माता! मुझे मोक्ष की इच् छा नहीां है . साां साररक वैभव की भी लालसा नहीां है . लवज्ञान और सुख की
भी अलभलाषा नहीां है . इसललए मैं तुमसे यही माां र्ता हां लक मेरी सारी आयु मृडानी, रुद्राणी, लशव-लशव, भवानी
आलद नामोां के जपते-जपते ही बीते. ||8||

हे श् यामे! मैं ने अनेक उपचारोां से तुम्हारी सेवा नहीां की. अलनष्टलचांतन में तत्पर अपने वचनोां से मैंने क्या
नहीां लकया. लफर भी मुझ अनाथ पर यलद तुम कुछ कृपा रखती हो, तो यह तुम्हें बहुत ही उलचत है , क्योांलक
तु म मे री माता हो. ||9||

हे दु र्े, हे दयासार्र महे श्वरी! जब मैं लकसी लवपत्तल में पडता हां , तो तुम्हारा ही स् मरण करता हां . इसे तुम
मे री दु ष्टता मत समझना, क्योांलक भूखे-प्यासे बालक अपनी माां को ही याद लकया करते हैं . ||10||

हे जर्ज्जननी! मुझ पर तुम्हारी पूणा कृपा है , इसमें आश्चया ही क्या है , क्योांलक अनेक अपराधोां से युक्त
पु त्र को भी माता त्यार् नहीां दे ती.||11||

हे महादे लव! मेरे समान कोई पापी नहीां है और तुम्हारे समान कोई पाप नाश करने वाली नहीां है , यह
जानकार जै से उलचत समझो, वैसा करो. ||12||

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